Saturday 15 September 2018

विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र~१७ अंक~१५


#तंत्र_की_पहली_शर्त_है_अस्पृश्या_डोमिनी_को_स्वीकार_करना!
      
अब विज्ञान भैरव तंत्र  यह सत्रहवाँ श्लोक मैं  आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ, #श्री_भैरव_उवाच--
#एवंविधा_भैरवस्य_यावस्था_परिगीयते।
#सा_परा_पररूपेण_परादेवी_प्रकीर्तिता।।

हे प्रिय!!अब मेरे प्रियतम भैरवजी अपनी सूरता  रूपी शिवा से कहते हैं कि,हे प्रिये!!यह"तूँ"भैरवी ही तो #परा_देवी_विद्या" मैं हूँ!! और "मैं"तूँ ही तो है!!इस संदर्भ में मैं आपको एक अद्भुत बात बताती हूँ--
#गौरी_चौरी_वेताली_च_घस्मरी_पुक्कसी_तथा।
#शवरी_चण्डाली_चैव_अष्टमी_डोम्बिनी_मता!!
गौरी,चोरनी,वेताली,धोबिनी,पुँश्चली,भीलनी,चाण्डालिनी और आठवीं"डोम्बिनी"ये कृमशः जितनी त्याज्या होती जाती हैं-अघोर मार्गमें में उत्तरोत्तर ये उतनी ही पवित्र होती जाती हैं!!इस बात का इस सूत्र से गंभीर सम्बंध है!!क्योंकि"परा-विद्या"अर्थात त्याज्या पवित्रता के भयसे मैं जिसका त्याग कर चुकी हूँ,डरती हूँ जिससे!!अब मैं इसपर विचार करती हूँ--

भेदात्मक वृत्तियों के कारण जिनका स्पर्श भी वर्जित है उन्ही का सम-वृत्ति होते ही!!वामाचारी होते ही!! बोधिचित्त होते ही!! वामाचारी कापालिक उनके स्पर्श मात्रसे "आनंद"का अनुभव करते हैं!!ऐसा क्यूँ ?
#देहों_की_दहलीज_से_बाहर_आओ_आप_मैं_आपकी_प्रतिक्षा_कर_रही_हूँ!!

हे प्रिय!!"डोमिनी"अपरिशुद्ध अवधूतिका महा शक्ति है,जो प्राणी के,पुरुष स्वरूप"भैरव"के बोधिचित्त अर्थात शुक्र को!! पुरुषाभिमानको नष्ट कर देती है!!
वही तो परिशुद्ध अवधूती है #नैरात्मा है!!आपको एक रहस्य की बात बताती हूँ!! दिव्य साधक की प्रिया द्वैत स्वभाव वाली ही हो सकती है,एक स्त्री ही हो सकती है! गौरी ही उसकी शिवा हो सकती हैं!! वह उसका कल्याण करनेमें सक्षम् हो ही नहीं सकती!! वह तो स्वयम् ही सौभाग्य-काँड़्छिणी हैं!!

हे प्रिय!आप ध्यान से समझें!सामाजिक व्यवस्थाओं के अनुसार #षोडसी_कामिनी किंतु अपवित्रा डोमिनी नगर के बाहर रहती है!! शब्द-रूपादि से सुसज्जित यह जो काया रूपी नगर है न! उसके बाहर डोमिनी निवास करती है!! ब्राम्हण तो उससे दूर ही रहते हैं,वे उस-पर मोहित तो होते हैं किंतु बस छूकर निकल जाते हैं!! वे विज्ञान के प्रारंभ से ही लौट जाते हैं, क्यों कि वे पुरुष हैं!!और पुरुष ही रह सकते भी हैं!!
डोमिनी को प्राप्त करने का,शोडषी सुँदरी को प्राप्त करने का एक ही उपाय है!!

निर्लज्ज होना, और निर्लज्ज तो पुँश्चल ही हो सकते हैं!!शिव के शव का भक्षण करने वाली ही "डोमिनी" महा शक्ति-पुँञ्ज है!!और हे प्रिय!!"भै-रव"का यह अत्योत्तम प्रकाशोत्पन्नकर्ता भाव प्रकट होता है""भै-रवी"के प्रति कि--- हे भैरवी!जब मैं तेरे साथ नृत्य करता हूँ,और तूँ मेरे साथ नृत्य करती है,यह जो नटराज का "महा-ताण्डव"है!यह जो कापालिक नृत्य है #चिताभष्मालेपो_गरल_मशनं_दिग्_पट_धरो
आवरण,वस्त्र विहीन नग्न नृत्य!!अहो ऐसा अलौकिक नृत्य जिसमें लज्जा तिरोहित होचुकी,"स्त्री-पुरूष"का भेद ही नहीं है!!

तो हे प्रिय !!"डोमिनी"अर्थात कुण्डलिनि-शक्ति, वासना की मुख्य नायक-नायिका की आधार भूमि, सूरता की यात्रा का #हरि_द्वार!!और इस प्रकार इस श्लोक के उपसंहार में यही स्पष्ट होता है कि-यही वह बिंदु है जहाँ से अघोर की श्मशान यात्रा प्रारंभ होती है, पुरुष-प्रकृति का भेद "अभेद"हो जाता है!!

किंतु इस तंत्र की पहली शर्त है अस्पृश्या"डोमिनी" को!! वासना के केन्द्र को,जिसको मैं और सभी विद्वान युगों से गाली देते आये हैं, उसे उसके मूल और वास्तविक स्वरूप में स्वीकार करने की!! तभी"भैरव- भैरवी"की ऐक्यता"पुँश्चलता सिद्ध होती है!! तभी तो शिव को महान शैब्यों नें  #महत्_पुँश्चल अथवा अर्धनारिनाटकेश्वर कहा है.......सुतपा!!

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