Friday 21 December 2018

भक्ति सूत्र १३

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१३

#यह_जो_वासना_है_यह_जो_स्त्री_पुरुषका_भेद_है_बहुत_गहरा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवा में देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के तेरहवें सुत्र पुष्प को समर्पित करती हूँ--

#अन्यथा_पातित्वशड़्कया।।१३।।
अन्यथा वासना और संस्कारों के कारण गिरने की आशंका रहती है।
प्यारी सखियों तथा सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं कि--"अन्यथा पातित्व शञ्कया"इसके पुर्व के सूत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि अगर दृढ निश्चय न हो तो पतन की संभावना रहती है!मै  आपको एक बात बताती हूँ कि ऐसी ही शंका होने पर पार्थ ने कहा भी था कि---

#चंचलं_हि_मन:_कृष्ण_प्रमाथि_बलवद्_दृढम्।
#तस्याहं_निग्रहं_मन्ये_वायोरिव_सुदुष्करम् ।।
क्योंकि हे कृष्ण ! यह मन बडा चंचल, प्रमथन स्वभाववाला, बडा दृढ और बलवान् है। इसलिये उसका वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यंत दुष्कर मानता हूँ।।
मेरे अनेकों अनेक जन्मों के कुत्सित संस्कार,घृणाति घृणित कर्म,मन की बहुत ही गहेराइयों तक बैठी वासना की घिनौनी जडें,और तिस पर भी ज्ञानी होने का अहंकार!!मैं एक बात कहूँ!!यह जो"वासना" है यह जो स्त्री-पुरुष का भेद है,बहुत गहरा है ,इस भेद ने महानतम ऋषि-मुनियों को भी नहीं छोडा।

और इसका कारण बताऊँ आपको!!मैंने यह महेसूस किया है कि आप जितना भी वासना से दूर भागोगे- वह आपको उतनी ही तेजी से जकड़ती जायेगी,--
शुकदेव जी को उनके पिता ने जनक विदेह के पास ज्ञान प्राप्ति हेतु भेजा,  तब जनक जी ने उन्हें अपने अंतःपुर में मे भेज दिया,वे जनक के शयनकक्ष में सो रहे थे रात्रि में जनक जी की पत्नी आकर उनके पास सो गयीं, बिचारे शुकदेव जी!! घबडा गये,वे जितना दूर घिसकने की कोशिष करते रानी उतना ही पास आती जातीं!!

अन्ततः शय्याका आखिरी शिरा आ गया! तब- अचानक शुकदेवजी को बोध हो गया,वे #हे_मेरी_माँ" कहकर महारानी से लिपट गये।मैं आपको कहूँगी तो आप मुझ पर हंसोगी!!क्यों कि मैं निःसन्तान हूँ,शायद मेरी बहुत सी सखियाँ इस बात को जानती भी होंगी, मेरे भौतिक पति मुझे अपनी "माँ" मानते हैं,और मैं उन्हें अपनी संतान मानती हूँ- #भोगेन_भुकताः_वयमेव_भुक्ताः"
हे प्रिय!!आज भी और इसी फेसबुक पर भी मेरे कई ऐसे पुरूष मित्र हैं!जो मुझे अपनी प्रेमिका,माँ,पत्नी, बहन,गुरू,शिष्या,कृष्ण और अपनी राधा मानते हैं!!और वो भी,भौतिकीय धरातल पर----

#कोई_एक_ही_मित्र_मुझे_इन_सभी_सम्बंधों_में_बाँधकर_रखते_हैं!!और मैं भी उन्मूक्त भाव से उन सभी को अपना,पिता,कृष्ण,संतान,शिष्य,पती इत्यादि - इत्यादि मानती हूँ!किंतु हमारा ये प्रेम शारीरिक, भौतिक, ही क्या सूक्ष्म-धरातलों को भी पार कर मानसिक चैतन्यता की दहेलीज पर दस्तक देता है! दूर्लभ और अलौकिक प्रेम है हमारा!!मैं आपको यह कहना चाहती हूँ कि कुछ भटके हुवे लोग "संभोग से समाधी"की बात तो कहते हैं किंतु उसकी आड़ में "स्वच्छन्दता" का आचरण करते हैं,,
कपोल कल्पित विधियों की कुलाचारके नाम पर आड लेकर!! "यौगिक_साहित्य"के नाम पर प्रचारित करने का घृणिततम कुत्सित अति भयावह जो प्रयास कर रहे हैं वह यह नहीं समझ पाते कि उनकी साजिश के कारण समाज की कितनी बौद्धिक क्षत्ति हो रही है।

प्यारी सखियों!भगवान दत्त्तात्रेयजी अवधूत गीता में कहते हैं कि--
#जानामि_नरकं_नारी_ध्रुवं_जानामि_बन्धनम्।
#यस्यां_जातो_रतस्तत्र_पुनस्तत्रैव_धावति।।
मैं  नारीको नरक रूप जानता हूँ,निश्चय ही वह बन्धन का कारण है यह भी जानता हूँ। मनुष्य जिससे उत्पन्न होता है  उसी में फिर रत होता है व बार-बार उसी ओर दौडता है। वासना के प्रवाह को मैं रोक नहीं सकती किंतु उसकी धारा को मोड़ जरूर सकती हूँ। बस एक बार अगर मैं किसी भी पुरुष के प्रति अपने लगाव को ,किसी भी स्त्री के प्रति अपने लगाव को सखी भाव में बदलने में,सफल हो गयी तो फिर तो!!#वासुदेवः_सर्वम्"

सखियों!!याद रखना,,जब वासना की आँधी चलती है तो पाराशर,विश्वामित्र,नारद जैसे "महा-वृक्ष"धराषायी हो जाते हैं,किंतु!!गोपियाँ,मीराबाई जैसी!!अपने को "दासी,सेविका,तृणमूल"समझने वाली कृष्ण दासियाँ भक्ति-मार्ग से नहीं भटकतीं। अप्सराओं ने तो अनेकों ऋषियों का तप भंग कर दिया,पर कोइ ऐसा गंधर्व आज तक नहीं जन्मा जो हम दासियों को अपने स्वामी से पृथक कर सके। इसीलिये मैं बार बार कहती हूँ कि इस झूठे पुरुषत्व के दंभ को छोड कर आओ मैं भी दासी हूँ अपने प्रियतम की!!आप की भी प्रिया हूँ!आप भी मेरे ह्रदयेश्वर हैं!! आप भी उनकी दासी बन जायें।

हाँ सखी यही अमृत-स्वरूपा भक्ति है, भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में......

भक्तिसूत्र~१२

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१२

#मेरे_जन्म_लेनेके_पूर्व_ही_जिन्होंनें_मेरी_माँ_के_स्तनों_को_अमृत_से_भर_दिया!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के बारहवें सुत्र पुष्प समर्पित करती हूँ--

#भवतु_निश्चयदाढर्चादूर्ध्वे ॥१२॥
परम प्रेम रूपा भक्ति कि प्राप्ति का दृढ निश्चय हो जाने के बाद भी शास्त्र रक्षा करनी चाहिये।
प्यारी सखियों,तथा प्रिय सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं,कि- "भवतु निश्चयादृढ"निश्चय का दृढ होना!!मेरी सबसे बडी समस्या यही है, मै  जब छोटी सी थी तो मेरे नानू जी मुझे अपनी बाँहों में लेकर प्यार से खूब उँचा उँचा उछालते थे!बहुत मजा आता था,मैं हवा में उडती हुयी खिलखिलाती रहती थी!!

