Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र~९

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-९

#प्रभू_आग तो_यहाँ_मेरे_ह्यदय_में_कृष्ण_नाम_की_ लगी_है।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं मेरे प्रियतम श्री कृष्ण जी के चरणों में इसके नौवें सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूँ----

#तस्मिन्ननन्यता_तद्विरोधिषूदासीनता_च।।९।।
उस त्याग में भगवान के प्रति अनन्यता और उसके विरोधी विषयों में उदासीनता को निरोध कहते हैं।

हे प्रिय!!भगवान के प्रति अनन्यता क्या है इसे भी समझने की आवश्यकता है,किसी भी अन्य के प्रति आसक्ति एवं आश्रय की भावना जब तक रहेगी तब तक मैं ऐसा भली-भाँति अनुभव कर चुकी हूँ कि मुझमें अपने प्रियतम जी के प्रति पूर्ण शरणागति का भाव उत्पन्न हो ही नहीं सकता।

कहते हैं कि,"जनक-विदेह"के राज्य में कथा हो रही थी,वे रोज जाते!कथा सुननें,कभी कभी दो-चार मिनट का विलंब होने पर "व्यास जी"कथा प्रारंभ ही नहीं करते!!इसके कारण जब कोइ कहता कि आप कथा प्रारंभ करो तो व्यास जी कहते कि अभी कथा को सुनने वाला नहीं आया है!यह सुन कर कुछ लोग बहुत दुःखी हो जाते थे।

एक दिन कथा चल रही थी, अचानक कुछ सिपाहियों ने आकर चिल्लाकर कहा कि नगर में,राज्य-महल में आग !!भीषण आग लग गयी है!!!सब लोग भाग पडे!!पर "जनक" शांत!!भाव से कथा सुन रहे हैं, "व्यास जी" ने पूछा कि, "राजन" ?

नगर में,महल में आग लगी है,भीषण आग!!आप नहीं गये!!जनक ने बस!!इतना ही कहा कि- #प्रभू_आग_तो_यहाँ_मेरे_ह्यदय_में_कृष्ण_नाम_की_लगी_है।

हे प्रिय!!!इसे कहते हैं-भगवान के प्रति अनन्यता"
#मुख_में_हो_राम_नाम_राम_सेवा_हाथ_में।
#तूँ_अकेला_नांहीं_प्यारे_राम_तेरे_साथ_में।।
#धन्यवाद_निर्विवाद_राम_राम_कहिये,।
#जाही_विधि_राखैं_राम_ताही_विधि_रहिये।।

शारीरिक स्थिति,धन,वैभव,सम्बंध,वस्तु,काल,संयोग, वियोग!!इन सभी के प्रति आसक्ति का!मोह का!क्षोभ का!! अंत हो जाये,उनके प्रति उदासीनता हो जाये यही "निरोध" है।

हे प्रिय!! "षुदासीनता च" जो उदास रहते हैं!! सांसारिक पदार्थ,भोग,सम्बंध,धन, वैभव,पद,प्रतिष्ठा जिन्हें काँटोंकी सेज लगती है!!इन्हें मिलते ही जो दुःखी हो जाते हैं--
#सुखके_माथे_सिल_पड़ै_जो_नाम_ह्यदयसे_जाय।
#बलिहारी_वा_दुःखकी_जो_पल_पल_नाम_रटाय।।

मैं अपनी बाल्याऽवस्थाकी कुछ स्मृतियों को कभी भुला नहीं पाती!!जो भी कारण रहा हो!पर मेरी शैशवाऽवस्था अपनी पूज्य नानीजी के समीप व्यतीत हुयी थी! मैं अपने मामा लोगोंको अपना भाई समझती थी!!अधिकार समझती थी उस घरमें अपना!!

किंतु मेरे साथ जो भेद-भाव होता था! बिना किसी अपराधके पिट जाती थी!कभी नये कपड़े नहीं मिलते जब खानेको बैठती सबके साथ तो मेरी नानी या मामीजी जब सबको थालीमें!! दालमें २~२ चम्मच घी देतीं!!और मुझे मात्र एक बूँद!! कभी घरमें मिष्ठान्न बनते!तो मुझे बस चखने को ही मिल पाते!!

मैं किसी कुतिया की तरह सबको खाते देखती रहती!! मैं चोरी करती,चोरीसे उन मिठाईयों को छुपाकर खाने लगी!!वे लोग जब अपनी थाली #मोरी पर रख देते तो मैं उन झूठी,कचड़े की थालियों में स्वादिष्ट पदार्थों को ढूँढती!! #घी मुझे बहूत ही  प्रिय था!! चोरीसे घी खाने लगी!!उफ्फ!! इतनी पापिनी मैं बनती जा रही थी!!

और इसका आनंदघन परिणाम भी मिला मुझे!! अंततः किसी अनाथ की तरह मुझे मेरे नानाजी ने #करुणाकी_साक्षात्_मूर्ती_आनंदमयी_माँ_के_आश्रम_में_भेंट_कर_दिया!! खुल गये मेरे भाग्योंके कपाट!!
उस ममता के प्राड़्गढ में!!आध्यात्मिक जगत् ने मेरे अंतःमन-अंतःश्चेतनाको झकझोर कर रख दिया!!

जैसी ममता मयी माँ मुझे मिलीं!!जो अनेकानेक दिव्यतम् महात्मा जनों ने मुझे प्यार और संस्कार दिये की पूर्ण हो गयी मैं! कृत-कृत्य हो गयी मैं!!संसारके प्रति अंततः उदासीन सी हो गयी मैं "धन्योऽस्मिः"!!

हाँ प्रिय!! यही अमृत-स्वरूप है भक्ति का!शेष अगले अंक !! आपकी #सुतपा!!
---------
अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

1 comment:

  1. बलिहारी वा दुःख की जो पल पल नाम रटाए।
    श्रीचरणों में नमन माँ।

    ReplyDelete