Tuesday 6 November 2018

महाकाली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति-

#एकवेणी_जपाकर्णपूरा_नग्ना_खरास्थिता,।
        #लम्बोष्टी_कर्णिकाकर्णी_तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
#वामपादोल्लसल्लोहलता_कण्टकभूषणा,।
         #वर्धनमूर्धध्वजा_कृष्णाकालरात्रिर्भयङ्करी।।

प्रिय सखा तथा मेरी प्यारी सखियों!!आज आपको महाकाली पूजन की शुभ-कामनायें देती हूँ !!और ये भी सोचती हूँ कि
ये जो वाम संहिता में कहते हैं कि-
#सिरों_में_पातु_कल्याणी_मामृतं_स: #इप्क्षीतं!!

"माँ महाकाली" #ॐ_भद्र: #कर्णेभि: #श्रृणुयाम:।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज भद्रकाली पूजन अर्थात् महारात्रि काली पूजन का शुभ मुहूर्त उपस्थित हो रहा है।और सदैव की भाँति इस वर्ष भी माँ भद्रकाली हम मातृभक्तों का कल्याण करें, ऐसी शुभकामना मैं आप सभीको देती हूँ।

हे प्रिय!!तैत्तरियो-उपनिषद् के कथानुसार --
#यो_आभिगतम्_नराणां_वैधिक्यं_स: #कालिकम् --
सौभाग्य से आज भी मैं यहाँ सिलचर में अर्ध रात्रि में अपने पति के साथ शमशान काली के दर्शनोपरान्त प्रात:काल परम पूज्यनीय बाबा श्यामानंद जी के मठ में भी प्रात: आरती में उपस्थित हुयी थी!!

और कर्णप्रिय वह आरती मेरे हृदयस्थल को,!! अन्तर्मन को प्रभावित कर गयी!!
किंतु यह क्या आरती पूर्ण होने के पूर्व ही माँ के सामने बकरों की लाईन लगा दी गई।
तुरंत ही हम दोनों वहाँ से चल पडे, किंतु वहाँ से हटने से पूर्व मैंने माँ से हाथ जोडकर कहा -- माँ!! हे मेरी माँ !!!

आप अपने सामने!! अपने नाम पर!! इन अपनी संतानों के कटने पर प्रतिबंध तो लगाओ!! और मैं निराश होकर चला आयी।

और तो और एक पण्डाल में मैंने प्रसाद के लिये हाथ आगे बढाया और पुजारी ने जब मेरे हाथ पर प्रसाद रखा तो उनके मुख से निकलने वाली शराब की दुर्गंध ने मेरे मन को आत्मग्लानि से भर दिया। और सच कहूँ तो मेरी अंतर्आत्मा ने उस महाप्रसाद के प्रति अनिच्छा सी भर दी!!

#स: #ना_भुक्त: #भोग्यं_वा_भोग्यताम:
हे प्रिय!!कालियातंत्र, अध्याय•२•के अनुसार शक्ति कदापि माँस, रक्त इत्यादि का भक्षण नहीं करतीं।
दुर्गा, कालिका यह कल्याण करने के लिये हैं!! यह भद्रकाली है,!!महाकाली है,!! भद्र अर्थात् कल्याण।

भद्र का अर्थ वध नहीं होता। ये मुझ पण्डित, पुजारीयों को सोचना चाहिये हम कसाई का छुआ हुआ जल नहीं पीतीं, उसे छोटी जात का कहती हैं और खुद हाथ में छुरी लेकर बकरे की गर्दन पर चलाते हैं!! हम तो!!महाचाण्डाल हुए न  ?

माँ के सामने उसी माँ के बच्चों की बलि!!यह भला कैसी उपासना है ?

और यदि पशु-बलि शास्त्र के किसी पन्ने में है भी तो वह पूरा तथाकथित व्याकरणाचार्यों के द्वारा शास्त्रों में अपनी सुविधानुसार अर्थों का अनर्थ कर मिश्रण करने वाले दुष्टों द्वारा  हम सनातनियों को बदनाम करने के लिये  बनाया हुआ पाखण्ड है।

हे प्रिय हमारे पुराणों में अनेक #क्षेपक_कथाओं को जबरदस्ती घुसा दिया गया है!!और कुछेक व्याकरण के मूर्खाचार्यों ने अर्थ का अनर्थ भी किया है!!न जाने कैसे-कैसे उलूक-तंत्र,उड्डीश तथा दत्तात्रेय तंत्र के नाम पर कपोल कल्पित हिंसा और दुष्ट प्रवृत्तियों को सिखाने वाली विधायें इन गृंथों में लिखी गयी हैं कि आज के वर्तमान परिदृश्य में हमारे आपके शिक्षित बच्चे हमारा ही उपहास उड़ाते हैं!!

और इन्ही कतिपय क्षुद्र गृन्थों के कारण आज कुछ तथाकथित तांत्रिक हमारे अशिक्षित ही क्या शिक्षित किन्तु अंधश्रद्धालू और लालची समाज को भी तंत्र मंत्र के नामपर ठगते रहते हैं!!

और इसी आधार पर वह वेदों में भी नरमेघ, गोमेघ, अश्वमेघ जैसे नाना प्रकार के घृणित कार्यों को ढूँढ लाते हैं,!!और अर्थ का अनर्थ करते रहते हैं!!
हे प्रिय!!मैं बंगाली ब्राम्हणी हूँ!!मेरे समाज के लोग अपने आप को "शाक्त" कहते हैं !!सामवेदी कहते हैं!!जात-पात छूवा-छूत तो मुझे भी जन्म घुट्टी में ही पिलाया गया था।

छिः!! कभी-कभी मुझे मेरे सामाजिक आचार-विचार पर घिन्न आती है। वाह रे पाखंड!!मुर्गी,बकरी,भेंड़ नहीं खाते!!किन्तु मुर्गा,बकरा,भेंड़ा खाने से --अरी!! बिचारे निरीह कबूतरों को भी देवी मईया को चढा कर खाने से कोई परहेज नहीं है

दिनभर राम-राम, कृष्ण की उपासना का स्वाँग, अपने आप को वैष्णव कहने का पाखण्ड, नारायण पूजा का स्वाँग करना तथा शाक्त कहलाने के नाम पर सामवेदी होने का ढोंग करते हुए!! बलि प्रथा  को वैध बताना।
मैं तो स्पष्टरूप से यह कहना चाहती हूँ कि---
हमें बलि प्रथा का पूर्णतया निषेध करना ही चाहिये!!

और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते तो गुड खाओ और गुलगुले खाने से परहेज।
और इसी कारण कभी कभी हम आपको विधर्मियों के कतिपय तर्कों के समक्ष निरूत्तर हो जाना पड़ता है!!मैं सोचती हूँ कि गौ-वध को हम कहाँ से अनुचित ठहरा सकते हैं ?
यह तो वही बात हुई न कि अन्य सभी पशु- पक्षियों को नष्ट कर दो!!
शेष अगले अंक में------  #सुतपा!!
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