Thursday 13 September 2018

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम्

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम्~५ अंक~५

#सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
          #प्रसूनधूलिधोरणीविधूसरांघ्रिपीठभूः ।
#भुजंगराजमालया_निबद्धजाटजूटकः
           #श्रिये_चिराय_जायतां_चकोरबंधुशेखरः ॥

हे प्रिय!!दशानन कहते हैं कि-"सहस्र लोचन प्रभृत्य शेष लेख शेखर" सहस्त्र लोचन #देवराज_ईन्द्र को कहते हैं!!और सहस्त्र लोचन उन्हे कहने के पीछे एक अद्भुत दृष्टांत पुराणों में वर्णित है!! उसके मर्म को न समझकर मेरे ही कुछ भटके हुवे विद्वान मित्र पुराणों की अंजाने में निंदा कर बैठते हैं!!

तंत्र वार्तिक में कहते हैं कि- #उत्तमा_गावो_रश्मयो_यस्य_सः #गोतम।।
उषा और संध्या का सम्बंध अग्नि-सूर्य और ईन्द्र के साथ है ही!! अब वह बाह्य संध्या हो अथवा अंतर्जगत का उषाकाल!!

और कथा कुछ ऐसी है कि जब ब्रम्हमुहूर्त के पूर्व ही #गौतम ऋषि अर्थात इन्द्रियों के अंधकार में ढँके हुवे जिनके नेत्र, संस्कारों का बीज पाकर खुल जाते हैं!! तो वे तो ध्यानगंगा में डूब जाते हैं!!गंगा स्नान को चले जाते हैं!!किन्तु अभी भी ये इन्द्रियाँ!!ये ध्यान में भी बाधा देने वाली दुरूह और शक्तिशाली संस्कारों के पराधीन भटकता मन!!मुझे और आपको ध्यान में भी भटका देता है!!

मन स्थिर हो ही नहीं पाता!!किसी मर्कट की तरह यह बारम्बार  बाहर को ही भागता है!! मैं आपका तो नहीं जानती किन्तु मेरा मन तो अभी भी भागता है!!और यदि आप पुरुष हो तो ध्यान में स्त्रीयाँ ही दिखेंगी!!
और हम स्त्रीयों को ध्यान में पुरुष ही सतायेगे!!

और ऐसा होने पर जो ऋषि होंगे!!अथवा जो ऋषिकायें होंगी!!तो ऋषि कहेंगे कि ओ ईन्द्रियों!! तुम्हे ध्यान में भी #योनि ही दिखती हैं ?
तो जा तूं #सहस्त्र_भग हो जा!!

शत•ब्रा•३•३•४•४८•में अहिल्या अर्थात ऋषिकाओं के लिये कहते हैं कि-
#अहिल्यायै_जारेति_तद्यानि_एवास्य_चरणानि_तैरेवैनंएतत्_प्रमुमोदयिष्यति।।
आप ध्यान दें,और ऐसा ही कुछ मंत्र-•ता•ब्रा• १•१•२६•१• में लिखते हैं कि-
#अहल्यायै_जारेति शत्रु-दुर्ग को विजय करने वाले को "जार"कहते हैं!!

और सूर्य,सद्यो-मरणोन्मुखी वृद्ध पुरुष को जार कहते हैं!!और जिसमें दिन विलीन हो जाता है!! अर्थात रात्रि को अहल्या कहते हैं-
#अहः #लीयते_यस्यां। अथवा प्रातःकालीन उषा को भी अहल्या कहते हैं- #अहनि_लीयमाना
और तभी तो ऋषिकायें कहेंगी  कि ओ ईन्द्रियों!! तुम्हे ध्यान में भी #भोग ही दिखते हैं ?
तो जा तूं #पाषाण हो जा!!स्पन्दन हीन हो जा!!

और हे प्रिय!!यही हठयोग है!!सहज-सुदर-साँवरो!!
आप ही विचार करें!!सहस्त्र भग"अर्थात गोपियों का चीर-हरणऐसे योगेश्वर शिव,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,कबीर
गोपियों अर्थात इस शरीर रूपी गोकुल की स्वामिनी सभी ईन्द्रियों के वस्त्र अर्थात प्राणों को शरीर के सहस्त्रों रोम-रोम रूपी "भगों" से खींचकर कदम्ब पर!!कैलाश पर आरूढ हो जाते हैं!! तो यही इन्द्रियाँ #सहस्त्र_लोचनी प्यारी कृष्ण-प्रिया गोपियाँ बन जाती हैं!!

