Friday 14 September 2018

पितृसूक्त~८\२

पितृ-सूक्त मंत्र-८~२ अंक~१८

#पितर_आपके_द्वारा_प्रदत्त_हविष्य_को_यमके_द्वारा_लेने_को_अस्वीकार_भी_कर_सकते_हैं!!

।।पितृपक्ष में विशेष प्रस्तुति ।।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!अपने पितृ-गणों को समर्पित करती हुयी इस श्रृंखला का अपने श्री जी के चरणों में ८ वीं ऋचा के द्वितीय अंक को समर्पित करती हूँ!!

#येनः #पूर्वे_पितरः #सोम्यासो_ऽनुहिरेसोमपीथं_वशिष्ठाः।
#तैभिर्यमः र्सरराणो_हवीर्ष्युशन्नुशभ्दिः #प्रतिकाममत्तु।।

वैसे भी जो वशिष्ठ कुल के सोमपायी पितर होते हैं!!अर्थात जो शुद्ध सामग्रियों में विश्वास रखते हैं!! जिनमें परमार्थ मयी दृष्टियाँ होती हैं!! अर्थात जो ब्रम्हर्षि होते हैं!! उनका ही अधिकार सोमपान अर्थात तर्पणादि हविष्यों को प्राप्त करने का होता है!!

ऋषि कहते हैं कि ये पितर आपकी दो अंजुली जल के भूखे नहीं हैं-"तैभिर्यमः र्सरराणो"वे तो हमें उपकृत करने के लिये हमारे आह्वान पर आते हैं!!जैसे कि कभी कदाप मैं अपने मंदिर में किसी भोज का आयोजन करती हूँ तो परिचितों को आमंत्रित करती हूँ!! और जब काफी सारे लोग मुझसे प्रेम करने के कारण आ जाते हैं!!तो मैं इतराने लगती हूँ!! कि मैं कितनी #महाऽऽऽन हूँ!!कितनी धनाढ्य हूँ कि ये सब मेरे घर खाने को आये हैं ?

हे प्रिय!!और इस भावना से किया हुवा श्राद्ध महापाप है!!ये जो लोग मेरे घर आये हैं!!जिन्होंने आपके आह्वान और आमंत्रण को स्वीकार किया वे तो आपको उपकृत करने को आये हैं!!अब एक बात और भी मैं आपसे समझने का प्रयास करती हूँ!!ऋषि कहते हैंकि-"हवीर्ष्युशन्नुशभ्दिः" हमारे द्वारा दी हुयी हविष्य को आप यम के द्वारा-अर्थात--

आपने जो हविष्यान्न पितरों के निमित्त दिया वह यमराज के माध्यम से उन्हे प्राप्त होती है!!अर्थात "यम" एक आप और उन पितरों के मध्य के सेतु हैं!!इस संदर्भ में मैं आपको ऋग्वेद•१०•१४•३• अर्थात #यमसूक्त की यह ऋचा दिखाती हूँ-
#मातली_कव्यैर्यमो_अङ्गिरोभिर्बृहस्पतिर्ऋक्वभिर्वावृधानः।
#याँश्चदेवा_वावुधुर्ये_च_देवान्_त्स्वाहान्येस्वधयान्ये_मदन्ति

ये ऋचा स्पष्ट करती है कि इन्द्र,बृहस्पति आदि देवता-गण यम तथा अंगीरसादि पितरों के द्वारा #कव्य अर्थात हविष्य पाकर पुष्ट होते हैं!! एक धारणा लोगों में है कि #हव्य तथा #कव्य में भी भेद है ?
हाँ!! भेद तो है ही!! बिलकुल जितना भेद आपके "दायें और बायें हाँथों"में है,उतना ही भेद है इनमें!!

तथा यह देवता गण उत्कर्ष को पाकर पितरों को हव्य में भाग देते हैं!! आप ये जो #स्वाहा द्वारा आहुति देते हैं वो देवताओं के लिये है, तथा #स्वधा द्वारा यह आहुति पितरों को देवताओं के द्वारा यम के माध्यम से पितरों को प्राप्त होती है!!

अभी इसमें एक बात और भी हमें समझनी होगी- "हवीर्ष्युशन्नुशभ्दिः प्रतिकाममत्तु"इस हेतु पितरों को सहमत तथा उत्कण्ठित होना भी तो चाहिये ?
अर्थात ये निश्चित है कि पितर आपके द्वारा प्रदत्त हविष्य को यम के द्वारा लेने को अस्वीकार भी कर सकते हैं!! अर्थात आपके द्वारा किया हुवा तर्पण व्यर्थ भी हो सकता है!!और ऐसा क्यूँ ?

हे प्रिय!!मैं आपसे निवेदन करती हूँ कि कभी अपने माँ बाबा,बड़े-बुजुर्गों और पूर्वजों के संदर्भ में कोई भी कठोर वाणी मत कहना आप!!कहना तो छोड़ दो आप मन में ऐसे विचारों को भी लाना मत!!वे जहाँ स्थूल हैं,वहीं मृत्योपरांत सूक्ष्म जीवी रूपों से भी हैं!!वे सबकुछ जानते हैं!!कम से कम आपको तो जानते ही हैं!!

आप चाहे कितने भी अच्छे तथा धार्मिक हों किन्तु यदि उन्होंने ये जान लिया कि आपके उनके प्रति कैसे मनोभाव हैं!!तो वे शायद जीवित रहते समाज की मर्यादाओं और आपकी निंदा न हो!!इसलिये घुट-घुट कर आपके दिये टुकड़ों को खाकर अपने आप को जीवित-मृतक तुल्य रख लें!!किन्तु मरने के बाद आप चाहे जितने धूम-धाम से उनकी अंत्येष्टि करो!वार्षिक श्राद्धादि करो!!गया पिण्डादि करो!!! वे उसपर थूकने भी आयेंगे!!

और इसी के साथ इस ऋचा की प्रबोधिनी पूर्ण करती हूँ!!सूक्त की ९ वीं ऋचा के साथ पुनः उपस्थित होती हूँ!..... #सुतपा!!

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