Tuesday 11 September 2018

गोपिका गीत

#हमारी_निश्छल_भक्ति_के_सघन_वन_में_वृन्दावन_में_रमण_करने_वाले_हमारे_पिया_जी!
हे प्रिय!!पुनः इसके तृतीय श्लोक की विवेचना प्रस्तुत कर रही हूं--

#नवनीरजधर_श्यामलसुन्दर_चन्द्रकुसुमरुचिवेश_गोपीगणह्रिदयेश। #गोवर्धनधर_वृन्दावनचर_वंशीधर_परमेश।।३।।
मेरे प्रियतम् जी!!नूतन कमल!!के समान आप पर तो हम कीचण जैसी मलीन बुद्धि की गोपियों का बौद्धिक -जल छू भी नहीं पाता!! आप तो हम गोपिकाओं के इस ह्रिदय-सरोवर के एकमात्र नीलकमल हो!!पर हम भी तो आपकी ही मुरझायी हुयी कलियां हैं!! 

हे प्रिय!!आपने ही गीताजी•३•४३•में कहा है कि- #जहि_शत्रूं_महाबाहो_कामरूपं_दुरासदम्।।
हम तो कलियाँ हैं #आप_कामेश्वर_कामारि की! आप स्मरण तो करें,कमल के पुष्प के पुष्प-राग से ही तो कलियों की उत्पत्ति होती है!! मैं आपको एक बात कहूँ!!रुक्मिणी का कृष्ण के साथ बहुत गहरा मेल कभी हो ही नहीं सकता, क्यों कि उनके भीतर #पुरुषत्व है!! मेरे प्रियतम जी का किसी भी ऐसी स्त्री से बहुत गहेरा सम्बंध हो ही नहीं सकता जिसके भीतर थोड़ा सा भी पुरुषत्व हो!!अहंकार हो!मात्र सदैव बंधनाकाँञ्छिणी, अमूक्ता,चंचला,पूर्ण प्रकृति-स्वरूपा #ना_अरि_नारी ही से उनका सनातन सम्बंध संभव हो सकता है!!क्यों कि वे पूर्ण पुरुषोत्तम हैं।
#उत्तमः_पुरूषष्त्वन्यः_परमात्मने_तु_दाह्यतः।।
#यो_त्रय_लोको_मार्वर्त्य_विभर्त्यः_व्यय_ईश्वर।।

सम्पूर्ण समर्पण ही उनसे मिलन का हेतु बन सकता है प्रिय!! इससे कम वे लेंगे नहीं, और इससे ज्यादा कुछ हो सकता ही नहीं। और एक रहस्यमयी सच्चाई ये भी है कि वे मुझसे मुझे ही माँग कर पूनश्च मुझको अधूरे #मैं से सम्पूण #मैं बना देते हैं!!मुझे समूची की समूची लौटा देते हैं!!तभी तो मैं कभी-कभी गुनगुनाती हूँ कि-
#मुझको_मुझी_से_चुरा_लो_दिल_में_मुझे_तुम_बसा_लो_खो_ना_जाऊँ_फिर_कहीं_मैं_पास_आओ_गले_से_लगा_लो!!और हे प्रिय इसी_कारण सत्यभामा, जाम्बवन्ती, रुक्मिणी आदि•१६१०८•परिणिता स्त्रीयाँ पीछे रहे गयीं और #अपरिणिता_राधा आगे आ गयीं!

हे प्रिय! #कुमूदिनी_कली_ही_कमल_बना_करती_हैं!! जिनका उल्लेख शास्त्रों में है!! जो इस पद की शास्त्रीय अथवा सामाजिक रूप से दावेदार थीं। सब की सब धीरे-धीरे भागवत् के पन्नों में खोती चली गयीं और एक रहस्य की बात आपको बता दूँ कि जिस शख्सियत का नाम भागवत् महाभारत आदि गंथों में है ही नहीं वे #राधा सबसे आगे मेरे प्रियजी के भी आगे #राधा_कृष्ण_बन_गयीं!! हे प्रिय!! सत्यभामादि से मेरे पियाजी ने विवाह किया था,एक संस्थागत विवाह बनकर रह गये वे रिश्ते । किंतु #राधा से,गोपियों से,मीरा-बाई से;और मुझसे भी उनका संबंध प्यार का था,है और रहेगा भी!! शास्त्रों, स्मृतियों,सभ्यताओं,समाजों अथवा या फिर अदालतो से जिनके लिए हक मिल सकते थे!!

