Wednesday 12 September 2018

दुर्गा सप्तशती सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र

दुर्गा सप्तशती सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र~मंत्र~१४

#इदं_तु_कुञ्जिकास्तोत्रं_मंत्रजागर्तिहेतवे।
#यस्तु_कुंञ्जिकया_देवि_हीनां_सप्तशतीं_पठेत्‌।

हे प्रिय!!अब पुनश्च ऋषि कहते हैं कि- "देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्  ?
आप मुझ देवी के बिना सप्तशती भला पढोगे कैसे!! आप मेरा त्याग करोगे ?
त्याग तो मेरा #राम ने भी किया था!!
मर्यादा की रक्षा करने के नाम पर किया था!!
फिर भी जब उन्हे राजसूय यज्ञ करना हुवा!!
तो मेरी सुवर्णमयी प्रतिमा बनानी पड़ी!!

और आप याद रखना कि वो सुवर्ण का ही मारीच था जिसने मुझे आपसे दूर किया था!! और यह सुवर्ण की ही सीता थीं!! जिसने आपको मुझसे दूर कर दिया!! आप हों अथवा मैं!!किन्ही भी स्त्री-पुरुषों को!! दम्पत्तियों को अपनी छणिक ईच्छापूर्ति के संसाधनों, अन्य किसी सांसारिक सम्बंधों, अपनी सन्तानों,अपनी शिक्षा अथवा धर्म,कर्म के नामपर मोक्ष अथवा मर्यादा के नामपर कभी भी परस्पर एक दूसरे का कदापि त्याग नहीं करना चाहिये!!

अभी कुछ दिनों पूर्व मैं एक कन्या विद्यालय में गयी थी,नारी-दिवस पर कार्यक्रम था!!और उस कार्यक्रम में पुरुषों को कोसने के सिवा और कुछ भी नहीं था!!ये #वुमन्स_लीब बड़ी ही घातक विचारधारा है!!हे प्रिय!! आज ये #लीव_एण्ड_रिलेशनशिप से बड़ा कोई दूसरा अभिशाप हम स्त्रीयों के लिये हो सकता है ?

बस!! #आओ_रहो_और_चली_जाओ!! आप विचार करना प्रिय!! इसी कारण आज समलैंगिकता अपनी चरमसीमा पर है!!और भी एक बड़ा दुष्प्रभाव इसका हम स्त्रीयों,कन्याओं पर पड़ा!! मैं मुक्त होने के नाम पर #उन्मुक्त हो गयी!!बाहर निकल पड़ी!!लड़कों से मित्रता करने लगी!! और मेरी इसी स्वच्छन्दता ने मुझे बलात्कारों की भेंट चढा दिया!!

और भी!! मैं इसी स्वच्छन्दता के कारण तथाकथित सभ्य समाजके लिये एक मुद्रार्जन की विज्ञापन सामग्री मात्र बनकर रह गयी!! मेरा समर्पण भाव इस आधुनिकता की अंधी- दौड़ और आधुनिक शिक्षा पद्धति के बीच न जाने कहाँ दम तोड़ता जा रहा है!!

हे प्रिय!!मैं एक प्रश्न आपसे पूछना चाहती हूँ!!जब मेरा विवाह हो रहा था!!तो एक मंत्र मैं अपने पती से कही थी!!यह ऋग्•वि•सू•का ४०•वाँ मंत्र है-
#सोमः #प्रथमो_विविदे_र्गन्धर्वो_विविद_उत्तरः।
#तृतियो_अग्निष्टे_पतिस्तुरीयते_मनुध्वजाः।।
सबस पहले मुझे चन्द्रमा ने अपनी पत्नी स्वीकार किया,उन्होने मुझे गन्धर्व को सौंप दिया!!गन्धर्व ने मेरा परिणय अग्नि से कराया और मेरे मनुष्य-वंशज चतुर्थ पती आप हो!!

