Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र~७

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-७

#आप_जिससे_प्रेम_करते_हो_उसको_अपनी_प्यारी_से_प्यारी_वस्तु_देनेंमें_कभी_जराभी_नहीं_सोचते!

मेरे प्रिय तथा प्यारी सखियों!!वैदिक साहित्य की ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के  सातवें सूत्र- पुष्प को चढा रही हूं--------

#सा_न_कामयमाना_निरोधरूपत्वात्" ।।७।।
परम प्रेम रूपा भक्ति कामना रूपी नही है,क्यों कि वह निरोध स्वरूपिणी है।

हे प्रिय!!नारद जी आगे कहते हैं कि, एक बार आपका चित्त सांसिरिक विषयों से हट जायेगा तो फिर वह कामनाओं को नहीं करेगा ऐसा मात्र भक्ति मार्ग पर चलने वालों के लिये ही संभव है।क्यों कि भक्ति समर्पण करती है!!कुछ भी उसका प्रत्यूपकार नहीं चाहती।

वासना और प्रेम में यही अंतर होता है,,जहाँ वासना अपने सुख की पूर्ति-मात्र करना जानती हैं!इसे अन्य के सुख से कोइ भी लेना-देना नहीं है!!और वहीं-
आप जिससे प्रेम करते हो, उसको अपनी प्यारी से प्यारी वस्तु देनें में कभी जरा भी नहीं सोचते।और फिर परम प्रेम!!मैं एक बात बताती हूँ आपको!!

आप ने एक माँ को देखा होगा!!कहीं भी,कभी भी जब उसके छोटे से बच्चे को भूख लगती है न!!तो वह कहीं भी हो सब लाज-शर्म को छोडकर अपने बालक को तुरंत स्तन-पान कराने लगती है।उसकी दृष्टि में--
"न।कामयमाना" #अपने_शिशुकी_क्षुधा_पूर्ति_से_बडी_कोई_भी_वस्तु_पूरी_सृष्टीमें_हो_ही_नहीं_सकती।

#सबै_रसायन_हम_पिया_प्रेम_समान_न_कोय।
#रंचन_तन_में_संचरै_सब_तन_कंचन_होय।।

संसार के जितने भी रिश्ते हैं वे शुद्ध ब्यापार पर टिके हुवे हैं-और! यह आज ही ऐसा हो रहा है ऐसा! बिल्कुल भी मत समझना!!दुनिया पहले भी वैसी ही थी -जैसी कि आज है!!मैं आपको बस एक बात इस सन्दर्भ में कह सकती हूं कि-----

आप!!मेरे निबंध को पढो या ना पढो,,यह तो आपके वश की बात है!इसमें मैं तो कुछ भी नहीं कर सकती,, लेकिन!!मैं अपने प्रियतम के लिये लिखूं, इसी बहाने ही सही-उनके विषय में सोचती रहूं!!यह तो मेरे वश की बात है न!क्या-आप इससे मुझे रोक सकते हो ?

"न मैं आपको जबरदस्ती पढने को कह सकती हूं-न आप मुझे लिखने से रोक सकते हो"!!बस इस सूत्र को ऐसे ही समझना होगा।मैं !!तो सृष्टि के कण कण में ब्याप्तअपने प्रियतम जी के लिये!!खाती हूँ,पिती हूँ,सोती हूँ,जागती हूँ,सोचती हूँ,पढती हूँ,लिखती हूँ।
मैं जो-जो भी कर्म करती हूँ!!बस !!!उनके लिये करती हूँ तो फिर!!

इसमें ,मेरी अपनी कोइ भी कामना तो है ही नहीं!!
मेरी कामना---तो श्री कृष्णा!!!के सुख,उनकी प्रशन्नता, उनके पावन नाम का प्रचार,,उनकी राह देखती सखियों को उनके प्रियतम से मिलाने की है!!क्यों कि --

#सखि_हौं_स्याम_रंग_रंगी।
#देखि_बिकाइ_गइ_वह_मूरति_सूरति_माँहि_पगी।।
#संग_हुतो_अपनो_सपनो_सो_सोइ_रही_रस_खोई।
#जागेहु_आगे_दृष्टि_परै_सखि_नेकु_न_न्यारो_होई।।

प्रिय सखा वृँद!नारदजी कहते हैं कि #निरोधरूपत्वात् भक्ति में निरोधनाम्कता है! #विरोधका_नितांत_अभाव #सर्वस्व_समर्पण!जो आप जैसे भक्त होते हैं!!वो किसीका विरोध करनेकी स्वप्नमें भी कल्पना नहीं करते!!वस्तुतः उनकी दृष्टिमें-

#चतुरार्यसत्यानि_दुःख_समुदय_निरोध_मार्गाश्चेति।।
सुख-दुःख, दुःख समुदाय (दुःखों का कारण) सभी का निरोध हो चुका!!

भक्तोंकी दृष्टिमें #राम_कृष्ण_बुद्ध_महावीर_शैब्य #शाक्त_वैदिक_अवैदिक_आस्तिक_नास्तिक जैसी कोई बात ही नहीं रहती!! आप उनका विरोध करेंगे या समर्थन इससे उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ता!! वस्तुतः जब भक्त और भगवानके मध्य अवरोध ही न हो!तो वो सदैव अविरल भावसे उनमें ही रत रहते हैं!! वे निर्विरोध हो जाते हैं!!

हाँ प्रिय!!यही अमृत-स्वरूपा भक्ति है, भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में!! आपकी #सुतपा!!
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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