अथवा वो ऋषिकायें अपनी ईन्द्रियों को!!अपने शरीर को पाषाण बना देती हैं!!संवेदना हीन!!स्पन्दन हीन, रूढ,कठोर और ममता-वात्सल्य हीन!!मैं जानती हूँ कि मेरी इस भाषा को या तो स्त्रीयाँ ही समझ सकती हैं अथवा मात्र पुरुष ही समझ सकते हैं !!ये भाषा विद्यावानों के लिये है!!विद्वान इस भाषा को समझ ही नहीं सकते!!

और हे प्रिय!!राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर सभी के चरित्रों को आप पढकर देख लेना!!एक समानता मिलेगी और वह यह कि सभी की परिक्षा ईन्द्र ने ली!!और अंततः उनसे हार-कर उन्हीं की शरणों में आये!! और उनकी ही चरण पादुका पर नत मस्तक हुवे!!

और यही दशानन कहते हैं कि-
"सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर"

हे प्रिय!!दशानन कहते हैं कि- "प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः" जो शिव सदृश्य योगीजन होते हैं उनके चरणों में सभी देवता अपने शीष झुकाते हैं!!और ये देवता हैं क्या ?

मैं आपको एक बात अवस्य ही कहूँगी कि आप पौराणिक कथानकों को पढें अथवा विश्व की किसी भी संस्कृतियों के मानक व्यक्तित्वों को पढें अथवा इतिहास को पढें!!
#काजल_की_कोठरी_में_कैसोहु_सयानो_जाय।
#थोड़ी_सी_लीक_वापै_लागी_है_कि_लागि_है।।

असुर तो चलो खराब होते ही हैं!!अर्थात आसुरी वृत्तियाँ तो खराब और त्याज्य होती ही हैं!!किन्तु दैविय वृत्तियाँ!!देवता,संत,महापुरूष भी इससे अछूते नहीं रह पाते!!ये संसार काजल की कोठरी है ही!!

राम,कृष्ण,बुद्ध तो क्या मीराबाई तक में आपको दाग ढूँढने पर मिल ही जायेंगे!!क्योंकि ये परछिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति है जो मेरी!! मुझे तो शरद-पूर्णिमा के चन्द्रमा में भी दाग देखने की आदत जो पड़ चुकी है!!किन्तु हे प्रिय जो आप जैसे शिव-सदृश्य योगिराज होते हैं!!उनकी तो बस एक ही आदत होती है- #नेकी_कर_कूंवें_में_डाल!!

वे तो दैवीय कार्यों के भी कर्ता नहीं होते!!क्यों कि, दशानन के शब्दों में कहूँ तो-"भुजंगराज मालया" आपने वो श्लोक सुना है न-
#संसार_सारम्_भुजगेन्द्र_हारम्। कि ये संसार असार है!!भुजंगों का हार है!!तो मेरे शिव ऐसा करते हैं कि इस संसार की जितनी भी कटुता है!!विषाक्तता है!! हलाहल विष को उगलने वालों की भीड़ है!!ऐसे अंगुलीमार जैसे विषधरों को कोई बुद्ध ही भीक्षु-शिरोमणि बना सकते हैं!!

आप एक बात पर विचार तो करो-"भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः" मेरे शिव ने अपनी जटाओं को बाँधकर एक जटा बनायी और फिर उन जटाओं को साँपों की माला से चारों ओर ओर से लपेट दिया!!
अर्थात बीच में जटा है और वो नाग-पाश से बंधी हुयी है!!और उन जटाओं के मध्य में भी सर्प तो हैं ही!!

हे प्रिय- #शिव ही एक ऐसा नाम है  जो अपने आपमें "सह-अस्तित्त्व बोधक" है!!आपको सीता के राम और राधा के साथ कृष्ण को जोड़ कर देखना होगा!! वैसे तो शिव के साथ शिवा को भी मैं जोड़ती ही हूँ  किन्तु "शिव अर्थात शव+इव" आप शायद मुझसे नाराज हो जाओगे!!किन्तु जरा पहले सोचना!!फिर आप नाराज होना!!

