Wednesday 12 September 2018

दुर्गा सप्तसती सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र

दुर्गा सप्तसती सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र~मंत्र~७~८ अंक~७

#जाग्रतं_हि_महा_देवि_जप_सिद्धिं_कुरुष्व_मे॥
#ऐं_कारी_सृष्टिरूपायै_ह्रींकारी_प्रति_पालिका॥
#क्लीं_कारी_कामरूपिण्यै_बीजरूपा_नमोऽस्तु_ते।
#चामुण्डा_चण्ड_घाती_च_यैं_कारी_वर_दायिनी॥

पुनश्च आगे अब शिव-सदृश्य ऋषि कहते हैं कि- "जाग्रतं हि महा देवि" हे महादेवी आप जाग्रत हों
मैं आपको स्मरण दिलाना चाहूगी कि तं•रा•सू•१•में ऋषि ने प्रथम ही यह कह दिया था कि-

#विश्वेश्वरीं_जगद्धात्रीं_स्थितिसंहारकारिणीम्।
#निद्रां_भगवतीं_विष्णोरतुलां_तेजसः #प्रभुः।।

हे प्रिय यह आप स्मरण रखें कि यह स्तुति ब्रम्हाजी विष्णुकी सोयी-हुयी प्रज्ञा-शक्तिको जगानेके लिये ही करते हैं!!जैसे कि मानसके उस प्रसंगको आप स्मरण करें जब हनुमानजी अपनी शक्तियोंको विस्मृत कर बैठे थे तो उन्हें जागृत करने हेतु कही गयी कि- #का_बल_साधि_रहे_हनुमाना!!

पाठ-कर्ता साधकको स्वयम् ही अपनी सोयी हुयी प्रज्ञानमयी बुद्धियोंको,शक्तियोंको जगाना होगा!!यह शक्ति आपमें है!!किंतु लालचके आवरणों,विक्षिप्त- चित्तके कारण आपने इसे विस्मृतसा करदिया है!! आप इसे जाग्रत करें!!इस अपनी ही महादेवी!!अंतर्प्रज्ञामयी दिव्य महादेवी से कहें कि- "जप सिद्धिं कुरुष्व मे"

हे प्रिय!! सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्रमें आगे कहते हैं कि- "ऐं-कारी सृष्टिरूपायै" यह जो आपकी अपनी शक्ति है!!यही ऐं-कारी है!!इसीने आपमें विभिन्न कामनाओं की सृष्टि कर रखी है!!आप आस्तिक हैं अथवा नास्तिक, आप हिंदू हैं अथवा नहीं हैं!!इससे कोई भी फर्क नहीं पड़ता!! ऋषि कहते हैं कि ये आपके अपने स्वतंत्र विचार हैं!!आप मत मानो किसी प्रतिमाको, अथवा मानलो आप प्रतिमाको ये आपकी इसी ऐंकारी बुद्धिका चातुर्य है!!

पुनश्च ऋषि कहते हैं कि- "ह्रींकारी प्रति-पालिका" मैं आपको पुनश्च स्मरण दिलाना चाहूगी कि सृष्टिकी जन्मदात्री और उनकी पोषिका!! #योनि ही होती है!! और योनि किसी भी जीव की हो!!स्वेदज-अंडज- उद्भिज अथवा जरायुज सभी की योनि- #ह की आकृति-स्वरूपा ही होती हैं!!

किंतु मात्र योनिके होनेसे होगा क्या ?
योनिके साथ-साथ उसमें स्पन्दन शक्ति अर्थात चैतन्यता भी तो होनी चाहिये!और मात्र उस चैतन्यता के होने से भी कुछ नहीं होगा!!वो चैतन्यता भी अधूरी है!!यह चैतन्यता जबतक अपने अर्धांग #बिंदुसे संयुक्त नहीं होगी तबतक न तो उसमें उर्वरकता का प्राकट्य होगा और न ही पोषण शक्ति ही उसमें हो सकती है!!

