Friday 21 December 2018

भक्ति सूत्र १३

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१३

#यह_जो_वासना_है_यह_जो_स्त्री_पुरुषका_भेद_है_बहुत_गहरा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवा में देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के तेरहवें सुत्र पुष्प को समर्पित करती हूँ--

#अन्यथा_पातित्वशड़्कया।।१३।।
अन्यथा वासना और संस्कारों के कारण गिरने की आशंका रहती है।
प्यारी सखियों तथा सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं कि--"अन्यथा पातित्व शञ्कया"इसके पुर्व के सूत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि अगर दृढ निश्चय न हो तो पतन की संभावना रहती है!मै  आपको एक बात बताती हूँ कि ऐसी ही शंका होने पर पार्थ ने कहा भी था कि---

#चंचलं_हि_मन:_कृष्ण_प्रमाथि_बलवद्_दृढम्।
#तस्याहं_निग्रहं_मन्ये_वायोरिव_सुदुष्करम् ।।
क्योंकि हे कृष्ण ! यह मन बडा चंचल, प्रमथन स्वभाववाला, बडा दृढ और बलवान् है। इसलिये उसका वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यंत दुष्कर मानता हूँ।।
मेरे अनेकों अनेक जन्मों के कुत्सित संस्कार,घृणाति घृणित कर्म,मन की बहुत ही गहेराइयों तक बैठी वासना की घिनौनी जडें,और तिस पर भी ज्ञानी होने का अहंकार!!मैं एक बात कहूँ!!यह जो"वासना" है यह जो स्त्री-पुरुष का भेद है,बहुत गहरा है ,इस भेद ने महानतम ऋषि-मुनियों को भी नहीं छोडा।

और इसका कारण बताऊँ आपको!!मैंने यह महेसूस किया है कि आप जितना भी वासना से दूर भागोगे- वह आपको उतनी ही तेजी से जकड़ती जायेगी,--
शुकदेव जी को उनके पिता ने जनक विदेह के पास ज्ञान प्राप्ति हेतु भेजा,  तब जनक जी ने उन्हें अपने अंतःपुर में मे भेज दिया,वे जनक के शयनकक्ष में सो रहे थे रात्रि में जनक जी की पत्नी आकर उनके पास सो गयीं, बिचारे शुकदेव जी!! घबडा गये,वे जितना दूर घिसकने की कोशिष करते रानी उतना ही पास आती जातीं!!

अन्ततः शय्याका आखिरी शिरा आ गया! तब- अचानक शुकदेवजी को बोध हो गया,वे #हे_मेरी_माँ" कहकर महारानी से लिपट गये।मैं आपको कहूँगी तो आप मुझ पर हंसोगी!!क्यों कि मैं निःसन्तान हूँ,शायद मेरी बहुत सी सखियाँ इस बात को जानती भी होंगी, मेरे भौतिक पति मुझे अपनी "माँ" मानते हैं,और मैं उन्हें अपनी संतान मानती हूँ- #भोगेन_भुकताः_वयमेव_भुक्ताः"
हे प्रिय!!आज भी और इसी फेसबुक पर भी मेरे कई ऐसे पुरूष मित्र हैं!जो मुझे अपनी प्रेमिका,माँ,पत्नी, बहन,गुरू,शिष्या,कृष्ण और अपनी राधा मानते हैं!!और वो भी,भौतिकीय धरातल पर----

#कोई_एक_ही_मित्र_मुझे_इन_सभी_सम्बंधों_में_बाँधकर_रखते_हैं!!और मैं भी उन्मूक्त भाव से उन सभी को अपना,पिता,कृष्ण,संतान,शिष्य,पती इत्यादि - इत्यादि मानती हूँ!किंतु हमारा ये प्रेम शारीरिक, भौतिक, ही क्या सूक्ष्म-धरातलों को भी पार कर मानसिक चैतन्यता की दहेलीज पर दस्तक देता है! दूर्लभ और अलौकिक प्रेम है हमारा!!मैं आपको यह कहना चाहती हूँ कि कुछ भटके हुवे लोग "संभोग से समाधी"की बात तो कहते हैं किंतु उसकी आड़ में "स्वच्छन्दता" का आचरण करते हैं,,
कपोल कल्पित विधियों की कुलाचारके नाम पर आड लेकर!! "यौगिक_साहित्य"के नाम पर प्रचारित करने का घृणिततम कुत्सित अति भयावह जो प्रयास कर रहे हैं वह यह नहीं समझ पाते कि उनकी साजिश के कारण समाज की कितनी बौद्धिक क्षत्ति हो रही है।

प्यारी सखियों!भगवान दत्त्तात्रेयजी अवधूत गीता में कहते हैं कि--
#जानामि_नरकं_नारी_ध्रुवं_जानामि_बन्धनम्।
#यस्यां_जातो_रतस्तत्र_पुनस्तत्रैव_धावति।।
मैं  नारीको नरक रूप जानता हूँ,निश्चय ही वह बन्धन का कारण है यह भी जानता हूँ। मनुष्य जिससे उत्पन्न होता है  उसी में फिर रत होता है व बार-बार उसी ओर दौडता है। वासना के प्रवाह को मैं रोक नहीं सकती किंतु उसकी धारा को मोड़ जरूर सकती हूँ। बस एक बार अगर मैं किसी भी पुरुष के प्रति अपने लगाव को ,किसी भी स्त्री के प्रति अपने लगाव को सखी भाव में बदलने में,सफल हो गयी तो फिर तो!!#वासुदेवः_सर्वम्"

सखियों!!याद रखना,,जब वासना की आँधी चलती है तो पाराशर,विश्वामित्र,नारद जैसे "महा-वृक्ष"धराषायी हो जाते हैं,किंतु!!गोपियाँ,मीराबाई जैसी!!अपने को "दासी,सेविका,तृणमूल"समझने वाली कृष्ण दासियाँ भक्ति-मार्ग से नहीं भटकतीं। अप्सराओं ने तो अनेकों ऋषियों का तप भंग कर दिया,पर कोइ ऐसा गंधर्व आज तक नहीं जन्मा जो हम दासियों को अपने स्वामी से पृथक कर सके। इसीलिये मैं बार बार कहती हूँ कि इस झूठे पुरुषत्व के दंभ को छोड कर आओ मैं भी दासी हूँ अपने प्रियतम की!!आप की भी प्रिया हूँ!आप भी मेरे ह्रदयेश्वर हैं!! आप भी उनकी दासी बन जायें।

हाँ सखी यही अमृत-स्वरूपा भक्ति है, भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में......

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