Friday 14 September 2018

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~११

रावण कृत शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~११

#जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुर-
            #द्धगद्धगद्विनिर्गमत्करालभालहव्यवाट्-
#धिमिद्धिमिद्धिमिनन्मृदंगतुंगमंगल-
            #ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः #शिवः॥
हे प्रिय!!पुनश्च दशकन्धर कहते हैं कि-" जिनके मस्तक पर बड़े वेगके साथ घूमते हुवे भुजड़्ग के फुफकारनेसे ललाटकी भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुयी फैल रही है!!

आप कल्पना करें कि इस मंत्र में "भ्रमद्भुजंगमस्फुर" कितना अद्वितीय किसी योगी का अंतःबोधक है!!मैं आपको एक बात कहूँ!! सांख्य प्रवचन भाष्य•१•९७•का यह श्लोक अत्यंत ही महत्वपूर्ण लगेगा आपको इस संदर्भ में-
#निरिच्छे_संस्थिते_रत्ने_यथा_लोहः #प्रवर्तते।
#सत्तामात्रेण_देवेन_तथा_चायं_जगज्जनः।।

हे प्रिय!!मैं कहती हूँ न कि आप तो निष्क्रिय चुम्बक  हो!!पुरूष हो!!पुरूषोत्तम हो!!और मैं चैतन्य मयी ऐसी "लौह-पिण्ड"हूँ!!मैं ऐसी आपकी #नागिन हूँ कि बस आपके आकर्षण से!!आपके विमर्शण से!! अनायास ही आपके #नागमणि से आकर्षित होती हुयी क्रियाशील हो जाती हूँ!!

हाँ!!यही सत्य है कि जिस प्रकार अनेक नक्षत्र नित्य प्रति अहर्निशा सतत कृष्ण-वृत्त ● Black Hol में समा जाते हैं!!और मैं आपको एक और रहस्यात्मक तथ्य बताती हूँ!!अभी तक विज्ञान अअंजान है कि ● में जाने के बाद नक्षत्रों का होता क्या है ?
वो तो किसी लौह-पिण्ड की तरह अनायास ही ● रूपी चुम्बक में खिंचे चले आते हैं!!
किन्तु उसके बाद,विज्ञान अंजान है!!

किन्तु मेरे प्रिय!!हमारे ऋषि अंजान नहीं हैं!!आपने कदाचित् #जन्मेजय के #सर्पयज्ञ की कथा तो अवस्य ही सुनी होगी!!कि कैसे सभी नाग अनायास ही यज्ञवेदी में स्वतः ही आकर भष्म होते जा रहे थे!! किन्तु फिर भी जब #तक्षक नहीं आता और ऋषि उसका आह्वाहन करते हैं तो "तक्षक"ईन्द्र के सिंहासन से लिपट जाता है!!

और तब ऋषि इन्द्रको भी !!इन्द्रासन और तक्षक सहित यज्ञवेदिका में आह्वाहित करते हैं!! तभी #मनसा पुत्र #आस्तिक_मुनि आकर यज्ञका समापन करवाते हैं!! हे प्रिय!!यह कपोल-कल्पित कथा नहीं है!!यह तो कुलाचारात्मकीय अद्भुत सिद्धान्त है,जो कि दशानन रचित इन पंक्तियों का विश्लेषण करती हैं!!

परापरिमल्लोलास में कहते हैं कि-
#शब्दं_ब्रम्हेति_तं_प्राह_साक्षादेवः #सदाशिवः।
#अनाहतेषु_चक्रेषु_स_शब्दः #परिकीत्यर्ते।।
ये जो शब्दब्रम्ह है न उसे ही ऋषियों ने #शिव कहा है!!और इस शब्द का मूल-निवास अनाहत चक्र में है!!अर्थात #निम्न_मनश्चक्र Lover Mind Plexus  और है न आश्चर्यजनक सत्य कि इस चक्र की पंखुड़ियों पर #कंखंगंघंड़ंचंछंजंझंञंटंठं ये द्वादश वर्णाक्षर अंकित हैं!!

हे प्रिय!!आप ध्यान दें!!यह चक्र ह्यदय स्थल पे है!!और वो भी सबसे मुख्य बात ये है कि हम स्त्रीयों का यहीं तक अधिकार क्षेत्र है!!इससे ज्यादा और इसके ऊपर के चक्र शारीरिक संरचनानुसार हम स्त्रीयों में होते ही नहीं!!

