Friday 14 September 2018

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~१५

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~१५

#यदि_सौभाग्य_से_सद्गुरु_ईष्ट_की_सिद्धि_होती_है_तो_आप_उनसे_उन्हीं_को_माँग_लो!!

मेरी प्रियसखी एवम् प्यारे सखा वृंद!!अनेकानेक लोगों के आग्रह तथा अंतःप्रेरणा के वशीभूत हुयी मैं अपने प्रियतमजी के श्रीचरणों में अर्पित करती हुयी इस स्तोत्र की बाल-प्रबोधिनी का ४४ वाँ पुष्प निवेदत करती हूँ-

#पूजावसानसमये_दशवक्त्रगीतं,
             #यः शम्भुपूजनपरंपठति_प्रदोषे।
#तस्य_स्थिरां_रथगजेन्द्रतुरड़्गयुक्तां,
           #लक्ष्मीं_सदैव_सुमुखीं_प्रददाति_शम्भुः।।

अपनी आराधना के अंतिम समय में,सिद्धि प्राप्त होने के अंतिम छणों में!! अर्थात जब आपकी आराधना आपके सद्गुरु देव,ईष्ट अथवा आराध्य ने स्वीकार कर ली!!जब वे आप पर प्रशन्न हो गये!!और असली परीक्षा की अंतिम बेला तो वही है!!

हे प्रिय!हजारों हजार सालों तक दशाननने तपस्या की!
हजारों हजार सालों तक हीरण्याक्ष ने तपस्या की!!
हजारों हजार सालों तक भस्मासुर ने तपस्या की!!
हजारों हजार सालों तक कर्ण ने तपस्या की!!
हजारों हजार सालों तक घटोत्कच्छ ने तपस्या की!!
हजारों हजार सालों तक महिषासुर ने तपस्या की!!
हजारों हजार सालोंतक हीरण्यकश्यप ने तपस्या की!!

किन्तु जब फल-श्रुति,प्राप्ति के पल आये तो वे भटक गये!!उन्होंने मायापति से मुझे माँग लिया!!और वो भी माँगा तो माँगा!!किन्तु निर्लज्ज हो गये!!मेरे प्रियतमजी ने उनसे कहा था कि "तुझे इस त्रिलोकी में जो कुछ भी चाहिये!!माँग ले! और इन्होंने उनसे मुझे माँग लिया!!मैं उनकी पत्नी हूँ और इन्होंने ये भुला दिया कि मैं इनकी #माँ हूँ!!इन लोगों ने माँ को ही #भोग्या के रूप भें माँग लिया!! खैर फिर भी उनका अंततः कल्याण तो हुवा ही!!किन्तु-

घ्रुव ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
प्रहेलाद ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
नारदजी ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
दधीचि ने हजारों हजार सालों तक ने तपस्या की!!
कण्व ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
नचिकेता ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
मार्कण्डेय ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
बुद्ध ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!
महावीर ने हजारों हजार सालों तक तपस्या की!!

इन्होंने उनसे मुझे नहीं माँगा!!अपितु बस इतना ही कहा कि- #यथा_योग्यं_तथा_कुरू!!
#हमको_हमीं_से_चुरा_लो_दिल_में_मुझे_तुम_छुपा_लो!!
#खो_ना_जायें_हम_कहीं_पास_आओ_गले_से_लगा_लो!!

हे प्रिय!!मैं इस श्लोक का खण्डन नहीं करती!!मेरा ये अभिप्राय कत्तई नहीं है!!मैं तो यह कहना चाहती हूँ कि यदि सौभाग्य से सद्गुरु,ईष्ट की सिद्धि होती है!!तो आप उनसे उन्हीं को माँग लो-
#जनम_जनम_रुचि_राम_पद_यह_वरदानु_न_आनु।

हे प्रिय!!आप मेरे जैसे बनोगे ?
हाँ!!मैं आपको उनकी प्रेयसी बनने का निमन्त्रण देती हूँ!!
मैं आपको उनकी चरण-दासी बनने का निमंत्रण देती हूँ!!
मैं सच कहती हूँ मैं आपको स्त्री बनाना चाहती हूँ!!

ये स्त्रैणता,समर्पिता,ममता,प्रेम और अहर्निशा की तड़प आपमें जगा देना चाहती हूँ-
#दरद_की_मारी_बन_बन_भटकूं_बैद_ना_मिलिया_कोय।
आपको लक्ष्मी चाहिये न!!तो ये लक्ष्मी भी दो प्रकार की हैं,और दोनों ही आपको मेरे प्रियतमजी दे सकते हैं-" लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः" सुमुखी और दुर्मुखी लक्ष्मी!! गरूण वाहिनी अथवा फिर ऊलूक वाहिनी!!और ये लक्ष्मी-" रथगजेन्द्रतुरड़्गयुक्तां" यदि ऐसी होगी तो निःसंदेह अंततः कष्टदायी "भोग्या"ही होगी!!

ये आपको दशानन से रावण बनाकर रख देगी!!भला किसी की पत्नी को उससे लेकर आप अपने पास रखोगे,तो वो आपका हित चाहेगी तो कैसे चाहेगी ?
हे प्रिय!! आप तो बस इतना ही करो कि मुझे,शक्ति को,शिवा अथवा राधिका को,लक्ष्मी अथवा सरस्वती को!!अपनी ममतामयी-वात्सल्य की प्रतिमूर्ति #माँ के रूप में स्वीकार कर लो!! आप मेरी सन्तान बन जाओ!!

तो वो आपके पिताजी!! मेरे पती सदैव ही प्राण-प्रण से आपकी #पत् रखेंगे!!
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरड़्गयुक्तां,
    लक्ष्मीं सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः"

इसी के साथ इस श्लोक की प्रबोधिनी तथा दशानन कृत शिवताण्डवस्तोत्र की बाल प्रबोधिनी को पूर्ण करती हूँ !!उपसंहार करती हूँ!!आप सबको ह्यदय से प्रणाम करती हूँ!! .... #सुतपा!!

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