Wednesday 12 September 2018

दुर्गा सप्तशती सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र

दुर्गा सप्तसती सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र~मंत्र~२~२ अंक~३

हे प्रिय!! अब पुनः मैं इस अप्रतिम स्तोत्र रत्न का यथा-शक्ति तत्वार्थ मेरे प्रियतम जी श्री रास-रासेश्वर कान्हा जी के युगल चरणों में निवेदित करने के प्रयासान्तरगत इस श्रृंखला का तृतीय पुष्प प्रस्तुत करती हूँ-
" पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।
#न_कवचं_नार्गलास्तोत्रं_कीलकं_न_रहस्यकम्‌।
#न_सूक्तं_नापि_ध्यानं_च_न_न्यासं_च_न_चार्चनम्।।
हे प्रिय!!अब मैं आपसे इस अंक में"वैकृतिक-रहस्य" पर चर्चा करती हूँ,इसके प्रारंभ में ऋषि कहते हैं कि-

#त्रिगुणा_तामसी_देवी_सात्विकी_या_त्रिधोदिता।
#सा_देवी_चण्डिका_दुर्गा_भद्रा_भगवतीर्यते।।
हे प्रिय!!ये जो सत्व गुणात्मिका महालक्ष्मीके तामसी आदि तीन स्वरूप या असंख्य रूप बताये जाते हैं!!वे ही शर्वा,चण्डिका,भेदा,दुर्गा,भद्रा और भगवती आदि अनेक नाम हैं!!

आप स्वयम ही समझ सकते हैं कि,सत-रज-तम के ही भेदों से नाना रूपों की मैंने कल्पना की है!!कोई सतोगुणी रूप की कामना करता है,और कोई रजो अथवा तमो गुणी शक्तियों के उपासक बन जाते हैं!! किंतु ये एक ही देवी आपकी जैसी आस्था होगी!! उन्ही रूपों में आपको प्राप्त भी होंगी!!

और ये प्राप्ति अंततः तो बन्धनों में जकड़ने वाली ही होगी!!क्यों कि-
#एषा_सा_वैष्णवी_माया_महाकाली_दुरत्यया।
ये तो मेरे प्रियतमजी की मैं ही वैष्णवी और महाकाली दुस्तर माया हूँ!!आप मेरी उपासना करोगे ?

तो लो!!मैं आपको सभी साँसारिक सुख तो दे दूँगी!! किंतु इसके बदले में मैं आपको मोहित कर आपके इस मानव-जीवनको व्यर्थ कर दूँगी!!इसी कारण ऋषि इस वैकृतिक रहस्य की उपयोगिता को भी त्याज्य कहते हैं!!

और हे प्रिय!!अब मैं मूर्ति-रहस्य के विषय में भी संक्षिप्त में चर्चा कर लेती हूँ, मूर्ति-रहस्य में ऋषि कहते हैं कि-
#नन्दा_भगवती_नाम_या_भविष्यति_नन्दजा।
#स्तुता_सा_पूजिता_भक्त्या_वशीकुर्याज्जगत्त्रयम्।।
ये आनंद से समुत्पन्ना होने वाली #मै आपकी भार्या, प्रेयसी,कन्या,माँ ही नन्दा,रक्तदन्तिका, कर्कशा, शाकम्भरी,शताक्षी,चण्डिका,कार्मुका और दुर्गा हूँ!!

हे प्रिय!!मैं आपकी #भग-वती अर्थात् भग के भी दो अर्थ हैं!!जहाँ "भग" षड्-ऐश्वर्यों को कहते हैं!!वहीं "भग" #योनि को भी कहते हैं!!आपने मेरी उपासना,रक्षा,अर्चना यदि कन्या,माँ के रूप में की तो मैं आपको ऐश्वर्यवान बनाकर बंधनों में रखूँगी!! और यदि आपने मुझे अपनी भोग्या,भार्या और प्रेयसी बना लिया तो मैं आपको अपने मोहजाल में बांधकर अपने रक्त-पिपासू दांतों से आपके इस दुर्लभ मानव जीवन को नष्ट कर दूँगी!!