किंचित मात्र भी भय नहीं लगता था।मैं अपने नाना जी के होते हुवे भला कभी गिर सकती हूँ ? यह"दृढ-विश्वास था मुझे अपने नाना जी पर। लेकिन जिन मेरे प्रियतमजी ने मेरे लिये सूर्य,चन्द्र, नक्षत्र, इतनी सुंदर धरती,शीतल- मंद हवायें,अमृत समान जल,नदियाँ,सुंदर सुगंधित पुष्प,पक्षियों का मधुर कलरव बनाया--
#जिनु_तन_दियो_ताहि_बिसुरायो_ऐसों_लौंण_हरामी
#मों_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी!!
अरे!! मेरे जन्म लेने के पूर्व ही जिन्होंनें मेरी माँ के स्तनों को अमृत से भर दिया!!इतना सब कुछ मेरे लिये करने वाले पर मुझ मति-मूढा,अज्ञानी,घनघोर स्वार्थिनी को भरोषा नहीं है ? उन पर ही विश्वास नहीं है ?अपने ह्रिदयनाथजू,अपने प्राणाधार पर ही मुझे विश्वास नहीं है ? #मो_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी

जितना इस बात को सोचती हूँ,उतनी ही नत मस्तक होती जाती हूँ!! अपने श्री नाथ जी के चरणों में।
और मुझे दिन प्रति दिन,छण प्रति छण अपने स्वामी जी पर पूरा भरोसा होता ही जा रहा है।और जैसे जैसे मेरा उन पर विश्वास दृढ होता जायेगा---
#अग्रे_कुरूणामथ_पाण्डवानां_दु:शासनेनाह्रतवस्त्रकेशा।
#कृष्णा_तदाक्रोशदनन्यनाथा_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।
#श्रीकृष्ण_विष्णो_मधुकैटभारे_भक्तानुकम्पिन्_भगवन् मुरारे ।
#त्रायस्व_मां_केशव_लोकनाथ_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।

जब  दुःशाषन से अपनी इज्जत बचाने को द्रौपदी तड़प-तड़प कर भी नहीं बच पा रही थी तब!! त्रिभुवनको पराजित करने में सक्षम अपने पाँच-पाँच पतियों,कर्ण,अश्वष्थामा धृतराष्ट्र,सञ्जय,कर्ण, द्रोणाचार्य,आचार्य भिष्म- पितामह जैसे धर्म-तत्व तथा शस्त्रवेत्ताओं के होते हुवे भी!! जब इतने धुरन्धर आचार्य महायोद्धाओं ने भी साक्षात् अधर्माऽवतार दूर्योधन तथा दुःशाषनादिके समक्ष अपने आपको किंकर्तव्यविमूढ सा पा लिया था #तब_द्रौपदीने_अपनी_साड़ी_छोणदी_अपने_दोनों #हाथ_उपर_उठा_दिये_चैतन्य_महाप्रभुजी_ने_अपने #दोनों_हाथ_खड़े_कर_दिये--

"अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।
मेरी जीत तुम्हारे हाथों में,मेरी हार तुम्हारे हाथों में।
और जब मैं ऐसा दृढनिश्चय कर चुकी हूँ तो दृढर्चादूर्ध्वे
फिर भी!शास्त्रों की रक्षा तो मैं करूँगी हीसखियों!मैं अपने दुःखों और सुखों की परवाह नहीं करती,लेकिन मैं  भोजन करती हूँ,पानी पीती हूँ,स्वाँस लेती हूँ,जमीन पर चलती हूँ,प्रकाश में देखती हूँ!! अगर यह सब करती हूँ!तो उनको धन्यवाद तो दूँगी ही।
मैं जन्म से तो कुछ भी नहीं जानती थी,गुरुजनों की कृपा से कुछ गीता-भागवत पढकर ही तो मेरे पिया जी!! को पहचानने लगी हूँ,तो भला उन गुरुजनों, शास्त्रों,संतो की-उनकी वाणी की,उनकी संस्कृति की रक्षा करना भला मैं कैसे त्याग सकती हूँ।

अपने प्रियजी की आज्ञा से बढकर तो कूछ होता नहीं!!और उन्होंने ही मुझे श्रीगीताजी•१६•२४•में आदेश दिया है कि मुझे क्या करना चाहिये और क्या नहीं!!इसकी व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं!!अतः मुझे उनके अनुसार चलना ही होगा-
#तस्माच्छास्त्रं_प्रमाणं_ते_कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
#ज्ञात्वा_शास्त्रविधानोक्तं_कर्म_कर्तुमिहार्हसि।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में !!

भक्तिसूत्र~११

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-११

#हमारे_शास्त्रोंनें_तो_मृत_शरीरके_अन्तिम_संस्कारको_भी_नर_मेघ_यज्ञ_कहा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सुत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के ग्यारहवें सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूँ---

#लोकवेदेषु_तदनुकूलाचरणं_तद्विरोधिषूदासीनता।११
लौकिकऔर वैदिक कर्मों में उसके(त्याग के) अनुकूल कर्म करना ही उसके (त्याग के)विरोधी कर्म करना है।
प्यारी सखियों,तथा सखा वृँद!!मैंआपको एक रहस्य की बात बताती हूँ,!! #जो_आप_जैसे_ज्ञानी_होते_है, #वे_मानते_नहीं_सम्मान_करते_है!! मानने और सम्मान करने में विलक्षण अंतर है। प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने सोचा था कि दो-चार वर्षों में एक बार पूरे विश्व के साधू संत एक जगह एकत्रित होकर एक साथ ज्ञान-योग-भक्ति-काम पर चर्चा कर सकें--कीसी ऐसे वार्षिकोत्सव  का आयोजन किया जाये!!

और उन्होंने इस उत्सव का नाम दिया "#महा_कुँभ"
तो आप देखो आज भी यह परम्परा अबाध गति से चल रही है,और इन स्थानों पर जाकर हम आप एक साथ अनेक महापुरुषों की ज्ञान चर्चा का आनंद उठाते हैं।बाकी यह तो सभी जानते ही हैं कि असली #अमृत तो यह ज्ञान-भक्ति रूपी कुंभ ही है।
राम ने अश्वमेघयज्ञ किया,जनक ने सैकणों यज्ञ किये, कृष्ण,याज्ञवल्क्य,अत्रि,उद्दालक,वशिष्ट,विश्वामित्र, आरुणी,जमदग्नि आदि हजारों हजार ऋषि-मुनियों ने यज्ञादि वेद विहित कर्म किये,किन्तु उनके वे कर्म किसी लौकिक या पारिलौकिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु नहीं होते थे।

वे यह कार्य वैदिक मर्यादा की रक्षा के लिये करते थे, ताकि ऐसे सार्वजनिक अनुष्ठानों में आकर संत- महापुरुष अपनी ज्ञान चर्चा के द्वारा--
#महाजनाः_गताः_ते_पन्था" साधारण जन समुदाय का पारलौकिक मार्ग दर्शन कर सकें।मेरी सखियों!! हमारे शास्त्रों ने तो "स्त्री-पुरुष के सहवास"को भी पुत्रेष्टि यज्ञ कहा है!! हमारे शास्ज्ञों में तो मृत शरीर के अन्तिम संस्कार को भी #नर_मेघ_यज्ञ" कहा है। वैवाहिक संस्था की स्थापना काम-वासना पर नियन्त्रण के लिये है,अतः ज्ञानी पुरुष,सच्चा भक्त,एक योगी!!सभी अच्छे लौकिक कर्मों को  बिना किसी भी परिणाम की इच्छा से करता ही है।

और भी!! एक खतरनाक बात कह देती हूँ कि,अगर उसे किसी कारण वश बाध्य किया गया अनैतिक कार्य के लिये तो फिर जन्म लेते हैं---
#हीरण्याक्ष_हीरण्यकश्यप_रावण"हे प्रिय सखा वृँद!!
किंतु सूत्र में स्पष्ट कहते हैं कि- #जाके_प्रिय_न_राम_वैदेही।
#तजिये_ताहि_कोटि_वैरी_सम_यद्यपि_परम_सनेही।।
जितने भी शास्त्रिय कर्म हैं,नित्य-नैमित्तिक-काम्य
तथा निषिद्ध ये भी भक्ति-मार्ग में महत्वहीन हो जाते हैं!! आप कल्पना तो करो!!अर्ध-रात्रिमें मेरे प्रियजी के आमन्त्रणको पाते ही वे #गोपियाँ_अपने_पती #संतान_भाई_माँ_बाबा_कुल_लोक_लज्जाको_तिलाँजली_देकर_उनके_श्रीचरणों_मे_दौड़_पड़ीं!!

