Wednesday 7 November 2018

दीपावली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति- अंक~३

#उसका_गर्भस्थ_शिशु_गर्भ_में_अष्टावक्र_की_भाँति_योग्य_बने।

ॐ_या_सा_पद्मासनस्था_विपुल_कटि_तटी_पद्म_दलायताक्षी।
#गम्भीरावर्त_नाभि_स्तन_भर_नमिता_शुभ्र_वस्त्रोत्तरीया।।
#लक्ष्मी_दिव्यैर्गजेन्द्रै_मणि_गज_खचितै_स्नापिता_हेमकुम्भैः।
#नित्यं_सा_पद्म_हस्ता_मम_वसतु_गृहे_सर्व_मांगल्य_युक्ता।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! दीप- मालिका का यह तृतीय भाग आपकी सेवा में लेकर पुन: उपस्थित हूँ। आगे कहते हैं कि----"गम्भीरावर्त नाभि:" माँ की नाभि बहुत ही गम्भीर है--

योगमाया, लक्ष्मी, सरस्वती, महाकाली माँ  की नाभी बहुत ही गम्भीर स्थल है। सखी !!"नाभि" से ही तो,!! "अन्तरनाल" से ही तो!!"अजन्मा शिशु" गर्भ में पोषण को प्राप्त करता है।

नारायणी की नाभि ! लक्ष्मी की नाभि ! गर्भस्थ ब्रह्माण्ड रूपी अपने शिशु का पोषण करती हैं!!
वह अपनी कोख में पल रही संतान की प्रत्येक गतिविधि पर सूक्ष्म गम्भीर दृष्टि रखती है!!जिस प्रकार एक "गर्भिणी माँ" अपने गर्भ के सुरक्षित पालन हेतु सदैव सजग रहती है!!

नियमानुसार उचित आहार को स्वयं के द्वारा अपने शिशु को प्रदान कराती है!!
सर्वदा अच्छे विचार करती है!!सद्ग्रन्थ पढती है!! कि उसका गर्भस्थ शिशु गर्भ में "अष्टावक्र" की भाँति योग्य बने।

प्रकृति तो सदैव माँ ही है,!! वह माँ के समान ही अपने उच्चविचार हमें ग्रहण कराने का प्रयास करती है;!!तभी तो "स्तनभर नमिता" यह नारायणी,!! यह प्रकृति!!मेरी माँ अपने शिशु के गर्भस्थ स्वप्नावस्था से जाग्रत अवस्था में आने के पूर्व ही!!जन्म लेने के पूर्व ही अपने स्तनों में "निःसृत" दुग्ध को ला देती है!!

मेरे- आपके लिये-- अन्न, धन, संस्कार, कुल, विद्या उत्पन्न करा देती है!! वेदों को प्रकट कर देती है!!
"शुभ वस्त्रोत्तरीया" वह शुभ वस्त्राच्छादित नारायणी,!!अच्छे सद्विचार रूपी; वस्त्र रूपी आवरण को धारण करने वाली मेरी "माँ लक्ष्मी"!!

"दिव्यैगजेन्द्र:" अर्थात् हे प्रिय!! माँ लक्ष्मी को गजलक्ष्मी भी तो कहते हैं।
#गजेन्द्रस्थ_कृत्रिम्_वसानं_वरेण्यम्"!!!

जो करने योग्य कर्मों को न करे और न करने योग्य कर्मों को करे-- वह पशु है !!
और पशुओं का राजा, सभी पशुओं में सबसे बुद्धिमान गज होता है!! हाथी होता है-- योगी, भक्त, ज्ञानी होता है!! संत- साधु होता है।

और जब कभी--
#जननी_जन_तो_तीन_ही_भक्त_दाता_या_शूर।
#नहीं_तो_रहे_जा_बाँझणी_मत_गवाँ_अपना_नूर।।

हे प्रिय!!जब किसी की कोख से--सूर तुलसी, मीरा, बुद्ध, कबीर, चैतन्य, महावीर, हरिश्चन्द्र, कर्ण, भोज, महराणा प्रताप, अभिमन्यु, शिवाजी जैसी संताने उत्पन्न होती हैं, तो वह "माँ" धन्य हो जाती है!!
अमर हो जाती है- प्रकृति अपनी ऐसी संतान को देखकर गदगद् हो जाती है, !!

वह दिव्य गजेन्द्र की जननी होने पर नृत्य करने लगती है!!वह अपनी ऐसी श्रेष्ठ संतान को --
"मणिगज खचितै:, स्नायिता  हेम कुम्भै:"
बर्फ के घडे में भरकर मणियाँ दे देती है।
सखियों !! बर्फ के घडे में धन होता है !!!ऐसा क्यूँ  ?

ज्ञान, विद्या, सत्ता, सामर्थ्य, बल, धन -- यह सब बर्फ के घट में रखे हुए हैं।इनकी तीन ही गति हैं --

"दान, भोग और नाश"।अगर आप के पास इन सभी सामर्थ्यों में से कुछ भी है तो इन्हें सभी को देकर ग्रहण करें!! और यदि मैं ऐसा करती हूँ !! तो यदि आप ऐसा करते हैं तो!!"मम वस्तु गृहे, सर्व माँग्लय मुक्ता"

यह योगमाया ! मेरी माँ ! चंचला: सदैव "अचँचला:" होकर मेरे आपके गृह में "माँ" के रूप में अपने भाई "गणेश जी" के साथ, गुणों के साथ निवास करेंगी।
        #शुभ_दीपावली_आपकी_सुतपा!!
----------
आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करके मेरे समूह #दिव्य_आभास से भी जुड़ सकते हैं-
https://www.facebook.com/groups/1858470327787816/

इसके अतिरिक्त आप टेलीग्राम ऐप पर भी इस समूह से अर्थात दिव्य आभास से जुड़ सकते हैं!! उसकी लिंक भी मैं आपको दे रही हूँ-
https://t.me/joinchat/AAAAAFHB398WCRwIiepQnw

मेरे ब्लाग का लिंक--
http://sutapadevididi.blogspot.com

आपकी वेबसाइट का डोमिन
http://www.sutapadevi.in/

No comments:

Post a Comment