Wednesday 12 September 2018

दुर्गा सप्तशती सिद्धकुञ्जिकास्तोत्र

दुर्गा सप्तसती सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र~मंत्र~८ अंक~८

#क्लीं_कारी_कामरूपिण्यै_बीजरूपा_नमोऽस्तु_ते।
#चामुण्डा_चण्ड_घाती_च_यैं_कारी_वर_दायिनी॥
पुनश्च आगे अब शिव-सदृश्य ऋषि कहते हैं कि-
"चामुण्डा चण्ड-घाती च" आप स्मरण रखें कि चामुण्डा देवीकी उपासना अथवा महिसासुरघातिनि की दृष्टांतात्मक छवियोंको ही शाक्त लोगोंनें ज्यादा महत्व दिया!!

और मैं निःसंदेह यह कहना चाहती हूँ कि वैष्णव,शैब्य अथवा जितने भी मत हैं वे सभी पुरुष सत्ता प्रधान हैं!!और एकमात्र शाक्त मत ही स्त्री सत्ता प्रधान है!! और स्त्री तो स्वभावसे ही दयालू,करुणामयी और प्रेमके साथ-साथ वात्सल्य की साक्षात प्रतिमा होती हैं!!और इससे भी बड़ी आश्चर्यकी बात यह भी है कि शाक्त-मतके नामपर ही सबसे ज्यादा तांत्रिक लोग बलीप्रथा की बातें करते हैं!!

मैं आपको एक बात अवस्य ही कहूंगी कि शाक्त मत का प्रादूर्भाव वैदिक ही है!! प्रकृति पूजा अर्थात शक्ति पूजा!!किंतु शक्तियों का तामसीकरण कर देना ये स्त्री शक्तिका अपमान है!! देवीका अपमान है!!आप देखें चण्ड और मुण्डके वधकी ये रहस्यमयी बातें हैं!! सप्तशती•५~९१• में कहते हैं कि-

#नैव_तादृक्_क्वचिद्रूपं_दृष्टं_केनचिदुत्तमम्।
#ज्ञायतां_काप्यसौ_देवी_गृह्यतां_चासुरेश्वरः।।

चण्ड और मुण्ड!! मैं आपको बताऊं!!जैसे कालसर्प योग होता है!!जैसे राहू और केतू के मध्य सप्त गृह आ जाते हैं!!तो लोग कहते हैं कि आप कालसर्पयोग की शांति कराओ!! और वो भी त्रयम्बकेश्वरजी जाकर कराओ!! और लोग दौड़ जाते हैं!!

हे प्रिय!! आप ध्यान देना!! देवी के स्वरूप पर मोहित हुवा कौन ?
पहले तो चण्ड और मुण्ड ही हुवे न ?
और उनमें ये क्षमता नहीं थी कि वे देवी को प्राप्त कर सकें!तो उन्होंने शुम्भ और निशुम्भको!अर्थात साधना के फल स्वरूपा लालच अथवा भय, शुभ- अशुभ का चिंतन किया!!

हे प्रिय!!आपके शरीरके गलेके नीचेका अंग ही #चण्ड है!! और ऊपरका अंग ही #मुण्ड है!! और पहले चामुण्डा चण्ड-मुण्ड का पृथकी करण करती हैं!!उसके पश्चात ही शुम्भ-निशुम्भकी बारी आयेगी!!
आप जरा चामुंडा देवी की प्रतीकात्मक मूर्ती को देखना!!वैसे ऐसी मूर्ती आपको शायद न मिले!! कि दांयें हांथ में मुण्ड हो और बांयें हांथ में धड़ हो!! और बीच में महादेवी!!

मेरे प्रिय!!आप देखो तो!!ये तो बिल्कुल ही कुलाचरण की प्रतीकात्मक साधना विधि है न!! ऋषि पुनश्च कहते हैं कि- "यैं-कारी वर-दायिनी"
आप जरा विचार करो!! "यै कारी"  ?
अद्भुत शब्द कह दिया ऋषि ने!!

श्रीदेव्यथर्वशीर्ष•४•में कहते हैं कि-
#वेदोऽहमवेदोऽहम्_विद्याहमविद्याहम्_अजाहमनजाहम्_अधश्चोध्र्वं_च_तिर्यक्चाहम्।।
आपकी विद्या-अविद्या,वेद-अवेद,परा-अपरा,और आपके नीचे-ऊपर-दांयें-बांयें-समक्ष और पीठाग्र पर मैं ही हूं!!

किन्तु हे प्रिय!! मैं आपकी वृत्त ○ हूँ,और आप मेरी परिधि "•" !! मेरे केन्द्र में तो आप ही हो!! अब आपको यह सोचना है कि मैं आपकी कुंञ्जी हूँ !! आपके भीतर उतरने की साधना सामग्री मैं महामाया आपकी चामुण्डा हूँ!!

जैसे कि आप यज्ञोंमें समिधाका हवन करके देवताओं को तुष्ट करते हो!! वैसे ही आप मेरा हवन करके!! मुझे जलाकर,मेरी अग्नि से मेरी जय-जयकार करके,मुझे अपनी कल्याणकर्त्री माँ स्वरूपिणी भैरवी मानकर!! मेरे ही वरदानसे आप अपना कल्याण-पथ प्रशस्त कर सकते हो!!

हे प्रिय!!आप साक्षात #त्रयम्बकेश्वर हो!! तीनों अम्बाओं के ईश्वर हो! #अम्बे_अम्बिके_अम्बालिके सतो-रजो और तमो,इन मेरे तीनों ही स्वरूपों के श्वामी किंतु मुझसे अतीत हो आप!!अब यदि इस प्रकार बनकर आप "सिद्धकुञ्जिका-स्तोत्र"का पाठ करते हो!! तो मेरी सिद्धि तो होगी ही आपको!! मुझपर विजय तो आपकी होगी ही!!

और इसी के साथ इस मंत्र का भावानुबोधन पूर्ण करती हूँ!!

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