मैं एक असामाजिक बात कहूँगी!!जिन्हें उनके नाम की क्षुधा लग गयी!! तब तो पुत्र अपने पिता की आज्ञा, कन्या अपने कुलके संस्कार,माँ अपनी संतान के प्रति कर्तब्य,पत्नीयाँ अपने कंत,और शिष्य अपनी गुरु-आज्ञाका भी उल्लँघन कर जाते हैं-
#तज्यो_पिता_प्रहेलाद_विभीषण_बंधु_भरत_महतारी
#गुरु_बलि_तज्यो_कंत_बृज_वनिता_भये_मुद_मँगलकारी।।
हे सखी!! गोपियोंके प्रेम में राग का अभाव नहीं है!! बल्कि पराकाष्ठा है उनमें राग की!ऐसा अद्वितीय राग! जो कि सभी सम्बंधों-स्थानों से सिमटकर-- #भोग_और_मोक्षके_दुर्लभतम्_प्रलोभनों_से_ऊपर_उठकर_श्रीकृष्णार्पित_हो_गया!!

तभी तो मेरे पियाजी!!कहते हैं कि,हे अर्जुन!गोपियाँ अपने शरीरकी रक्षा मेरी सेवाके लिये करती हैं! गोपियों के अतिरिक्त मेरे निगूढ प्रेमका पात्र त्रिभुवन में नहीं है--
#निजाड़्गमपि_या_गोप्यो_ममेति_समुपासते।
#ताभ्यः_परं_न_मे_पार्थ_निगूढ_प्रेम_भाजनम्।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में!!आपकी #सुतपा
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

Thursday 20 December 2018

गुरू वाणी

19/09 /2018 pm gurubani 46
(जय श्री कृष्ण । कृष्णा चेरी।)

मेरी प्यारी बच्ची बहूत बहूत प्यार ।
एक बात का आप सभी उत्तर दें
मैं........  अर्थात अहंकार के बिना आप योग भोग या साधना उपासना कर सकते हैं ? ।
एक काम कोई ऐसा जो आप "मैं" के बिना कर सकते हो  ?
और निद्रा में  #मैं मैं नही रहता ।

(मै द्रवित हो जाता है । डा0 सुनेत्रा जी ।)

आप सो जाओ विष्णु की तरह। लक्ष्मी को पाँव दबाने दो।
जब मधु कैटभ आयेगे  तो ब्रम्हा खुद ही जगा देंगे आपको।

ये मेरे बहूत पुराने परिचित हैं मैं इन्हे दिल से चाहती हूँ
मेरा इनका रिश्ता काँटो भरी डगर से होकर गुजरा है
इन्हे अभी इस समूह में जोड़ती हूँ  । वेसे इनका नाम नवरात्रि दिक्षा में सबसे पहले रखियेगा ।
(जैसी आपकी आज्ञा ममाजी । अरुण जी  ।)
(स्वागत है हरि कृष्ण जी । अरूण जी ।)

आप लोग हरि जी से चर्चा करें  ।उनके आने पे । वे सामान्य स्तर से बहूत नीचे से उठकर  साधना पथ पर आ रहे हैं । किन्तु वो वास्तविक व्यक्तित्व के स्वामी हैं । वो जैसे हैं  वैसे ही हैं ।
(हमें जानना किसे  हैं ?कृष्ण चेरी जी ।)

और मैं महालक्ष्मी हूँ  ऐसे विष्णुदेव के पावँ दबाकर सुलादेती हूँ  योगनिद्रा में। मधु कैटभ तो मेरी हुंकार से नष्ट हो सकते हैं ।

(आपकी पाठशाला के हर बच्चे की पल पल की खबर है आपको ।अरुण जी )
(तो मन बुद्धि ,चित्त अहंकार से मेरा क्या सम्बंध । कृष्णा चेरी जी)

मधुरता और कटुता इन दोनों पर जिसने विजय पा ली!!
मैं आप सब जानते हैं कि प्रेम करना भी जानती हूँ !!और वो भी इतना टूट टूट कर आप सभी को चाहती हूँ कि एक ही वार में आपका मस्तक धड़ से अलग कर देती हूँ कभी कभी अचानक ।
जो नफरत करना नहीं जानता वो प्रेम क्या खाक करेगा ।

(वही तो मै अभी कह रही थी । की आप । धड अलग करती है।
फिर भी प्रेम तो रुकता नही ना। चाहे मै आपके वार से मर भी जाउ तो भी प्रेम करना तो रुकेगा नही । निरंतर रहेगा। । ऐसे ही प्रेम के बारेमें कह रही थी, उर्ध्वगामी एहसास । प्रसारित हो रहा है जब । डा0 सुनेत्रा जी  ।)

जो तूं चाहे पीय को तो छोड़ मिलन की आस।
सुतपा विरहिन तड़पती पल-पल दिन अरु रात।।

(यानी विरह में जो आनंद है वो मिलन में नही,,, । अरुण जी।)
आज का प्रश्न  ?
ओके आज मुद्रा तथा पंचम भाव पर चर्चा करूंगी ।
पुनश्च मुद्रा पर चर्चा करती हूँ,एक ऐसा माध्यम जिससे आप किसी पदार्थ का आदान-प्रदान करने हेतु एक माध्यम के रूप में प्रयोग करते हो उसे भी मुद्रा ही तो कहते हैं न  जैसे ₹ ।

अर्थात प्रथम तो आपने मैं पन को स्वाहा कर मद्यपान कर लिया
द्वितीय आपने मांस अर्थात अपनी मानसिक तथा सांसारिक सम्पत्तियों को दान देने की वृत्ति बना ली
तृतीय आप मीन मार्गी होने को उत्सुक हुवे!!

और चतूर्थ सोपान आता है कि अब आप मुद्राओं के द्वारा  अर्थात परस्पर चक्रात्मक जागृति के द्वारा दृढ आसन धारण करते हो ।
सर्वश्रेष्ठ मुद्रा जिसप्रकार  विशुद्ध सुवर्ण कही जाती है वैसे ही सर्वश्रेष्ठ मुद्रा है मेरे बच्चों
आपका .......... #चरित्र ।
चरित्र एक ऐसा दर्पण है जिसमें आप स्वयं को तो देखते ही हो साथ ही आपके पीछे के बिम्ब भी दिख जाते हैं ।

मैं देखती हूँ और इसी कारण मैं सख्त निर्देश अरूण जी को दी हूँ कि किसी भी महिला सदस्य की आवस्यक सूचनायें आप कभी भी सार्वजनिक नहीं करोगे। जिसे चर्चा करनी है वे यहाँ करें
समूह में करें  मैं आप सभी को कंचन की तरह निखारना  चाहती हूँ।

तो बच्चों कुलाचारान्तर्गत मुद्रा कहते हैं!!
आपकी अंतरंग पलों को भी जागते हुवे व्यतीत करने की महा आनंद मयी शारीरिक चेष्टाओं को!!
अथवा....एकल साधक द्वारा जलंधर बद्ध और स्पन्दनों के प्रयोग और विशेष अंगों में संञ्कुचन के द्वारा प्राणायाम।

अभी तो एक अत्यंत ही दुखद तथा विपरीत मानसिक स्थिति की चर्चा करना चाहूंगी । मैं अपने स्वयं की बात करती हूँ  मेरी ज्यादा चन्द्र नाड़ी चलनी चाहिये । और पुरूषों की सूर्य ...किन्तु होता विपरीत है। मैं देखती हूँ कि मेरी भी सूर्य नाड़ी ही चलती है ज्यादा
और मेरे बच्चों !! आप सभी की चन्द्र नाड़ी ज्यादा चलती है ।

इसका कारण है मेरे बच्चों  । जब आप साधना पथ पर चलोगे---तो आप विपरीत धर्मी हो जाओगे ।

आप यदि पुरुष हो तो आपमें शीतलता आ जायेगी और यदि आप स्त्री हो तो आप में यौगिक कारणों से उष्मा आ जायेगी ।

एक बार आप विपरीत पथ पर चल कर तो देखो । आपकी सभी शंकायें दूर हो जायेगी । एक बात विशेष ...आपका शरीर आपकी आवस्यकताओं को आपसे ज्यादा जानता है!! जब आवस्यक होगा तो सूर्य चन्द्र में स्वतः ही परिवर्तन कर लेने को आप उसपर छोड़ दें।

अपने बच्चों से क्या छिपाना ?
मैं और आपके बाबा एक साथ हमेशा रहते हैं
हमें कोई संतान तो है नहीं!!
हम दोनों दिन भर पढना लिखना संगीत सुनना एक दूसरे से हंसी मजाक करना !!
बस यही हमारी दिनचर्या है!!