अब आप विचार करना!!कितना वैज्ञानिकीय विश्लेषण है यह देवी का!!यह सृष्टि ऋत से होती है!! और तभी तो ऋतुमती होते ही मैं अपने पती को सौंप दी जाती हूँ!!मेरे बिना आप भला सात कदम तो चल नहीं सकते तो सप्तशती का पाठ आप मेरे बिना करोगे कैसे ?

"इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं" यह जो कुञ्जिकास्तोत्र है न , यह "मंत्रजागर्तिहेतवे"मंत्रणाओं को जगाने के लिये है!! मेरे आपके मध्य चल रही प्रणयात्मक मीठी वार्ता ही #मंत्र है!!और सभी मंत्रों का सारांश भी यही है!! और हे प्रिय!!आप मुझसे और मैं आपसे इतनी मीठी वार्ता करती भी इसीलिये हूँ कि मैं जाग जाऊँ-और आप भी जाग जाओ!!

और हम दोनों के जागते ही कुञ्जिकास्तोत्रपाठ प्रारम्भ हो जाता है!! अतः हे प्रिय!! देवि हीन अथवा देव हीन दोनों ही स्थितियों में कुञ्जिकास्तोत्रपाठ सम्भव होगा ही नहीं!!

मैं आपको स्पष्ट कहना चाहती हूँ!!यह संदेश देना चाहती हूँ कि मंत्रों के नीहितार्थ को समझें!! इनकी साधना वैखरी से नहीं होती!!ये तो परा-वाणी से होती है!! और परा-वाणी निःसन्देह जब प्रेम प्रकट होता है!!जब दो विपरीत ध्रूव मिलते हैं तो अनायास ही #प्रस्फुरित हो जाती है!!

हे प्रिय!!आज मेरा अहंकार विकसित हो रहा है!! समूची मानव सभ्यता में पौरुष भाव बढता जा रहा है!! मैं आपसे बहस करने लगी हूँ!!मैं एक सुंदर सुगंधित पुष्प तो हूँ,मेरा शरीर भी नारी का है!! किंतु मुझमें नारित्वके स्थान पर पुरुषत्व आ गया है,मेरी मधुरता खोती जा रही है!!और इसी कारण तो भक्तिमार्ग पे ताले लग-गये!!

अब आप सप्तशती पढते हो!! कीलक कवच भी पढते हो,और कुञ्जिकास्तोत्र भी पढते हो!!हजारों हजार बार पढते हो!!और कुछ भी सिद्धि नहीं होती!!क्यों कि आप मेरे बिना!!अपनी देवी के बिना पढतो हो!!

और हे प्रिय!! मैं भी गीता,मानस,सुखसागर पढती हूँ,नाना मंदिरों में,और भागवतादि यज्ञों में जाती हूँ, दिनभर आस्था चैनल में डूबी रहती हूँ!!ना जाने कितने व्रत,पूजा-पाठ करती हूँ!!किन्तु मुझे भी तो कुछ नहीं मिलता!! क्यों कि हे मेरे प्रियतमजी!!यह सब कुछ मैं अपने #देवता के बिना जो करती हूँ!!

#यस्तु_कुंञ्जिकया_देवि_हीनां_सप्तशतीं_पठेत्‌।
#न_तस्य_जायते_सिद्धिं_अरण्ये_रुदनं_यथा॥

हे प्रिय!!अब पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-
जो इस कुंञ्जिका का पाठ देवि विहीन करता है!! मैं आपको एक बात कहूँ,एक कड़वा सत्य पूछना चाहती हूँ मैं अपनी सभी महिला मित्रों से और पुरुष मित्रों से भी!!मैं आपको आपकी ही कुछ पिछली मीठी बातें स्मरण दिलाना चाहती हूँ!!

