Friday 21 December 2018

भक्तिसूत्र~१२

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१२

#मेरे_जन्म_लेनेके_पूर्व_ही_जिन्होंनें_मेरी_माँ_के_स्तनों_को_अमृत_से_भर_दिया!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के बारहवें सुत्र पुष्प समर्पित करती हूँ--

#भवतु_निश्चयदाढर्चादूर्ध्वे ॥१२॥
परम प्रेम रूपा भक्ति कि प्राप्ति का दृढ निश्चय हो जाने के बाद भी शास्त्र रक्षा करनी चाहिये।
प्यारी सखियों,तथा प्रिय सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं,कि- "भवतु निश्चयादृढ"निश्चय का दृढ होना!!मेरी सबसे बडी समस्या यही है, मै  जब छोटी सी थी तो मेरे नानू जी मुझे अपनी बाँहों में लेकर प्यार से खूब उँचा उँचा उछालते थे!बहुत मजा आता था,मैं हवा में उडती हुयी खिलखिलाती रहती थी!!

किंचित मात्र भी भय नहीं लगता था।मैं अपने नाना जी के होते हुवे भला कभी गिर सकती हूँ ? यह"दृढ-विश्वास था मुझे अपने नाना जी पर। लेकिन जिन मेरे प्रियतमजी ने मेरे लिये सूर्य,चन्द्र, नक्षत्र, इतनी सुंदर धरती,शीतल- मंद हवायें,अमृत समान जल,नदियाँ,सुंदर सुगंधित पुष्प,पक्षियों का मधुर कलरव बनाया--
#जिनु_तन_दियो_ताहि_बिसुरायो_ऐसों_लौंण_हरामी
#मों_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी!!
अरे!! मेरे जन्म लेने के पूर्व ही जिन्होंनें मेरी माँ के स्तनों को अमृत से भर दिया!!इतना सब कुछ मेरे लिये करने वाले पर मुझ मति-मूढा,अज्ञानी,घनघोर स्वार्थिनी को भरोषा नहीं है ? उन पर ही विश्वास नहीं है ?अपने ह्रिदयनाथजू,अपने प्राणाधार पर ही मुझे विश्वास नहीं है ? #मो_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी

जितना इस बात को सोचती हूँ,उतनी ही नत मस्तक होती जाती हूँ!! अपने श्री नाथ जी के चरणों में।
और मुझे दिन प्रति दिन,छण प्रति छण अपने स्वामी जी पर पूरा भरोसा होता ही जा रहा है।और जैसे जैसे मेरा उन पर विश्वास दृढ होता जायेगा---
#अग्रे_कुरूणामथ_पाण्डवानां_दु:शासनेनाह्रतवस्त्रकेशा।
#कृष्णा_तदाक्रोशदनन्यनाथा_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।
#श्रीकृष्ण_विष्णो_मधुकैटभारे_भक्तानुकम्पिन्_भगवन् मुरारे ।
#त्रायस्व_मां_केशव_लोकनाथ_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।

जब  दुःशाषन से अपनी इज्जत बचाने को द्रौपदी तड़प-तड़प कर भी नहीं बच पा रही थी तब!! त्रिभुवनको पराजित करने में सक्षम अपने पाँच-पाँच पतियों,कर्ण,अश्वष्थामा धृतराष्ट्र,सञ्जय,कर्ण, द्रोणाचार्य,आचार्य भिष्म- पितामह जैसे धर्म-तत्व तथा शस्त्रवेत्ताओं के होते हुवे भी!! जब इतने धुरन्धर आचार्य महायोद्धाओं ने भी साक्षात् अधर्माऽवतार दूर्योधन तथा दुःशाषनादिके समक्ष अपने आपको किंकर्तव्यविमूढ सा पा लिया था #तब_द्रौपदीने_अपनी_साड़ी_छोणदी_अपने_दोनों #हाथ_उपर_उठा_दिये_चैतन्य_महाप्रभुजी_ने_अपने #दोनों_हाथ_खड़े_कर_दिये--

"अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।
मेरी जीत तुम्हारे हाथों में,मेरी हार तुम्हारे हाथों में।
और जब मैं ऐसा दृढनिश्चय कर चुकी हूँ तो दृढर्चादूर्ध्वे
फिर भी!शास्त्रों की रक्षा तो मैं करूँगी हीसखियों!मैं अपने दुःखों और सुखों की परवाह नहीं करती,लेकिन मैं  भोजन करती हूँ,पानी पीती हूँ,स्वाँस लेती हूँ,जमीन पर चलती हूँ,प्रकाश में देखती हूँ!! अगर यह सब करती हूँ!तो उनको धन्यवाद तो दूँगी ही।
मैं जन्म से तो कुछ भी नहीं जानती थी,गुरुजनों की कृपा से कुछ गीता-भागवत पढकर ही तो मेरे पिया जी!! को पहचानने लगी हूँ,तो भला उन गुरुजनों, शास्त्रों,संतो की-उनकी वाणी की,उनकी संस्कृति की रक्षा करना भला मैं कैसे त्याग सकती हूँ।

अपने प्रियजी की आज्ञा से बढकर तो कूछ होता नहीं!!और उन्होंने ही मुझे श्रीगीताजी•१६•२४•में आदेश दिया है कि मुझे क्या करना चाहिये और क्या नहीं!!इसकी व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं!!अतः मुझे उनके अनुसार चलना ही होगा-
#तस्माच्छास्त्रं_प्रमाणं_ते_कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
#ज्ञात्वा_शास्त्रविधानोक्तं_कर्म_कर्तुमिहार्हसि।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में !!

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