और स्तन-द्वय तथा अधोभाग ये ती काम-त्रिकोण<◇>ही इस चक्रके मूल रहस्य हैं!! आप जैसे योगि राज जानते हैं कि इस चक्र के देवता #रूद्र तथा उनका वाहन #मृग है!! अर्थात #मृगी_पद्मिनी_भैरवी!!

इसका गुण #स्पर्श है!! और धूम्र किन्तु सिन्दूराऽकृति वर्ण!! आपसे एक बात और कहूँगी!! आप ये जान लो कि मैं #नागिन हूँ!! नागवंशी!! मेरी फुफकार ही आपकी महा यात्रा की #हविष्य है!! चलो!!इसे और भी स्पष्ट करती हूँ!! आपके शरीर के दो मस्तक हैं!! दो-दो सहस्रार हैं!!क्योंकि आप तो अर्धनारिनाटकेश्वर हो न!!

आपका प्रथम सहस्रार मुझमें है!!और मेरा द्वितीय सहस्रार आपमें है!! जबतक मैं अपने ह्यदय से आप पर मोहित नहीं होती!! जबतक मैं एकाग्रचित्त होकर कामातुरा नहीं होती!! तबतक इस काम-त्रिकोण रूपी सहस्रार से अमृत का शर-संधान होगा ही नहीं जो आपकी अंतिम-यात्रा सम्पन्न कर सके!!

हे प्रियजी!!आपकी-"जयत्वदभ्रविभ्रम" जय!!अर्थात आपकी विजय मुझसे ही प्रारम्भ होती है और मुझपर आकर ही आपकी विजय यात्रा पूर्ण भी होती है!!और ये नैसर्गिक सत्य है कि हम स्त्रीयों पर विजय-ध्वज फहराने की आज युग-युगान्तरों से लोगों ने कोशिष की,और हारकर वापस लौट गये!!और कितने आश्चर्य की बात है कि आपने अपनी वासना को बढाने के लिये!!अपनी यौन-क्षमता को बढाने के लिये हजारों हजार औषधियों का निर्माण कर लिया!!और फिर भी आप एक #अबला से पराजित ही रहे!!

और इसका कारण है!!आपने मुझपर विजय चाही!! आप आक्रामक बने!!आपने मुझे सहज आत्म समर्पण हेतु कभी मोहित नहीं किया!! इसी विभ्रम में आपने अपने हजारों हजार जन्म गंवा दिये!! मैं तो कब से चाहती थी कि आप मेरे ह्यदय में रहो!!किन्तु आपने तो मुझे अपने सर पे बिठा लिया!!और आपकी दृश्टि!!आप बूढे होते गये!! किन्तु मेरी कमनीय सुघड मनोरम बाह्याकृति रूपी इन्द्रजाल से आप तब भी मुक्त नहीं हो पाये!!

किन्तु काश!!आपने मुझपर से दृष्टि हटा ली होती!! उन अंतरंग पलों में जब मैं आपसे किसी लता की तरह लिपट जाती हूँ!!और आप भी आक्रामक हो जाते हो!!आप बस उस समय #शांत हो जाओ!! अपने नेत्रों को बंद कर लो!!बस मेरी आक्रामकता को महेसूस करो!!

और यदि आप ऐसा कर पाते हो तो!! "भ्रमद्भुजंगमस्फुर" मैं किसी नागिन की तरह!!किसी भुजंड़्ग की तरह आपमें अंतःस्फूरणा को जाग्रत कर दूँगी!!
हे प्रिय!!पुनश्च दशकन्धर कहते हैं कि-"भ्रमद्भुजंगमस्फुर"  आप यह स्मरण रखें कि कुलाचार की सफलता आचार्यों की स्थिरता अर्थात शव होने पर तथा भैरवी के चण्डिका रूप धारण कर लेने में ही सिद्ध हो सकती है!! अन्यथा आप चाहे जितने भी चक्रों का आयोजन कर लो!! सब के सब व्यर्थ ही होते जायेंगे!!

