Saturday 15 September 2018

विज्ञान भैरव तंत्र सूत्र~१५ अंक~१३

#संकल्पों_को_छोड़ते_ही_विकल्पों_का_अस्तित्व_निःशेष!!
       
अब विज्ञान भैरव तंत्र  यह पन्द्रहवाँ श्लोक मैं  आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ,
#श्री_भैरव_उवाच--
#अन्तः_स्वानुभवानन्दा_विकल्पोन्मुक्तगोचरा ।
#यावस्था_भरिताकारा_भैरवी_भैरवात्मनाः।।

हे प्रिय !!अब मेर प्रियतम भैरवजी अपनी सूरता  रूपी शिवा से कहते हैं कि--"अन्तः स्वानुभवानन्दा" 
स्वानुभव जनित आनंद अत्यंत ही गंभीर एवम् आह्लादकारी शब्द है यह!!महात्मा बुद्धने कहा है कि मैं नहीं कहता कि तुम मेरी बात पर विश्वास करो!!मैं कहेता हूँ!!मैं तो तुम्हे निमंत्रण देता हूँ कि एक बार चलो मेरे-साथ #अनंत_की_यात्रा_पर!!अंधकार पूर्ण पथ पर चलकर ही प्रकाश की #आत्मावलोक की प्राप्ति हो सकती है!!

हे प्रिय!!इसी स्थूल शरीर से ही मैं आपको सूक्ष्म-शरीर में प्रवेश का मार्ग दिखाना चाहती हूँ!!भैरवी के द्वारा भैरव की प्राप्ति-और निरंतर संलग्नता ही तो मेरे प्रियतमजी का #युगल_प्रेम है! अरी सखी!!मेरा मन तो मेरी ईच्छा के कारण ही अस्तिव में है न!मैं अज्ञानी हूँ तभी तो आप जैसे ज्ञानियों को ढूँढती फिरती हूँ न!! क्योंकि एक बार भी यदि मैं #तथागत" के पथ पर चल पड़ी!!तो "तथा"----"गत" ही हो जाऊँगी!! #अन्तः_स्वानुभवानन्दा"

#विकल्पोन्मुक्तगोचरा" शब्दों" से मैं आज आपके मनका स्पर्श करना चाहती हूँ!क्यों किआत्मा का तो कर नहीं सकती!मैं जानती हूँ कि जितना भी मैंआपके साथ इस विशय में गहेराई! और भी गहेराईयों में उतरती जाऊँगी!!जितने भी मेरे और आपके अंतस्थ आवरण उतरते जायेंगे, आक्षेप हटते जायेंगे!!जितनी गहेरी वासना होगी-उससे और भी ज्यादा प्रेम उभर कर सामने आयेगा!!प्रिय !! एक शब्द है- #ऋतम्भरा_तत्र_प्रज्ञा भैरव कहते हैं कि हे भैरवी!! बस संकल्पों को छोड़ते ही विकल्पों का अस्तित्व निःशेष हो जायेगा!!

और #यावस्था_भरिताकारा" भैरवजी मुझसे कहते है कि-हे प्रिये!! #मैं_पुरुष_तत्व जबतक है तबतक ज्ञान का अहंकार भी है!!और समर्पण का भाव जबतक तुझमें है तबतक तूँ भी भटकती ही रहेगी!!ज्ञानाहंकार मुझे और समर्पण का भाव तुझे #शरीरजीवी और अंधकारमय बना देता है!अब यदि तूँ अपने समर्पण के भाव को और भी गहरा कर दे,लौकिक से अलौकिक कर दे- #तूँ_पुर्णतया_मेरी_हविष्य_बन_जाये!

#यत्पुरूषेण_हविषा_देवा_यज्ञमतन्वत्।
#वसन्तो_अस्यासीदाज्यं_ग्रीष्म_इघ्मः_शरदध्वि।।
तो वही तेरी भैरवात्मक"भैरवी-शक्ति" है!!और इस प्रकार इस श्लोक के उपसंहार में यही स्पष्ट होता है कि--- #भैरवात्मनाः और मैं अपने अहंकार की सर्वोच्य कक्षा का स्पर्श करता हूँ!!तो मैं ही समूचे ब्रम्हाण्ड को विमल कर्ता,व्याप्त और तेरी प्रतिज्ञा का पालन करने वाला  ("यो मे दर्पो ब्यपोहती-तस्य मे भर्ता भविष्यति")  "महा-भैरव के वास्तवि स्वरूप को प्राप्त करता हूँ........ सुतपा!!

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