हे प्रिय!!जो कृष्ण से अपना हिस्सा मांग सकती थीं, वे #कात्यायनी की तरह खो गयीं, और #राधा,गोपियाँ धीरे-धीरे प्रगाढ़ होती चली गयीं और आज वह समय आ भी गया है कि रुक्मिणी भूलती जा रही हैं!और मेरे प्रियतम जी के साथ राधा का नाम;गोपीयों का नाम ही रह गया। तभी तो वे कहती हैं कि-हे नीलमेघ की तरह आभा वाले घनश्यामजी!! आप तो ऐसे प्रकाशपुञ्ज! हैं,मानों कि चन्द्रमा ही एक पुष्प की तरह हमारे अन्धकार मय ह्रिदय-सरोवर में खिल उठा हो!! हे हम गोपिकाओं के ह्रिदयेश!! आपने तो हमारी रक्षा के लिये पूरे गोवर्धन पर्वत को भी उठा लिया था!!

हे गोवर्धनधर!!आप आज इतने निष्ठुर भला कैसे हो सकते हो ? कि हम #सबलाओं_को_अबला बनाकर मंझधार में छोड दिया!!हे हमारी निश्छल भक्ति के सघन वन में #वृन्दावन_में रमण करने वाले हमारे पिया जी!!हम आपकी बंशरी हैं!!हे हम बंशी रूपी यन्त्रों के यान्त्रिक!! हे बंशीधर!! हे हमारे परमाराध्य!! हमारे परमेश्वर!! आओ न!!अब क्यूं तड़पाते हो।

हे प्रिय!!  इसी के साथ इस पद्यांश का भावानुवाद पूर्ण करती हूँ!!
गोपिकाविरहगीतम् -४

#राधा_कृष्ण_एक_वृत्त_हैं_एकही_रस्सीके_दो_छोर_हैं

हे प्रिय!!आज पुनः #श्रीगोपिकाविरहगीतम् के संशोधित संस्करण मैं मेरे प्रियतमजी"के श्रीचरणों में अपनी मोहित बुद्धि से इसके चतुर्थ अर्थात् अंतिम श्लोक का भावानुवाद प्रस्तुत कर रही हूँ--

#राधारञ्जन_कंसनिषूदन_प्रणतिस्तावकचरणे_निखिलनिराश्रयशरणे_एहि_जनार्दन_पीताम्बरधर_कुञ्जे_मन्थरपवने।।४।।

हे "राधारंञ्जन"!!!एकआप ही तो हैं जिनके मधुर स्नेह से राधिका जी के ह्रदय को आनंद प्राप्ति होती है "अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं आह्लादकारी भावना है यह! आप सोचें तो एकबार!! सांसारिक सम्बन्धों में कोई भी स्त्री या पुरुष अपने जीवनसाथी का किसी अन्य से रिश्ते को एक छण भी सहन नहीं कर सकता पर इन गोपियों का महाभाव!! कि उन्होने राधिका जी को महारानी बनाया और स्वयं को उनकी दासियां मानती हैं यह अहैतुकी निःस्वार्थ प्रेमकी पराकाष्ठा है!!

