Sunday 2 September 2018

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अंक~३

#जब_ज्ञानी_विवेकी_भक्त_जनों_की_निंदा_होने_लगती_है!!
       
मेरे प्रियतमजी को प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! आज श्री कृष्णजी की अवतरण जन्म तीथि पर भाव-सभर हम आप उनके श्री चरणोदक चरणामृत  का पान करती हुवे भागवत् चर्चा कर रहे हैं--

अब पुनश्च  निबंध को आगे बढाती हुवे मैं आपसे कुछ समझने का प्रयत्न करती हूँ, मेरे स्वामीजी की तीन मातायें भागवत में कही गयी हैं--
(१)- सात्विक माँ!! देवकी!!
(२)- राजसिक माँ!! यशोदा!!
(३)- तमोगुणी माँ!! पूतना!!
लेकिन!!पुत्र तो वो तीनों के ही नहीं थे!!

जैसे की •गी•६•३७•वें श्लोक को आप देखें- वहाँ अर्जुन कहते हैं कि- #कां_गतिं_कृष्ण_गच्छति ?
"कृष्ण"अर्थात खींचने वाले,जैसे कि चुम्बक!!आप विचार करेंगे तो आश्चर्यचकित से रह जायेंगे!!जैसे कि कर्मानुसार ही प्रारब्ध का निर्माण होता है!!ये अत्यंत ही गहन किन्तु सुगम्य विषय भी है!!मुझमें आपमें जन्मजात और स्वाभाविक रूप से ही किसी न किसी प्रकार की श्रद्धा होती ही है!!

#त्रिविधा_भवति_श्रद्धा_देहिनां_सास्वभावजा।
#सात्विकी_राजसी_चैव_तामसी_चेति_तां_श्रृणु।।

और हे प्रिय!!इनमें जो दूरी होती है वो तो और भी अद्भुत तथा नैसर्गिक होती है!!सात्विक-राजसिक तथा तामसिक इन तीनों ही प्रकार के गुणों,स्वभावों तथा श्रद्धा में परस्पर दसगुने का अंतर होता है!! और यह सांख्यिकीय गणित कुछ समझनी तो होगी ही!!

जैसे की मैं तमोगुणी हूँ!! तो मुझसे दस गुनी दूरियों पर !!मुझसे दस गुना श्रेष्ठ #रजोगुणी प्रवृत्ति के लोग होंगे-■•••••••••○ किन्तु जो आप जैसे श्रेष्ठतम सात्विक पुरूष होंगे!! वे तो रजोगुण से भी दसगुणा ज्यादा दूरी पर होंगे न!! अर्थात ○○○○○○○○○○ ° अर्थात हे प्रिय!!मुझ तमोगुणी से तो रजोगुणी प्रवृत्तियों के लोग दस मील के अंतर पर हैं!!थोड़ा समीप हैं!!किन्तु आप सतोगुणी लोग तो मुझसे १०० मील की दूरी पे हो!!

इतनी दूरी है मुझमें और आपमें!!इतना विशाल अंतर है आपमें और मुझमें!!पुनश्च आप ध्यान रखें कि-
(१)=तमोगुण से रजोगुण यदि १० मील दूर है तो!!
(२)=रजोगुण से सतोगुण ९० मील दूर है!!
किन्तु मेरे प्रियतमजी तो ऐसे चुंबक हैं कि उन्हें तो अपनी तीनों ही माताओं को अपनी तरफ खींचना है!!

और वे कर्मफल नियंता भी हैं!!न्याधीश भी हैं!!दयालू भी हैं!!अकारणकरुणावरुणालय भी हैं!! निरपेक्ष और तटस्थ भी हैं!! इन सारे के सारे विशेषणों को उन्हे एकसाथ क्रियान्वित और सिद्ध भी करना है!!तो वे क्या करते हैं!!मैं इसपर भी चर्चा करती हूँ!!

हे प्रिय!!आप ध्यान रखें कि आप सतोगुणी हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है कि आप उनके मित्र हैं!!और यदि मैं तमोगुणी हूँ तो वे मुझसे शत्रुता रखते हैं!!
हाँ!!ये सम्भव है कि मैं उनसे शत्रुता रखने वाली पूतना हूँ!!और आप उनसे मित्रता रखने वाले देवकी
हो!!