जो हम दोनों खाते है आपको हंसी आयेगी!!मैं रात को काॅर्न फ्लेक्स और दूध, और आपके बाबा पतले-पतले तीन परांठे दाल और एक लीटर दूध!! अर्थात साधक को......  ।
शुभ रात्रि ।

21/09/2018 pm संकलन   gurubani 48
जै श्रीकृष्णा शुभाशीष !!सभी की वंदना!!

मेरे बच्चों,आप में कोई गुजरात महाराष्ट्र केरल पंजाब दिल्ली उत्तर प्रदेश से है, तो कोइ मध्यप्रदेश चंडीगढ़ उत्तराखंड से है और मैं आपकी माँ असम से हूँ तो ये हम सभी ने मिलकर एक गुलदस्ता सा बना लिया है ।

तो मैं सोचती हूँ कि ये इसी जन्म में जब इतने दूर दूर के हम आप मिल गये तो ये दूरी मिट सी गयी किन्तु एक आश्चर्य होता है...मुझे।

तो आप एक बात तो सोचो ये इसी देश का रिश्ता है हो सकता है कि परदेश का भी हो  ।।
और यदि परदेश का हो सकता है तो क्या किसी और लोकों का नहीं हो सकता  ?

मेरे बच्चों!! हो सकता है कि मैं पिछले जन्मों में किसी और देश काल योनि में रही होउंगी  । आप किसी अन्य में तो ये भी तो सकता है कि हम आप किसी अन्य लोकों से यहाँ पे आ गये ।।
और वो लोक देवलोक पितृलोक गंधर्व लोक भी हो सकता है ।

और वहाँ पे मैंने और आपने न जाने कितने और किस किस प्रकार के सम्बन्ध बनायें होंगे । और वे सम्बन्धी और वे लोक और उससे सम्बन्धित स्थान दृश्य और स्मृतियाँ  । और वे मेरे आपके सुषुप्त अनुभव और उस स्थिति के शत्रु और मित्र । क्या मुझे याद नहीं करते होंगे  ?
क्योंकि वे मुझसे श्रेष्ठ हैं और अन्य लोकों के होने से दीर्घायु भी हैं।

मैं अल्पजीवी वे दीर्घजीवी  ।
मैं अल्पज्ञ वे मुझसे विज्ञ, अब ऐसी शक्तियाँ.....!!
मुझमें यदि आत्मबल नहीं होगा तो हमें अपने वश में कर सकती हैं!! मेरे माध्यम से किसी के साथ बदला ले सकती हैं ।। मेरा सर्वनाश कर सकती हैं,किन्तु ...

यदि आपमें आत्मबल होगा तो वो आपका विकास भी कर सकती हैं!! मेरे बच्चों!! याद रखना मैं जो आपको शस्त्र दी हूँ उसमें इतनी शक्ति है कि गंधर्व और यक्ष तो क्या देवता भी आपके समक्ष नतमस्तक हो सकते हैं ।

#सर्वनाश । किन्तु एक बात और भी है!
वे सद्गुणों से डरते हैं!! इस कारण आपसे डरते हैं!! वे दैवीय शक्तियाँ हैं किन्तु  आसुरी शक्तियों के जीव......तो आपकी राह देख रहे हैं पल पल ।।

जैसे ही उन्हे अवसर मिला वो आप पर  आक्रामक हो जायेंगे!!इसके लिये वो आपको प्रलोभन देंगे
बहेकायेगे नाना सिद्धियों को अनायास ही दे देंगे ।।
और बस आप गये काम से । पतन हो जायेगा आपका  ।
आप ऊपर से आये हो!! तभी मैं मिली हूँ  ।
और यदि आप भटक गये!! तो नीचे चले जाओगे आप  ।।

(हमे चिंता नहीं माँआप हमारा हाथ थामे हो बस।  रमेश जी ।)
🙏😌😌🙏
(इनके आक्रमण को समझना इतना सरल नही ममाजी । अरुण जी)

पर आपने हाँथ छोड़ दिया तो   ?
#ऐसा ही होता है मेरे बच्चों गुरू तत्त्व आपको नहीं छोड़ता  अनादि काल से आप इसे छोड़ते आये हो । इसकी उपेक्षा करते आये हो।। सादर चरणस्पर्श आदरणीय स्वामीजी ।।

पतन हुवा आपका या सिद्धियों और पुण्यों के बल पर आप नीचे या ऊपर गये । और कर्मभोगों को भोग कर फिर मेरी गोद में आ गये। और ऐसा सदियों नहीं युगों से होता आ रहा है । चलो इससे बचने काश कोई उपाय भी होता ।

(माँ हमे शायद कुछ पता नहीं, परंतु हम सब कुछ भूल कर भी आपको अवश्य ही याद रखेंगे। ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।रमेश जी)
(माँ! आप हमारी माँ हो हम आपको चरणस्पर्श करतें हैं।स्वामी दक्षिणानंद जी ।)

नहीं आदरणीय
मैं गृहस्थाश्रमी हूँ आप सन्यासी--  सदैव आपके पाद प्रक्षालित जल में ही मेरा निवास होगा ।

(तो इससे बचने का क्या उपाय है ममाजी । अरुण जी ।)
तो आज मैं अब दूसरी बात करती हूँ । ना ।।
आज नहीं करूंगी ,अभी मेरे सभी बच्चे आये नहीं हैं  वे मेरी सब .... टिप्पणियां पढ लें
लाइक कर लें तब आगे बात करती हूँ ।
सब सो गये कि समाधी में लीन हो गये आप लोग   ?

मेरे नहीं रहने पे तो सब खूब चहेकते हो ।
शोर मचाते हो और जैसे ही मैं आयी कि बस सब नकलची बन कर स्टैच्यू बन जाते हो ।

(जी हम तो हमेंशा स्टेच्यू बने रहते हैं ।)
आप तो संपादक हैं  । संपादकीय लिखना पड़ता है  पर ये रमेश पवन सुनेत्रा ये सब के सब चुपचाप और गिरीश तो गायब ही हो गया ।

आज की अभी तक की चर्चा पे मैं चाहती थी कि पवन राम अवध सुनेत्रा रमेश ये सब लोग अपनी अपनी बात रखें। विषय पर चर्चा फिर करूंगी ।
सभी लोग। सबको ऊपर की टिप्पणियों को पढकर आज अपनी राय देनी है  । कोई बाकी न रह जाये ।
एक एक पाठ पढो आप । पूरा पढ कर तब अगले विषय पर चर्चा करो आप ।

(आप सब से निवेदन है कि अपनी गुरु मां के आज कहे गए एक एक शब्द को कहीं लिख कर रख लो । और प्रति दिन प्रातः सायं उसको पढ़ा करो । याद हो जाए रट जाए उसके बाद भी।
#जीवन बीत जाए इसको पढ़ना बन्द मत करना।
#सावधानी हटी दुर्घटना घटी । स्वामी जी ।)

सादर चरणस्पर्श करती हूं आदरणीय स्वामीजी ।
(शुभाशीष श्री देवी जी ,

आज आपके इन शब्दों ने मेरी दुखद स्मृतियां पुनः जागृत कर दी । स्वामी जी ।)

जी आदरणीय वो क्या  ?
मेरे बच्चों को भी यदि उचित समझे तो बतायें  ।


(एक साधक या शिष्य को उसके मार्गदर्शक तत्व से मार्गदर्शन मिलना खंडित हो जाये, इस लिये आसुरी/ विरोधात्मक शक्तियाँ उसके मन में बहोत तरह के विकल्प निर्माण करती रहती है। हो सकता है, ये प्रयत्न किसी दुसरे जिवोंका सहारा लेकर या प्रसंग में उलझाकर भी कर रहे हो। लेकिन साधक/ शिष्य को इसका एहसास होना होगा। और स्थितप्रज्ञ जैसे सातत्य से आगे बढना होगा। ऐसा करेंगे, तो ही पुर्वजन्म के गणिती से जुडा हुआ ये गुरु- शिष्य का आदानप्रदान आत्मा के स्तर पर output देगा। या फिर कही अंतराल (space) के कूडे कचरे की तरह फिर से फेरोंमें सर्वसामान्य ज्योतिषि-कुंडली वाला जन्म मरण जारी रहेगा। गल्ती हुइ तो कान खीच ले मैया पिताजी🙏🏻🌸 डा0 सुनेत्रा जी)