और हे प्रिय!!इसका कारण है की #राधा ने सब कुछ छोड़ दिया मेरे कृष्ण के लिए, #कृष्ण_राधा कहते आपने कभी और किसी को भी सुना नहीं होगा!! #राधा_कृष्ण, #सीता_राम ही सभी कहते हैं, अतः जो सब कुछ समर्पण कर देती हैं, वह सब पा लेती है। जो बिलकुल नेपथ्य में खो जाती हैं,जो सीता की तरह सहर्ष अग्नि-पथ से गुजर जाती हैं!!जीवित ही भूमि में समा जाती हैं- वे बिलकुल आगे हो जाती हैं।

गोपियाँ कहती हैं कि हे नाथ!!आप जिस लिये मथुरा गये थे,वह काम तो हो गया- कंसनिषूदन!!कंस का वध तो आप कर ही चुके!!अब तो आप आ ही जाओ, हम गोपियों का ह्रदय आपके श्री चरणों में प्रणय- निवेदन करता है!!हे प्यारे!!पूरे ब्रह्माण्ड में आपके अलावा हमारा कोई सहारा नही हैं,हम आपकी दासियां निराश्रया हैं!!

हे प्रिय!! राधा, गोपियों के बिना कृष्ण के अस्तित्व की कल्पना भी आप नहीं कर सकते!! ये गोपियाँ- राधिका ही उनकी सारी कमनीयता हैं। ये ही मेरे प्रियतम जी की- #अस्तित्त्वानुभूति_अकारणकरूणावरूणालया_का_अलौकिक_भाव_है, यह सब जो है, जो “महत्वपूर्ण है, वही तो गोपियाँ,मीरा अथवा राधिकाभाव हैं।

हे प्रिय!! मैं उनके गीत,उनके नृत्य की घुंघरू,उनकी मुरली,प्रिया,चितवन आदि-आदि जो कुछ भी  राधा उनके भीतर #स्त्रित्व है वह सब मैं ही हूँ । अतः भैं और वे एक हो गए, #राधाकृष्ण हो गए। क्यों कि राधाकृष्ण होते ही जीवन के दोनों विपरीत ध्रुव मिल गए-अतः मैं तो कहती हूं कि यह भी मेरे कृष्णजी की पूर्णताओं की एक पूर्णता है।

हे प्रिय!! राधा-कृष्ण एक वृत्त हैं एक ही रस्सीके दो छोर हैं!!आप अधूरा नहीं समझ सकते कृष्ण को, अलग सोचकर वे रिक्त और भयानक हो जाते हैं। #महाकाल हो जाते हैं,सब रंग खो जाते हैं!! सृष्टि नष्ट हो जाती है!!

हे प्रिय!!मेरे कृष्ण का सारा व्यक्तित्व प्रकाशित है राधा की ऐषणा पर। चारों तरफ से राधिका भाव उन्हें अपने आगोश में समेट कर उन्हें- #मधुराधिपते_रऽखिलम्_मधुरम् बनाता है!!वह इसी में खिल उठते हैं। मेरे प्रियजी नीलकमल हैं!! राधा उनकी जड़ हैं। वे एक हैं। आप उनको अलग नहीं कर सकते। यही तो युगल-सरकार है।

हे प्रिय!! जैसे आप रात के तारों की कल्पना नहीं कर सकते  अंधकार के बिना, अमावस में तारे बहुत ही उज्जवल होकर दिखाई पड़ने लगते हैं, बहुत शुभ्र हो जाते हैं, दिन में भी तारे होते हैं–पूरा आकाश तारों से भरा पड़ा है अभी भी,किंतु  सूरज की किरणों में तारे दिखाई नहीं पड़ सकते।

हे प्रिय!! तभी तो गोपियाँ कहती हैं कि-हे जनार्दन!! जब आप थे-पवन के साथ लहेराता हुवा आपका पीत पीताम्बर हम अनाथिनियों के सर का आश्रय बनजाता था,हम सनाथ थीं !!हे नाथ!!हे पीताम्बर धर!!अभी भी मन्थर गति से पवन तो इस वन में चल रहा है पर हम अनाथिकाओं को सनाथ करने वाला वह पीताम्बर ही नहीं है!! #वितर_वीर_स्तेऽधरामृतं अब तो आप हमें अपने अ-धरामृत् का पान करा ही दो प्रियतमजी!

हे प्रिय!! इसी के साथ इस पद्यांश तथा गोपिका विरह गीत का भावानुवाद पूर्ण करती हूँ,!! #सुतपा!!

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