Wednesday 12 September 2018

पितृ-सूक्त अंक~१३

पितृ-सूक्त मंत्र-६~२ अंक~१३

#ये_जो_आँखों_को_बंद_करने_पर_अंधेरा_छा_जाता_है_ये_बादल_हैं_छँट_जायेंगे!!

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में षष्टम ऋचा में १३ वाँ अंक मैं प्रस्तुत करती हूँ-

#आच्या_जानु_दक्षिणतो_निषद्येमं_यज्ञमभि_गृणीत_विश्वे।#मा_हिंसिष्ट_पितरः #केनचिन्नोयद्व_आग_पुरुषताकराम।।

हे प्रिय!!अब मैं #देवयान_तथा_पितृयान पर चर्चा करती हूँ गीताजी•८•२४•वें श्लोक को प्रथम उद्धरित करना चाहूंगी-#अग्निज्योतिर्रहः #शुक्लः #षण्मासा_उत्तरायणम।
#तत्र_प्रयाता_गच्छन्ति_ब्रम्ह_ब्रम्हविदो_जनाः।।
ये जो आप जैसे परमार्थ के ज्ञानीजन होते हैं वे अर्चि-मार्ग अर्थात देवयान-उत्तरायण मार्ग से अर्थात #इन्द्रियों के उर्ध्वमुखी द्वारों से प्रयाण करते हैं!!

अभी इसमें भी कुछ भेद हैअग्नि,अहर्लोक,शुक्लउत्तरायण, सम्वतसर,वायु,सूर्य, चन्द्र,विद्युत,वरूण,ईन्द्र तथाब्रम्हलोकों में जाते हैं!!आप उन्हे क्रमशः उच्चातिउच्च देवता कह सकते हैं! एक बात मैं प्रथम ही स्पष्ट कर देना उचित समझती हूँ कि आप स्थूलरूप से उत्तरायणका अर्थ यदि #मकर_संक्रान्ति से लेते हैं तो उसे भी समझना होगा! "मकर"को आप मीन-मार्गी कहें तो कहीं ज्यादा उचित होगा!!

यदि आप ऊर्ध्वगामी हैं तो!!क्रमशः एक-एकलोकों के अधिपति देवता आपको अपने से ऊपर के लोकों में पहुँचा कर लौट आते हैं!! अर्थात उनकी वहीं तक #गति है!अर्थात वे ही क्रमशः पितर से श्रेष्ठ यक्षादि कहलाते हुवे क्रमशः #देवताओं की श्रेणी में आते चले जाते हैं!! आप उपरोक्त १२ लोकों को ही द्वादश आदित्य भी कह सकते हैं!!

किंतु इसी के साथ मैं #धूम_मार्ग पर भी आपसे कहना चाहूँगी कि,गीताजी•८•२५•में मेरे प्रियतम जी कहते हैं कि-
#धूमो_रात्रिस्तथाकृष्णः #षण्मासा_दक्षिणायनम्।
#तत्र_चान्द्रमसं_ज्योतिर्योगी_प्राप्य_निवर्तते।।
अर्थात दक्षिण मार्ग से गये हुवे,अधो मार्गों से गये हुवे प्राणी चन्द्रमा अर्थात मनोमय कोशों के अधिपति पितर लोकों से लौटकर पुनश्च मानव योनि में!आपके मेरे घर पुनश्च आ जाते हैं!!

और इसके आगे भी पुनश्च मैं आपको याज्ञ•स्मृ•३•१९७• का यह मंत्र भी अवस्य दिखाना चाहूँगी-
#एतद्_यो_न_विजानाति_मार्गद्वितयमात्मवान्।
#दन्दशूकः #पतङ्गो_वा_भवेत्कीटोऽथवा_कृमिः।।
और हे प्रिय!! जो इन अर्चि तथा धूम मार्गों को नहीं जानते!! अर्थात जिनके जीवन में आध्यात्मिकता का लेश मात्र भी बोध नहीं है!!वे अंततः सर्प,कीट,पतङ्गे और कृमियों की योनियों में भ्रमण करते रहते हैं!!

