Monday 3 September 2018

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी अंक~५

#ये_पथ_भेद_पर्वत_की_घाटियों_में_हैं_सर्वोच्य_शिखर_तो_एक_ही_है!!

मेरे प्रियतमजी को प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! मेरी प्रतिज्ञा है कि मै किसी की नकल नहीं करती,अपनी जो सोच है वही कहती हूँ! "जब-जब धर्म को ग्लानी होती है" #धर्मो_धरा_धारकः"

और संत-महापुरुष ही तो इस पृथ्वी के दिक्-पाल हैं,उन्हीं की कारुणिक दृष्टि के कारण संसार स्थित है!!वे आधार स्तंभ हैं!! इस पृथ्वी के!!हो सकता है कि--
#शैले_शैले_न_माणिक्यम्_मौक्तिकम्_न_गजे_गजे।
#साधुनाम्_न_च_सर्वत्वम_कस्तूरम्_न_मृगे_मृगे।।"

#हर_गिरि_पर_संताप_नहिं_लोखन_नहिं_सर्वत्र।
#सुतपा_देखी_जगत_में_नहिं_दुश्चरित्र_सर्वत्र।।

किन्तु जब साधु-पुरुष ही भृमित होने और करने भी लगेंगे!!जब #वंदे_मातरम्_जनगणमन"का राष्ट्र-गीत गाने पर किसी का धर्म भ्रष्ट होने लगेगा!!जब अपनी मातृ-भूमि के रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर देने वाली मेरी सेना पर कुछ लोग प्रश्न-चिन्ह लगाने लगेंगे!!जब कालनेमि की बहुलता होने लगती है!!

तो ज्ञान और विवेक को ग्लानि होने लगती है,जब ज्ञानी- विवेकी-भक्त जनों की निंदा होने लगती है,तब-तब मेरे नाथ!!अवतरित होते हैं!!और आप जैसों के रूप में अवतरित होते हैं!!हे प्रिय!!मैं समझती हूँ कि दुनिया का कोई सा भी पंथ गलत हो ही नहीं सकता मुझे तो ऋग्वेद में कुरान की आयतें दिखती हैं!!और बाईबल में भी मैं गीताजी के उपदेश ढूंढती हूँ!! और फिर-

#साधू_ऐसा_चाहिये_जैसा_सूप_स्वभाव।
#सार_सार_को_गहि_रहै_थोथा_देहि_ऊड़ाय।।

सखियों!!आप महा-भारत कालीन चरित्रों को तो देखें-- कर्ण,द्रोणाचार्य,भिष्मपितामह,धृतराष्ट्र, विराट, शतानिक,अश्वत्थामा,द्रुपद,दुर्योधन,प्रद्युम्न,बर्बरीक,ये सभी महा-योद्धा मात्र ही नहीं थे-बल्कि महान विद्वान, तथाकथित शास्त्र ज्ञानी,सर्व विद्या सम्पन्न भी थे,पर!!
अविवेकी,अन्यायपथानुगामी,अन्याय के संरक्षक भी तो थे न ?

और यह द्वि-ध्रुवीय विचार-धारा जब-जब बढती है तो इनसे समाज को,नैतिक-मूल्यों के संरक्षण कि आवश्यकता -पूर्ति हेतु --मैं "वासुदेव"आत्म स्वरूप में अवतरित होता हूँ!यही हम सभी के भगवान की प्रतिज्ञा है-
#परित्राणाय_साधूनां_विनाशाय_च_दुष्कृताम्।
#धर्मसंस्थार्पनार्थाय_सम्भवामि_युगे_युगे।।

साधु पुरुषों का उद्धार करने के लिये, पाप-कर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मैं  युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ!! हे प्रिय!! मैं आपको एक कहानी सुनाती हूँ,--

अशोक-वाटिका में त्रिजटा!!अशोक-वाटिका में त्रिजटा नें माँ सीता से पूछा!कि हे माँ!!आपके "राम"कहाँ-कहाँ हैं ?
तो सीता जी ने कहा कि मुझमें तुझमें,सृष्टि के कण-कण में मेरे राम हैं!!
तो त्रिखा कहती हैं कि!!रावण में भी हैं?
हाँ!!हैं न!!क्यों नहीं उसमें भी हैं।

तो त्रिजटा बोली!हे माँ!!अगर रावण में भी राम हैं,तो आप एक महा-पुण्य का काम कर दो!!
आप रावण को स्वीकार कर लो माँ!!तो राम वापस लौट जायेंगे,और न जाने कितने असख्ञ्य "राक्षस-वानर-रीक्ष"इस महा-युद्ध में मारे जाने से बच जायेंगे!!

तो सीता जी ने कहा कि-हे त्रिजटा!!मैं विश्व-संस्कृति की राज-माता हूँ!मैं जैसा करूँगी-उसी का अनुसरण आने वाली पीढियाँ भी करेंगी।ये हजारों-हजार राक्षस-वानर अगर मर भी गये तो फिर से जन्म ले लेंगे!!
किन्तु,सभ्यता,संस्कार और संस्कृति यदि एक बार मर गयी तो #बस_मर_गयी!!"वह फिर दुबारा जन्म नहीं ले सकती!!

हे प्रिय!!संसार के किसी भी कोने में प्रकट हुवे सभी महापुरुषों ने इन्ही आदर्श-मूल्यों की स्थापना हेतु प्रयास किया!!उनका मार्ग भिन्न-भिन्न हो सकता है!! वे हिंसक-अहिंसक किन्ही भी मार्गों से चल सकते हैं! किन्तु इतना निश्चित है कि उन्होंने अपने अनुयायियों को अंततः #योग_भक्ति_कर्म_अथवा_वेदान्त मार्गों का ही उपदेश दिया होगा!!

वैसे मैं एक बात पुनश्च कहूँगी कि पंथ अथवा संत गलत नहीं होते-
#आकाशाये_पतीतोयम_यदा_गच्छन्ति_सागराः।
#सर्वदेवो_नमस्कारम_केशवम_प्रति_गच्छति।।
आप किन्ही भी पथोंसे उस एक ही परमार्थ सत्ता को उपलब्ध होगे!!ये पथ-भेद पर्वत की घाटियों में हैं!! सर्वोच्य शिखर तो एक ही है!!

और उस शिखर पे आरूढ हुवे कोई वासुदेव ही आपको बुलाते हैं कि आओ-आप हमारे पास आओ!! किन्हीं भी पथ से आओ!! किन्तु इस अनन्त शिखर पर ही आप आओगे!! और हे प्रिय इसी के साथ इस श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के संदर्भ में प्रस्तुत श्रृंखला का उपसंहार करती हूँ!! #सुतपा!!

#आज_मैं_आपको_अपने_नवीन_ब्लाॅग_की_लिंक_भी_दे_रही_हूँ --
http://sutapadevididi.blogspot.com/2018/09/blog-post_2.html?m=1

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