30+20+50=100%
तीन लोगों ने मिलकर ये उत्तर दिया ?
मैं सही बोल रही हूँ न सुनेत्रा  ?
(मै यहा अनुभवोंका बक्सा लेकर नही आयी हू पवन भैया। सब बक्से कचरेमे फेक कर आती हू। मैया से chocolate लेने।😊डा0 सुनेत्रा जी)

वैसे ये उत्तर बिलकुल सही है ।

हमारा मिलना अचानक नहीं हुआ हम पूर्व से कीसी डोर से बंधते उलझते आयें है और आज हमारा यहां संगम हुआ है।
क्या हमारे जीवन की बागडोर अदृश्य शक्तियों के हाथ भी जा सकती है? तो क्या हमारे जीवन में सब कुछ प्रारब्ध से प्रभावित नहीं होता है?राम अवध । ।

नहीं राम बेटे । डोर तो मेरे हाथ तूने दी है । पर छुड़ाकर भागता है यदि तो ?

शुभ रात्रि  ।

23/09 /2018 pm  संकलन gurubani 50

शुभाशीष  जै श्रीकृष्णा ।
आज सब इतने शांत  ? किसी ने पिटायी कर दी क्या ?

(मद्य :-- अपने मै’ को स्वाहा कर दिया।
मै का मद्यपान कर लिया।
मांसा :- मा नसिक तथा सां सारिक संपत्तियोंको फना देनेकी प्रवृत्ती बना ली।
मीन :- मछली की तरह मीनमार्गी होने उस्सुक हुए।
मुद्रा :- मुद्राओंकी मदद से परस्पर चक्रोंकी जागृती द्वारा दृढ आसन धारण किया।
जिसमें अपना चरित्र सुवर्णजैसा होना -- यही सर्वश्रेष्ठ ‘मुद्रा’ है।
मैथुन  :- डा0 सुनेत्रा जी ।)

मतलब आप सभी को आज सुनेत्रा भणका रही थी!!
(मै तो अभी आयी हू।😊डा0 सुनेत्रा जी)

सब पढ चुकी हूँ । अच्छा चलो आज इसी पर चर्चा करती हूँ ।
वैसे आप सभी स्मरण रखें- कि मिथुन एक प्रतीक है !! एक पहाडी पशु जिसके आधार पर मिथुन राशि की कल्पना आचार्यों ने की ।
तथा मिथुन राशि का चिन्ह भी स्त्री-पुरूषात्मक होता है!! तथा मेरे बच्चों    ।मिथुन राशि का स्वामी बुध होता है ।

 बुध चन्द्रमा का पुत्र है!    बुध नपुसंक ग्रह है!!चन्द्रमा स्त्री का प्रतीक है  । तथा बुद्ध पुंसवन का विरोधी गृह है ।
अब आप समझो कि ये एक तथ्यात्मक भेद है ।

#प्र0 (बह कैसे है ???  गोपाल जी )

पर सब खूब ध्यान देना  ।
वामपार्श्व भाग में अधोमुखी जो नाडी है वह चन्द्र है --- वही आलि है क्योंकि वह बोधिचित्त की वाहिका है । जो नाडी से ऊर्ध्व मुख होकर कण्ठ तक दक्षिण पार्श्व भाग में रहती है वह सूर्य है, वही कालि भी है --- क्योंकि उसमें रक्त प्रवाहित रहता है ।

अब इन दोनों का सम्पर्क जिस बिन्दु पर होता है!! अर्थात संसर्ग होता है --- वो  ?
अर्थात काली बिलकुल गोरी अर्थात सूर्य है । और आली अर्थात कृष्ण अर्थात चन्द्रमा है ।

बिलकुल विपरीत धर्मी किन्तु राजा और रानी अर्थात वामनाडी प्रवेशमार्ग है,दक्षिण नाडी निष्काशन मार्ग है और मध्य-मार्ग बिन्दू उनके लिये दोनों नासिकाद्वार छिद्र हैं ।
अब ये उठती कहाँ से हैं  --
इसे भी समझो आप मेरे बच्चों!! चाण्डाली शक्ति नाभिदेश में वृद्धि को प्राप्त । होती हुई पाँच तत्वों तथा लोचनादि   । देवियों को "'हं' "कार रूप अमृतनिष्यन्दि । चन्द्र रस से आप्लावित करती है!!
इसे ही अमृतनिधि अथवा शरद पूर्णिमा की रात्रि में अमृत वर्षा कहते हैं  ।

ये चन्द्रमा नाड़ी चाण्डालिनी क्यूँ है  ?
इसका उत्तर जो देगा मैं समझूँगी कि वो मेरे आज की चर्चा की वीनर है ।

ठाकुरजी,अरूण जी,राजेश सुनेत्रा जैसे लोग चुप  ?
मैं अब चर्चा को एक स्तरीय रूप में देखना चाहती हूँ ।

#प्र0 (ये बताइये प्लीज चाण्डाली शक्ती नाभिदेश में वृद्धी को प्राप्त होती हुई पाँच तत्वों तथा लोचनादि देवियों को  "हं" कार रूप अमृतनिष्यन्दि चन्द्र रस से आप्लावित करती है। मतलब?डा0 सुनेत्रा जी ।)

#उ= मतलब मैं ऊल्लू की तरह बोल रही हूं घूँ  घूँ ।
आप्लावित अर्थात भिंगो देती हैं ।

(नाभी से नाडीया शुरु होती है डा0 सुनेत्रा जी)

अमृत से भिंगो देती हैं । हाँ बेटी ना भी अर्थात  अंतः प्रान्त
(ममाजी शब्दो को सरल रखेंगी तो कुछ घुसेगा बुद्धि में । अरुण जी)

मैं इतना कठिन बोलती हूँ  ?
(ना मैया । आपका कथन सारयुक्त होता है इसलिये । डा0 सुनेत्रा जी ।)

(चंद्र मन का करक है। चंचलता पैदा करता है। इसलिये चांडालनी  डा 0 सुनेत्रा जी)

चाण्डाल कहाँ रहते हैं  ? गाँव में अथवा गांव से बाहर ?

 (मुझे इतना पता है मणिपूरक चक्र लास्ट है जहां से फिसलकर फिर अधोगति हो सकती है । अरूण जी)
(शमसान मे  )

ध्यान देना आप बच्चों वो अस्पृश्य तथा स्वपच है ।

(काम भाव यहां से गिरा सकता है उसे ही तो चंड नही कहा गया?अरूण जी)
अरूण जी को वीनर घोषित करती हूँ ।
(बाप रे तुक्के से ही हुआ मां । अरुण जी)

तो सुनो आप सभी
जो अस्पृश्य अंग हैं उनसे ही नकारात्मक तथा सकारात्मक तंत्रिकाओं का एक जाल सा सतत प्रस्तावित है ।
भाषा का क्लिष्ट रखना मेरी मजबूरी है बच्चो  ।

नकारात्मक शक्ति प्रवाहिका अंग तथा सकारात्मक उर्जा विमर्शक अंग हों  । अथवा कि भ्रूमध्य स्थान । यहीं दो कन्द जैसे स्थूल माँस की गाँठ होती हैं बिलकुल छोटी सी। चने से भी छोटी!!
इसे हो आप नाड़ियों  का पाॅवर प्लान्ट कह  सकते हो ।

(मां सिद्ध और योगी भाषा में क्लिष्ट क्यों रखते हैं ।प्रमोद जी)

उ= ताकि अपात्र इससे दूर ही रहें ।
आज की चर्चा समझनी कठिन है बच्चों  । आप इसे दो तीन बार पढना और अपने भीतर झांकने- की कोशिश करना । आज के लिये इतना ही ।

(ओर ये गुप्त चर्चा को किसी भी अपात्र के साथ कभी शेयर नही करना 🙏🙏निज कल्याण जी)

