Saturday 15 September 2018

पितृसूक्त ९~२

पितृ-सूक्त मंत्र-९~२ अंक~२०

#अग्नि_देवता_ही_आप_और_देवताओं_तथा_आप_और_आपके_पितरों_के_मध्य_एक_सेतु_हैं

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में ९ वीं ऋचा के द्वितीय अंक को समर्पित करती हूँ!!

#ये_तातृषुर्देवत्रा_जेहमानाहोत्राविदः #स्तोमतष्टासो_अर्कैः।#आग्नेयाहिसुविदत्रेभिरर्वाङ्सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः।।

हे प्रिय!!पुनश्च इस ऋचा के द्वितीय अंक में मैं आपसे-" सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः"पर चर्चा करती हूँ!!ऋषि कहते हैं कि-"ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्वासू और धर्म-नामक हविके पास बैठनेवाले"कव्य" नामक हमारे पितर देवलोकों में स्वाँस लेने तक की अवधि में व्याकुल हो गये हैं!!

अब मैं इसे आपसे समझती हूँ!!आप ज्योतिषीय अथवा शास्त्रीय किसी भी विधि से समझें,आप किसी भी मत-मतान्त, की दृष्टियों से देखें!! आपकी आत्मा ये स्वीकार करेगी कि आपके पूर्वज आपसे संतुष्ट हैं अथवा असंतोष के कारण आपसे रूष्ट हैं!!जब किसी अपने आश्रित अथवा अपने शुभचिंतक की आप अवहेलना करोगे,तो भला उसे शाँति कैसे मिलेगी और यदि वो अशांत होंगे तो आपको या मुझे शाँति कैसे मिलेगी ?

अभी कुछ दिनों पूर्व मेरी पडोस में किसी का त्रयोदशाह था!!इस हेतु आचार्यों ने शय्यादानादि के संदर्भ में स्पष्ट कह दिया कि आप १५००० ₹ दे देना!!हम लोग पूरी सामग्री ले आयेंगे!! हमारी दक्षिणा आप पृथक से देना!! अब ये सामग्रियों उनके सामाजिक स्तरानुसार कम से कम ४०००० ₹ की थीं!!तो यजमान सहर्ष सहमत हो गये!!

(१)=और त्रयोदशाह पर पुरोहितों ने पुरानी शय्या,पात्र, आसन, वस्त्र, कलश,नारियल तक लाकर उन्हीं से पूरी विधि सम्पन्न करा दी!!न जाने कितने लोगों की शय्यादान से लेकर अन्यान्य कर्मकाण्डों में इन्ही एक सामग्रियों का उपयोग किया जाता रहा और आगे भी होता रहेगा!!

(२)=मैं देखती हूँ कि जब भी मैं कभी किसी आध्यात्मिक उद्देश्यों से किसी वस्त्र तथा पात्रादि जिन्हे आचार्यों को दान देना हो!!अथवा कि मंदिरों में चढाना हो!!तो सस्ते और बिल्कुल घटिया स्तर की सामग्रियों का ही मैं चयन करती हूँ!!

(३)=जब भी मैं अपने लिये चावल-दाल सब्जी बनाती हूँ तो बैठकर चश्मा लगाकर कायदे से उनमें से कंकड़-पत्थर बिनकर धोकर तब पकाती हूँ,किन्तु यज्ञों हेतु तिल,जौ आदि सामग्रियों के साथ ऐसा तो नहीं करती ?

(४)=आचार्य गण भी अपनी मन मर्जी से दक्षिणा पहले ही नियत कर लेते हैं!! और यदि वे ऐसा नहीं करते तब तो मैं उनके अथक परिश्रमों को नजरअंदाज करती हुयी उन्हे कम से कम दक्षिणा देने का घृणित प्रयास करती हूँ!!

(५)=योग्य आचार्यों को मैं मँहगे होंगे ये सोचकर मंत्र, उच्चारण, विधियों से अनभिज्ञ लोगों से कर्मकाण्डादि कराती हूँ!!तो वो तो अधूरी होगी ही!!

हे प्रिय!!भूखे हैं आपके पूर्वज!!आपके देवता निर्बल होते जा रहे हैं!!यज्ञादि श्रेष्ठ कर्म अपनी शास्त्रीय विधाओं की दयनीय स्थिति पर!!आपके ऋषि अश्रुपात कर रहे हैं!! न जाने कब से आपकी अँजली उन्हें नही मिली!!वे धर्म-वेदी पर बैठकर आपकी राह देख रहे हैं!!

और ऐसी स्थिति में निःसंदेह उनका श्राप हमको लगेगा ही!! वे अतृप्त आत्मायें हमें भी चैन से जीने नहीं देंगी!!तो इस हेतु हम-आप क्या कर सकते हैं,एक यक्ष प्रश्न है!!और इसका उत्तर मैं आपके साथ मिलकर ढूंढने की कोशिश करती हूँ!!और जहाँ तक मैं समझती हूँ तो इनका उत्तर यह पित्तसूक्त ही अपनी अगली ऋचाओं के माध्यम से हमें देगा!! क्योंकि त्रिकालदर्शी हमारे ऋषियों को प्रथम ही इन संभावनाओं का आभास हो चुका था!!

हे प्रिय!! आगे पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-"आग्नेयाहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः"अर्थात उन पितरों को साथ लेकर हे अग्नि देव!! आप यहाँ उपस्थित हों!!अर्थात अग्नि देवता ही आप और देवताओं तथा आप और आपके पितरों के मध्य एक सेतु हैं!!

ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना होत्राविदः स्तोम तष्टासो अर्कैः।आग्नेयाहि सुविदत्रेभिरर्वाङ् सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः।।
अनेक प्रकार के हवि-द्रव्योंके ज्ञानी अर्कों से स्तोमोंकी सहायता से जिनका निर्माण किया है,ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्वासू और धर्म-नामक हविके पास बैठनेवाले"कव्य" नामक हमारे पितर देवलोकों में स्वाँस लेने तक की अवधि में व्याकुल हो गये हैं!!उनको साथ लेकर हे अग्नि देव!! आप यहाँ उपस्थित हों!!

और इसी के साथ इस ऋचा की प्रबोधिनी पूर्ण करती हूँ!!सूक्त की १० वीं ऋचा के साथ पुनः उपस्थित होती हूँ!..... #सुतपा!!

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