जो शव में अर्थात मुर्दे में है वही "शिव"है!! इस पंक्ति को ध्यान से समझना होगा!!तथा योगात्मक दृष्टि से किन्तु वैज्ञानिकीय रूप से भी मैं इसे समझना चाहूँगी!! भौतिकीय शरीर की मृत्यु को #अब दो चरणों में चिकित्सा जगत स्वीकार करता है!!
पहले तो पाश्चात्य चिकित्सा शास्त्री ह्यदय के स्पन्दन हीन होने को ही मृत्यु मान लेते थे!!किन्तु अब ऐसा नहीं है!!

अब तो मुझे यदि ह्यदयाधात होगा और तत्काल अत्याधुनिक सुविधायें मिल जायें तो #वेंटिलेटर के द्वारा मुझे #आइ_सी_यू में रखकर मुझे कृतिम स्वाँसें देकर और मस्तिष्क की माॅनीटरींग के द्वारा ये देखा जाता है कि अभी मस्तिष्क में प्राण हैं क्या ?
और यदि हैं तो जीवन की संभावना भी है!!

और तो और आप किसी चिकित्सक से पूछ कर देखना!! यदि किसी का ह्यदय स्पन्दित हो रहा हो किन्तु मस्तिष्क मर चुका हो!!तो उसे मृतक घोषित कर दिया जाता है!!और कृतिम जीवन रक्षक यंत्र हटाकर उसे स्पन्दन हीन कर देने का वैधानिक अधिकार भी चिकित्सक समुदाय के पास सुरक्षित रहता है!!

वैसे हे प्रिय!! थोड़ा निबंधन बढेगा तो अवस्य किन्तु इस समीचीन विषय पर मैं आपसे कुछ अतिरिक्त भी कहना चाहूंगी!!चिकित्सक तो धरती के भगवान होते हैं!!जबसे चिकित्सा जगत का पाश्चात्यीकरण हुवा तबसे स्वस्थ,लम्बे जीवन और अनेकानेक व्याधियों की नूतन चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा समूची विश्व की जीवन पद्धतियों को आमूल-चूल बदल कर रख दिया!!

और मैं यही कहना चाहती भी हूँ कि हमें इस प्रगति का स्वागत करना भी चाहिये!!हमारी ही क्या विश्व के सभी देशों की अनेक चिकित्सकीय समस्याओं में जो परिवर्तन हुवा,जो मृत्युदर में कमी आयी!!जो औसत आयु में वृद्धि-दर देखी जा रही है ये आंकड़े निःसंदेह ही अविस्मरणीय और सुखद भी हैं!!

जैसे कि पोलियो,फाॅयलेरिया,कालाजार,प्लेग जैसी घातक व्याधियों से और जन्मजात अपंगता ही क्या कैंसर, और शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में हुयी विलक्षण और प्रशंशनीय खोजों और सफलताओं ने पूरे विश्व समुदायको अभिभूत करके रख दिया!! मैं इसके लिये अपने विश्व के सभी चिकित्सकों तथा इस क्षेत्र के अन्वेषकों और निवेषकों की ह्यदय से ऋणी हूँ!! #किन्तु.............

हे प्रिय!!भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः"की व्याख्यान्तर्गत मैं चिकित्सा जगत पर चर्चा कर रही थी!!मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि चिकित्सकीय क्षेत्र को अपने विकास के साथ-साथ इस हेतु संसाधनों की आवस्यकता तो पड़ती ही है!!और इसी के कारण अनायास ही इस क्षेत्र का दुःखद और अंध व्यवसायी करण हो गया!!

(१)=सामान्य डिलेवरी तो अब बंद होने के कगार पर है!!परिणामस्वरूप यूट्रस के ऑपरेशन और गर्भाशयों के कैंसर की बाढ सी आ गयी!!

(२)=नर्सिग होम एक साक्षात कत्ल-खाने बनकर रह गये!! यहाँ के डाॅक्टर इतने संवेदन हीन हो चुके हैं कि आपके पेट में दर्द होगा तो ये गले का एक्सरे करायेंगे, इतने टेस्ट करायेंगे कि आप बर्बाद हो जाओगे!!

और तो और दवायें, हर-चीज आपको इनकी ही दुकानों से और मनमाने रेट पर लेनी होगी!!
आपको एडमिट करने के साथ ही ऐसे पेपर्स पर साइन करा लेंगे कि बस आपने अपने मरीज को और अपने आपको इनकी दया पर छोड़ दिया!! और ये मनमाना शोषण करने को स्वतंत्र हो गये!!