उ= सबको शेयर कर दो  । ये काला हीरा है अनमोल कोई जौहरी ही इसे पढेगा  बाकी तो इसे देखकर भी अंधे ही रहेंगे ।
आदरणीय स्वामीजी सादर चरणस्पर्श करती हूँ ।

       शुभाशीष शुभरात्रि
       जै श्रीकृष्णा  मेरे बच्चों ।।

25/09 /2018 pm संकलन  gurubani 52

(ममाजी फिर आप भी दे दें तिलांजलि )
ब्लाक कर दी
किन्तु अपनी संतान होने का भ्रम और कष्ट मुझे हुवा ।

(मेरी प्रोफाइल मे मेरी फोटो नही हे पर मे मरी फोटो देखना चाहते हे तो अवश्य भेज दूंगा ।
जेसा गुरु मा का आदेश होगा ऎसा करूंगा .....प्रणाम सब भाई बहेनो को । निज कल्याण जी)

आप यहाँ पर अपना चित्र भेज दें ।
(ये आपके श्री चरणो मे रहेने वाला गणेश हे मा । ओर क्या आदेश हे मा ? ?निज कल्याण जी)
मैं जानती हूँ   । अब सबने भी देख लिया ।

किसी भी स्त्री सदस्या का नहीं भेजना है ये मेरा सख्त आदेश है ।

(माँ स्त्रि -पुरुष मेँ भेद क्योँ....सब आपके बच्चै ही तो हैँ..... ।हरी जी)

बिलकुल नहीं मैं भेद रखती हूँ ।
ये मेरी बच्चियाँ हैं  आपके घर की ईज्जत । आप सभी तो पुरूष हैं  फिलहाल अभी तक तो हैं ही ।

मैं किसी पर भी उतना ही विश्वास करती हूँ कि कभी अविश्वास न करना पड़ें ।
मेरी शिष्या तो अनेक घरों की बच्चियाँ और बहुवें हैं  ।

क्या आप में कोई भी पुरूष सदस्य अपने घर की बच्चियों के चित्र यहाँ डालना चाहेगा ?
यदि ऐसा है तो मैं तत्काल उसे समूह और अपने मन से बाहर कर दूँगी ।

(शेरनी की बच्चियाँ   । डा0 सुनेत्रा जी ।

मेरी बच्चियाँ है ये । ये मेरी अपनी ईज्जत हैं।।।
ये साक्षात देवी हैं । इनपर कभी कोई नियम न थोपें ।।
कभी भी भविष्य में दुबारा ये अपराध कोई भी नहीं करेगा

वरना मैं बिलकुल उसे बख्सूगी नहीं। चाहे वो कोई भी हो ।
ये फेसबुक छाप तांत्रिकों का कोई गुमराह करने वाला समूह नही है ।
#स्वीटी--- तेरी ग़लती 1% भी नहीं है ।

#ये समूह और मेरी आइ डी  । मेरे लिये मेरा मन्दिर है
यहाँ भ्रष्टाचार बिलकुल भी नहीं चलेगा  ।
@Sweety Sai तेरी ग़लती नहीं है मेरी बच्ची  ।

(माँ आज क्रौध मेँ.......??????  हरी जी)
मेरे क्रोध का कारण है । आज माफ करती हूँ  । लेकिन - -
(आप सदस्यों को कहिए कि स्वीटी जी का फोटो डिलीट कर दें। आदरणीय स्वामी जी)

किसी दिन किसी ने मेरी एक बच्ची को लगातार वार्तालाप करने को बाध्य किया था ।
और तब मैने कहा था कि तत्काल उस बेवकूफ को अन्फ्रेन्ड कर और ब्लाक कर दे ।

#@Arun Sharma जी मेरे सिवा किसी भी महिला सदस्या की फोटो को आप डिलीट कर दें। ये मेरी स्पष्ट आज्ञा है ।
आई डी पर तो मेरा फोटो भी नही है । लगा दूं किसी का भी फोटो खींचकर ?

#किसी भी पुरूष या स्त्री की व्यक्तिगत जानकारी माँगने का अधिकार बस मुझे और @Arun Sharma जी को है ।
और वो भी यहाँ नहीं। उस सदस्य के व्यक्तिगत मैसेंजर पे।

(हमे बस अपनी आँखोंको खुला करके रखना है, मैया का अंजन अपनेआप अंदर जा रहा है।🙏🏻 । डा0 सुनेत्रा जी )

(ममाजी मैसेंजर पर सभी को स्वीटी जी की फ़ोटो डिलीट करनी होगी । यदि में डिलीट करूँगा तो सिर्फ मेरे पास ही डिलीट होगी । मेरा सभी भाइयों से निवेदन है कि सभी  डिलीट करें ।अरुण जी)

मेरे बच्चों कभी कभी माँ को बच्चों पे नाराज होना पड़ता है और कभी बच्चे भी नाराज हो सकते हैं !!
वैसे यहाँ कोई भी ऐसा व्यक्ति फिलहाल नहीं है जिसे निकालना आवश्यक हो ।

वैसे मेरे सभी बच्चे बहूत सुंदर हैं ।
लेकिन सब के सब गंभीर जैसे कि बस क्या हो गया हो इनको--कोई स्माइली पिक हो तो ठीक भी है ।

(संसार मे केवल एक स्त्री और एक पुरुष है । अरूण जी)
(एको अहं द्वितीयोनास्ति । MP जी)
एकोऽहम बहूस्याम् प्रजायेयम्  ।
(सम्भवतः ऋग्वेद का मन्त्र है ये जिसे माँ ने व्यक्त किया है।MP जी)

जी।आपलोग नासदीयसूक्त पढते हैं ?
मेरे ही। जै श्रीकृष्णा।आज प्रश्न @Arun Sharma जी प्रस्तुत करें।

जब तक वे नहीं हैं तब तक के दा जी पूछ लें ।
(माते  साधन पर मार्गदर्शन करने की कृपा करे । के दा जी)

जी, साधन अर्थात आपका शरीर अर्थात एक ऐसा यंत्र जिसे आप अपनी ईच्छा नुसार संचालित कर सकते हो ।
#शरीर से आप योग,भोग स्वर्ग नर्क भक्ति वेदान्त किसी की भी साधना ५० % कर सकते है। और शेष मन के द्वारा।
मन और शरीर मिलकर ही साधना,योग या भोग करते है ।

#यदि आप मन से ही योग करते हो,शरीर का उपयोग नहीं करते अर्थात मानसिक योग तो शरीर बगावत कर देगा । और यदि शरीर  से करते हो तो मन बगावत कर देगा ।

मेरे बच्चों एक बात कहूँ  ?
या तो आप किसी को अपना बना लो!!  और या तो किसी के हो जाओ ।
किसी को अपना बनाना तो आपके वश में नहीं है--तो  ?
आप किसी के हो तो सकते हो  ?
ये तो आपके वश में है!!

#किसी के आप होगे कैसे ,सबसे मुश्किल है ये!! क्यों कि आपको दास और दासियों को पालने की आदत हो चुकी है!!
और मेरे बच्चों इसी कारण हम भटकते हैं ।

मैं आपको पंचम वेद के महावाक्य बताती हूँ  ?
अहं शून्योऽस्मिः, अहं दासोऽस्मिः , अहं क्षुद्रोऽस्मिः ।

और कुछ  ?
कृपया ये समझे कि समूह चर्चा में मेरी चर्चा के संकलन कर्ता को आप सभी के इन नमस्ते जैसी व्यर्थ की टिप्पणीयों से कष्ट होता है।। कृपया आवस्यक टिप्पणी करें!! कोई प्रश्न ?

(गुरु आज्ञा का उल्लंघन करने पर दण्ड अक्षम्य हो जाता है । स्वयम गुरु भी नही बचा सकते । आदरणीय स्वामी जी)
  शुभरात्री...