अतः ऋषि कहते हैं कि-आपकी प्रज्ञाको आप जाग्रत करो!!पाठ करनेके लिये जगाओ!! और उसकी सृजनात्मक तथा पोषणात्मक शक्तियों पर आपको ध्यान देना ही होगा!!इसी हेतु कहते हैं कि-
#प्रबोधं_च_जगत्स्वामी_नीयतामच्युतो_लघु।

हे प्रिय!! अपने जगतके स्वामी आप ही हो!!आपने ही अपनी कल्पनाओंसे नाना प्रकारकी सृष्टिओं का विस्तार कर रखा है!!और यही आपकी साधना-मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है!!क्यों कि आपतो अच्युत हो!!अपनी सत्तासे कभी भी च्युत अर्थात वंचित हो ही सकते!! ये तो आप सो गये हो!! प्रबोधं,बोधश्च आप जाग्रत हों!!और यह जागृति होगी कैसे इस हेतु आगे के मंत्रमें कहते हैं कि-

#क्लीं_कारी_कामरूपिण्यै_बीजरूपा_नमोऽस्तु_ते।
#चामुण्डा_चण्ड_घाती_च_यैं_कारी_वर_दायिनी॥

हे प्रिय!!यह जो आपकी- "क्लीं-कारी कामरूपिण्यै बीजरूपा" क्लीं कारी कामना शक्ति है!!मैं आपको एक बात कहूँ!! आप कामनाओं से,वासनाओं से भाग ही नहीं सकते!!इससे भागते-भागते आप बारम्बार एक वृत्ताकार चक्र में दौड़ते रहते हैं!!और फिर इस ○ वृत्तका कोई अंतिम सिरा तो है नहीं!!

आप कामना हो,और मैं कामिनी हूँ !!हो सकता है कि आप मुझ #रमणी का त्याग कर दो!! तो भी मैं आपकी भगिनी,कन्या अथवा माँ बनकर ही आपके जीवन-प्रवाहमें आ ही जाऊंगी!! और यदि आप मेरे इन स्वरूपों से भी दूर होनेका प्रयास करोगे!! तबतो और भी बड़ी समस्या आ जायेगी!! मैं आपको आपकी अपनी #छायाके रूपमें ही दिखने लगूंगी!! और अपनी छाया से भागकर आप कहां जायेंगे ?

हे प्रिय!!यदि आप ब्रम्हा बनकर अपनी इस कन्याको प्रेयसी नहीं बनाते!!
और फिर भी यदि आप अपनी इस पोषण-कर्त्री लक्ष्मी को अपनी माँ के रूपमें भी तिरस्कृत कर देते हो!!
तब मैं क्लींकारी #महाकाली बन जाऊंगी!! छोड़ूंगी तब भी आपको नहीं-
#चलती_चक्की_देखकर_दिया_कबीरा_रोय।।

तो आओ!!आप मेरी बांहोंमें आ जाओ!!चाहे किसी भी रूपमें मुझे आप स्वीकार कर लो!!और यह आपको करना ही होगा!! क्यों कि मेरे प्रिय!! मैं आपकी प्रियतमा जो ठहरी!! अब माँ भी तो प्रियतमा ही होती हैं न!! क्या माँ आपको प्रिय नहीं हैं ?

अतः ऋषि कहते हैं कि- "बीजरूपा" अद्भुत शब्द है यह बीज भी!!यदि भूमि होगी तो बीज भी होगा!!और यदि बीज होगा तो भूमि होगी ही! और जो भूमिहीन हैं!! कृषक तो वे फिर भी हैं!! वे बिचारे किसी दूसरे की भूमि तलाशते फिरते हैं!!वे तो बस बंधुवा मजदूर भर ही हैं!!

और हे प्रिय!!यही स्थिति कृषक-विहीना भूमिकी भी है!!वो बिचारी भी तो बीजकी तलाश में बंजर पड़ी है!! अतः ये "कामना और कामिनी" एक दूसरेके पूरक हैं!!तभी तो कहते हैं कि-
"क्लीं-कारी कामरूपिण्यै बीजरूपा नमोऽस्तु ते"

और इसी के साथ इस मंत्र का भावानुबोधन पूर्ण करती हूँ!!

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