मैं आपको ऋग्वेदोक्त•वि•सू•२१• की एक अधूरी #प्रेमकथा सुनाना चाहती हूँ-
#उदीष्वार्तः #पतिंवती_ह्येश्षा_विश्वावसु_नमसा_गीर्भिरीळे।
#अन्याभिच्छ_पितृषदं_व्यक्तां_स_ते_भागो_जनुषा_तस्य_विद्धि।।

सविता ऋषि की एक कन्या #सूर्या थीं,और #विश्वदेव_सोम ऋषि उसे प्यार करते थे!!और वो सूर्या भी उन्हें टूट-टूट कर चाहती थी!! सविता-ऋषि भी अपनी बेटी का विवाह "सोम"से ही करना चाहते थे!! किन्तु विधाता को,भाग्य को ये मंजूर नहीं था!! न जाने क्यूँ और कैसे "सूर्या" का विवाह #अश्विनीकुमारों से हो गया!!

और जब अश्विनीकुमारों से सूर्या का विवाह हो रहा था तो विवाह मण्डप में बैठकर विश्वावसु रुदन कर रहे थे!! तो अन्यान्य ऋषि विश्वावसु से कहते हैं कि ये कन्या आपके भाग्य में नहीं थी!!आप दूसरी कन्या की तलाश करो!!इसे भूल जाओ!!अब ये आपकी नहीं है!!

#उदीष्वार्तो_विश्वावसो_नमसेलामहे_त्वा।
#अन्याभिच्छ_प्रफव्र्य_सं_जायां_पत्या_सृज।।
सभी ऋषि कहते हैं कि हे विश्वावसु!!आपसे हम प्रार्थना करते हैं कि आप इसे भूल जायें!!और यहाँ से चले जायें!!किसी और कन्या से विवाह कर सुखी रहें!!

हे प्रिय!!यह मंत्र आजके परिप्रेक्ष्य तथा इस कुंजिकास्तोत्र-पाठ के लिये अत्यंत ही मार्गदर्शक और अनुकरणीय है!!ऐसा पहले भी होता था,आज भी होता है!!और आगे भी होता रहेगा!! मेरे आपके सभी के जीवन में ऐसा हुवा हो सकता है!!

हो सकता है कि आपकी कोमल भावनायें किसी अन्य के साथ जुड़ी रही हों और भाग्य से आपका विवाह किसी अन्य से हो गया!! हे प्रिय!!अब हो गया तो हो गया-
#छोड़दें_सारी_दुनिया_किसी_के_लिये,
          #ये_मुनासिब_नहीं_आदमी_के_लिये।।
#प्यार_से_भी_जरूरी_कई_काम_हैं,
          #प्यार_सबकुछ_नहीं_जिंदगी_के_लिये।।

हो सकता है कि आपकी पत्नी आपके मनोनुकूल न हो!!या आपके पती आपके अनुकूल न हों!!दोनों कि वैचारिक असमानतायें हों!!शैक्षिक स्तर भिन्न हों!! विवाहपूर्वेत्तर कोई अन्य सम्बंध रहे हों!! विवाहपूर्वेत्तर दोनोंकी आर्थिक और सामाजिक स्थितियां भिन्न-भिन्न रही हों!आपकी और आपके जीवनसाथी के माता-पिता, भाई-बहन के मन एक दूसरे से न मिलते हों  ?

हे प्रिय!!ऐसा हो सकता है!!ये तो सामान्यतम बातें हैं!!लगभग सभीको इसका सामना करना पड़ता है!!और परिणामस्वरूप "अरण्ये रुदनं यथा" आप दोनों एक छतके नीचे एक दूसरे से दूर किसी अजनबी के समान रहते हो!!घुट-घुट कर भरे पूरे घर में रहते हुवे भी किसी बियाबान जंगल में जानो रहते हुवे रोते रहते हो और अपने जीवनसाथी को भी रुलाते रहते हो!!