26/09 /2018 pm  संकलन gurubani 53

शुभाशीष ,शुभाशीष मेरे प्यारे बच्चो ।

@Arun Sharma जी आप आज प्रश्न रखें ।

प्र0 #( 1 ममाजी मेने कहीं पढ़ा था कि स्थूल शरीर का केंद्र नाभि ओर सूक्ष्म शरीर का केंद हृदय है । कृपया इसे स्पष्ट करें कैसे
2 ये राम अवध जी का प्रश्न की श्राद्ध में स्वंय ही कैसे रोटी या वस्तु पितरों को सरलता से अर्पण करें
3  स्वीटी बहन का प्रश्न की क्या सिर्फ भक्ति से हम मुक्त हो जाएंगे अगर ज्ञान समझने में कठिनाई हो हां तो कैसे ,क्या करें। अरुण जी)

#उ= मेरे बच्चों!! आपका ह्यदय स्थान जो आप समझते हो वो तो है किन्तु स्थूल शरीर का । वस्तुतः ह्य...द्वय है आपका भ्रूमध्य ।
नाभी  के ठीक  पीछे आपकी पीठ से प्रारम्भ मेरूदण्ड  का अंत जिस बिंदु पर होता है ।

(जी ।त्रिकुटी यानी पिनियल ग्लैंड पर?अरूण जी)

उससे ठीक द्वादश अंगुल उपर भ्रूमध्य । और यही बस स्थूल से सूक्ष्म शरीर दर्शन की यात्रा है ।

प्र0 (एक अन्य बात पूछूं ममाजी?   कबीर जी मूलाधार से न शुरू करके आज्ञाचक्र से ही शुरू किए नीचे के चक्र स्वयमेव जागृत हो गए । क्या ये सही है?   क्या सभी के लिए सही है । अरूण जी)

ऐसा भी हो सकता है । किन्तु सभी के लिये ...ऐसा कहना उचित नहीं होगा ।

(सामान्य व्यक्ति को क्या समस्या हो सकती है ममाजी। अरुण जी)

आपके लिये भी सम्भव नहीं किन्तु  आप स्वीटी के प्रश्न को इसी बिन्दु पर इस प्रश्न से जोड़ लें तो समाधान हो गया आपका ।

(जी शमझ गया। भाव समाधि । भक्ति भाव पूर्ण ध्यान से भी सम्भव है । अरूण जी)

मानसिक अवसाद अथवा उच्च और निम्न रक्तचापअर्थात BP का फ्रक्च्यूलेट होना  ।

 (जी इसका क्या अर्थ हुआ जो मानसिक अवसाद लिखा आपने। अरुण जी)

#उदासी । साँसारिकता का अभाव।अतः सामान्य साधना ही उचित है ।
(आपके कहने का अर्थ मानसिक असंतुलन हो सकता है। अरूण जी ।)

जी बिलकुल  ।एकांतवास, किसी से भी मन का न लगना । बस जिन्दा हूँ  बस। अर्थात पलायन वादिता ।

(जम्मू के एक साधक थे गोपी कृष्ण वो सहस्रार में ध्य्यन लगाते थे 17 वर्ष बाद उनकी कुंडलिनी जागृत हुई और आत्मज्ञान हुआ । सामान्य गृहस्थ थे । अरुण जी)

देखो मेरे बच्चों ये योगादि भी सोचकर करना चाहिये । पहली बात मुक्त होने की आशा छोड़ दो आप ।
#मुझ पर विश्वास और श्रद्धा रखते हुवे धीमीगति से अभ्यास करो। जो आनंद मिलेगा आपको कि आप सराबोर हो जाओगे ।

(ममाजी मुक्ति की कोई इच्छा नही पर पुनरपि जननम पुनरपि मरणम से जरूर छूटना चाहते हैं। अरुण जी)
अपने आप से जुड़े लोगों को जो आध्यात्मिक पथ पर लेकर आते है वह कबीर हैं । #जन्म तो होगा और मृत्यु भी होगी तो इस सत्य को स्वीकार कर लो ।

(वाह सच मे ?जी कुछ ऐसी व्यवस्था करिये की ऊपर के ही लोकों में रहें आपके बच्चे ।अरुण जी)

#कर्म तो शेष थे   हैं और रहेंगे भी ।
चलो एक बात आज फिर से पूछती हूँ  ?
#किसे  किससे कैसे और क्यूँ मुक्त होना है  ?

(जी मेरा तो हो गया । सुन भी लिया😊😊अरुण जी
मुझे मद का मद्यपान करके मद से प्रियतम से मिलने हेतु मुक्त होना है। । डा0 सुनेत्रा जी ।

जी माँजी सही कहा आपने लेकिन गीताजी के अनुसार कर्म और उनके फल ईश्वरार्पण करदो तो प्रभु ने वचन दिया है कि मैं कर्म वन्धन से मुक्त कर दूँगा। गोपाल जी)

#किन्तु फिर भी क्या कृष्ण ने अवतार नहीं लिया   ?
##मेरे बच्चे कबीर कृष्ण और राम बनें । सूर तुलसी और मीराबाई बन कर बारम्बार आयें!!

(माँ जी आज सबकी एक बहुत बड़ी बिमारी दूर हो गयी, मुक्ति की। राम अवध )
(किसे :- स्वयं की बद्ध जीवात्मा
किससे:- जन्म मरण जनित कष्टों व चक्र से
कैसे:- श्री गुरू माँ द्वारा बतायी गई विधि से
क्यो:- शाश्वत परमानंद प्राप्ति हेतू। MP जी)

(एक बात है मूर्खो की तरह आने और राम कृष्ण की तरह आने में जमीन आसमान का अंतर है। अरूण जी)
(हाँ भ्राता श्री, तब कोई कष्ट कोई चिंता व्याधि नहीं सताती।रमेश जी ।)
(में ममाजी की बात से सहमत हूँ कि उनके परम् भक्त बनकर उनके कार्यो हेतु आएं ।अरुण जी)
(सही कहा अरुणजी..भक्तिपूर्ण जीवन मिले तो आने में क्या बुराई है. । गोपाल जी)
(तब में अवश्य आऊंगा । पर मूर्ख बनकर कदापि नही। अरूण जी)

जैसे आप सब सोचो!! आप सबकी दिनचर्या मैं बन चुकी हूँ
आखिर ऐसा क्या है आपमें और मुझमें रिश्ता  ।

(कर्म संस्ककार शून्यता तो है ही पर प्राण की मात्रा में भी अंतर हैबाकी ममाजी जाने क्या में। अरुण जी)
(अरुण जी आज मुक्ति से मुक्त हुए । राम अवध)

#आत्मा तो एक सभी की है किन्तु मन का मिलना ।

(हम दो अलग अलग नहीं एक ही है तो जो आप सोचो करो वही हम सोचे करे।   रमेश जी)
(जी ममाजी कर्म संस्कार अलग करते है यानी भाव। अरुण जी)

जैसे जल में जल ही मिल सकता है । आप मुझसे दूर जाओगे तो भी जाकर देखो। आपके संस्कार आपको पुनः किसी दिव्य आत्मा से ही जोड़ देंगे ।
#भक्ति योग वेदान्त कुलाचार ये जितने भी पथ हैं!! इन सबका लक्ष्य स्व-अनुसंधान है । इनमें कोइ ना तो छोटा पथ है और ना ही कोई  लम्बा पथ है ।

(ममाजी आज समर्पण भी बता ही दें किस स्तर का चाहिए। अरुण जी)

और आप समझें मेरे बच्चों
भक्ति बिना योग नहीं कर सकते आप । योग बिना वेदान्त को समझना निरस तोतों के जैसा ज्ञान  है!! और जिनमें भक्ति और योग नहीं वे वेदार्थ अर्थात वेदान्तियों के जैसे हो सकतें हैं# किन्तु वे अपने ही अस्तित्व के शत्रु हैं ।
सम......अर्पण    समत्वं योग उच्यते ।

जैसे कोई अनेक दिनों का प्यासा रोटी को देखता है,-बस  
मैं पियासी पीय की रटत सदा पिय पीय
पिया मिलैं तो देह है सहजै त्यागूं  जीव ।
जैसे आप इतने प्यासे हो कि अमृत कलश भी आपकी प्यास न बुझा सके ।

किन्तु जैसे ही आपकी माँ ने प्यार से आपको पुकारा  ओ लल्ला आ जा!! बस सब दुख प्यास भूख अचानक लोप हो गयी ।

#जब आपका शिवोऽहम् का भ्रम मिट जाता है तो जीव अपनी शिव से पृथक और दयाद्र स्थीति का अनुभव करने लगता है!!वह अपनी लघुत्तम स्थीति को समझ लेता है!वह अपने से पृथक ईश्वर की सत्ता को स्वीकार कर लेता है!!

