Friday 14 September 2018

पितृसूक्त ~९\१

पितृ-सूक्त मंत्र-९~१ अंक~१९

#याजक_पुरोहितों_तथा_ब्रम्हाओं_को_इन_विधाओं_में_न_कोई_रुचि_है_और_न_ही_इनका_ज्ञान!!

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में ९ वीं ऋचा के प्रथम अंक को समर्पित करती हूँ!!
वैसे मैं आपको यह भी बताना उचित समझतीं हूँ कि पिछली ८ ऋचाओं में पितरों से श्राद्धादि कर्मों में प्रार्थना हेतु की गयी हैं तथा ये आगे की ६ ऋचायें अग्नि से प्रार्थित हैं कि वे पितरों को लेकर हविष्य ग्रहण करने हेतु पधारने की कृपा करें!!

#ये_तातृषुर्देवत्रा_जेहमानाहोत्राविदः #स्तोमतष्टासो_अर्कैः।#आग्नेयाहिसुविदत्रेभिरर्वाङ्सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः।।
अनेक प्रकार के हवि-द्रव्योंके ज्ञानी अर्कों से स्तोमोंकी सहायता सेजिनका निर्माण किया है,ऐसेउत्तम ज्ञानी, विश्वासू और धर्म-नामक हविके पास बैठनेवाले"कव्य" नामक हमारे पितर देवलोकों में स्वाँस लेने तक की अवधि में व्याकुल हो गये हैं!!उनको साथ लेकर हे अग्नि देव!! आप यहाँ उपस्थित हों!!

हे प्रिय!! पुनश्च इस ऋचा में ऋषि कहते हैं कि-"होत्राविदः स्तोम तष्टासो अर्कैः"अर्थात विज्ञ ज्ञानी याजक तथा पुरोहितों द्वारा जिस नाना प्रकार के अर्कों से यह हविष्य आपके लिये बनायी गयी है!! अर्थात ये तो निश्चित ही है कि हविष्य में निर्मित "सोमरस" अर्कों द्वारा अर्थात द्रव्यों के सार-तत्त्व से ही निर्माण करने की परम्परा है!!जिसका अब लोप प्राय होता जा रहा है!!

ये #मद्यपों के कारण अर्कों की निर्माण पद्धतियाँ इतनी दुःषित तथा भ्रष्ट हो चुकी हैं कि अर्कों और मद्य के भेद को भी सामान्य समाज न जानता है और न ही जानने की कोशिश ही करता है!! जबकि यह चरकादि आयुर्विदों द्वारा इसके अंतर को अनेक पुस्तकों में स्पष्ट रूप से पृथक-पृथक समझाया गया है!!

(१)=जैसेकि दशमूलारिष्ट,अशोकारिष्ट,अर्जुनारिष्ट,अश्वगंधा रिष्ट, धृतकुमार्यासव,त्रिफलासव,महामञ्जिष्ठासव आदि के निर्माण हेतु उनमें रखी जाने वाली कास्ठ औषधियों को एक घड़े में जल-मधु तथा खाँड़ के साथ रखकर उसमें धातकी-पुष्पों को डालकर तदोपरान्त घड़े के मुख को कपड़-मिट्टी से भली-भाँति बंदकर ९० दिनों तक भूमि में गाड़ने के उपरान्त उन्हे निकालकर भली-भाँति छानकर चिकित्सकों के परामर्शोनुसार व्याधियों में सेवन का विधान है---ये- #अर्क नहीं हैं!! और इन्हे आप मदिरा भी नहीं कह सकते!!

(२)=और दूसरी तरफ द्राक्ष अथवा महुवा को सड़ाकर और अब तो उसमें यूरिया तथा आपकी ऐवरेडी जैसी बैटरियों के अंदर के कार्बन डालकर उनका पाताल-यंत्र से अर्क निकाला जाता है जिसे आप अब #शराब कहते हैं-यह भी "अर्क"नहीं है!!कीड़े पण जाते हैं इसमें!! और इसे ही लोग देवी-देवताओं को चढाकर अपने आपको धार्मिक होने का ढोंग करते हैं!!और पीकर #गटर में गिरते हैं!!

(३)=पुदीना,तुलसी,सौंफ,खस,चन्दन,गुलाब,कमल,दूर्वा, अजवाइन आदि अनेकानेक ताजी औषधियों को रात्रि- काल में जल और थोड़ी सी शर्करा के साथ भिंगो देते हैं तथा प्रातःकालमें पाताल यंत्र से उसका अर्क निकालते हैं!!यह सांसारिक रूप से- आयुर्विज्ञान की दृष्टि से शुद्ध-अर्क कहा जाता है!! किन्तु #सोमरस यह भी नहीं है!!

(४)=हे प्रिय!! यज्ञ-भूमि में तत्काल ही अष्ट-वर्गादि औषधियों के निकाले हुवे अर्क में मधु तथा गो-दुग्ध को मिश्रित कर जिसको देवताओं को अर्पित करने हेतु निर्मित किया जाता है #सोमरस उसे कहते हैं!!वैसे यव,दूर्वा,तिल का भी प्रयोग आप सोमरस हेतु करें तो भी कोई हर्ज़ नहीं है!!

और पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-"ये तातृषुर्देवत्रा जेहमाना ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्वासू जन ही #होता अथवा पुरोहित हो सकते हैं!!अर्थात श्राद्धादि कर्म पूर्णतया वैज्ञानिकीय विधियों से ही यदि की जाती है तभी आपके पूर्वजों को वो आपकी यज्ञ-भूमि तक आकर्षित करने में सक्षम हो सकती है!! आज मैं देखती हूँ कि जहाँ देखो वहाँ यज्ञादि कर्म हो रहे हैं; किन्तु ७० % याजक,पुरोहितों तथा ब्रम्हाओं को इन विधाओं में न कोई रुचि हैऔर न ही इनका ज्ञान!!

ऋचा में आगे कहते हैं कि-"सत्यैःकव्यैःपितृभिर्धर्मसभ्दिः -धर्म-नामक हविके पास बैठने वाले"कव्य" नामक हमारे पितर देवलोकों में स्वाँस लेने तक की अवधि में व्याकुल हो गये हैं!!हे प्रिय आप यह निश्चित रूप से मान लें कि जिस प्रकार आपकी हविष्यों से तृप्त हुवे देवताओं के द्वारा हुयी वर्षा से आप तृप्त होते हैं!! और ऐसा मेरे प्रियतम जी ने गीता में कहा भी है!!

और यदि ये यज्ञादि क्रियायें शास्त्रोक्त विधाओं से न हों तो देवता क्लान्त तथा दुर्बल हो जायेंगे!! और वे क्लान्त, निर्बल तथा रूष्ट हुवे देवगण!!और परिणातः वृष्टि-अनावृष्टि, भूमि-कम्प,जल-प्रलय,नैसर्गिक प्रकृति का पराभव,दुर्भिक्ष तथा नाना प्रकार की आपदायें हमें कष्ट देंगी!! और दैवीय शक्तियों के पराभव से आसुरी सम्पदाओं का विकास भी होगा!! उन्हे प्रोत्साहन मिलेगा!!

इसी के साथ ऋचाके इस अंक को यहाँ विश्राम देती हूँ और शीघ्र ही इसके अगले अंक के साथ उपस्थित होती हूँ--- #सुतपा!!

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