यदि आपका मरीज मर भी गया तो ये उसे वेंटिलेटर पर रखकर आपको यही कहेंगे कि अभी जिंदा है!!और इसी बहाने दो-तीन दिन तक आइ सी यू,वेंटिलेटर और ब्यर्थ की दवाओं के पैसे आपसे लूटेंगे!!

और ये लाशों के सौदागर भी हैं !!जबतक आप अपने मर-चुके  आत्मीय की चिकित्सा का पूरा बिल न चुका दो!!ये आपको उसकी #लाश भी नहीं देंगे!!

यदि कोई गरीब और अशिक्षित इनके पास पहुँच गया तो ये सस्ती अथवा मुफ्त शल्यचिकित्सा के नाम पर उसकी किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंग भी निकालकर बेच देंगे!!

और सरकारी चिकित्सालयों जो कि ऐम्स स्तर के नहीं हैं!!उनकी स्थिति भी इनके ही समकक्ष है!! हे प्रभु!! इन डाक्टरों के पास जाने से तो अच्छा कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि आत्महत्या कर लेना ज्यादा सही होगा!! इस श्रेष्ठतम कार्य का व्यवसायीकरण इसे भ्रष्टतम संस्था के रूप में स्थापित करता जा रहा है!!

और मेडिसिन बनाने वाली कंपनियों की कहानी तो और भी चौंकाने वाली है!!जिस दवा की लागत ५० पैसे भी नहीं हो वही दवा डाॅक्टरों को रिश्वत देकर १००० ₹ की बाजारों में बेची जाती है!! जिस MRI ,लेबोरेटरीज टेस्ट,पैथोलाॅजिकल टेस्ट का मूल्य सरकारी चिकित्सालयों में ५००~७०० रुपये है!!

तो सरकारी चिकित्सालयों की एक्स रे,MRI मशीने हमेशा खराब ही रहती हैं ताकि आप बाहर जाकर १५००० में टेस्ट कराओ!! और इन सब का कमीशन पहले से फिक्स है!!अर्थात इन भगवानों के बीच
जो हैवान छुपकर बैठे हैं!!जो रक्त-पिशाच  छुप कर बैठे हैं!! इन्होंने आज समूची मानव सभ्यता को लज्जित कर के रख दिया है!!

हो सकता है कि मेरे ये शब्द भावनाओं के प्रवाह में होने के कारण आपको कष्ट देंगे!! किन्तु चिकित्सा जगत का नग्न-सत्य यही है!! और ऐसे ही लोगों के बीच कुछ ऐसे भी चिकित्सक हैं ही जिन्होने समाज के लिये अपने आपको बलिदान करके रख दिया है!!

हे प्रिय!!इस समुदाय की भी कुछ मनोवैज्ञानिक समस्यायें हैं!!इनका अपना व्यक्तिगत जीवन ही  नहीं बचा!!न जाने कब हाॅस्पीटल में कोई सीरियस पेशेंण्ट आ जाये!!इन्हे तो न रात की नींद है और न ही दिन में दो घड़ी का चैन!! परिणामस्वरूप इनका संवेदनहीन हो जाना भी इनकी आंतरिक मजबूरी बन चुकी है!!

कदाचित " भुजंगराज मालया"ही एक उचित शब्द होगा यदि यह समुदाय शिवके सदृष्य हम सामान्य सांसारिक लोगों के शारीरिक कष्टों को देखते हुवे ये दृढ-प्रतिज्ञ होकर "निबद्धजाटजूटकः" अपने कर्तब्य-पथ पर किसी शिव के सदृश्य करुणामय निरपेक्ष भाव से सेवारत हो जायें!!

दशानन कहते हैं कि- "श्रिये चिराय जायतां" इस प्रकार के "शिव"मुझे स्थायी और श्रेय सम्पत्तियों को प्रदान करें!! और ये विचारणीय है कि अन्याय तथा दूसरों के ह्यदय को कष्ट देकर यदि रक्त-रंजित सम्पत्तियों की प्राप्ति हो भी जाती है तो वह चिर-स्थायी होगी ?

अतः हे प्रिय दशानन जानते हुवे भी कि- "चकोर बंधुशेखरः" ये शिव!!ऐसे चन्द्रमा को धारण करते हैं जो #चकोरों का प्रियतम है!!जो उस ऐसी अमृतमयी स्वाति-बूंदों का याचक है!!जो कोई चन्द्रमा के समान शीतल #दाता ही दे सकता है!!

और इसी के साथ इस श्लोक का तत्वानुबोध पूर्ण करती हूँ !! #सुतपा!!

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