Saturday 15 September 2018

विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र~२० अंक~१८


#ये_वे_पल_हैं_जब_शिव_शिवा_में_प्रविष्ट_होकर_तादात्म्यहो_जाते_हैं
       
अब विज्ञान भैरव तंत्र  यह बीसवाँ श्लोक मैं  आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ, #श्री_भैरव_उवाच--
#शक्त्यवस्थाप्रविष्टस्य_निर्विभागेन_भावना।
#तदासौ_शिवरूपी_स्यात्_शैवी_मुखमिहोच्यते।।

हे प्रिय !!अब मेर प्रियतम भैरवजी अपनी सूरता  रूपी शिवा से कहते हैं कि-"शक्त्यवस्थाप्रविष्टस्य" वस्तुतः इस श्लोकमें "शिव-तत्व तथा शक्ति"की अभेद्यता प्रस्तुत की गयी है, वस्तुतः"शैव्य-दर्शन"की मुख्य आधार शिला ही यह श्लोक  है!!
मैं प्रथम तो आपके समक्ष "भैरव"की वैयाकरणीय व्याख्या रखती हूँ---"भा+ऐ+र+व" अर्थात #अकार अनुत्तरित है, #इकार उसी की ईच्छा अर्थात "अनुत्तर में ही विश्राम"है-और यही तो परमानंद है न प्रिय !!

आपके उपनिषद कहते हैं कि- #तद्_सृष्ट्वा_तदेवानुप्राविशत्"और तंत्र कहता हैं कि- #तद्_सृष्ट्वा_तदेवात्म_प्राविशत्" यह भी एक गूढतम् रहस्य है --
"उन्होंने मेरा निर्माण किया-वे मेरे पिता हैं!!
"वे मुझसे ही सृष्टि का निर्माण करते हैं-वे मेरे पती हैं"
"वे स्वयम् ही मुझसे उत्पन्न भी होते हैं-वही मेरे पुत्र हैं

हे मेरे ह्रदय के प्रिय अब पुनःमैं कहती हूँ कि -- #शक्त्यवस्थाप्रविष्टस्य" मैं इसे आपसे समझने का एक असफल सा कठिन प्रयास करती हूँ!! मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप इस दृश्टांत पर गंभीरता से ध्यान दें-- मैं कल्पना करती हूँ कि-मैं अपने नेत्रों को अचानक बंद कर लेती हूँ--तो प्रकाश अंधकारमें विलीन हो गया!! और अचानक खोलती हूँ तो पाती हूँ कि पुनःअंधकार प्रकाशमें विलीन हो गया!!और यह सब कुछ एक छण के हजारवें हिस्से में ही हो गया!!
किंतु मेरे अद्भुत दृष्टांत का मुख्य"सिद्धांत" अब रखती हूँ--

"उन पलकों के झपकने की अवधि, वो एक छण का भी हजारवाँ भाग"आप कल्पना तो करो कि उस छणाँश को आपने स्वयम् ही देखा और महेसूस भी किया किन्तु क्या मैं मूढ-मती उस"छणाँश"में रुक सकती हूँ ?हाँ मेरे प्रिय!यह अद्भुत-अलौकिक पल ही"परमार्थ"है!!ये वही पल हैं जब "शिव-शिवा"में प्रविष्ट होकर तादात्म्य हो जाते हैं,इसे ही तो #अर्धनारिनाटकेश्वर"कहते हैं न!!

तो सखी"निर्विभागेन भावना"यह अविभाज्य सीमा- रेखा है हम दोनों की,प्रकाश-अंधकार, प्रकृति- पुरुष और"भैरव-भैरवी"की!!

तभी तो कहते हैं कि- #तदासौ_शिवरूपी_स्यात्_शैवी_मुखमिहोच्यते"
ये पलकों का खोलना वही पल हैं जब मैं"अंधकार से प्रकाशमें"प्रवेश करती हूँ-जब मैं "शिवा"शिव स्वरूप हो जाती हूँ!!और जब मैं पलकों को अचानक बंद कर लेती हूँ!! तो प्रकाश से अंधकार की यात्रा पुनः प्रारंभ हो जाती है,मैं अर्थात"शिवा"अविद्या-स्वरूपिणी महामाया हो जाती हूँ!!

तो प्रिय मैं पुनः कहती हूँ कि निर्विचारावस्थामें पलकें तो झपकती ही रहती हैं !!बस एक बार आप जागते हुवे इन पलकोंको झपका कर तो देखें!उस अवस्था में रुकने का प्रयास तो करें जिस बिंदु से प्रकाशाऽधकार का विभाजन होता है!!जो मुझ अंधकार स्वरूपिणी #भैरवी।और उन प्रकाश स्वरूप #भैरव।की मिलन रेखा है!!

और इस प्रकार इस श्लोक के उपसंहार में यही स्पष्ट होता है कि---
"तदासौ शिवरूपी स्यात् शैवी मुखमिहोच्यते"
यदि मैं"अविद्या स्वरूपा भैरवी" इस अलौकिक पल को प्राप्त कर लेती हूँ तो मैं ही-

#कैवल्य_ज्ञान_रूपिणौ_भेरव_स्वरूप_की_प्रवेश_द्वारिका_हूँ!! हे प्रिय!!इस प्रकार #शिव-तत्व के तोरण- द्वार का यह अद्भुत वर्णन मैं अपने पियाजी!!के चरणोंमें अर्पित करती हूँ.........सुतपा!!

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