(जो तूं चाहे पीय को तो छोड़ मिलन की आस।
सुतपा विरहिन तड़पती पल-पल दिन अरु रात।।डा0 सुनेत्रा जी)

और भी मेरे बच्चों जैसे पूर्णिमा के चंद्रमा को देख कर समुद्र उमण पड़ता है,वैसे ही उनकी मन मोहिनी मूरत को देख कर जिनका ह्रिदय भी उनके आगोश में समा जाने को व्याकुल हो जाता है!! यह आत्म रति का उनके प्रति समर्पण का भाव है, यही भक्ति है।

ये प्यार का सागर है मेरी बच्ची!!
जाने कितने  देवता और ऋषि उनकी मुरली की तान पर
अपने पुरूषत्व को कोसने लगे कि काश मैं स्त्री होता  !! काश ब्रज की लता तो क्या धूल ही होता ।
अपने सकल आचरण से उन्हीं को समर्पित रहना तथा उनके विस्मरण हो जाने  पर व्याकुल हो जाना भक्ति है ।

शुभाशीष
जै श्रीकृष्णा  शुभरात्रि मेरे अनेक जन्मों  से मेरे साथ जुड़े और आगे भी जुड़ने वाले मेरे बच्चों  शुभाशीष ।

27/09 /2018 pm संकलन  gurubani 54
जै जै श्रीकृष्णा  शुभाशीष मेरे बच्चों  ।

आपके इस शरीर का निर्माण जिन धातुओं से होता है!!या जिन तत्वों से होता है!! निःसंदेह वे आपके पूर्व कृत बीजहैं
स्थूल बीज तथा सूक्ष्म बीज, जैसे कि कर्म और संस्कार एक ही सिक्के के दो पहेलू हैं ।

कर्म आपको शरीर ,स्थिति,संयोग आदि देता है!! और संस्कार आपके अपने ही भीतर से तथा बाह्य परिवेश से भी होते हैं ।
किन्तु ये जबरन थोपे हुवे भी हो सकते हैं । अर्थात ना चाहते हुवे भी आप जबरन किन्ही मान्यताओं के बोझ को ढ़ोते रहो

(आज के परिवेश में जबरन थोपे संस्कार ही ज्यादा घेरे रहते हैं, माँजी । गोपाल जी)
(हम खुद भी हो सकते है । डा0 सुनेत्रा जी)
(🌸🙏🏻🌸परमपूज्या देह रचना के संदर्भ में, एक भिन्न सिद्धांत भी मिलता है, जिसके अनुसार देह की मांस, मज्जा, रूधिर और कोमलता माता से अस्थि आदि स्थूलता पिता से प्राप्त होती है।
पूर्वकृत कर्म अथवा संस्कार सूक्ष्म मन में रहते हैं।
🌸🙏🏻🌸 । अरविंद जी)

अब ये थोपने वाले कौन हैं?
प्र0 (हम यह कैसे निश्चित कर सकते हैं कि पूर्वजन्म में हमारी मानव योनि ही रही होगी ?अरविंद जी)

हाँ बेटी !! ये एक लबादा है!! नकली नकाब !!
जो लगाकर मैं घूमती हूँ ।
हम यह कैसे निश्चित करें कि हमारी मानव योनि नहीं रही होगी ?

प्र0 (तो फिर माँजी साधक क्या करे, सही मार्गदर्शक जबतक न मिले । गोपाल जी)

#मेरे बच्चों!! आपके पास नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों ही संभावनायें हैं!!
आप स्वीकार किसे करते हो -किसे नकार देते हो!!  बस यही आपके कर्म बीज हैं ।

प्र0 (अनिश्चय को दूर करने के लिए कोई तो उपाय होगा परमपूज्या  ? अरविंद जी)

उ0=हाँ है न
क्या उस उपाय को मैं आपको दी नहीं हूँ  ?

(बिलकुल    ।दिया है । डा0 सुनेत्रा जी )
(बही बताने की कृपा करें माँजी  । गोपाल जी )
(पूर्णतया। हमारा सौभाग्य हैं आप । अरविंद जी)

क्या वो कोई मंत्र है  ? तंत्र है ? या फिर वेदान्त है ?

(दिव्य स्त्रोत का हाथ थमा दिया है । डा0 सुनेत्रा जी)
प्र0 (हमको जानकारी नहीं है माँजी तभी निवेदन किया। गोपाल जी)

  मैं जो आप सबको सहज विधात्मक बोध दी हूँ  वो तो पशू पक्षी सभी जानते हैं ।
आप पशु थे तो भी वो विधा तो आपमें थी ही ।

(आपने हमे अपना सर्वश्व दे दिया है माँ । हमे तो केवल उसकी अनुपालना करनी है।रमेश जी)

आप पशु थे तो भी भगवती महामाया के सिंह थे ।
(हमतो नये व भटके साधक हैं । गोपाल जी)

पक्षी थे तो गरूड़ थे और सरिसृप थे तो शेषनाग ।
आप यदि गुबरैले कीड़े थे तो भी बच्चों ।
किसी  भक्त के हाँथों आप तुलसी पत्र के साथ नारायण को अर्पित होकर आज यहाँ तक आ गये ।

(यही सच कहा है आपने माँजी..हम कीड़े मकोड़े ही रहे होंगे..प्रभुकृपा से आपतक आगये.. । गोपाल जी)
(मैया जी सिर्फ किसी विशिष्ट योनी की बात नही कर रही है, जो चाभी हमे दी है उसकी सरलता पर बोल रही है। की कैसे कोई भी योनीमे हम ये सहजता से करते थे, जो दीक्षा में प्राप्त .. । .डा0 सुनेत्रा जी)

आप देखो सुनेत्रा ने जो कहा आप सभी उसे पढो समझो और अनुसरण करो ।
(जी  । वही करते हैं जी  विनय जी)
(गोपाल भैया शायद दीक्षा लेने वालों में नहीं थे । राम अवध)

आप ध्यान दें!! आपने मुझे माँ तो कहा!! किन्तु आपने किसी के ऐसे दामन को थामे रखा कि जिसका दामन मेरे हाथ था।तो आप भला कैसे उस अनुभव को पायेंगे ?

मैंने आपको समूह में स्थान दिया । सबके साथ रखा कोई भी भेद नहीं की मैं ।

(जी रामअवध जी..हम पूर्वमे योगमार्ग में दीक्षा ले चुके हैं..माँकी तो चरण शरण में आ गये भटकते हुए । गोपाल जी)

किन्तु आप वह नहीं समझ पाये जो आपको समझना जरूरी था।
(जी माँजी बही समझने का प्रयास कर रहे हैं । गोपाल जी)

समझ पायेंगे आप ?
(आपके लेख पढ़कर और चर्चा को सुनकर समझने की कोशिस कर रहे हैं । गोपाल जी)

#लालावानपिवांड़्गुष्टः #मातान्यास्तन्य_विभ्रम ।

(माँजी आप भावार्थ समझाने की कृपा करें । गोपाल जी)

#बच्चे अपने अंगूठे को माँ का स्तन समझ कर चूसते हैं-- तो क्या इससे उनकी क्षुधा शांत होगी?

(माँ हम लोगों ने कितने दिनों तक प्रश्न किये आप से  ।राम अवध)

शायद मैं समझती हूँ कि आपमें अधिकांश सही मार्ग पे हैं ।

(यह तो माँजी ज्ञात नहीं है पर सद्गुरु की कृपा से आदेश मिले योगमार्ग में बही अनुशरण कर रहे हैं, शेष श्रीगीतामाँ की कृपा।
शायद श्रीगीता माँ ही आपके रुप में मिल गयीं है साकार स्वरुप। गोपाल जी)

मेरे बच्चों!! आपके पास नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों ही संभावनायें हैं!!
आप स्वीकार किसे करते हो -किसे नकार देते हो!!  बस यही आपके कर्म बीज हैं ।

(हमारे पूर्व जन्म का कर्म हैं ऐसी माँ मिली । संगीत जी)
 शुभाशीष