Thursday 20 December 2018

भक्तिसूत्र-६

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-६

#जीवन_में_जो_भी_आपको_स्त्री_मिली_वो_स्वप्न_सुँदरी_से_बेकार_है!!

हे प्रिय तथा मेरी प्यारी सखियों!! देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के अगले सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूं।आप सबके ह्यदय में स्थित मेरे प्रियतम श्री कृष्ण जी के चरणों में इसके प्रथम अध्याय की पहली आह्लिक का छठवाँ सूत्र-पुष्प चढा रही हूं--

#यज्ज्ञात्वा_मत्त_भवति_स्तब्धो_भवति_आत्मारामो_भवति।।६।।

प्यारी रस स्वरूपिणी सखियों!!देवर्षि नारद जी आगे कहते हैं कि- "यज्ज्ञात्वा मत्त भवति।तेन ज्ञानफलं भक्ति फलं प्राप्ते योगाभ्यासफलं तथाश्च" अर्थात  जिन्होंने प्रियजी को पा लिया उन्होंने ज्ञान का फल  योग का फल भी पा लिया!!उनकी सभी इन्द्रियाँ स्वक्ष और तृप्त हो गयीं!!

हे प्रिय!!जो आपकी तरह तृप्त हो गये और परिणामतः जिनकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं-स्वस्थ हो गयीं!!इसे भी मैं आपसे समझने की कोशिश करती हूँ-- #स्वच्छेन्द्रिय_अर्थात_इंद्रियों_से _दुश्मनी ?

इनको तोड़ना,प्रताणित करना, इंद्रियों को सताना, मिटाने की मिथ्या कोशिश करना! किसी भी भांति इंद्रियों से मुक्त होने का स्वप्न देखना!! भक्ति-सूत्र  कहता है कि यदि  इंद्रियां स्वच्छ हो जायेंगी तो और भी संवेदनशील हो जायेंगी!!

प्यारे सखा वृंद!! भक्ति और ज्ञान का फल तो और भी अद्भुत है,भक्ति-सूत्र का कोई पर्याय मनुष्य क्या किन्ही भी लोकों के इतिहास में है ही नहीं,यदि इन सूत्रों को मै आपसे समझ लेती हूँ तो फिर कुछ समझने को शेष नहीं रह जाता है!!

इस भक्ति सूत्र के एक-एक सूत्र में एक-एक वेद समाये हैं!! वेद खो जायेंगे तो भी कुछ नहीं खोयेगा, हे प्रिय!!! किंतु यदि #भक्ति_सूत्र खो जायें तो सब कुछ खो जायेगा। #योगाभ्यास का फल है स्वच्छेन्द्रियाँ! भक्ति का फल है जिसकी इंद्रियां स्वच्छ हो गईं, जिसके नेत्र स्वक्ष हो गये!!

मैंने कभी किन्ही कथा वाचक से सूरदासजी की कथा सुनी थी!!मैं नहीं मानती कि वो सच होगी!! एक सुँदर स्त्री को देखकर उन्होंने आंखें फोड़ लीं ?
इस भय से कि आंखें गलत रास्ते पर ले जाती हैं ?
हे प्रिय सखा!! यदि सूरदासजी ने ऐसा किया हो तो वे सूरदास हो ही नहीं सकते।

ये तो पोपा-पण्डितों ने कहानी गढ़ डाली है!!उनकी बुद्धि ऐसी ही रही होगी। आंखें फोड़ लेने से भला स्त्री के रूप से छुटकारा मिल जायेगा ?
रातको सपनों में तो आंखें बंद होती ही है, तब!! क्या स्त्री के रूप से छुटकारा हो जाता है ?
स्त्री तो और भी रूपवान हो कर प्रगट होगी,वो अप्सरा बन कर आपको सतायेगी!!

हे प्रिय सखा!स्वप्न में जैसी सुंदरियाँ होती हैं! फेसबुक पर मेरी जैसी स्त्रियां,लड़कियाँ होती हैं! उनकी प्रोफाइल फोटोज् को आप देखें!! वैसी कहीं जागते हुवे आपने देखीं ?

