Monday 10 September 2018

सिद्ध कुजमञ्जिका

सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र~मंत्र~२~१ अंक~२

#आप_इसमें_समर्थ_हो_आप_मुझे_रूप_विजय_यश_दो_मेरे_काम_क्रोधादि_शत्रुओं_को_मिटा_दो!!

      ।।गुप्त-नवरात्रि पर विशेष प्रस्तुति।।

हे प्रिय!! अब पुनः मैं इस अप्रतिम स्तोत्र रत्न का यथा-शक्ति तत्वार्थ मेरे प्रियतम जी श्री रास-रासेश्वर कान्हा जी के युगल चरणों में निवेदित करने के प्रयासान्तरगत इस श्रृंखला का द्वितीय पुष्प प्रस्तुत करती हूँ-
" पूर्व-पीठिका-ईश्वर उवाच।।
#न_कवचं_नार्गलास्तोत्रं_कीलकं_न_रहस्यकम्‌।
#न_सूक्तं_नापि_ध्यानं_च_न_न्यासं_च_न_चार्चनम्।।
हे प्रिय!!पुनश्च शिव कहते हैं कि-हे शिवा!! सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र का पाठ करने हेतु "कवच, अर्गलास्तोत्र,कीलक,देवी-रहस्य,देवीसूक्तं,ध्यान अथवा न्यासादि करने की और न ही अर्चना करने की ही आवस्यकता है!!

मैं आपको इस संदर्भ में भी कुछ कहना चाहती हूँ!!जैसे कि सप्तशती के प्रारम्भ में देवी कवच में कहते हैं कि-
यद्_गुह्यम्_सर्वम्_लोके_सर्व_रक्षा_करम्_नृणाम।।
हे प्रिय!!आप जरा अपनी बुद्धि तो लगायें! ! लगभग सभी स्तोत्रादिकों में यही आपको पढने को मिलेगा कि यह गुप्त है!!इसे किसी को बताना मत!! वेदादि गृंथों को भी किसी अपात्र को पढने न दें!!तांत्रिक गृंथों के रहस्यों को कभी किसी के सामने प्रस्तुत न करें!! इन्हे बिल्कुल छुपा कर गोपनीय रखें!!

और फिर भी वेद,शास्त्र,उपनिषद,सप्तशती,सभी तांत्रिक गृंथ,गूढतम-गृंथ लाखों लाख की संख्या में छपते हैं और कौणियों के दाम में बिकते हैं!! फुटपाथ पर भी बिकते हैं!! रद्दी के भाव में भी बिक जाते हैं!! तो क्या इन गृंथों के रचयिता जो त्रिकाल-दर्शी तथा महान ऋषि गण थे!! वे इस कड़वी सच्चाई को नहीं जानते होंगे कि ऐसा भी होगा  ?

मैं आपसे पूछती हूँ कि क्या इन पुस्तकों को बैन कर देना चाहिये ?
इनके प्रकाशकों को आप मना कर दोगे ?
इनका वितरण आप रोक सकते हैं ?

और आप याद रखें कि इसी #गुप्त_गुप्त_गुप्त_ज्ञान की रट लगाकर तथाकथित ढोंगी तांत्रिकों के जाल में फंसकर नित्य ही कोई ना कोई विभत्स घटना घटित होती ही रहती है!! जैसे कि अभी दिल्ली में घटी घटना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है!!

अतः हे प्रिय!!मैं यह नहीं कहना चाहती कि ये #गुह्य शब्द शास्त्रादिकों में प्रक्षेपित हैं!!मैं मात्र इतना ही कहना चाहती हूँ कि पात्र-अपात्र का अन्वेषण ज्ञान स्वयम ही कर लेता है!!जैसे कि लाखों नहीं करोड़ों निबंधादि प्रतिदिन शोषल मीडिया पर आते हैं!!पर आप मेरे निबंध खोज ही लेते हैं!! और करोड़ों लोगों के सामने ये होते हुवे भी वे इसकी तरफ देखते भी नहीं!!

