धन्वंतरि जयंती पर विशेष प्रस्तुति--
#ॐ_यत्रौषधीः #समग्मत_राजानः #समिताविव
#ॐ_शंखं_चक्रं_जलौकां_दधदमृतघटं_चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
#सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक_परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम॥
#कालाम्भोदोज्ज्वलांगं_कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम।
#वन्दे_धन्वंतरिं_तं_निखिलगदवनप्रौढदावाग्सधनवन्तरी।।
प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!पूर्ण पुरुषोत्तम मेरे प्रिय- प्रियतम श्रीकृष्णचन्द्र जी की !!पूर्णिमा से!! शरद-पूर्णिमा से !!अमावस्या तक की यात्रा, अर्थात् उनकी अपनी प्रेयसी लक्ष्मी से मिलन की यात्रा!! अर्थात एक अप्रतिम वर-यात्रा!!
अर्थात् समुद्र-मंथन की यात्रा के अंतर्गत शरद-पूर्णिमा को चन्द्र की प्राप्ति , क्रमश: द्वादशी को कामधेनु, त्रयोदशी को "देव- वैद्य धनवन्तरी", चतुर्दशी को काली!! एवं अमावस्या को अमृतकुंभ-सह-लक्ष्मी के अवतरण की कथा आपने अवस्य सुनी होगी;!!
वैसे ईसा पूर्वकदाचित् ४८००० वर्षों पूर्व अथर्ववेद के अंतर्गत एक लाख मंत्रों के आठ विभाग कर उपवेद के रूप में आयुर्वेद का संपादन "भगवान" धनवन्तरी ने ही किया था!!
जिस प्रकार भगवान वेदव्यास ने १८ पुराणों का प्राकट्य किया उसी प्रकार भगवान धनवन्तरी ने आयुर्वेद का प्राकट्य किया!!और इसी हेतु आप उन्हें "विष्णु- अवतार" की भी संज्ञा देते हैं।
उनकी वैदिक चित्रांकित वैशेषिक भूषा चतुर्भुजी है; !!शंख- चक्र, जतूका- औषधि और अमृत-कलश।
हे प्रिय!! धनवन्तरीजी के शिष्य अग्निवेश,अश्विनी कुमार, उनके शिष्य इन्द्र, इन्द्र के भारद्वाज!! तदन्तर पुनर्वसु- आत्रेय, भेल, जतु, पाराशर, च्यवन, हारित, क्षार, पाणि और काशीराज दिवोदास हुए,ऐसा परम्परागत गृंथों में प्राप्त होता है!!
महर्षि अग्निवेश ने #अग्निवेश_तंत्र" नामक ग्रन्थ का निर्माण किया, जो अब अप्राप्य है; उसी गृन्थ का संपादन "महर्षि चरक" ने किया जो चरक संहिता के नाम से विख्यात हुआ,!!
काशीराज दिवोदास ने ३५००० वर्ष पूर्व काशी में सर्वप्रथम "शल्य- चिकित्सा विश्वविद्यालय" की स्थापना की,और महर्षि विश्वामित्र के पुत्र और अपने शिष्य सुश्रुत को विद्यालय का प्राचार्य नियुक्त किया और आज ही के दिन "सुश्रुत" ने #सुश्रुत_संहिता" का लोकार्पण भी किया था।अर्थात ये एक अनुसंधान ग्रंथ हैं!!
