Thursday 13 September 2018

पितृसूक्त~८\१

पितृ-सूक्त मंत्र-८~१ अंक~१७

#हम_अंतरिक्ष_में_परमात्मा_में_ह्यदयाकाश_में_रहते_हैं!!

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में ८ वीं ऋचा के प्रथम अंक को समर्पित करती हूँ!!

#येनः #पूर्वे_पितरः #सोम्यासो_ऽनुहिरेसोमपीथं_वशिष्ठाः।
#तैभिर्यमः र्सरराणो_हवीर्ष्युशन्नुशभ्दिः #प्रतिकाममत्तु।।(यम के सोमपानोपरान्त)पुनश्च ऋषि कहते हैं कि सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुल के सोमपायी पितर यहाँ उपस्थित हो गये हैं,वे हमें उपकृत करने के लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कंठित होकर यह राजा यम हमारे द्वारा समर्पित हविको अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें।।

हे प्रिय!!यह तो आप सभी ने अभी तक अनुमान लगा ही लिया होगा कि पितर अर्थात धूममार्गीय जीवों पर अधिकार #यम अर्थात काल का ही होता है!! देवतादि और पितर इनके मध्य के सेतु को भी आप "यमराज"कह सकते हैं!!प्रसिद्ध ऋषि #वाजश्रवा ने अपने पुत्र नचिकेता को खीझकर कहा था कि- #मृत्यवे_त्वा_ददामीति!!

और यह भी स्मरण रखें कि नचिकेता का तृतीय प्रश्न था कि- #अस्तीत्येके_नायमस्तीति_चैके ?
अर्थात आत्मा की सत्ता है या नहीं ?
अर्थात मैं यह कहना चाहती हूँ कि जो सूक्त कहता है कि "सोमपीथं वशिष्ठाः" जो ब्रम्हवादी अथवा परमार्थ पथ पथिक होते हैं आप उन्हे ही #वशिष्ठ_गोत्रीय अथवा पितर कहें,तो ज्यादा उचित होगा!

मैं देवताओं और पितरों के अस्तित्व की समर्थक तो हूँ किन्तु सूक्ष्म अस्तित्वों की!!ये यमादि देवता तथा वशिष्ठादि पितर कल थे आज हैं,और आगे भी होते रहेंगे!!अब यदि किसी को शंका होती है कि वशिष्ठ जैसे ब्रम्हर्षियों की मुक्ति नहीं हुयी!! तो उन्हे आधुनिक विज्ञान का भी अध्ययन करना चाहिये!!

आज जिसे आप DNA कहते हैं!!मैं समझती हूँ कि उन ऋषियों के DNA हमारे आपके पूर्वजों में थे!!हममें हैं और हमारी पीढीयों में भी रहेंगे!!अब यदि आप ये कहते हैं कि DNA तो स्थूल त्त्वों को कहते हैं!!तो मैं मात्र इतना ही कहूँगी कि-हाँ!!बिल्कुल!!किन्तु सूक्ष्मतम स्थूल!!और यही मेरे आपके जीव का रहस्मय लोक भी तो है!!

हे प्रिय!!इस संदर्भ में मैं आपको कठ•उप•२•३•१७• के इस मंत्र को दिखाना चाहूँगी-
#तं_विद्याच्छुक्रममृतं_विद्याच्छुक्रममृतम्।। ।।
हम आप दोनों ही हंस हैं!!हम अंतरिक्ष में,परमात्मा में, ह्यदयाकाशमें रहते हैं!!पृथिवीपर जन्म लेकर यज्ञ करते हैं और इस शरीर में तो हम-आप अतिथि मात्र ही हैं!!

अभी यहाँ मैं यह कहना भी उचित समझती हूँ कि-"यमराज और धर्मराज"में वही भेद है जो अभियुक्त और पीड़ित की दृष्टि में- सच्चे न्यायाधीश के भयावह और न्याय पाकर संतुष्ट जनों के मध्य होता है!!अभियुक्त अपने कर्म-दण्डों को पाकर यमराज में भयावह आकृति की कल्पना करते हैं!!वहीं पीड़ित को उनमें सौम्य धर्मराज का दर्शन होता है!!

और इस ऋचा में स्पष्ट कहते हैं कि-"सोम्यासो ऽनुहिरे सोमपीथं वशिष्ठाः"अर्थात सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुल के सोमपायी पितर यहाँ उपस्थित हो गये हैं,!!अर्थात इसमें भी आप शंका नहीं कर सकते कि मात्र सोमपायी पितर ही आये हैं ऐसा नहीं है!! इस सोमपान के याचक भी साथ में हैं!!

अभी मैं एकबात और भी कहूँगी!जैसे किदुर्योधन,दुःशाषन, चंगेजखाँ,तैमूरलंग,औरंगजेब,बाबर, अलाऊद्दीन खिलजी, गोरी, जीसस,गजनवी ये कौन हैं,क्या ये हमारे पूर्वज नहीं हैं ?
हाँ!!पुरखे तो ये भी हमारे हैं!! क्योंकि हमारे पूर्वज ही इनके पुरखे हुवा करते थे!!तो इनके लिये भी इसी ऋचा में व्यवस्था की गयी है!!

इस सोमरस तथा हविष्य के अधिकारी कौन हैं! यह निर्णय यमराज अथवा धर्मराज को करना है!!और कैसे करना है, इसे भी मैं आपसे समझती हूँ!!जैसे कि मैं अपने को वैदिक तथा कुलाचारिडणी मानती हूँ तो #गोमांस और #शूकर दोनों ही मांसों को मैं अभक्ष्य समझने के कारण और अपनी धर्मभीरुता के कारण उनके हाँथ से स्पर्श की हुयी भोज्य सामग्रियों को अस्पृश्य समझती हूँ और न्याय की दृष्टि से ये बिलकुल उचित भी है!!

किन्तु उनमें किसी के लिये शूकर मांस भले ही त्याज्य हो!! किन्तु गोमांस तो दोनों के लिये ही भक्ष्य-पदार्थ है! तो वे तो भेद कर सकते हैं किन्तु मुझ वैदिक का आहार अर्थात मेवे, सब्जियाँ,मिस्ठान्न,फरसाण,वनस्पतियाँ,फल,अन्नादि तो सभी के लिये भक्ष्य हैं!!अर्थात उन्हे मेरी पाकशाला में निर्मित भोक्ष्य पदार्थों से प्रेम है!!वे तो इसके इच्छुक हैं ही!!

अभी एक बात और भी है!!हे प्रिय!!मेरी पंञ्क्ति में तो वे बैठना चाहेंगे ही!!किन्तु मैं आपसे पूछती हूँ कि क्या आप उनकी पंक्ति में बैठ सकते हो ?
इसी के साथ ऋचाके इस अंक को यहाँ विश्राम देती हूँ और शीघ्र ही इसके अगले अंक के साथ उपस्थित होती हूँ--- #सुतपा!!

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