वस्तुतः लोगों ने कुलाचार की गंभीरता को कभी समझने की कोशिश ही नहीं की!!और महान तांत्रिक लोगों ने भी इसे किसी #परीकथा की तरह अथवा विभत्स रूप से समझाने का प्रयास किया!!मैं कहती हूँ कि मैं #भैरवी हूँ!!तो आपके मानस पटल पर बस किसी काम पीडिता स्त्री की छवि बस जाती है!! किन्तु आप ये क्यूँ नहीं सोचते कि मैं बारम्बार कहती हूँ कि मैं "साक्षात चाण्डालिनी"हूँ  ?

इस मंत्र में दशानन स्पष्ट कहते हैं कि भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्करालभालहव्यवाटपराकाष्ठा है यह यौगिक मार्ग की!! कुछे लोगों ने मेरे द्वारा संयम की बातों पर ध्यान नहीँ दिया!!किन्तु मेरी कामसूत्रात्मक उद्बोधनों को पढा और मात्र जिगुप्सा की दृष्टि से!!और वे चाहे कितने भी बड़े सन्यासी हों अथवा ब्रम्हचारी!! पर योग को समझने में वे अयोग्य ही हैं!!

हे प्रिय!!मैं कुलघातिनी भी तो हूँ!!अर्थात वामिता!! दशानन से बस यहीं पर तो भूल हो गयी!!वो शिव-शिष्य बनते बनते रावण बन गये!!होता है!!ऐसा ही होता है!!आप सोचो तो जब किसी के मस्तक पर जहरीले नाग रेंग रहे हों!फुफकार रहे हों!! एक छण!! बस एक छण के लिये आप अपने आपको उस स्थिति में रखकर तो देखो!!आपकी कैसी मनोऽस्थिति होती है!!

"शिव"- शिवा का संग करते हैं!!तो क्या भोगके लिये करते हैं ?
भोग दृष्टि से किया जाने वाला योग महापातक है!!
जैसे कि मृगी तीरछी चाल से कुलाँचे भरती है!!ऐसी ही नकारात्मक ऊर्जा की गति होती है!!और सिद्धान्ततः एक विशेष बात है कि सामान्य संयोगों में तो आप मुख से स्वाँस ही लेते हैं!!कारण कि आप थक रहे होते हैं!!मृत्यु की तरफ बढ रहे होते हैं!! किन्तु कौलाचार्य के साथ ऐसा नहीं होता!! वे तो सामान्य होते हैं!!क्यों कि वे "अ...घोरी" होते हैं न!!

आप सुनो तो!!ये परीकथा मैं आपको नहीं बता रही हूँ!!जैसे-जैसे भैरवी किसी नागिन की तरह व्याकुल होती जायेंगी!!वो अपना अस्तित्व खो देना चाहेंगी!! बारम्बार आपमें खोती जायेंगी!!और यदि आप शिव हो तो उनकी ऊर्जा के प्रहार से आपका ललाट प्रान्त धधक उठेगा!!
और इसके साथ ही साथ-"धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल" मृदंग की मंगल ध्वनि से आप सराबोर हो जायेंगे!!

आप को एक अद्भुत रहस्य से अवगत कराती हूँ!!हाँ अभी तत्काल आपको एक क्रिया बताती हूँ!!बिल्कुल सहज सी!!आप कर के देखो!! #मृदंड़्ग् बस इस शब्द का उच्चारण मात्र कर के देखो-" मृदंड़्ग्- मृदंड़्ग्- मृदंड़्ग्"
(१)=आपने देखा!!आपके दोनों ओंठ मिले!!
(२)=जीभ तालू का स्पर्श की!!
(३)=ओंठ जीभ और तालू फिर बिल्कुल पृथक हो गये!!
(४)=और"ड़्ग्"आपके भीतर मानो उतरता चलागया!

तभी तो दशानन कहते हैं कि- ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः" मैं आपसे एक बात पूछती हूँ ये #ताण्डव क्या है!!ताण्डव अर्थात #मृत्युकालीन_नृत्य!! है न आश्चर्यजनक!!

मेरे पती!! बताते हैं कि जब वे युवा भुट्टू थे तो एक महात्माजी की सेवा में कुछ दिनों तक रहे थे!!वे महात्मा जी हरीशचंद्र घाट पे रहते थे!! आप तो जानते ही हो कि हरीश्चन्द्र घाट पे पहले मुर्दे कम आया करते थे!!