हे प्रिय!!आप मेरी उपासना तो करो!!किंतु किसी भी सांसारिक भोगों की प्राप्ति हेतु मुझसे कभी कुछ नहीं माँगना!!अन्यथा वे चीजें देकर मैं आपके जीवन के ऊद्रेश्यों से आपको दूर कर दूँगी!!आप मेरी ईच्छा मात्र मोक्ष-साधनार्थ ही करो!!मैं आपकी साधना सामग्री हो सकती हूँ!!आपकी #भैरवी हो सकती हूँ और हाँ यही मूर्ति-रहस्य अर्थात मेरा रहस्य है!!इसी हेतु ऋषि कहते हैं कि आप मेरा त्याग कर दो!!मैं आपके लिये त्याज्या ही हूँ!!

और पुनः मैं आपसे #देवीसूक्तं पर भी संक्षिप्त में चर्चा कर लेती हूँ!!देवीसूक्त में ऋषिकहते हैं कि-
#अहं_रूद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरूत_विश्वदेवैः।
#अहं_मित्रावरूणोभा_बिभम्र्यहमिन्द्राग्नी_अहमश्विनोभा।।
हे प्रिय!!ये शब्द ऋषि कहते हैं!!और मेरे लिये कहते हैं!!अर्थात मैं प्रकृति कैसी हूँ!!

महर्षि अम्भृण की पुत्री #वाक् नामक ऋतिका के ये वचन हैं कि #मैं ही सच्चिदानन्दमयी ,सर्वात्मा,देवी, रूद्र, वसु,आदित्य,मित्र,वरूण,ईन्द्र,अग्नि,विश्वदेवों तथा अश्विनी कुमारों के रूप में विचरण करती हूँ!! अर्थात इस ऋग्वेदोक्त देवीसूक्त का मूल भाव यही है कि आप अर्थात #जीवात्मा मूलतः मुझ प्रकृति के द्वारा ही संचालित हो!!

आप चाहकर भी मेरा त्याग नहीं कर सकते!! और मेरा त्याग करने के अहंकार में ही आप साधू,महात्मा बन जाते हो!!और उन रूपों में भी आप मेरे ही आश्रित बन जाते हो!!आपकी कुटिया,आश्रम,भोजन, भजन,वस्त्र आदि के लिये भी तो आपको मेरा ही आश्रय लेना पड़ता है!!और आप मुझसे दूर भागने का मिथ्या आडम्बर करते हो!!!

#अहं_सोममाहनसं और मैं ही आपको इन अमृतों का पान कराती भी हूँ!!अब आप ही सोचो!!आप मेरी उपासना करो अथवा न भी करो!! ये मेरा कर्तव्य है कि मैं आपका यथायोग्य पालन करूँ!! क्यों कि मैं ही आपकी माँ,कन्या,भार्या या प्रेयसी जो हूँ!!तो हेप्रिय!! मैं अपना कर्तव्य करती हूँ!!आप अपना कर्तव्य करो!! आप मेरे पोषक नहीं हो!!मैं आपका पोषण करूँगी ही!! आप मेरी चिन्ता मत करो!!आप परमार्थ की चिन्ता करो!! आप मेरा स्वेक्षा से त्याग कर दो!! विश्वास रखो मैं आपका त्याग नहीं करूँगी!!मैं आपकी ही हूँ!!

"नापि ध्यानं च"बस आप इतना ही करो कि मेरा कभी ध्यान मत करना!!यदि आपने मेरा ध्यान किया!!और चाहे किसी भी रूप में किया!!तब तो मैं कभी करुणा,वेदना,चिन्तन,वात्सल्य,ज्ञान,वैराग्य, भोग्या,भार्या,प्रेयसी,कामना,वासना अथवा नाना रूपों में आकर आपको बाँध लूँगी!!

अतः हे प्रिय!!आप मेरी अर्चना आराधना नहीं करोगे तो भी पुनश्च शिव कहते हैं कि यह सिद्धकुञ्जिका आपका सफल हो जायेगा!!

"न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्‌।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्‌।।"

और इसी के साथ इस मंत्र का भावानुबोधन पूर्ण करती हूँ!!

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