Wednesday 7 November 2018

गोवर्धन पूजा

#गोवर्धन_पूजन पर विशेष प्रस्तुति-- प्रथम अंक

#इन_खेतों_पर_विषैले_रसायनों_तथा_कार्बन_की_गहेरी_तह_बैठ_जाती_है!!

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!जहाँ तक मेरी अपनी सोच जाती है तो मैं यह समझती हूँ कि आज के इस पर्व को भारतीय अर्वाचीन संस्कृति में #विश्व_पर्यावरण_दिवस
के रूप में मेरे प्रियतम जी ने मान्यता दी थी!!तथा अनेकानेक देव पूजन प्रथा की अपेक्षा नैसर्गिक प्रकृति, पर्वतों,वनस्पतियों, पशु,पक्षियों,नदियों के संरक्षण करने का सद्-उपदेश भी हमें दिया था!!

मैं एक बात कहूँगी कि हमारे भागवतादि सच्छास्त्रों में निहित मंत्रों के शब्दार्थ, भावार्थ तथा तत्वार्थ को समझने की आवस्यकता पर हमारे विद्वत्-समाज को बल देना चाहिये!! योगेश्वर कृष्ण की लीलाओं की रसमाधुरी ,उनका ज्ञानकाण्डात्मक अर्थों, उनका यौगिकीकरण के साथ-साथ उनकी प्रत्येक युग में जीवंत वैज्ञानिकीय विधाओं के रूप में भी मैं उन्हे देखने का आपका आह्वान करती हूँ !!

हे प्रिय!!हमारे वैदिकीय ऋषि चैतन्य सत्ता के साथ-साथ नैसर्गिक पदार्थों में व्याप्त प्रकृति के भी उपासक थे!!
किन्तु कालान्तर में,प्रत्येक युगों में, हमारी मानवोचित लोभी प्रवृतियाँ हमें नाना सिद्धियों के लोभ जाल में बाँध कर वास्तविक जीवन पद्धति के आधारभूत सिध्दांतों से भटका देती है!!

और ऐसा ही कुछ द्वापर में भी था,लोगों ने इन्द्रादि देवताओं की प्रशन्नता हेतु कर्मकाण्डों को ही प्रधानता दे रखी थी!!मैं कर्मकाण्ड की विरोधी बिलकुल भी नहीं हूँ किन्तु उपासना काण्ड का समर्थन मैं ज्ञानकाण्ड की कसौटियों पर कसकर करने की पक्षधर अवस्य ही हूँ!!

जैसा कि आज हम अपनी उच्छृंखल प्रवृत्तियों के वशीभूत हुवे नदियों की धाराओं को मोड़ने,उनके तटबंधों का विनाश करने,उनका उत्खनन करने और विकाश के नाम पर बिज़ली संयंत्रों के लिये बाँधों का निर्माण कर रहे हैं!! उन्हे विनाश कर देने की सभी सीमाओं को पार कर उनमें कचरा बहा रहे हैं!!

बढती आबादी के कारण वनों की अंधाधुंध कटाई, वनवासी लोगों को आधुनिकता के नाम पर नर्कों में ढकेलना, भारत के पूर्वोत्तर प्रान्त,उत्तराखंड,पश्चिम बंगाल आदि अनेक प्रान्त जो कभी वन प्रधान हुवा करते थे वो आज अपनी नैसर्गिक सुँदरतम को खोते जा रहे हैं,मेरे यहाँ कछार के विश्व प्रसिद्ध चाय बागान जो हजारों हजार एकड़ में फैले थे वे आज घुसपैठियों के कारण सिकुड़ चुके हैं!!

पर्वतों को तो जाने नष्ट कर देने की एक अघोषित नीति पर हम चल रहे हैं!! उन्हें काटकर हम नगरों को कंक्रीट के ढेर पर जो बसाते जा रहे हैं,गगनचुम्बी पर्वतीय शिखरों का स्थान अब कंक्रीट की इमारतों ने ले लिया है!!

झरने,तालाब,कूप आदि अपनी प्रासंगिकता तथा उपयोगिता को खो चुके हैं, जहर के जैसे धूँवे उगलती फैक्ट्रियों की चिमनियों और उनसे फेंके और जमीन में गाड़े जाने वाले रेडियोऐक्टिव कचरे के कारण वो बिलकुल प्रदूषित हो चुके हैं!!

कृषि क्षेत्र की भूमि का सिमटता जाना और कृषकों की उपेक्षा,उनके श्रम की उपेक्षा के कारण उनका कृषि से हो रहा पलायन!!मैंचुनार,उरई,कानपुर,रायपुर,कड़ी, कलोल, झारखण्ड,सूरत ही क्या देश के अधिकांश राज्यों में एक विशेषता देखी हूँ की महानगरों अथवा उपनगरों ने अपना #इंडस्ट्रियल_एरिया शहरो से थोड़ा दूर और गाँवों के समीप बना रखे है!!

हे प्रिय!! मैं इसमें उद्योग, ग्राम्य_विकाश,कृषि ,नगरीय विकास मंत्रालय के साथ-साथ न्यायपालिका को भी बराबर की दोषी मानती हूँ!! और उसका भी कारण है इन क्षेत्रों में बनी विशाल-विशाल फैक्ट्रियों के द्वारा फैलाये प्रदूषण से आसपास के दस बीस गाँव और फिर दूसरा नगर की सीमा प्रारम्भ!! और फिर उसका भी एइक इंडस्ट्रियल एरिया!!

और इन गाँवों का भूमि जल रेडियो ऐक्टिव होकर जहरीला हो जाता है!!इनके पेड़-पौधों और इन खेतों पर विषैले रसायनों तथा कार्बन की गहेरी तह बैठ जाती है!!उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है और उसपर से रासायनिक खादों और विषैले कीटनाशकों की आवस्यकता!!

हे प्रिय!! हम अपने कृषक भाइयों पर,सब्जी विक्रेताओंऔर दूध देने वालों पर तो जहर बेचने का आरोप बड़ी सरलता से मढ़ देते हैं!!हो सकता है कि इसमें १०%वे दोषी हों भी!!किन्तु क्या करें वे ?

उनके ९०% आय के संसाधनों और उन संसाधनों की शुचिता और समृद्धि को तो ये फैक्ट्रियों के महा दानव निगल गये!!देश के किसान अब खेतों पे पसीना बहा कर देखते हैं कि वे सार तत्त्व हीन,पोषण विहीन विषाक्त तथा घास-भूँसे जैसे अन्नों के उत्पादक बन कर अपने ही देश के नागरिकों के मध्य घृणा के पात्र बनते जा रहे हैं!!
इस श्रृंखला का शेष भाग अगले अंक में प्रस्तुत करती हूँ
..... #आपकी_सुतपा!!!
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