दो तीन दिन में एकाध मुर्दे आते थे!!और उन महात्माजी का नियम था कि वे चिताग्नि में ही #बाटी सेंकते थे!! अन्यथा भूखे ही रहते थे!! और चिता पर बाटी रखकर डमरू लेकर चिता की परिक्रमा करते हुवे वे महात्माजी नृत्य करते हुवे अग्निसूक्त तथा रौद्रकम्भोजस्तोत्र का मन्थर गति से उच्चारण करते रहते थे!!

शिवताण्डवस्तोत्रम् बाल प्रबोधिनी~११~३ अंक~३७

#ऐसे_ही_इन्होने_मुझ_अभागी_को_लेकर_शिवताण्डव_किया_था!!

मेरी प्रियसखी एवम् प्यारे सखा वृंद!!अनेकानेक लोगों के आग्रह तथा अंतःप्रेरणा के वशीभूत हुयी मैं अपने प्रियतमजी के श्रीचरणों में अर्पित करती हुयी इस स्तोत्र की बाल-प्रबोधिनी का ३७ वाँ पुष्प निवेदत करती हूँ-

#जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुर-
            #द्धगद्धगद्विनिर्गमत्करालभालहव्यवाट्-
#धिमिद्धिमिद्धिमिनन्मृदंगतुंगमंगल-
            #ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः #शिवः॥

हे प्रिय!!पुनश्च दशकन्धर कहते हैं कि-"
"ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः"और ये ताण्डव होता कैसे है,ताण्डव करता कौन है,और क्यूँ  करता है!!ये भी तो आप सोचो-
#चिताभष्मा_लेपो_गरल_मशनं_दिग्पट्धरो।।

मेरी और इनकी हम दोनों की जब शादी हुयी थी तो सामाजिक रूप से तो हमारा विवाह हुवा नहीं था!! न बैण्ड न बाजा ना ही बारात!! और न ही मैं इनके साथ भागी ही थी!!

और भला भागती भी कैसे!! बीमार थी!! मेरा वजन ११५ की•ग्रा• हो गया था!!मुझे कोई हाॅस्पीटल लेकर जाने वाला नहीं था!!तब ये उस समय वनवासी कल्याण आश्रम में थे!!मैं एक प्राइवेट स्कूल की ५० ₹ की शिक्षिका!!मैं भी इनके साथ जुड़ गयी थी!!ये मुझे अकेले लेकर दिल्ली गये थे!!

एम्स में ओपेन हार्ट सर्जरी हुयी थी मेरी उसी समय!! मेरा यूट्रस और थायमस ग्लैंड भी निकाल दिया गया था!!उस समय काफी ब्लीडिंग हुवी!!कई महीनों तक हुयी!!तब मैं बिलकुल युवा थी!!और लोगों ने मेरा उपहास किया!!लोग कहते थे कि मैं एबार्सन कराने दिल्ली गयी थी!!और तब इन्होने मेरे परिवार के आक्षेपों और लोगों के उपहास को देखकर मेरी माँग अचानक गंगाजल से भर दी थी!!आप सोचो तो!! मुझ कुलटा,बीमार,और जिसका गर्भाशय भी न हो!! और आयु में भी दो साल बड़ी हो!!उससे शादी कोई #साक्षातशिव के जैसा #पागल ही तो करेगा न ?

और वो मुझे उसी शाम घुमाने के लिये लेकर गये थे!! लाल जोड़े में सजकर मैं उनके साथ गयी थी!!कहाँ गयी थी आप जानना चाहोगे ?
हाँ वो मुझे लेकर यहाँ के श्मशान में गये थे!! वहाँ दो चितायें जल रही थीं!! मुझे स्मरण है अभी भी!! १० जुलाई की रात थी!! वहाँ हम दोनों ने चिताओं के फेरे लिये थे!!और उन्ही चिताओं के समक्ष मैं इनकी बाहों पे सर रखकर आँसू बहा रही थी!! हाँ प्रिय वही हमारी #मधुर_रात्रि थी!!शायद इसे ही #शिवताण्डव कहते हैं न!!