यही तो आभासी संसार की समस्या है कि सपने में मिल जाती हैं!!गूगल,फेसबुक,शोषल मीडिया पर मिल जाती है किंतु वास्तविक संसार में नहीं मिलतीं।

और जीवन में जो भी आपको स्त्री मिली वो स्वप्न- सुँदरी से बेकार है! या मुझ जैसी को जो स्वप्न में राजकुमार मिला वो कामदेव सरीखा पुरुष यथार्थ जीवन में मुझे मिले पती की अपेक्षा वो मुझे ज्यादा लुभायेगा।

इसीलिए मैं अपने पती से और वे मुझसे कभी भी तृप्त हो ही नहीं सकते!!  "मत्त भवति" मत्त,उन्मत्तावस्था को कहते हैं,,और सांसारिक दृष्टि से पागलों को उन्मत्त कहते हैं, आप गाडीवान रैक्व,जड-भरत, विदूषी गार्गी,ऋषि मतंग, शबरी बाई,केवट,सुकरात, फिरदौस,मीरा बाई, चैतन्य महाप्रभू,रामकृष्ण परमहंस जैसे संतों का इतिहास, जीवनचरित्र पढो!!आपको पहली दृष्टि में वे सब पागल ही लगेंगे!! क्योंकि उनकी दृष्टि में लौकिक कर्म सब ढोंग हो जाते हैं।

आप गोपी चरित्र पढें,आप यह समझ ही नहीं पायेंगे कि ये पागल नहीं तो क्या हो सकती हैं ?
वे लताओं, वृक्ष,पत्थरों,और बृज की मिट्टी से लिपट कर कहती हैं कि यही तो मेरे कान्हाँ हैं!!वे एक दूसरी का आलींगन करते हुवे कहती हैं कि-यही तो मेरे कृष्ण हैं!!मेरे प्रियतमजी हैं!!दुनिया इसे पागलपन कहती है! लेकिन यही उन्मत्तता है!! अहोभाव है,अरी सखि !!

#प्राण_कण्ठ_चलि_आय।
#अब_तो_जीवन_धन_बिनु_जीवन_कैसेहु_रहि_न_सकाय।
#उचकति_चौंकति_बकति_तकति_कछु_पुनि_पुनि_मुरछा_आय।
#ऐसी_हूक_उठति_हिय_पुनि_पुनि_मनहु_प्राण_अब_जाय।
#है_कोउ_प्राणसखी_लै_प्रानन_प्राणनाथ_मिलवाय ?
#अब_कृपालु_पिय_आन_मिलो_न_तु_होइहि_तोरि_हँसाय।

"स्ततब्धो भवति" हे प्रिय!!वह स्तब्ध हो जाता है!!मूक हो जाता है,!--जब ईशू-मसीह को सूली पर चढा रहे थे,सुकरात जहर पी रहे थे,संत हरिदास,और मंसूर फकीर की चमणी उधेणी जा रही थी--तो वो एकदम शान्त थे!!,,,क्यों यह एक अद्भुत रहस्य है!गोपनीय सत्य है!!

"सा आत्मारामो भवति आत्मने आत्मना तुष्टो ---
जो अपनी आत्मा में अपनी आत्मा से ही संतुष्ट हो चुका है!!जिसके लिये!! एक बात बताती हूँ!!एक सत्य!!साधारण सा!!आप किसी शहर में घूमने जाते हो,एक होटल में रुकते हैं!!दो-चार दिन के बाद जब आप उस होटल को छोडते हैं!! तो क्या आपको उस होटल से कोइ मोह हो सकता है!!नहीं न!!कभी नहीं हो सकता-

#राम_का_नाम_लेकर_जो_मर_जायेंगे,
#नाम_दुनिया_में_अपना_अमर_कर_जायेंगे।
#ये_पूछो_न_पूछो_है_खुशी_आपकी,
#हम_मुसाफिर_हैं_लौट_कर_अपने_घर_जायेंगे।।

जो आत्म स्वरूप में निमग्न हो गया,आत्मा-राम हो गया,अपनी आत्मा में ही रमण करने लगा!! वह उन्मत्त हो गया!स्तब्ध हो गया!!आत्मा-राम हो गया।
हाँ प्रिय!! यही अमृत-स्वरूप है भक्ति का!
शेष अगले अंक में!!आपकी #सुतपा!!
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

www.sutapadevi.in

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