अब होता क्या है कि- कां गतिं कृष्ण गच्छति ?" मेरे कर्मानुसारमेरे कर्मों का फल तो नर्क और अधोगति ही है न!!और वे न्यायाधीश तथा नियंता भी हैं!!तो वे मुझे नर्कों की तरफ ही खिंचेंगे!!मैं अपने प्रारब्धानुसार जाऊँगी तो नर्कों में ही!!किन्तु!! वहाँ जाना मेरी नियति होते हुवे भी यह भी उनकी अपार करुणा ही है!!अर्थात वे मुझें अधोगति में ले जाकर!!अपने कर्मदण्डों को नर्कों में भुगता कर!! मेरे पापों का नाश करके पूनश्च राजसिक तथा सात्विक गुणों में स्थापित करेंगे!!

अभी इसमें और भी कुछ मैं आपसे समझना चाहूँगी!! ये जो श्रद्दा है न वह संग अथवा शास्त्रों से नहीं हुवा करती!!यह तो स्वभावजा है!!नैसर्गिक है!!और इसी कारण सम्पत्तियाँ भी दो ही प्रकार की होती हैं!! दैवी सम्पदा और आसुरी सम्पदा!! अर्थात सम्पत्ति है यदि तो भोगने के लिये ही है!! भोगनी ही पड़ेगी!!

और इसी कारण-"सात्विकी राजसी चैव तामसी" सात्विकी दैवी सम्पदा है!! और राजसिक तथा तामसिक आसुरी सम्पदा है!! और साथ ही- #निबन्धायासुरीमता अर्थात हे प्रियजी!!राजसिक तथा तामसिक प्रवृत्तियों में भी कुछ भेद है!!यशोदा तथा पूतना में भेद है!!और देवकीय सम्पदा में भी भेद है!!

रजोगुणी प्रवृत्तियों के लोग शास्त्र विहित कर्मोंको करते हैं!!सकाम भावसे करते हैं और स्वर्गादिलोकोंके भोगों को भोगकर- #क्षीणे_पुण्ये_मत्र्यलोकं_विशन्ति
और मेरे जैसी तमोगुणी तो- #अधो_गच्छन्ति_तामसाः
किन्तु अभी तो ये भी मैं आपसे समझना चाहूँगी कि,•गी•१७•४•में कहते हैं कि-
#यजन्ते_सात्विका_देवान्यक्षरक्षांसि_राजसाः।
#प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये_यजन्ते_तामसा_जनाः।।

हे प्रिय!!आप ध्यान दें!! यहाँ "देव" शब्द द्वीआयामी है!! #पञ्चदेवोपासना अर्थात पंचतत्वात्मकीय साधना!! #विष्णु_शिव_गणपति_देवी_तथा_सूर्य अर्थात १२ आदित्य,८ वसु, ११ रूद्र और २ अश्विनीकुमार अर्थात १२+८+११+२=३३ कोटि अर्थात प्रकार के देवता गण!!

अफ जिन्होंने देवी-सम्पदाओं की पूजा की!!आराधना की!!वे उन्हे ही प्राप्त हुवे!!
और जिन्होंने "यक्षरक्षांसि राजसाः" क्षर अर्थात नाशवान सम्पत्तियों की आराधना की!! #यक्ष जिनका क्षय होगा ही #राक्षस #रक्षोऽहं संस्कृतियों के उपासक!!जिनमें राष्ट्र,धर्म,संस्कृति,शास्त्रों और संस्कारों की रक्षात्मक प्रवृत्ति है!! और जिस हेतु वे किसी का विनाश करने अथवा अपना बलिदान देने को तत्पर हैं!! वे राजसिक प्रवृत्ति के याजक "यक्ष,किन्नर,राक्षस" बनते हैं कुछ श्रेष्ठ गति को ही पाते हैं!!

किन्तु-" प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः" भूत-प्रेतों के उपासक तो भूत प्रेत ही बनेंगे!!
शेष अगले अंक में लेकर उपस्थित होती हूँ #सुतपा"

#आज_मैं_आपको_अपने_नवीन_ब्लाॅग_की_लिंक_भी_दे_रही_हूँ --
http://sutapadevididi.blogspot.com/2018/09/blog-post_2.html?m=1

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