#कवच विशिष्ट सुदृढ तथा कष्टभेद्य बख्तर को कहते हैं!!जैसे कि शिरस्त्राण,जूते,कड़े ,या आप कह लें कि बुलेट प्रूफ जैकेट!! जैसे कि जब विश्वामित्र जी के यज्ञों को आसुरी शक्तियाँ भृष्ट करने लगीं!!तो वे #राम_लक्ष्मण की रक्षा में यज्ञ करने लगे!! वैसे ही प्राचीन काल से ही श्रेष्ठ और अत्याऽवस्यक कार्यों के संपादन हेतु कुछ व्यवस्थायें की गयी हैं!!

हे प्रिय!!जैसे कि वी•आइ•पी•,वी•वी•आइ•पी•, सांसद, विधायक,संसद आदिकी सुरक्षा हेतु सुरक्षा बल लगादिये जाते हैं!!वैसे ही इन "कवचों"का पाठ करके अपने शरीर के विभिन्न अंगों में नाना देवताओं को काल्पनिक रूप से अपने रक्षणार्थ आह्वाहन करके कहा जाता है,जैसे कि-
#नासिकायां_सुगन्धा_च_उत्तरोष्ठेच_चर्चिका।
#अधरे_चामृतकला_जिव्हायां_च_सरस्वती।।

अब आप इसी का भावानुवाद समझ लें!!
मैं अपनी नासिका से दिव्य देवार्पित गंध ही लूँगी!!
मेरे उपरके ओंठ प्रियजी के नाम लेने हेतु ही खुलेंगे!!
मेरे अधर सदैव उनके चरणामृत का ही पान करेंगे!!
मेरी जीभ से सदैव ज्ञानमयी वार्ता ही होगी!!
मैं ऐसी प्रतिज्ञा कर लूँ!!और इसका पालन भी करूँ!! यही "कवच"धारण करना है!!

और हे प्रिय!! #अर्गला अर्थात जैसे कि-
#प्रचण्डदैत्यदर्पघ्ने_चण्डिके_प्रणताय_मे।
#रूपं_देहि_जयं_देहि_यशो_देहि_द्विशो_जहि।।
आदि-आदि!!नाना प्रकार से दिव्य शक्तिओं से प्रार्थना करना कि आप मेरी दुष्ट भावनाओं को मिटा दो!!आप इसमें समर्थ हो!!आप मुझे रूप,विजय,यश दो!! मेरे काम-क्रोधादि शत्रुओं को मिटा दो!!

और #कीलक अर्थात #कुंञ्जी के विषय में मैं पूर्व अंक में बता ही चुकी हूँ!!तथा प्राधानिक,वैकृतिक तथा मूर्ति रहस्यादि अर्थात यदि संक्षेप में कहूँ तो-
फिर भी मुझे इसके लिये आगे आपसे चर्चा करनी ही होगी!!

हे प्रिय!!इस प्राधानिक रहस्यके एक श्लोक को देखें-
#तप्तकाञ्चनवर्णाभा_तप्तकाञ्चनभूषणा।
#शून्यं_तदखिलं_स्वेन_पूरयामास_तेजसा।
माँ महालक्ष्मी ने सम्पूर्ण जगत को शून्य-स्वरूप ही देखकर केवल तमोगुणरूप उपाधिके द्वारा एक उत्कृष्ट रूप धारण किया।।

हे प्रिय!!अब आप ही विचार करें कि,सप्तशती के ऋषि स्वयम ही कहते हैं कि यह जो महालक्ष्मी का कल्पित स्वरूप है!!धन,ऐश्वर्यादि ये सभी के सभी तमाऽच्छादित हैं!!इनको प्राप्त करना अथवा न भी करना!!अंततः शून्य परिणाम ही देता है!!ये व्यर्थ हैं!! आप इन्हे प्राप्त करने हेतु सांसारिक भौतिकीय उद्यम तो करो!!किंतु देवी से इनकी भीख मत माँगो!!

अभी इस श्लोक का भावानुवाद अधूरा है!! शेष अगले अंक में पुनः प्रस्तुत करूँगी!! #सुतपा!!

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