Saturday 15 September 2018

विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र~१८ अंक~१६


#भै_शब्द_ही_पुरुष_है_तथा_रव_ध्वनि_ही_स्त्री_है!!
       
अब विज्ञान भैरव तंत्र  यह अट्ठारहवाँ श्लोक मैं  आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ, #श्री_भैरव_उवाच--
#शक्तिशक्तिमतोर्यद्वत्_अभेदः_सर्वदा_स्थितः।
#अतस्तद्धर्मधर्मित्वात्_परा_शक्तिः_परात्मनः।।१८।।

हे प्रिय !!अब मेरे प्रियतम भैरवजी अपनी सूरता  रूपी शिवा से कहते हैं कि-" शक्तिशक्तिमतोर्यद्वत्"
भैरव की,शब्द रूपी वज्र की एक विशेष अवस्था ही #भैरवी है!! मैं आपको एक बात बताती हूँ-पदार्थ का अस्तित्व!!पुरूष का अस्तित्व शक्ति से ही आभासित होता है, वैसे तो वे एक शव मात्र ही हैं!!और मैं अस्तित्व हीना #अंधकार_स्वरूपा_अविद्या"!!हम दोनों ही अभेद हैं!!शक्ति और शक्तिमान,अनुभव और अनुभव-कर्ता इन दोनों को आप कदापि पृथक-पृथक कर ही नहीं सकते,मैं आपको एक भेद की बात बताती हूँ--
#योषित्_तावद्भवेत्_प्रज्ञा_उपायः_पुरुषः_स्मृतः।
#पश्चादनयोद्वैर्विंध्यं_विवृतिसंवृतिभेदतः।।

"भैरवी"प्रज्ञा को कहते हैं और प्रज्ञा प्राप्ति का उपाय ही #भैरव"हैं!!और इनकी आवृत्ति तथा प्रवृत्ति ही इनके भेदात्मक दृष्ट होने के कारण हैं!!मैं इसे आपसे समझने का प्रयास करती हूँ!"भै---रव"के दो अंग होते हैं, भै=शब्द तथा रव=ध्वनि अब आप ही विचार करें कि शब्द तथा ध्वनि पृथक पृथक होते हुवे भी-पृथक नहीं किये जा सकते!!भै (शब्द)--ही पुरुष है,तथा"रव"(ध्वनि)ही स्त्री है!!हे मेरे ह्रदय के प्रिय सखा!! मैं और भी स्पष्ट करती हूँ कि- भै--(शब्द) और"रवी"(सती,सूरता) उसकी तरंग को ,ध्वनि को कहते हैं! अर्थात "भैरव-भैरवी" पृथक किये ही नहीं जा सकते!! सूत्र भी यही स्पष्ट करता है कि "अभेदः सर्वदा स्थितः" ये सदैव अभेद ही स्थित हैं!!अब आप ही विचार करें कि"पदार्थ"की अब तक की ज्ञात सूक्ष्मतम् इकाई को #परमाणु कहते हैं,और परमाणु का अन्वेषण,उसका महत्व"पारमाणविक-उर्जा"से ही है!! और आप जितना गहेराई से विचार करेंगे-उतना ही यह स्पष्ट होता जायेगा कि #भावनायें ही वस्तुतः "ऊर्जा"हैं!!

आगे कहते हैं कि- #पश्चादनयोद्वैर्विंध्यं शक्ति,आभास, अनुभूति,सूरता, अर्थात जो मैं अपने स्वामीजी में र्सवज्ञता,नित्यता,सत्,चैतन्यता, आनंदमयता,आदि गुणों को देखती हूँ उसे ही"विज्ञान भैरव तंत्र"ने मुझ स्त्री का!!प्रकृति का वास्तविक स्वरूप बताया है!!और ऐसा ही सभी सच्छास्त्र तथा ज्ञानी-जनों से भी मैं सुनी तथा अनुभव भी की हूँ!!

और इस प्रकार इस श्लोक के उपसंहार में यही स्पष्ट होता है कि-"परा शक्तिः परात्मनः"--
अब मैं एक काम करती हूँ,उनके साथ जुड़े र्सवज्ञता, नित्यता,सत्,चैतन्यता,आनंदमयता,आदि इन सभी विशेषणों को अर्थात अपने आप को हटा देती हूँ!! तो पहली बात तो यह कि क्या ये विशेषण हटाये जा सकते हैं ?

और यदि एक बार मान भी लूँ कि हटा दिये जाते हैं तो उन"स्वामीजी"का और इन विशेषण स्वरूपा मेरा क्या औचित्य ? अतः हे प्रिय!! वे शब्द स्वरूप मेरे कान्हाजी ही मेरे"भैरव"हैं!!और मैं उनकी"सूरता" स्वरूपिणी राधिका"भैरवी"हूँ........सुतपा!!

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