Tuesday 6 November 2018

दीपावली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति- अंक~२

#लक्ष्मी_का_कटि_प्रांत_ही_उत्पत्ति_स्थिति_और_लय_का_महासागर_है!!

#ऊँ_आद्य_लक्ष्म्यै_नम: #विद्यालक्ष्म्यै_नम:,
#सौभाग्य_लक्ष्म्यै_नम: #अमृत_लक्ष्म्यै_नम:,
#लक्ष्म्यै_नम: #सत्य_लक्ष्म्यै_नम: #भोगलक्ष्म्यै_नम:।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! आज के दिन मेरे साँवरे जी ने #साकेत" में प्रवेश किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी ने भक्त प्रहलाद" का उद्धार किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी ने राजा "बलि" का उद्धार किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी के पथानुयायी "महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था !!

इतनी सारी खुशियों को समेट कर आये इस पर्व पर!!
इसीलिये तो हम "गणेश- लक्ष्मी" का पूजन करते हैं,!!नूतन वर्ष का अभिनंदन करते हैं,!!किंतु इसके गर्भ में छुपी सच्चाई पर भी तो विचार करें।

मेरी एक सखी ने मुझसे कहा था कि दीदी आप हाथ देख सकती हैं न,!! आप देखो न ! मेरी शनि की साढेसाती चल रही है!!
तो मैं बोली कि--हो सकता है कि साढे सात साल चले भी,!! लेकिन राम की तो चौदह वर्षों तक चली थी।
राम जी को राज्य लक्ष्मी वनवासोपरांत मिली!!
प्रहलाद को भक्ति रूपी लक्ष्मी कठिन तपस्योपरांत मिली!!
राजा बलि को"अहर्निश सान्निध्य" महान त्यागोपरांत मिली!!
महावीर स्वामी को "कैवल्य" असीम साधना के उपरांत मिला!!

#गजाननम्_भूतगणादिसेवितं_कपित्थ_जम्बू_फलचारुभक्षणम्।
#उमासुतं_शोक_विनाशकारकं_नमामि_विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।

सखियों इन गुणों के---- त्याग, भक्ति, साधना, वैराग्य रूपी गणपति के पूजनोपरांत ही तो आप लक्ष्मी का पूजन कर सकोगी न!!

गरूड वाहिनी लक्ष्मी की ही तो आराधना करनी है,!! अन्यथा उलूक वाहिनी लक्ष्मी तो सभी लोकों को नष्ट कर देगी मेरे- आपके !!
तभी तो "गुरू ग्रन्थ साहिब" में इसे #बंदी_छोड दिवस" के रूप में मनाने की परम्परा है।
और बीच में एक बात मैं और भी कहूँगी कि विश्व के इतिहास में हमारे सिख समुदाय ने ही युद्धोपरांत बंदी बनाये गये विपक्षी सैनिकों को मुक्त कर देने की अद्वितीय परम्परा का प्रावधान किया था!!

हे प्रिय!!ये अष्ट लक्ष्मी ही लक्ष्मी हैं। आद्य लक्ष्मी से ही सद्विद्या रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है।और ---
मेरे साँवरे जी की योगमाया ही नारायणी रूपी आद्यशक्ति लक्ष्मी हैं!!

उनकी इस परा और अपरा दोनों विद्याओं का ज्ञान ही विद्या लक्ष्मी हैं।!!
इस परा और अपरा विद्या को जानने वाला ही सौभाग्य लक्ष्मी का पात्र होता है,!!
इस प्रकार का ज्ञानी ही सौभाग्यशाली "अमृत लक्ष्मी" को प्राप्त करता है।
इस प्रकार $मृर्त्योऽमाऽअमृतं_गमय" का यात्री ही "लक्ष्मी" अर्थात् मानव जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करता है।

और हे सखी ! वह सत्-पथानुगामी परमार्थ पथिक "सत्य लक्ष्मी" को ज्ञात करने वाला,!!
सभी प्रकार के "प्रारब्ध" से प्राप्त सुखदु:खादि को समभाव से भोग करते हुए "भोग लक्ष्मी" का सम्मान करते हुए "अन्नकूटस्थ लक्ष्मी" को प्राप्त हो जाता है,!!कूटस्थ भाव को प्राप्त हो जाता है।

#ॐ_या_सा_पद्मासनस्था_विपुल_कटि_तटी_पद्म_दलायताक्षी।
           #गम्भीरावर्त_नाभि_स्तन_भर_नमिता_शुभ्र_वस्त्रोत्तरीया।।
#लक्ष्मी_दिव्यैर्गजेन्द्रै_मणि_गज_खचितै_स्नापिता_हेमकुम्भैः।
         #नित्यं_सा_पद्म_हस्ता_मम_वसतु_गृहे_सर्व_मांगल्य_युक्ता।

कहते हैं कि यह नारायणी "पद्मासनस्था"  पद्म पर विराजमान हैं, यह वहीं स्थिर रह सकती हैं जहाँ इन्हें पद्मारूढ मैं देखूँ!!
"विद्या , तप, दान, यज्ञ, शील, गुण, धर्म, और सत्य जहाँ होगा-- वहीं यह अचंचला रहेंगीं।
"विपुल कटि तटि" इनका कटि प्रदेश (कमर- मध्य भाग) विपुल अर्थात् अनंत है,!!
यही परा और अपरा प्रकृति स्थान है।

अखिल ब्रह्माण्ड यह कटि प्रांत है। यह लक्ष्मी का कटि प्रांत ही "उत्पत्ति, स्थिति और लय" का महासागर है!!
इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए आगे कहते हैं कि "पद्मदलायताक्षि"

यह लक्ष्मी जी अपनी हजारों हजार आँखों से,!!
यह योगमाया, यह मेरी माँ ही अपनी हजारों हजार पद्मके समान आँखों से मुझे आपको, हमारे कार्य और विचारों को देख रही हैं --

"माँ" अपने पुत्रों के "संग- संस्कारों" की द्रष्टा हैं। वे तो यही चाहती हैं कि मेरी संतान विद्या प्राप्त कर तप करे!!
तप से प्राप्त फल का दान करें,!!
यज्ञ करें, शीलवान हों, गुणों को धारण करें,!!
अपने लिये प्रतिपादित श्रेष्ठ कर्मों को करें। सखियों तीन चीज ज्यादा समय तक छुपती नहीं -- "सूर्य, चन्द्र और सत्य", जो इनका,!!  सत्य का पालन करता है-- वही तो अपनी माँ की श्रेष्ठ संतान है --
शेष अगले अंक में #आपकी_सुतपा!!
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