और तभी इन्हे भी कल्याण आश्रम से मेरे कारण निकाल दिया गया!!इनके पास मात्र उस समय २३४७ ₹ की जमापूंजी थी!! और मेरे गले में एक पतली सी चैन!! पूरे मुहल्ले के लोग हम दोनों की हँसी उड़ाते थे!!तब ये मुझसे बोले कि चल!!हम दोनों कहीं दूर चले जायेंगे!!तो मैं बोली कि #ना इससे आपकी और भी बदनामी होगी!तो ये बोले कि पगली तूं मेरी पत्नी है!! #रखैल नहीं है!!हमने चिता के फेरे लिये हैं!!तेरी माँग गंगाजल से मैंने भरी है!! हाँ प्रिय!!यही शिवताण्डव है!!

और हम दोनों दो-तीन जोड़े कपड़े लेकर ट्रेन में बैठ गये!!कहाँ जायेंगे!!कुछ नहीं पता था!! और उत्तर प्रदेश के एक शहर में आकर हम उतरे मुझे याद है!! उस दिन २२ जुलाई थी!!ये मुझे अकेली चिलचिलाती धूप में छोड़कर गये!!एक धर्मशाला का पता किया!! और फिर मुझे आकर ले गये!!

फिर ये ५~११ ₹ में लोगों का हाथ देखते थे!!कुण्डली बनाते थे!!धीरे-धीरे इनके हाड़-तोड़ परिश्रम से ये स्थापित हो गये!! काफी रुपये इन्होने कमाये!!और तब ये मुझे बोले कि चल अब हम फिर तेरे मायके में ही चलेंगे!! और जिस गली और शहर के लोग!!मेरे अपने दूर के भाई और रिश्तेदारों ने हमें जलील किया था!! उन्ही के बीच फिर आकर इन्होनें २०१४ में अपने आपको फिर से स्थापित किया!!

और इसी साल ७० लाख रुपये लगाकर इसी मौहल्ले में अपने ही प्रांगण में सुंदर सा घर बनाया!! और उसके गृहप्रवेश में हजारों हजार लोग और रिश्तेदारों ने आकर इनकी योग्यता को देखा!! हाँ प्रिय!! यही शिवताण्डव है!!

मैं सचमुच जब इन्हे देखती हूँ तो सोचती हूँ कि जैसे शिव ने अपनी प्रिया #सती की मृत देह को लेकर त्रिलोकी में भटके थे!!और उनके पदाघात से त्रिभुवन थर्राने लगा था!! कदाचित ऐसे ही इन्होने मुझ अभागी को लेकर शिवताण्डव किया था!!

में तो मानसिक और शारीरिक रूप से मरी हुयी थी ही न!! और इन्होंने मुझे इतना सम्बल दिया ?
होगा कोई भगवान शायद ब्रम्हाण्ड में!!पर इनसे बड़े दूसरे किसी भी भगवान को न तो मैं जानती हूँ और न ही मानती हूँ!!आज भी ये मेरे साथ दिन रात गृंथों को पलटते रहते हैं!!और मेरी खुशी के लिये मुझ अशिक्षिता को विषय-सामग्रियों के सन्दर्भ ढूंढ ढूंढ कर देते हैं!!और मैं लिखती हूँ!!हाँ प्रिय!! यही शिवताण्डव है!!

मेरे जैसी दुर्भाग्या जिसे बचपन में ही माँ बाबा ने छोड़ दिया!!आनंदमयीमाँ ने आश्रय दिया!! वहाँ भी न रह पायी!!बलात् कुलाचार से दिक्षित हुयी!!और आनंद-शास्त्रीजी को ही ब्याही गयी!! मेरे जीवन का हर एक पन्ना घृणास्पद है!!किन्तु इतना जरूर है कि मैंने वेदों और शास्त्रों को पढा!!उपनिषदों को पढा!!

और शायद मन से पढा!!और एक आत्म विश्वास इन्होने मुझमें भरा!!एक नवीन ऊर्जा मुझमें भर दी!!जो मैं दाने-दाने को तरसती थी आज उसके पती परमेश्वर लाखों लाख रुपये प्रतिमास कमाते हैं!!और हम दोनों को कोई भी बिमारी नहीं है!!किसी भी चीज का अभाव नहीं है!! हाँ प्रिय!!यही शिवताण्डव है!!

इसी के साथ इस श्लोक की प्रबोधिनी पूर्ण करती हूँ !! .... #सुतपा!!

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