हे प्रिय!!यह मैं नहीं कहती!! कुंजिकास्तोत्र कहता है कि-" कुंञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्"
मैं देखी हूँ कि ऐसी परिस्थितियों में या तो आप दोनों ही बिगड़ जाते हो!!अपनी खुशियाँ कहीं और ढूँढने लगते हो,या तो आप शराबी बन जाते हो!!या तलाक हो जाता है!!या तो आप शोषल मीडिया में डूब जाते हो!!और यदि आपके अच्छे संस्कार हुवे तो आप पूजा-पाठमें डूब जाते हो!!साधू सन्यासी-साध्वी बन जाते हो!!

और हे प्रिय!!यह भी हो सकता है कि आपकी सामाजिक,राजनैतिक अथवा व्यावसायिक व्यस्ततायें आपके युगल-दाम्पत्य-जीवन में निरसता का विष बो रही हों!!या आपके मित्र या आपकी सहेलियाँ आपके जीवन में अन्तर्कलह का कारण बन रहे हों!! आप एक बार शांत-चित्त से सोचियेगा!!

ये पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम-आप कितना एक दूसरे से दूर हो गये ?
अकेले हो गये!!मैं आपसे रूठ गयी!!आप मुझसे रूठ गये!!मेरे बिना आपका अस्तित्त्व नहीं है!!आपके बिना मेरा अस्तित्व नहीं है!!मैं आपकी हूँ-आप मेरे हो!! हम दोनों एक दूसरे के #देवी_देवता हैं!!
#यस्तु_कुंञ्जिकया_देवि_हीनां_सप्तशतीं_पठेत्‌।
#न_तस्य_जायते_सिद्धिं_अरण्ये_रुदनं_यथा॥

हे प्रिय!!अब पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-
जो इस कुंञ्जिका का पाठ देवि विहीन करता है!!
मैं आपसे एक बात और भी कहना चाहूंगी!!युवावस्था की अपेक्षा मध्यावस्था तो युगल-दम्पत्ति के लिये संभोग की भावनायें और भी लाभप्रद तथा आरोग्यमय जीवन की हेतु हो सकती है!!इससे लाभ ही आपको मिलेगा,किन्तु इसे स्वस्थ मन से स्वीकार करना चाहिये!!

वस्तुतः स्त्री-पुरुष एक दूसरे की कुञ्जी हैं!!चाभी हैं!!लोग कहते हैं कि चलो अब बुढापा आ रहा है!! बच्चे बड़े हो गये!! अब ये सब छोड़ दो!! लेकिन इसे छोड़ते तो आप हो!!किन्तु आपका मन इसे नहीं छोड़ पाता!!एक यक्ष प्रश्न आज सभी ५८ से~६० वर्ष आयु वर्ग में आते-आते समाज के नौकरीपेशा वर्ग के जीवन में एक भूचाल ला देता है!!वे #रिटायर हो जाते हैं!!

बड़ी गंभीर और कष्टदायक स्थिति होती है ये!!जहाँ दस से बारह घंटे की घर से बाहरी और व्यस्त जिंदगी एक ही दिन में समाप्त हो जाती है!!और बच्चे भी अपने जीवन में व्यस्त हो चुके होते हैं!!और वैसे भी मेरी-आपकी अगली पीढी हमें अपने से कमतर और पुरातन-वादी तो समझती ही है!!आपके रिटायरमेंट के बाद मिला धन भी आप अपने बच्चों पर लुटा देते हैं!!अब तो बस सीमित #पेंशन,अस्वस्थ शरीर, कार्याभाव,और अपने जीवनसाथी के अतिरिक्त कोई दूसरा अपना अपने पास नहीं होता!!

मैं आपको एक बात पुनश्च कहूँगी कि इस आयु से बढकर कोई दूसरी मधुरतम युवा-आयु हो ही नहीं सकती!!यही तो आयु होतो है परस्पर एक-दूजे के लिये जीने की!!एक दूसरे के साथ घूमने-बैठने और एक दूजे को मिले एकांत में जी भरकर जीने की ये आयु है!!ये दुखी होने और थक कर बैठ जाने की आयु नहीं है!!

