पितृ-सूक्त मंत्र-७~२ अंक~१६
#आप_याजक_बनें_कर्म_योद्धा_बनें_याचक_न_बनें_किन्तु_याजक_बनने_के_बाद_भी!!
।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।
मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में ७ वीं ऋचा के द्वितीय अंक को समर्पित करती हूँ!!
#आसीनासो_अरुणीनामुपस्थे_रयिं_धत्त_दाशुषे_मत्यार्य।
#पुत्रेभ्यः #पितरस्तस्य_वस्वः #प्र_यच्छत_तइहोर्जंदधात।।
ऋषि कहते हैं कि अरूण-वर्ण की उषा देवी के अंक में विराजमान हे पितरों!! अपने इस मर्त्यलोकों के याजकको धन दें,सामर्थ्य दें,तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्तियों में से कुछ अंश हम पुत्रों को भी दें!!
हे प्रिय!!मैं और आप सभी एक मानव हैं!! और यह स्मरण रखें कि ऋचा में ऋषि ने हमें #याचक_नहीं_याजक कहा है!! याजक अर्थात-यज्ञ-कर्ता!!अपने कर्तव्य रूपी यज्ञों हेतु सदैव जागृत व्यक्तित्व ही मानव कहे जा सकते हैं!! जो यज्ञ अर्थात कर्म नहीं करते उन्हे मंदिरों में जाकर भिक्षा मांगने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा!!
अब एक बात और भी है!!यज्ञ हेतु #द्रब्यादि की आवस्यकता भी तो होगी ही!! और ये द्रब्य हैं क्या ?आप यह स्मरण रखें कि #विद्या_धनं_सर्व_धनम्_प्रधानम संसार की जितनी भी विद्यायें हैं!!इन सबको आपके इन्ही पितरो-पूर्वजों ने एक दूसरे से प्राप्त किया अथवा शंशोधित किया!! और आपको ये अपनी विद्या रूपी महान विरासत सौंप दी!!
सूक्त में ऋषि कहते हैं कि-"प्र यच्छत त इहोर्जं दधात" आप अपनी प्रसिद्ध सम्पत्तियों में से कुछ अंश हम पुत्रों को भी दें!!हमारे पूर्वजों की सम्पत्तिया!!अर्थात #पैतृक-धन ? आज हम आप सभी अपनी इन्ही स्थूल सम्पदाओं को लेकर एक दूसरे से विवाद करते रहते हैं!! भाई-भाई का गला रेतने,अपनी माँ बाबा तकके साथ दुर्व्यवहार करते हैं!!
और तो और मैं देखती हूँ कि साधू,सन्यासी-वैरागी लोगों में भी आज ये जो गद्दियों को लेकर नित्य नूतन विवाद होते रहते है!! मैं मानती हूँ कि अपने स्वत्व हेतु न्यायोचित विवाद करना उचित है!! किन्तु इनसे जो समाज में संदेश जाते हैं!!जो समाज इनके प्रति एक शंका से भर जाता है!! उसका परिणाम कितना घातक होता है ?
आप इस ऋग्वेदोक्त उषासूक्त की १८ वीं ऋचा को तो देखें-
#या_गोमतीरूषसः #सर्ववीरा_व्युच्छन्ति_दाशुषे_मत्यार्य।
#वायोरिव_सूनृतानामुदर्के_ता_अश्वदा_अश्नवत्_सोमसुत्वा।
इसमें ऋषि ने स्पष्ट कहा है कि जिन्होंने #हविष्य दिया है, उनको ही उषा गौवें और वीर-सन्तति देती हैं!!
हे प्रिय!! मैं तो एक बात कहूँगी!! आप #सिंह हो!!और सिंह कभी भी किसी दूसरों के मारे मुर्दे नहीं खाया करते!! ये तो कुत्तों और भेडियों को ही शोभा देता है!!सिंह तो मार कर खाते हैं!!अन्यथा भूखे ही मर जाते हैं!!और भी एक बात कहूँगी!!सिंह का पुत्र होने मात्र से वनराज नहीं बन सकते आप!!इसके लिये आपको अन्य सिंहो के बीच अपनी स्वयम की श्रेष्ठता सिद्ध करनी होगी!!
आपको आपके पूर्वजों ने,आपके पितरों ने,आपकी माँ बाबा ने,आपके आचार्यों और गुरूजनों ने यह शरीर, हाँथ,पाँव,बुद्धि,विवेक,ज्ञान,बल,सामर्थ्य सब कुछ तो दिया है!!और क्यूँ दिया है- #तेन_त्यक्तेन_भुञ्जिता बाँटकर भोगने को दिया है!!दूसरों के लिये त्याग करने हेतु दिया है!!अकेले खाने से आपको पाप लगेंगे!!
हे प्रिय!!जो श्रद्धा से दिया जाता है वही #श्राद्ध है!! गोरख नाथ जी कहते भी हैं कि-
#भाव_दिया_तो_दूध_बराबर_माँग_दिया_तो_पानी।
#छीन_दिया_तो_खून_बराबर_गोरख_बोला_वाणी।।
जब आप अपने पूर्वजों की दी हुयी विद्याओं के द्वारा कुछ पाते हैं!! उन विद्याओं को पढ और समझ कर ही उद्योगादि में सफल होते हो!! और ये जो आपकी सफलता है,इस सफलता में आपके पूर्वजों के योगदान को भला आप कैसे भूल जाते हैं!!
और फिर अनायास मिला कामरू का खजाना भी निःशेष होते देर नहीं लगती!! हे प्रिय!! आपने जिन पूर्वजों के ज्ञान रूपी उनकी अथाह सम्पत्तियों के कुछ अंशों को प्राप्त किया है!!आप यह स्मरण रखें कि ऋषियों द्वारा प्रदत्त अथाह सागर की कुछ बूँदें ही पीकर जो मैं अपने आपको विदूषी कहती फिरती हूँ!!ये अभिमान ही तो मेरा सबसे बड़ा शत्रु है!!
इस ऋचा में ऋषि कहते हैं कि-आप याजक बनें,कर्म-योद्धा बनें!!याचक न बनें किन्तु याजक बनने के बाद भी!!श्रेष्ठ कर्मों को करते हुवे!!जिस प्रकार आपके पूर्वजों नें आपको विद्याओं से विभूषित किया उसी प्रकार आप अपनी आने वाली पीढ़ीयों के लिये भी इनका संवर्धन करो!!
किन्तु इसके साथ ही साथ-"प्र यच्छत तइहोर्जंदधात-" आप अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ रहें!!आप ये भावना रखें कि जो कुछ भी आपने धनादि प्राप्त किया है!! ये आपके पितरों और माँ बाबा का आशीर्वाद ही है!!और जब आप उनसे अपने लिये याचना करते हो!!और कर्म करने के बाद करते हो!!
तो निःसंदेह वे आपको अपनी प्रसिद्ध ज्ञानमयी सम्पत्तियों में से और भी कुछ विद्याओं को आपमें लेने का सामर्थ्य प्रदान करेंगे!!इसी के साथ इस ऋचा की प्रबोधिनी पूर्ण करती हूँ!!सूक्त की ८ वीं ऋचा के साथ पुनः उपस्थित होती हूँ!..... #सुतपा!!
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