अर्थात हे प्रिय ये आपका शरीर ही एक #यज्ञ_भूमि है!! और आपकी साधना,भक्ति ही यज्ञों की वेदी है!! और इस वेदी के नीचे अर्थात शरीर के भीतर बैठकर!!विचार करते हुवे!! आप अपने आध्यात्मिक संसाधनो के द्वारा अपने लिये "धूम अथवा "अर्चि"मार्गों का चयन कर सकते हैं!!

अभी मैं अर्चि मार्ग पर आपको बृह•उप•६•२•१५• के इस अलौकिक वैज्ञानिकीय मंत्र को दिखलाना चाहूँगी-
#ते_य_एवमेतदविदुर्ये...... #वसन्ति_तेषां_न_पुनरावृत्तिः।।
पञ्च विद्या अर्थात पञ्चाग्नियों के ज्ञाता विद्यावान होते हैं!!वे सत्य अर्थात हिरण्यगर्भ की उपासना करते हैं!!

वे ज्योति अभिमानी देवताओंको प्राप्त होते हैं,अर्थात उनमें ज्ञान रूपी प्रकाश हो जाता है!!उन्हें भ्रम रूपी अज्ञानमयी रात्रि प्रताड़ित नहीं करती!!अतः इस अपनी सतत उपासना तथा स्वाध्याय के कारण- #तेऽर्चिरभिसम्भवत्यर्चिषोऽहरह्य उन्हें दिनके अभिमानी देवता- "शुक्लपक्ष"के अभिमानी देवता के पास ले जाते हैं!!

हे प्रिय!!मैं आपको एक बात कहूँ!!अंतः शुक्लपक्ष की मैं बात करना चाहती हूँ!!यदि एकबार आपके भीतर के चक्र जाग्रत होने लगे!! तो धीरे-धीरे ये जो आँखों को बंद करने पर अंधेरा छा जाता है!!ये बादल हैं!! छँट जायेंगे!!मूलाधार के स्वामी #गणेश अर्थात आपके सद्गुणों के ईश आपको शुक्लपक्ष के अभिमानी देवता अर्थात #मूलाधार_उर्जा के ऊपर के चक्राभिमिनी देवता को सौंप कर लौट जायेगी!!

#आपूर्यमाणपक्षमापूर्यमाणपक्षाद्_यान्_षड्मासानुदङ्ङ्गादित्य।।
तथा पुनश्च इसी प्रकार ऊपर के छे चक्रोंको क्रमानुसार उनकी उर्जा जागृत होती हुयी ऊर्ध्वगामी होती जायेगी!! और नीचे की उर्जा वापस भी लौटती जायेगी!! अर्थात हे प्रिय!! इसी प्रकार की प्रक्रियाओं के कारण यह मैं प्रथम ही बता चूँकि हूँ कि #उत्तरायणी अर्थात देवताओं को इसी कारण #दाहिना घुटना मोड़ कर बैठने की कल्पना ऋषियों ने की है!!

और इसकी बिलकुल विपरीत धर्मी आपकी नकारात्मक लौटती उर्जायें जिन्हें #पितृयान कहते हुवे बृह•उप•६•२• १६• में याज्ञवल्क्य जी लिखते हैं कि-
#अथ_ते_यज्ञेन_दानेन_तपसा_लोकाञ्जयति_ते_धूममभिसम्भवन्ति जिन्होंने नाना प्रकारके सकाम कर्मों का आश्रय लिया!!जो यज्ञ,तप,दान-शीलादि का किसी ईच्छा से पालन करते हैं!!

वे धूमाभिमानी देवताओं को प्राप्त होते हैं!!क्योंकि भ्रमित तो वे हैं ही!!अधकार अर्थात दक्षिण मार्गी तो वे हैं ही!!

और दक्षिणायन मार्गों को समझे बिना संभव नहीं होगा!!अतः अगले अंक में उसपर भी प्रकाश डालती हूँ!! पुनश्च इसी ऋचा के तृतीय अंक को प्रस्तुत करती हूँ!! #सुतपा........

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