हे प्रिय!!मैं विषयान्तर नहीं कर रही हूँ!!यही थोडी आयु है सिद्धकुञ्जिका के पाठ की!!बस आपको एक छोटा सा परिवर्तन करना है अपनी अंतरंग जीवनशैली में!!मैं आपको इस संदर्भ में वात्स्यायन• का•सू•अधि• २•अ•८•के ~१• सूत्र को दिखाती हूँ-
#नायकस्य_संतताभ्यासात्परिशममुपलभ्य_रागस्य_चानुपशमम_अनुमता_तेन_तमधोऽवपात्य_पुरुषायितेन_साहाय्यं_दद्यात।।

पुरुष तो कदाचित् हम स्त्रीयों की अपेक्षा जल्दी ही विश्रांत हो जाते हैं इस आयु में!!थक जाते हैं!!किन्तु उनका मन नहीं थकता!!और तभी तो स्त्री देवी कही जाती है!!इस आयु में भी वह अपने पती को विपरीत -रति के द्वारा नवजीवन दे सकती है!!

और यही स्वस्थ संभोग भी है!!इसमें तो सकारात्मक ध्रुव निचे रहता है!! और नकारात्मक ध्रुव उपर!! इन के मध्य में जो क्रिया करती है वो नकारात्मक ध्रुव ही करती है । सकारात्मक ध्रुव तो बस उस की शक्ति से अपनी शक्ति जागृत करने की कोशिश करता है!!और इस कारण दोनों ही शक्तियाँ!! दोनों ही ध्रुव अपने अन्तर को तृप्त कर लेते हैं!!

हे प्रिय!!ये वानप्रस्थियों का समागम है!! जब आप अरण्य में होते हैं!! जीवन से थक चुके होते हैं!! तब भी आपकी ये देवी आपको नवजीवन दे सकती है!!कहते हैं कि-
#प्रशान्ते_नुपुरारावे_श्रूयते_मेखलाध्वनिः।
#कान्ते_नूनं_रतिश्रान्ते_कामिनी_पुरुषायते।।

हाँ प्रिय!! अब आपकी पत्नी के पाँवों में पायल नहीं बची!!आभूषण भी उसने अपनी कन्या या बहुवों को दे दिये!!किन्तु सांसें बची हैं अभी भी आपके लिये!! आप थक चुके हो!! पर वो नहीं थकती!! अब तो वो आपकी पती बन जाती हैं!!और यदि ऐसा होता है!! तो आप-दोनों जल्दी वृद्ध नहीं होगे!!

बिहारीदासजी कहते हैं कि-
#परयो_जोर_विपरीत_रति_रूप्यो_सुरत_रण_धीर।
#करति_कुलाहल_किंकिणी_गह्यो_मौन_मंजीर।।
और वैसे भी सकारात्मक ऊर्जा प्रधान पुरुष और नकारात्मक ऊर्जा प्रधान स्त्रीयाँ होती ही हैं!!और आप स्मरण रखें कि सकारात्मक उर्जा जल्दी ही समाप्त हो सकती है!! किंतु हम स्त्रीयों की जिजीविषा और सहनशक्ति अप्रतिम होती हैं!!

हे प्रिय!!और वैसे भी कुलाचारान्तर्गत तो सदैव ही विपरीत-रति को प्रधानता दी गयी है!!आज समाज में विशेषतः अवयस्क बच्चो अथवा वृद्ध स्त्री-पुरूषों को ही सर्वाधिक अश्लील वेबसाइट्स देखने की ये जो आदत पड़ चुकी है,उसका एकमात्र कारण उचित यौन-शिक्षा का अभाव और इन अद्भुत और मनोरम शिक्षाओं और इनके अभाव में आने वाली मानसिक विकृतियों को ही दोषी माना जा सकता है!!

मेरे अभाव में आप और आपके अभाव में मैं भला कैसे सप्तशती पाठ कर सकते हैं ?

