Thursday 20 December 2018

भक्ति सूत्र

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१

#ये_स्त्री-पुरुष_का_जो_चोला_है_ये_तो_एक_छलावा_है
मेरी प्यारी सखियों!!वैदिक साहित्य की मर्मस्पर्षी श्रँञ्खला के अन्तर गत मैं आज से आप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र की स्वलिखित बाल-प्रबोधिनी प्रस्तुत कर रही हूँ!!आप सबके ह्यदय में स्थित मेरे प्रियतमजी श्री कृष्ण जी के चरणों में इसका प्रथम सूत्र-पुष्प चढा रही हूं--

#अथातो_भक्ति_जिज्ञासा।।१।।
सखियों!!कभी कभी आपमें बहुत से पुरुष,साधू, सन्यासी,सोचते होंगे कि मै लगभग हमेशा  आप सबको---#सखी_क्यूं_सम्बोधित_करती_हूँ,!!
लेकिन वो तो मैं करूंगी ही, क्यों कि!!एक मेरे पिया!! जी ही अखिल ब्रम्हाण्ड में पुरुष हैं और बाकी हम सभी उनकी सखियाँ!!

ये हो सकता है कि मेरी भौतिकीय संरचना स्त्री की और आपकी पुरुष की है,किंतु ये स्त्री-पुरुष का जो चोला है,ये तो एक छलावा है!न जाने कितने जन्मों  में !!मैं!! आप!!स्त्री-पुरुष बदल बदल कर बने होंगे, अरी!!मैं तो यह भी नहीं जानती कि कितने जन्मों में मैं शूकरी,कुतिया,बंदर,कीट, पतंगा,बिच्छू ,विष्टा की कृमि,छिपकली,वृक्ष,तृण, कदम्ब,बिल्ली,नागिनऔर भी न जाने क्या-क्या बनी होउँगी,लेकिन उनके और उन जन्मों के संस्कार!!! मैं तो अपने लिये यही कहूंगी कि----

#कुतिया_से_हिरनी_बनी_हिरनी_से_बनी_गाय।
#गाय_से_ब्राम्हणी_बनी_पर_जाति_स्वभाव_न_जाय।
कल मेरे किसी निबंध पर मेरे एक मित्र ने प्रश्न भी किया था कि-क्या शुद्र!!! कभी  किन्हीं कर्मों से ब्राम्हण बन सकता है ?
तो हाँ!!मैं नहीं-भक्ति सूत्र यही कहता है कि ,हाँ!!वह बन सकता है। और यह धीरे धीरे आगे यह स्पष्ट होता भी जायेगा।

#अथातो_भक्ति_जिज्ञासा मानव जीवन का मुख्य उद्रेश्य ही यही है,प्यारी सखियों!!एक बात कहूं!! भक्ति" स्त्री वाचक है---यही तो ज्ञान,वैराग्य,जिज्ञासा, योग जैसे बालकों की जननी है-
#प्रभू_कृपा_तब_जानिये_जब_दें_मानव_अवतार।
#गुरू_कृपा_तब_जानिये_जब_मुक्त_करें_संसार।।
न जाने कितने जन्मो के सद्कर्मों के परिणाम स्वरूप मानव का जन्म मिला !!!और फिर इसमें भी!!!  #मा_नव=नयी नयी कोखों में ही जाने की तैयारी आखिर क्यों करती रहती हूँ मैं ?

#पुनरपि_जननं_पुनरपि_मरणं,
       #पुनरपि_जननी_जठरे_शयनं।
#इहू_संसारे_खलु_दुश्तारे,
        #कृपया_पारे_पाहि_मुरारे।।
तो प्रिय सखियों!! #आहार_निद्रा_भय_मैथुनश्च

निद्रा,भोजन,संभोग,भय!!ये सब तो हममें ही क्या !!पशुवों में भी है,यही तो  "दिब्य ऋषि नारद" जी कहते हैं कि अगर तुम अपने को #मानव मानते हो !!!तो !!तुम्हारे में भक्ति कैसे प्रकट हो  ?भक्ति है क्या ?
यह जिज्ञासा अवश्य होनी चाहिये,और इस जिज्ञासा के जागने की पहली शर्त है पुरुषत्व-स्त्रित्व के अभिमान को छोडकर--- आओ मेरी सभी सखियों तथा प्रिय सखा वृंद,मेरे साथ!! हम सब पहले  #नारी_न_अरी_बन_जायें_शत्रु_हीन_बन_जायें
यही इस सूत्र का भाव है... #आपकी_सखी_सुतपा!!
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

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