Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र~५

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-५

#जब_विषय_भोगकी_इच्छा_ही_शेष_नहीं_रही_तो_फिर_विचार_कैसा ?

प्रिय सखियों!!मैं पुनः अब आप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र का पंचम सूत्र प्रस्तुत कर रही हूं।आप सबके ह्यदय में स्थित मेरे प्रियतम श्री कृष्ण जी के चरणों में इसके सूत्र-पुष्प को चढा रही हूं--

#यत्प्राप्य_न_किंचिद्वाञ्छति_न_शोचति_न_द्वेष्टि_न रमते_नो_त्साही_भवति।।५।।

हे प्रिय!!दिव्य ऋषि नारद जी कहते हैं कि!! भक्ति जब ह्यदय में प्रविष्ट हो जाती है तो अन्य किसी भी वस्तु की आकाञ्छा ही बिल्कुल समाप्त हो जाती है।
मैं एक बात बताती हूँ,आप अपने कमरे में एक गिलास पानी जमीन पर गिरा दो ,आप देखोगे कि वह जिधर ढाल होगी उधर की ओर अपने आप बहता चला जायेगा,जल का स्वभाव ही है ढलान की तरफ बढना,इसके लिये उसे किसी के साथ की आवश्यकता है ही नहीं।

मैं यही कहना चाहती हूँ कि,हम सभी आनंद घन महासागर के अंश हैं!!आप आनंद स्वरूप हैं, और भक्ति- आनंद की असीम लहेर हैं!!बस एक बार! आपको !!जैसे ही इस अमरत्व  अहो भाव की अनुभूति हुयी इसके बाद तो बस!! सब ईच्छायें न जानें कहाँ खो जायेंगी,कोइ इच्छा बचेगी ही नहीं,!!
मैं तो जब भी अपने कान्हा जी को देखती हूँ!!तो बस !! एकटक देखती ही रह जाती हूं ,किसी वस्तु की इच्छा ही शेष नहीं रहती,।मन में!! निर्विचार!! क्यूं,,----

विषयों का ध्यान करने से उन्हें प्राप्त करने का विचार आता है,जब विषय भोग की इच्छा ही शेष नहीं रही तो फिर विचार कैसा!! "#न_शोचति" गीता जी में कहते हैं कि--
#सड़्गात_संजायते_कामः_कामात्_क्रोधाभिजायते

हम किसी पर क्रोध क्यूँ करते हैं ,हमें किसी से ईर्ष्या  क्यों होती है!!द्वेश,जलन क्यों होती है- यह तभी तो होगी जब उसके पास कोइ ऐसी चीज हो!!जो मेरे पास न हो।जब मैं अखिल ब्रम्हाण्डाधिपति की हो गयी!! तो अब तो सब कुछ मेरा ही है न!!

#न_रमते_नोत्साहीभवति"
हे प्रिय!!लो,आज आपको एक कहानी सुनाती हूँ!! सिकंदर विश्व विजय के लिये जा रहा था ,निकलने के पहले वह वहाँ के प्रसिद्ध संत #अरस्तू" का आशिर्वाद लेने गया,,तब अरस्तू!!एक पेड के नीचे लेटे हुवे थे,उन्होंने पूछा कहाँ जा रहा है ?

सिकन्दर ने कहा--दुनिया को जीतने जा रहा हूँ,,रोम,इटली,अफ्रिका,रूस,पुर्तगाल,भारत,समेत पूरी दुनिया को जीत कर उस पर राज करूंगा!!
अरस्तू बोले कि उसके बाद!!! -क्या करेगा ?
सिकंदर बोला कि फिर !!फिर!!! क्या करूंगा ?
बस आराम करूंगा !!और क्या!!
अरस्तू हंस कर बोले कि इतना सब कुछ करने के बाद तू जो करेगा- मै वही आराम अभी से कर रहा हूँ।

जब भक्ति भीतर!! बहूत भीतर!!उतर जाती है तो बस !!अरस्तू की तरह न किसी अन्य काम में आप रमते हो!!न ही किसी कार्य को करने का उत्साह ही शेष रहता है।तब तो आप जो भी करते हो।वह मेरे प्रियतम के लिये करते हो #स्वान्तः_सुखाय" करते हो!! "#सर्वजन_हिताय" करते हो!!!!हाँ प्रिय  यही प्रेम-स्वरूप है भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में!!
आपकी #सुतपा.....
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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