हे प्रिय!! अब पुनः मैं इस अप्रतिम स्तोत्र रत्न का यथा-शक्ति तत्वार्थ मेरे प्रियतम जी श्रीरास-रासेश्वर कान्हा जी के युगल चरणों में निवेदित करने के प्रयासान्तरगत इस श्रृंखला का तेइसवॉं तथा #अंतिम पुष्प प्रस्तुत करती हूँ-

#यस्तु_कुंञ्जिकया_देवि_हीनां_सप्तशतीं_पठेत्‌।
#न_तस्य_जायते_सिद्धिं_अरण्ये_रुदनं_यथा॥

हे प्रिय!!अब पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-
जो इस कुंञ्जिका का पाठ देवि अथवा यूँ भी कह सकते हैं कि #देव विहीन करता है!!
"यस्तु कुंञ्जिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्"
"न तस्य जायते सिद्धिं" उसे कदापि सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती!!मैं इसे भी एक उचित तथा सम्यक दृष्टिकोणों से समझना चाहती हूँ!!

(०)=और अन्यान्य अष्टांड़्ग योग,भक्ति,वेदांतादि योग्यतथा उत्कृष्टतम मार्गों के पथिक होते हैं!!
(१)=मेरे कई सन्यासी,वैरागी,भिक्षु,मुनी गण सन्यस्त- दीक्षा के कारणों से स्त्री विहीन होते हैं।
(२)=कई स्त्रीयाँ विधवा हो जाती हैं!!अथवा साध्वी बन जाती हैं,अथवा उनका विवाह नहीं हो पाता!!
(३)=कई पुरुष विधुर हो जाते हैं,अथवा उनका विवाह नहीं हो पाता।

(४)=कई स्त्री-पुरूषों के नाना कारणों से सम्बन्ध- विच्छेद हो जाते हैं,वे भी अकेले हो जाते हैं।
(५)=और तिसपर भी बच्चों अथवा अन्यान्य दायित्वों के कारण अथवा परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं कि वे पुनर्विवाह नहीं करते।
(६)=कई लोग अपनी लैंगिक कमियों के कारण पुंश्चल हो जाते हैं।

हे प्रिय!!मैं सोचती हूँ कि उनके लिये सिद्धकुञ्जिका -स्तोत्रपाठ सिद्धि क्यों नहीं हो सकती  ?
तो इसका भी उत्तर इसी स्तोत्र के अंत में ऋषि ने दे दिया है!!किंतु इसके लिये आपको इस स्तोत्रके इस अंतिम वाक्य को गंभीरता से समझना होगा!!

शिव कहते हैं कि हे शिवा- "अरण्ये रुदनं यथा" जैसे किसी निर्जन स्थान में आप बिल्कुल अकेले हों!!जहाँ किसी अन्य की उपस्थिति ही न हो!! आपके जीवन में ऐसी स्थिति भी यदि है तो ये भी परम कल्याणकारी ही होगी!!बस शर्त इतनी सी है कि आप #रुदन कर सकें!!

किन्तु हे प्रिय!! ये भी कुछ मुश्किल ही है!!क्यों कि मैं देखी हूँ ऐसे कई महात्माओं,पुरुषों,स्त्रीयों,विधुरों और विधवाओं और साध्वीयों को!! जो वास्तविकता में साधु हैं!!स्वादू नहीं हैं!!पथ-भ्रष्ट तो कदापि भी नहीं हैं!!

और भी प्रिय!!मैं अपने उन वृद्धाश्रमों को भी देखी हूँ जहाँ हमारे आपके बहिस्कृत माँ बाबा अकेले अपनी जिंदा लाश को ढो रहे हैं!!
मै #वृन्दावन_की_कुंञ्जगलियों_में भटकती किसी अभिषप्त प्रेतात्मा के सदृश्या अपनी विधवा बहनों को देखी हूँ!!जो मेरे ही बंगाली और उड़िया समाजकी विकृत सोच का फल भुगत रही हैं!! जिन्हे अकाल विधवा हो जाने के कारण उनके ही घरवालों में यहाँ लाकर छोड़ दिया!!

