Sunday 16 September 2018

पितृसूक्त-१०~१

पितृ-सूक्त मंत्र-१०~१ अंक~२१

#आधुनिक_शिक्षित_समाज_के_योगदान_को_मैं_आध्यामिक_योगदानों_से_जरा_सा_भी_कम_नहीं_आँकती!!

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में दसवीं ऋचा के प्रथम अंक को समर्पित करती हूँ!!

#ये_सत्यासो_हविरदोहविष्पा_इन्द्रेणदेवैः #सरथं_दघानां।
#आग्नेयाहिसहस्त्रंदेववन्दैशरैः #पूर्वैः #पितृभिर्धर्मसभ्दिः।।

अब पुनश्च ऋषि कहते हैं कि-कभी न बिछुड़नेवाले ठोस हवि का भक्षण करने वाले,द्रव हविका पान करने वाले, इन्द्रादि देवताओं के साथ एक ही रथ में बैठकर प्रयाण करने वाले,देवोंकी वन्दना करने वाले,धर्म नामक हविके समीप बैठनेवालेजो हमारे पूर्वज और पितर हैं,उन्हे सहस्त्रों की संख्या में लेकर हे अग्निदेव!! यहाँ पधारें।।

हे प्रिय!! आप ऋग्वेदोक•१•९४•४•का इस संदर्भ में अवस्य ही स्मरण करें- #अग्ने_सख्ये_मा_रिषामा_वयं_तव।। अर्थात हे अग्नि!!हम तेरे मित्र भाव में दुःखी और नष्ट न हों!!वस्तुतः मै समझती हूँ कि मैं आर्य हूँ और मेरे पूर्वज आर्य थे!! आर्य अर्थात अग्नियों के उपासक अथवा नैसर्गिक प्रकृति की उपासना करने वाले!!और प्रकृति अथवा जो अग्नि के उपासक होंगे!! उनका दृष्टिकोण- व्यापक, वैज्ञानिकीय,सार्वभौमिकीय ही नहीं ब्रम्हाण्डात्मक भी होग!!

ऋचा में कहते हैं कि-"ये सत्यासो हविरदोहविष्पा-कभी न बिछुड़नेवाले ठोस हविका भक्षण करने वाले,द्रव हविका पान करनेवाले जो अग्नि देव हैं!! आप ये याद रखें कि ये शोषल-मीडिया की जो दुनिया है!!ये बहुआयामी है!!आधुनिक शिक्षित समाज के योगदान को मैं आध्यामिक योगदानों से जरा सा भी कम नहीं आँकती!!

अग्नियों को जैसे अध्यात्म जगत् पंञ्चाग्नियों में विभक्त कर देखता है!!वैसा ही दृष्टिकोण विज्ञान का भी है!! ये भेद तो आधे-अधूरे ज्ञान के कारण मुझ जैसी मूर्खाओं को दृष्टिगोचर होता है!! फिर भी मेरा उद्देश्य तो यज्ञाग्नि के भेदों पर आप का ध्यान आकर्षित कराने का है!!

हे प्रिय मैं सुनी हूँ कि महर्षि भारद्वाज ने समस्त गृंथों के अध्ययन का संकल्प लिया और उन्हें पढते -पढते हजारों हजार वर्ष व्यतीत हो गये!! अंततः उनके समक्ष महेन्द्र ने उपस्थित होकर एक मुट्ठि भर मिट्टी रख दी और सामने स्थित दो विशाल-पर्वतों को ईंगित करते हुवे उन्हे कहा कि हे ऋषि-राज!!ये जो आप आप ने अभी तक अध्ययन किया है वो इस एक मुट्ठी के बराबर है!! और वो जो सामने दो पहाड़ दिख रहे हैं,उतना अध्ययन आपका अभी शेष है- #यत्सारभूतंतदूपासितव्यम।।

हे प्रिय!!आप लोग मुझसे नाराज मत होजाना!!मैं स्त्री हूँ, स्वभाव से ही अल्पज्ञानी,एक बात कहती हूँ-जैसे कि आज मैंराम,अग्नि,कृष्ण,शिव,सूर्य,ब्रम्हा,दुर्गा,चन्द्र,भैरव प्रजापति, हनुमानजी,गणेश,इन्द्र,वरूण आदि-आदि देवी-देवताओं की उपासना करती हूँ, इसे आप एक काॅकटेल कह सकते हो!! इसके लिये अंग्रेजी में एक बहूत ही अच्छा शब्द है- #Anthropomorphism भी कह सकते हैं!!

मैंने अपनी-आपकी शारीरिक संरचना के आधार पर उन देवों को गढ लिया!! हमने अपने मुक्त ऐतिहासिक परमार्थपदावलीन विभूतियों तथा वैदिक वैज्ञानिकीय तत्त्वों के प्रतीक गूढतम रहस्यात्मक भेदों को आपस में उलझा कर रख दिया!!परिणाम स्वरूप ब्रम्हाण्ड की श्रेष्ठतम विचारधारा पर #अंधश्रद्धालू होने की अभिशाप मयी तलवार आज लटक रही है!!

हे प्रिय!!मैं समझती हूँ कि #अग्निही संकल्प है!!आप अग्नि अर्थात #उर्जा को पाकर ही किसी भी वस्तु का निर्माण करते हैं!! और यह अग्नि, उर्जा #सोम अर्थात मन की आहुति से ही वृद्धि को प्राप्त होती है!!जैसे कि अग्नियों में डाला हुवा कोई भी ठोस अथवा द्रव पदार्थ किसी न किसी तापक्रम पर सूक्ष्म होकर ऊर्ध्वगामी हो जाते हैं- #वाचश्चित्तस्योत्तरोत्तरिक्रमो_यद्यज्ञ इसे ही #यज्ञ कहते हैं!!

इसे ही इस ऋचा में ऋषि ने कहा है कि-"ये सत्यासो हविरदोहविष्पा- अर्थात कभी न बिछुड़नेवाले ठोस हविका भक्षण करने वाले,द्रव हविका पान करने वाले" और उन आहुतियों से अग्नि और भी प्रज्वलित होती है!!अतः पदार्थ ही सोम हैं और अग्नि ही सूर्य है!!

हे प्रिय!!जैसे-जैसे आपकी बाह्यदृष्टि बढती जाती है!! वैसे-वैसे ही आपमें इक्षायें,वासनायें अर्थात अग्नियाँ बढती जाती हैं!! अर्थात आपकी अंतर्मुखी प्रवृत्तियों का कमतर होता जाना ही चन्द्रमा अर्थात मन के भटकाव का मुख्य कारण है!! अभी एक बात और भी है- प्रकाश-अंधकार, जीवन-मृत्यु,स्थिति-गति,स्त्री-पुरूष ये दोनों ही साथ-साथ रहते हैं!!

देवता और पितर साथ-साथ रहते हैं!! एक ही रथ पर रहते हैं!!और वह रथ है,अग्नि-"इन्द्रेणदेवैः सरथं दघानां" ऋचा यह कहना चाहती है कि- इन्द्रादि सभी देवताओं को पितरों केसाथ अग्नि ही #यमअर्थात #काल_स्थिति_संयोगानुसार प्रज्वलित उष्ण अग्नि लेकर जाती है!! तथा पुनश्च शीतल-अग्नि अर्थात वर्षा रूपी रथ पर चढकर ये देवता और पितर पुनश्च आ जाते हैं!!

इसी के साथ ऋचाके इस अंक को यहाँ विश्राम देती हूँ और शीघ्र ही इसके अगले अंक के साथ उपस्थित होती हूँ--- #सुतपा!!

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