Friday 21 December 2018

भक्तिसूत्र~११

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-११

#हमारे_शास्त्रोंनें_तो_मृत_शरीरके_अन्तिम_संस्कारको_भी_नर_मेघ_यज्ञ_कहा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सुत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के ग्यारहवें सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूँ---

#लोकवेदेषु_तदनुकूलाचरणं_तद्विरोधिषूदासीनता।११
लौकिकऔर वैदिक कर्मों में उसके(त्याग के) अनुकूल कर्म करना ही उसके (त्याग के)विरोधी कर्म करना है।
प्यारी सखियों,तथा सखा वृँद!!मैंआपको एक रहस्य की बात बताती हूँ,!! #जो_आप_जैसे_ज्ञानी_होते_है, #वे_मानते_नहीं_सम्मान_करते_है!! मानने और सम्मान करने में विलक्षण अंतर है। प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने सोचा था कि दो-चार वर्षों में एक बार पूरे विश्व के साधू संत एक जगह एकत्रित होकर एक साथ ज्ञान-योग-भक्ति-काम पर चर्चा कर सकें--कीसी ऐसे वार्षिकोत्सव  का आयोजन किया जाये!!

और उन्होंने इस उत्सव का नाम दिया "#महा_कुँभ"
तो आप देखो आज भी यह परम्परा अबाध गति से चल रही है,और इन स्थानों पर जाकर हम आप एक साथ अनेक महापुरुषों की ज्ञान चर्चा का आनंद उठाते हैं।बाकी यह तो सभी जानते ही हैं कि असली #अमृत तो यह ज्ञान-भक्ति रूपी कुंभ ही है।
राम ने अश्वमेघयज्ञ किया,जनक ने सैकणों यज्ञ किये, कृष्ण,याज्ञवल्क्य,अत्रि,उद्दालक,वशिष्ट,विश्वामित्र, आरुणी,जमदग्नि आदि हजारों हजार ऋषि-मुनियों ने यज्ञादि वेद विहित कर्म किये,किन्तु उनके वे कर्म किसी लौकिक या पारिलौकिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु नहीं होते थे।

वे यह कार्य वैदिक मर्यादा की रक्षा के लिये करते थे, ताकि ऐसे सार्वजनिक अनुष्ठानों में आकर संत- महापुरुष अपनी ज्ञान चर्चा के द्वारा--
#महाजनाः_गताः_ते_पन्था" साधारण जन समुदाय का पारलौकिक मार्ग दर्शन कर सकें।मेरी सखियों!! हमारे शास्त्रों ने तो "स्त्री-पुरुष के सहवास"को भी पुत्रेष्टि यज्ञ कहा है!! हमारे शास्ज्ञों में तो मृत शरीर के अन्तिम संस्कार को भी #नर_मेघ_यज्ञ" कहा है। वैवाहिक संस्था की स्थापना काम-वासना पर नियन्त्रण के लिये है,अतः ज्ञानी पुरुष,सच्चा भक्त,एक योगी!!सभी अच्छे लौकिक कर्मों को  बिना किसी भी परिणाम की इच्छा से करता ही है।

और भी!! एक खतरनाक बात कह देती हूँ कि,अगर उसे किसी कारण वश बाध्य किया गया अनैतिक कार्य के लिये तो फिर जन्म लेते हैं---
#हीरण्याक्ष_हीरण्यकश्यप_रावण"हे प्रिय सखा वृँद!!
किंतु सूत्र में स्पष्ट कहते हैं कि- #जाके_प्रिय_न_राम_वैदेही।
#तजिये_ताहि_कोटि_वैरी_सम_यद्यपि_परम_सनेही।।
जितने भी शास्त्रिय कर्म हैं,नित्य-नैमित्तिक-काम्य
तथा निषिद्ध ये भी भक्ति-मार्ग में महत्वहीन हो जाते हैं!! आप कल्पना तो करो!!अर्ध-रात्रिमें मेरे प्रियजी के आमन्त्रणको पाते ही वे #गोपियाँ_अपने_पती #संतान_भाई_माँ_बाबा_कुल_लोक_लज्जाको_तिलाँजली_देकर_उनके_श्रीचरणों_मे_दौड़_पड़ीं!!

मैं एक असामाजिक बात कहूँगी!!जिन्हें उनके नाम की क्षुधा लग गयी!! तब तो पुत्र अपने पिता की आज्ञा, कन्या अपने कुलके संस्कार,माँ अपनी संतान के प्रति कर्तब्य,पत्नीयाँ अपने कंत,और शिष्य अपनी गुरु-आज्ञाका भी उल्लँघन कर जाते हैं-
#तज्यो_पिता_प्रहेलाद_विभीषण_बंधु_भरत_महतारी
#गुरु_बलि_तज्यो_कंत_बृज_वनिता_भये_मुद_मँगलकारी।।
हे सखी!! गोपियोंके प्रेम में राग का अभाव नहीं है!! बल्कि पराकाष्ठा है उनमें राग की!ऐसा अद्वितीय राग! जो कि सभी सम्बंधों-स्थानों से सिमटकर-- #भोग_और_मोक्षके_दुर्लभतम्_प्रलोभनों_से_ऊपर_उठकर_श्रीकृष्णार्पित_हो_गया!!

तभी तो मेरे पियाजी!!कहते हैं कि,हे अर्जुन!गोपियाँ अपने शरीरकी रक्षा मेरी सेवाके लिये करती हैं! गोपियों के अतिरिक्त मेरे निगूढ प्रेमका पात्र त्रिभुवन में नहीं है--
#निजाड़्गमपि_या_गोप्यो_ममेति_समुपासते।
#ताभ्यः_परं_न_मे_पार्थ_निगूढ_प्रेम_भाजनम्।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में!!आपकी #सुतपा
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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