Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र८

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-८

#हियघुसि_ताकौ_रूप_बिलोकौ_छलकत_अँसुवनमेरे
#जीवनधन_मम_प्रानपियारो_सदा_बसतु_हियमेरे।।

प्यारी सखियों!!वैदिक साहित्य की ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के  अष्टम सूत्र- पुष्प को चढा रही हूं---

#निरोधस्तु_लोकवेदव्यापारन्यासः।।८।।
लौकिक कर्मों का त्याग निरोध है,कर्म का नहीं,कर्मों की आसक्ति का त्याग करें।
हेप्रिय!! मैं एक बात बताती हूँ--भोजन पकाने की तीन विधियाँ होती हैं-- होटल वाला जब पकाता है तो हर पल !!वो यही सोचता है कि-
#तुम खाओ_मैं_कमाउँ!
उसे आपके स्वास्थ्य,भूख से कोइ भी लेना देना नहीं है-उसे तो बस आपके पैसों से मतलब है।

दूसरा भोजन आपकी माँ,पत्नी,बहन या आपकी बेटी बनाती हैं,मैं अपने पती के लिये बनाती हूँ!!वहआपके स्वाद,रूचि,स्वास्थ्य,घर के बजट के अनुसार बनाती हैं!!वह आपके लिये,अपने लिये, सबके लिये बनाती हैं।

और तीसरा भोजन सिद्ध होता है-- आप जैसे किसी वैष्णव की रसोई में!! मेरे #ठाकुरजी के लिये,वह पकाते समय तो बस एक ही भावना आप रखती हैं कि मैं यह अपने "ठाकुरजी"के लिये पका रही हूँ!!
वह पूरी तन्म्न्यता से बनाती हैं,वह "प्रसाद" बनाती है,वह जब बना रही होती है!!तो प्रति पल आपके ह्यदय-पटल पर एक मात्र "ठाकुरजी" की ही स्मृति विद्यमान रहती है, इसी लिये तो उसे #प्रसाद_पल_साध_कहते_हैं।

आप देखें तो!!वह होटल वाला भी खाना पका रहा है,आपकी रसोई में भी खाना पक रहा है,,और!!यह एक वैष्णवी भी खाना ही पका रही है।लेकिन वह सब तो "खाना" है,और यह! प्रसाद!महा प्रसाद!!है।
सूत्र यही कहता है कि--

#मन्मना_भव_मद्भक्तो_मद्याजि_मां_नमस्कुरू।
#मामेवैश्यसि_सत्यं_ते_प्रतिजाने_प्रियोऽसिमे।।

आप चाह कर भी कर्मों का त्याग तो कर ही नहीं सकते,कर्म तो होते ही रहते हैं,अंतर बस इतना ही है कि ज्ञानी जन जागते हुवे कर्म करते हैं और मुझ जैसी अज्ञानी!!और सोती हुवी।

अतः मेरी प्यारी सखियों!!नारद जी का यही उद्रेश्य है कि आप कर्म तो करोगे ही!!तो कर्मों की आसक्ति को छोड दो,उनके प्रतिफल का त्याग कर दो,और फिर कर्मों को करो!!
जब गोपियाँ!!खाना पकाती हैं तो कृष्ण के लिये!
जैसे गोपियाँ श्रृंगार कृष्ण के लिये करती हैं!!
जैसे गोपियाँ माखन कृष्ण के लिये बिलोती हैं!!
जैसे गोपियाँ दही कृष्ण के लिये जमाती हैं!!
जैसे गोपियाँ गायन कृष्ण के लिये गाती हैं!!
जैसे गोपियाँ नृत्य कृष्ण के लिये करती हैं!!
गोपियाँ तो जो जो भी करती हैं कृष्ण के लिये करती हैं!!उनकी स्वयं के लिये कर्मों में कोइ भी आसक्ति नहीं है।

हे सखी!!मुझे रविन्द्र नाथ टैगोरजी की एक पंञ्क्ति हमेशा स्मरण रहती है-
Come to my heart and see.
Ais face in tears of my eyes.मैं पापिन भला उन्हें क्या पुकारूँगी!बुला तो मुझे वे रहे हैं!पर मैं  जाऊँ कैसे ?
कैसे उन चरणकमलों को जाकर पकड़ लूँ-
हिय घुसि ताकौ रूप बिलोकौ छलकत अँसुवन मेरे।
जीवन-धन मम प्रान पियारो सदा बसतु हिय मेरे।।

मैं एक बात आपसे कहूँ!यदि मैं आप वास्तवमें स्त्रीत्व से परिपूर्ण होंगी!!एक गोपिकाका अनुसरण करने का प्रयास करेंगी!!एक योग्य पत्नी होंगी!!तो लौकिक- पारलौकिक सभी कर्मोंका एक अद्भुत सा समर्पण हो जायेगा!!क्यों कि आपके चित्तको तो #चित्तचोर ने चुरा लिया!!

और वे चित्तचोर फिर आपके साँसारिक पती हों अथवा असाँसारिक मेरे प्रियतमजी--
#न_लाज_तीन_लोककी_न_वेदको_कह्यौ_करै।
#न_संक_भूत_प्रेतकी_न_देव_जच्छ_ते_डरै।।
#सुनै_न_कान_औरकी_द्रसै_न_और_इच्छना।
#कहै_न_बात_औरकी_सुभक्ति_प्रेम_लच्छना।।

तो हे सखी!!हम वेद शास्त्र पढकर क्या करेंगी!! हमें तो बस अपने आपको एक कोरी स्लेट बनाकर अपने प्रियजी को सौंप देना है--
#अब_उनका_मन_वे_मुझे_कैसे_पढते_हैं ?
हाँ प्रिय!! यही वेदातीत भक्ति है, भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में!! आपकी #सुतपा!!
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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