Friday 14 September 2018

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~१४

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~१४

#इमं_हि_नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं_स्तवं,
        #पठन्_स्मरन्_ब्रूवन्नरो_विशुद्धिमेति_सन्ततम्।
#हरे_गुरो_सुभक्तिमाशु_याति_नान्यथा_गतिं,
       #विमोहनं_हि_देहिनां_सुशक्ड़्करस्य_जीवनम्।।

हे प्रिय!!पुनश्च दशकन्धर कहते हैं कि-" इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं"इस स्तवन का "नित्य" पठन,मनन,वर्णन और स्मरण जो करते रहते हैं!! जैसे कि मैं बस इसे किसी तोते की तरह याद कर ली हूँ!! और शायद बचपन से ही मुझे याद है ये स्तोत्र!! बस नहाती-धोती हूँ!!दो अगरबत्ती जला ली!! दीपक जला ली!! चार दाने मिश्री के रख दी!! और बैठ गयी इसे झूल-झूल कर पढने!!

इसे पढी,विष्णु सहस्त्र नाम,गजेन्द्र-मोक्ष,सप्तशती के कीलक-कवच-अर्गला,और भी जाने क्या-क्या पढ ली!! और फिर #घंटी बजाकर आरती करने लगी!! किन्तु ये तो भूल ही गयी कि जब मैं"घंटी" बजाती हूँ तो मेरी तर्जनी,मध्यमा और अनामिका ये तीनों अंगुलियां तो घंटी को टुनटुन कर हिलाती हैं!!

और जिससे मैं रूठ जाती हूँ तो #कुट्टी करने वाली अंगुली अर्थात कनिष्ठिका नीचे फैल कर हिलती रहती है कि लो आपसे कुट्टी!! और अंगूठा ऊपर छुट्टा हिल्ता हुवा #ठेंगा दिखाकर चिढ़ाता है कि- કાઁય નથી,કાઁય નથી!! ये सब मेरे बाह्याऽडम्बर हैं!!ये पूरा पाठ-पूजा मैं बस सोती हुयी करती रहती हूँ!!

हे प्रिय!!मुझे मेरे बचपन की एक स्मृति अक्सर रुला देती है!!मैं एक दिन मन्दिर में बैठकर सप्तशती पढ रही थी!!जल्दी-जल्दी पढ रही थी!! पूरी पढनी थी!! और कहीं जाना भी था!!तो देर भी हो रही थी!! मन कहीं और था!!जीभ बोल रही थी!!और पुस्तक सामने थी,आँखें पढ रही थीं!! अचानक किसी ने पुस्तक झटके से बंद कर दी!!

मैं चमक गयी!! सामने देखी तो"माँ" खड़ी थीं!!कुछ गुस्से में थीं!! उन्होने मेरे सर को सहलाते हुवे कहा कि मेरी बच्ची!! बस-- #एक_श्लोक_पढना_किन्तु_जीभ_से_नही_ह्यिदय_से#पढना_मनन_करना!!

मैं आपको एक बात कहूँ!!ज्यादा पाठ करने की अपेक्षा बहूत ही कम पाठ करो!!किन्तु मनन ज्यादा करो!!मैं कहती हूँ कि आप दीपक जलाओ या न जलाओ!! स्नान कर सको या न कर सको!!आप पवित्र हो या अपवित्र!!आप मन्दिर में हैं,या अपने शयन कक्ष में हैं!!आप टाॅयलेट में हैं या लेटे हुवे हैं!! इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता!!आप कहीं भी और किसी भी स्थिति में पाठ तो करो,मनन-चिन्तन तो करो ?

हे प्रिय!!मुझे याद है वे घड़ियाँ जब मुझे ऐम्स में ये लेकर गये थे!!ऑपरेशन के पहले पाँच दिन तक मुझे यूरिन,टट्टी सब बिस्तर पे होती थी!!ये साफ करते थे!!न जाने कहाँ-कहाँ नलियाँ लगी हुयी थीं!!और जब मुझे •ओ•टी• में ले जाया गया तो मैं उस समय गीता जी के इस श्लोक को पढ रही थी-
#अनन्याश्चिन्त_यन्तोमा_योजनाः #पर्युऽपासते।
#तेषां_तेनाभियुक्तानां_योग_क्षेम_वहाम्यहम्।।

फिर उसके बाद मुझे #एनेस्थीसिया दे दिया गया! मेरे ह्यदय को चीर कर बाहर प्लेट में निकाल कर धोया गया था शायद!!दो दिन वेंटीलेटर पे रही थी!!तब होश आया था मुझे!! और जब होश आया था मुझे तो एक अद्भुत और अद्वितीय बात आपको बताती हूँ!! जागते ही वही श्लोक मेरा मन भीतर ही भीतर रट रहा था!!उफ्फ्फ्फ्फ् काश मैं उसी समय मर गयी होती!!तो #मिल गयी होती!!

और मैं अपने अंतः से स्वीकार करती हूँ कि-"विशुद्ध मेति सन्ततम" ये श्रवण,मनन,ध्यान,अध्ययन तथा वर्णन सतत् होना चाहिये!!इसमें प्रमाद नहीं होना चाहिये!!मैं तो ये भी कहूँगी कि जैसे ही #पाइथागोरस ने जाना!! वो नंगा ही नगर की गलियों में चीखता हुवा दौड़ पड़ा #मिल_गया_मिल_गया!मीरा तो बोल पड़ीं-
#जो_मैं_इत्तो_जानती_प्रीत_किये_दुख_होय।
#नगर_ढींढोरा_पीटती_प्रीत_न_कीजो_कोय।।

हे प्रिय!!लोग कहते हैं कि #जिसने_जान_लिया_वो_मौन_हो_गया!
किंतु आप जैसे संत प्रमाण हैं कि जिसने जान लिया!!उसने वेद,शास्त्र,उपनिषद,धम्मपद्द,आगम,गुरू ग्रन्थ साहिब,मानस और बीजक लिख दिया!!आने वाली पीढ़ियों के लिये एक विरासत बना दी!! परमार्थ का मार्ग दिखा दिया!!

हे प्रिय!!पुनश्च दशकन्धर कहते हैं कि-" हरे गुरो सुभक्तिमाशु"हर और गुरू-पद में अविरल तथा सतत भक्ति होनी चाहिये!!"हर" अर्थात #शिव अर्थात कल्याण करने वाले!!और वो कल्याण आपका शिव-स्वरूप कोइ गुरू ही कर सकते हैं!!ये गुरू देही हैं कि नहीं!ये विवाद का विषय हो सकता है!! किन्तु वे #विदेही हैं ये तो निर्विवाद है!!

अर्थात संत और शास्त्र आपको एक प्रेरणा तो देते ही हैं!! पूर्वमीमांसा हो अथवा उत्तरमीमांसा!! दोनों का अनुशीलन " सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं" भक्ति के बिना सम्भव नहीं है!!मैं आपकी गति हूँ और आप मेरी गति हो!!अन्योऽन्य का सम्बन्ध है मेरा-आपका!!मैं मायाविनी हूँ और आप मुझ माया के #पति अर्थात अपनी ही माया की पत् रखने वाले!!

हे प्रिय!!दशानन कहते हैं कि आप"विमोहनं हि देहिनां" इस देह से विदेह हो जाओ-यदि आप शंकर सदृश्य होना चाहते हो तो!! इसी के साथ इस श्लोक की प्रबोधिनी  पूर्ण करती हूँ !!... #सुतपा!!

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