Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र१०

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१०

#सूत्र_कहता_है_कि_रुको_तुम_अभी_भी_जहाँ_भी_जिस_हाल_में_हो_वहीं_पर_रुक_जाओ!!

हे प्रिय तथा प्यारी सखियों!!षट् सुत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के दसवें सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूँ----÷
#अन्याश्रयाणां_त्यागोऽनन्यता।।१०।।
अन्य आश्रयोंका।त्याग निरोध।है।

हे प्रिय!!संसार के जितने भी आश्रय हैं,वे सभी किसी न किसी अन्य आश्रय  को ढूँढ रहे हैं ,वे भी किसी अन्य के ही आश्रित हैं।यह जो-जो भी मैंने-आपने सांसारिक लोगों से आशायें बाँध रक्खी हैं न!!वे सब कभी न कभी टूट ही जाती हैं--

#कितने_ही_मुफलिस_हो_गये_कितने_तवंगर_हो_गये
#जब_खाक_में_मिल_गये_तो_दोनों_बराबर_हो_गये।
मैं एक बात आपको कहना जरूर चाहूँगी कि-
हमने आपने अपनी जिंदगी की कोरी किताब के हरेक पन्ने पर सांसारिक रिश्तों और आवश्यकताओं की पेन से सब कुछ लिख डाला है,और अभी भी रोज लिखते ही जा रही हूँ।

हे प्रिय!!सूत्र कहता है कि,रुको!तुम अभी भी,जहाँ भी,जिस हाल में हो वहीं पर रुक जाओ!!! और-
#सर्वधर्मान्परित्यज्य_मामेकं_शरणं_व्रज।
#अहं_त्वाम्_सर्वपापेभ्यो_मोक्षयिष्यामि_मा_शुचः।।

ये मैंने जो जो भी धारणाऐं बना रक्खी हैं,रिश्ते जोड़ रखे हैं,धन,शक्ति,सत्ता,शिच्छा,मान्यता,जातियता,के लबादों को ओढ रक्खा है!!यही तो मेरी सबसे बड़ी शत्रू है।और जब तक मैं इनका आश्रय नहीं छोड़ती तब तक मेरे भीतर भक्ति का अवतरण हो ही नहीं सकता-
#कहा_भयो_है_भगवा_पहेरण्या_घर_तजि_भये_संन्यासी।
#जोगी_भये_जुगति_नहीं_जाणी_उलटि_जनम_फिर_आसी।।

घर छोड कर सन्यासी बन गये-बडे बडे मठ मन्दिरों के महंत बन गये,कोई साध्वी,कथा-वाचिका बन बैठीं! मैं पूछती हूँ कि छोड़ा क्या ?
जब तक सन्यास का भी त्याग नहीं होता!तबतक सब व्यर्थ का आडम्बर ही है।
प्यारे सखा वृँद!!छोडना कुछ नहीं है,जंगल में नहीं जाना है,काम्य कर्मों को तो छोडा ही नहीं जा सकता बस उनकी आसक्ति,कर्ता-भाव,उनमें अनुरक्ति!!को छोडना है। गोपियों ने तो बस एक ही बात कही थी--

#न_तातो_न_माता_न_बन्धुर्न_दाता,
      #न_पुत्रो_न_पुत्री_न_भृत्यो_न_भर्ता।
#न_जाया_न_विद्या_न_वृत्तिर्ममैव,
      #गतिस्त्वं_गतिस्त्वं_त्वमेकाः_कृष्णम्।।

मैं तो अपने पियाजी!! से बस इतना ही कहती हूँ कि मैं तो पापिनी!!न जाने कब भटक जाउँगी!!पर हे मेरे नाथ!!आप बार-बार मुझ भटकी हुई प्रेतात्मा को अपनी मनोहाराणी छवि का स्मरण कराते रहना!!
महाभारत के युद्ध के बाद जब मेरे प्रियतम द्वारका लौट रहे थे तो सब उनको छोडने आये थे !!मेरे ह्यदयेश!!ने सबको समझा-बुझा कर लौटा दिया,पर द्रौपदी नहीं लौटीं, कान्हा जी बोले ,बहन!!बोल क्या चाहिये तुझे ?

तो द्रौपदी बोलीं कि--
मुझे आप खूब दुःख मिले ऐसा वरदान दो।
#आजतक_जैसा_वरदान_द्रौपदी_ने_माँगा_वैसा_अलौकिक_वरदान_किसी_ने_नहीं_माँगा।

हे प्रिय !!मैं भी अपने प्रियतमजी से यही हमेशा माँगती हूँ-कि आप मुझे बस "दुःख ही दुःख" देना,,
क्यों कि यह दुःख ही तो है जो आपकी हमेशा!! निरन्तर!!चरणों में !!प्रीत लगाये रखता है!!हे प्रिय--
#अगिनि_आँच_सहना_सुगम_सुगम_खडग_की_धार।#नेह_निभावन_एकरस_महा_कठिन_ब्योहार।।

मैं आपसे क्या कह सकती हूँ!!आप तो सभी विद्वान हैं ही!!कभी-कभी जब विपत्तियाँ मुझपर आती हैं!मेरे पती,भाई कोई बीमार हो गये,कोई छोटी-बड़ी क्षत्ति हो गयी,मेरी सन्तान बीमार हो गयी!!बस भगवानजी को कोसने मैं बैठ गयी!! हेप्रिय!!वो तो मेरे पियाजी हैं वो सुख,दुःख, रूखा-व्यवहार,मेरी उपेक्षा चाहे जो भी वे करें ,असीम यातनायें मुझे दें!!ये उनकी ईच्छा है!!

मैं कोशिश करूँगी कि मैं उफ्फ् भी न करूँ! उनके एक मात्र आश्रय को छोड़कर अब कहाँ जाऊँगी ?

#जाऊँ_कहाँ_तजि_चरन_तिहारे!
#जो_तुम_तोड़ो_पिया_मैं_नांही_तोड़ूँ_तोरी_प्रीत_तोड़ी#कान्हा_कोने_संग_जोणूँ  ?
हाँ प्रिय!! यही अनन्य आश्रय-स्वरूपा है भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में !! आपकी #सुतपा!!
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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