Sunday 2 September 2018

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अंक~४

#सद्_और_असद्_दोनोंही_वृत्तियोंके_स्वामी_उनकी_शरण_में_हैं_किन्तु_दोनोंकी_अपेक्षा_में_अंतर_है!!

मेरे प्रियतमजी को प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!
अवतरण का एक माहात्म्य होता है,उद्रेश्य होता है,लक्ष्य होता है,-उसे समझने हेतु!देखने हेतु!चर्म श्रृवण यंत्र या चर्म चक्षु कभी भी सक्षम नही हो सकते!!इसके लिये-दिव्य नेत्रों की आवश्यकता होती है।और वह "अलौकिक" दिव्य चक्षु!!अलौकिक सत्ता की कृपा से ही प्राप्त होती हैं!!

आपका न्यायालय अगर!!आपको किसी विषय में आपके पक्ष में निर्णय देता है तो यह निर्णय उसकी कृपा तो है ही किंतु!!उससे कहीं हजार गुणा ज्यादा आपकी उस संदर्भ में योग्यता ही उसके मूल में होती है।

"अर्जुन"की पात्रता थी!गोपियों में पात्रता थी!भिष्म पितामह में पात्रता थी,द्रौपदी में पात्रता थी!!भगवद् शब्द स्पष्ट हैं कि-जो मुझे इस प्रकार तत्व से जानता है,मेरी "निर्मलता" को जानता है!!निर्मलता!!अर्थात जहाँ मलीनता का बिल्कुल अभाव हो,निष्पक्षता हो,निर्लेपिता हो,दयाद्रता हो,करुणा हो!! ऐसे तत्व से जो मेरे प्रियतमजी को जानते हैं!! वह निश्चय ही जब अपने शरीर का त्याग करता है तो पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होते!!वे परम भागवत् तत्व में ही विलीन हो जाते हैं।

और हे प्रिय!!!!इसे ही स्पष्ट करने हेतु कहते हैं कि----
#यदा_यदा_हि_धर्मस्य_ग्लानिर्भवति_भारत।
#अभ्युत्थानमधर्मस्य_तदात्मानं_सृजाम्यहम्।।
हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की
वृद्धि होती है, तब-तब मैं ही अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ।।

गीता जी में भगवन् इसके पश्चात कहते हैं कि!! जब-जब "भारत" में धर्म की हानि होती है!!अद्भुत संबोधन है यह!!रहस्य-मय!!ईश्वर! सार्व-भौमिक होता है,किसी एक राष्ट्र,समुदाय या ब्यक्ति विशेष का पक्ष-धर नहीं होता,और न ही उसकी वाणी किसी एक समुदाय-देश-व्यक्ति,पंथ,भाषायी के लिये होती है।

"भारत"---( भा + रत )भा!!ज्ञान को कहते हैं,विवेक को कहते हैं,सद्विद्या को कहते हैं।
और जो झान में रत है,वह भारत है!
जो विवेक में रत है वह भारत है!
जो विद्या में रत है वही भारतीय भी है!!

मेरे प्रियतमजी!!किन्ही भूमि अथवा गृह-पिण्डों के घेरे में बंधे हुवे नहीं हैं!!वे तो सद् और असद् संस्कारों के दृष्टा हैं!!अन्याय का पक्ष लेते नहीं!!किन्तु न्याय-पक्षीय को स्वयम ही अपना पक्ष मजबूत करने की प्रेरणा देते हैं!! युद्ध तो आपको ही करना होगा!! अब आप विचार करें!उन्होंने दुर्योधन को अपनी शस्त्र-सम्पन्न शक्तिशाली #नारायणी_सेना दे दी थी!! और स्वयम निहत्थे अपने आपको अर्जुन को सौंप दिया था!!

इसमें भी एक भेद है!!जब महाभारत हेतु कौरव- पाण्डव राजाओं को आमंत्रित कर रहे थे तो दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही कान्हाजी के पास गये!! उस समय माधवजी सो रहे थे!! और जब ब्रम्हा को मधु- कैटभ सता रहे थे,तो भी मधुसूदनजी सो ही रहे थे!!वे तो समदर्शी हैं!!उनके लिये दैवी-आसुरी वृत्तियों के प्रति भेद नहीं है!!वे तो सबकी सहायता करना चाहते हैं!! ये तो हमपर निर्भर करता है कि हम उनकी कैसी सहायता लेना चाहते हैं!!

अब दुर्योधन पहले आये थे!!वे भगवान के सिरहाने बैठ गये!!और अर्जुन आकर उनके श्रीचरणों में बैठकर उनके पाँव दबाने लगे!! मेरे पियाजी की निद्रा अब खुलती है!! क्यों कि यही तो न्याय का उचित समय है!सद् और असद् दोनों ही वृत्तियों के स्वामी उनकी शरण में हैं!!किन्तु दोनों की अपेक्षा में अंतर है!!

और हे प्रिय!!जैसे ही विष्णुदेव की निद्रा खुलती है!! वे ब्रम्हा से पूछते हैं कि तुझे क्या चाहिये तो ब्रम्हा कहते हैं कि #त्राहिमाम आप मेरी,सृष्टि और सत्य की रक्षा करो!! मैं आपकी शरण में हूँ!!
तब नारायणजी ने मधु-कैटभ से पूछा,तुझे क्या चाहिये ?
तो उसने कहा कि मैं आपसे युद्ध करना चाहता हूँ!!मेरी चुनौती को आप स्वीकार करो!!

मेरे प्रियतमजी ने कहा कि देख लो ,सोच समझ लो आप दोनों!!एक तरफ मैं निहत्था हूँ,और दूसरी तरफ मेरी शक्ति-सम्पन्न विराट् नारायणी सेना!!किसे क्या चाहिये!!बोलो दुर्योधन आप को मैं क्या दूँ ?
तो दुर्योधन कहते हैं कि मैं आप निहत्थे का क्या करूँगा!! आप मुझे अपनी सेना दे दो!!

और जब अर्जुन से पूछा कि हे अर्जुन!!तुझे क्या चाहिये ?
तो अर्जुन कहते हैं कि #बस_आप!! मुझे आपकी आवस्यकता है!!आप मेरे सारथी,मंत्री बन जायें!! बस मुझे और कुछ भी नहीं चाहिये!!हाँ प्रिय!!यही अंतर है #दैवी_और_आसुरी_सम्पदाओं_में!!

शेष अगले अंक में लेकर उपस्थित होती हूँ #सुतपा"
#आज_मैं_आपको_अपने_नवीन_ब्लाॅग_की_लिंक_भी_दे_रही_हूँ --
http://sutapadevididi.blogspot.com/2018/09/blog-post_2.html?m=1

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