इसी कारण लोक-व्यवहार में आज भी प्राचीन चिकित्सा पद्धति को आयुर्वेद और एलोपैथिक प्रणाली को "आयुर्विज्ञान" ऐसा नाम दिया गया । पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार संसार की प्राचीनतम पुस्तक ऋग्वेद है!! इसमें भी आयुर्वेद के मंत्र यत्र-तत्र विकीर्णावस्था में उपलब्ध हैं,जैसे कि ऋ•१०•१७•६• में कहते हैं कि----
#यत्रौषधीः #समग्मत_राजानः #समिताविव ।।
#विप्र_स उच्यते_भिषग्_रक्षोहामीबचातन॥
मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! मेरे पति एक अच्छे आयुर्वेदाचार्य हैं, पूरे (कछाड) में लोग उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। मैं आपको एक रहस्य की बात बताती हूँ--- एलोपैथिक दवाई होती है न, वह रोगों को दबा देती है---- #दबाई" जैसे किसी घर में आग लगाकर खिडकी- दरवाजे बंद कर दें!! अंदर ही अंदर शरीर को जलाकर सब कुछ खोखला कर देती है।
वहीं "आयुर्वेद" में "दवाई" नहीं होती "औषधि" होती हैं वे "ओज" और" धि: " अर्थात् -- बुद्धि को, धैर्य को, सहनशीलता को बढा देती हैं!!रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढा देती हैं, ओज + धी: = औषधि !
और वैसे भी!! हम हिन्दुओंके प्रत्येक पर्व!!विशेषार्थी होते हैं -यह पर्व अपने प्रियतमजी को धन्यवाद देने के एक अवसर होते हैं। प्यारी सखी ! सद्व और असद्व दोनों ही विचारधारा, आस्तिक- नास्तिक, ज्ञानी- भक्त, बुद्धिवादी साँख्य, देव और असुर इनमें श्रेष्ठ कौन है ?
इसका निरूपण करने की अपेक्षा यह जानना ज्यादा उत्तम है कि इन दोनों ने ही मिलकर #समुद्र_मंथन" किया और आज भी कर रहे हैं, और मंथन होने पर हलाहल विष और अमृत दोनों ही निकलेंगे और हमें तो बस --
#साधू_ऐसा_चाहिये_जैसा_सूप_स्वभाव।
#सार_सार_को_गहि_रहे_थोथा_देहि_उडाय।।
हे प्रिय!! चरक संहिता एवं सुश्रुत द्वारा दो सम्प्रदाय मान्य हैं ---
१• चरक द्वारा -- आत्रेय सम्प्रदाय और
२• सुश्रुत द्वारा -- धनवन्तरी सम्प्रदाय।
इसी कारण इसे आप्तोपदेश भी कहते हैं अर्थात् आप्त, दु:खी, पीडित जनों के लिये संदेश!! अशांत जनों के लिये संदेश।
#पेशंट' अर्थात् जिसकी शाँति #पे "हो गयी हो!! नष्ट हो गयी हो।
प्यारी सखी ! कहते हैं कि --
#इतिहासपुराणाभ्यां_वेदं_समुपब्रंहयेत"
अश्विनी कुमारों को,भगवान धनवन्तरी को!! #अश्विनी नामक पक्षी के दो पंख कहे गये हैं --
अर्थात विज्ञान के व्यावहारिक एवं सैद्धान्तिक दोनों ही पक्षों को ये संज्ञा दी गयी है!!
अब यदि पक्षी का एक पंख टूट जाये तो वह व्यर्थ हो जाता है, ऋग्वेद के औषधि• सूक्त•१०•४७• में औषधियों के स्वरूप, उनकी उपलब्धता, शल्य चिकित्सा आदि का विस्तृत वर्णन आपको प्राप्त हो सकता है। कहते हैं कि #आथर्वण अर्थात महर्षि #दधीचि से इन्होंने प्राग्विद्या और मधुविद्या भी प्राप्त की थी!!
यह "प्राग्विद्या" ही "शल्य" और "मधुविद्या" ही "औषधि" चिकित्सा के रुप में जानी गयी।
यही भगवान धनवन्तरी के दो पंख है।
#विप्र_स_उच्यते_भिषग्_रक्षोहामीबचातस् और इसी के साथ आपको धन्वन्तरी जयन्ती की शुभकामनायें देती हूँ!! आपकी #सुतपा!!
आप नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करके मेरे समूह #दिव्य_आभास से भी जुड़ सकते हैं-
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इसके अतिरिक्त आप टेलीग्राम ऐप पर भी इस समूह से अर्थात दिव्य आभास से जुड़ सकते हैं!! उसकी लिंक भी मैं आपको दे रही हूँ-
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