मैं अपने और आपके अनेक शहरों की गंदी बस्तियों में रहने वाली अनेकों तथाकथित #वेश्याओं को देखी हूँ!! जिन्हे इसी समाज ने अपनी हवश के लिये किसी पशु से भी बदतर जिंदगी जीने को मजबूर कर दिया!!

हे प्रिय!!मैं अनेक ऐसी साध्वियों,देवदासियों तथा भ्रष्ट कुलाचारियों की शिकार स्त्रीयों को देखी हूँ जिनका धर्मके नामपर शोषण किया जाता है!!

मैं ऐसे कई सन्यासियों को जानती हूँ जिन्हे परिस्थितियों के कारण बाल्यावस्था में ही कुछेक अखाड़ों अथवा महंतों ने अपनी सेवा कराने के लिये सन्यासी बना डाला!! और उनका समलैंगिक शोषण तो हुवा ही!!

मैं ऐसी कई पुंञ्श्चलों की अंतर्पीड़ा को महेसूस कर चुकी हूँ जिन्हे समाज हेय और हास्य की दृष्टि से देखता है!!और वो बलात्कार की शिकार मेरी बच्चियाँ जिन्हे पुरुष जाति से ही घृणा हो चुकी हो!! तेजाब से जलायी हुयी बच्चियों की अंतर्पीणा कभी महेसूस तो करें!!

हे प्रिय!!मेरे उन विकलांग भाई-बहनें जिनके मन में भी कोमल भावनायें तो हैं!!किन्तु लाचार हैं वे!!
और वे भी जो न्यायालयों की दहलीज पर जिनके पाँव घिस गये!!तलाक नहीं मिले!!
और मैं देखी हूँ कि ऐसे ही लोग ज्यादा धार्मिक होते हैं!!हाँ मैं स्वयम ही अपनी इन्हीं आँखों से #वेश्याओं,क्लीब,विकलांगो,अज्ञानी किंतु भक्त,और सर्वथा विधि विहीन,रोगों से व्याकुल मृत्युशय्या पर पड़े लोगों को भी गीता और मानस पढते देखी हूँ!!

तो क्या उनके विषय में सोचना ऋषियों का दायित्व नहीं है  ?
है न!!सोचा था!!ऋषियों ने,और शिव ने भी सोचा था!! तभी तो कहा कि-"अरण्ये रुदनं यथा" आप ध्यान दें!!उपरोक्त सभी प्रकार के स्त्री-पुरूष समाज से एक प्रकार से भीतर से टूट जाते हैं!!और उनके टूटने पर दो विपरीत व्यक्तित्त्वों का निर्माण संभव हो सकता है!!

अधिकाशतः तो ऐसे लोग #रूढ हो जाते हैं!!किसी निरस सूखे मरुस्थल की तरह!! और यदि उनमें  जाग्रति आ गयी!!भाग्य और संस्कारों से वे जाग गये!! तो गंगाजलकी तरह वे निर्मल और निष्पाप से ऐसे मेरे सच्चे उपासक-रुदन करते हुवे मेरे प्रियतमजी को पुकारते हैं!! मेरी राधारानीजी को पुकारते हैं!!ह्यदय से पुकारते हैं!!और उनकी वह पुकार ही चण्डी-पाठ की सिद्धि है!!यह पुकार ही #कुंजिकास्तोत्र_पाठ है-

#तप_बल_जप_बल_और_बाहुबल_चौथो_बल_है_दाम।
#ये_सब_बलशाली_को_बल_हैं_हारै_को_बलराम।।

#इति_श्रीरुद्रयामले_गौरीतंत्रे_शिवपार्वतीसंवादे_कुंजिकास्तोत्रं_संपूर्णम्‌ ।
       
और इसीके साथ इस श्लोक तथा कुंजिकास्तोत्र का भावानुबोधन पूर्ण करते हुवे #उपसंहार करती हूँ!! #सुतपा!!

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