Wednesday, 7 November 2018

गोवर्धन पूजा

#गोवर्धन_पूजन पर विशेष प्रस्तुति-- प्रथम अंक

#इन_खेतों_पर_विषैले_रसायनों_तथा_कार्बन_की_गहेरी_तह_बैठ_जाती_है!!

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!जहाँ तक मेरी अपनी सोच जाती है तो मैं यह समझती हूँ कि आज के इस पर्व को भारतीय अर्वाचीन संस्कृति में #विश्व_पर्यावरण_दिवस
के रूप में मेरे प्रियतम जी ने मान्यता दी थी!!तथा अनेकानेक देव पूजन प्रथा की अपेक्षा नैसर्गिक प्रकृति, पर्वतों,वनस्पतियों, पशु,पक्षियों,नदियों के संरक्षण करने का सद्-उपदेश भी हमें दिया था!!

मैं एक बात कहूँगी कि हमारे भागवतादि सच्छास्त्रों में निहित मंत्रों के शब्दार्थ, भावार्थ तथा तत्वार्थ को समझने की आवस्यकता पर हमारे विद्वत्-समाज को बल देना चाहिये!! योगेश्वर कृष्ण की लीलाओं की रसमाधुरी ,उनका ज्ञानकाण्डात्मक अर्थों, उनका यौगिकीकरण के साथ-साथ उनकी प्रत्येक युग में जीवंत वैज्ञानिकीय विधाओं के रूप में भी मैं उन्हे देखने का आपका आह्वान करती हूँ !!

हे प्रिय!!हमारे वैदिकीय ऋषि चैतन्य सत्ता के साथ-साथ नैसर्गिक पदार्थों में व्याप्त प्रकृति के भी उपासक थे!!
किन्तु कालान्तर में,प्रत्येक युगों में, हमारी मानवोचित लोभी प्रवृतियाँ हमें नाना सिद्धियों के लोभ जाल में बाँध कर वास्तविक जीवन पद्धति के आधारभूत सिध्दांतों से भटका देती है!!

और ऐसा ही कुछ द्वापर में भी था,लोगों ने इन्द्रादि देवताओं की प्रशन्नता हेतु कर्मकाण्डों को ही प्रधानता दे रखी थी!!मैं कर्मकाण्ड की विरोधी बिलकुल भी नहीं हूँ किन्तु उपासना काण्ड का समर्थन मैं ज्ञानकाण्ड की कसौटियों पर कसकर करने की पक्षधर अवस्य ही हूँ!!

जैसा कि आज हम अपनी उच्छृंखल प्रवृत्तियों के वशीभूत हुवे नदियों की धाराओं को मोड़ने,उनके तटबंधों का विनाश करने,उनका उत्खनन करने और विकाश के नाम पर बिज़ली संयंत्रों के लिये बाँधों का निर्माण कर रहे हैं!! उन्हे विनाश कर देने की सभी सीमाओं को पार कर उनमें कचरा बहा रहे हैं!!

बढती आबादी के कारण वनों की अंधाधुंध कटाई, वनवासी लोगों को आधुनिकता के नाम पर नर्कों में ढकेलना, भारत के पूर्वोत्तर प्रान्त,उत्तराखंड,पश्चिम बंगाल आदि अनेक प्रान्त जो कभी वन प्रधान हुवा करते थे वो आज अपनी नैसर्गिक सुँदरतम को खोते जा रहे हैं,मेरे यहाँ कछार के विश्व प्रसिद्ध चाय बागान जो हजारों हजार एकड़ में फैले थे वे आज घुसपैठियों के कारण सिकुड़ चुके हैं!!

पर्वतों को तो जाने नष्ट कर देने की एक अघोषित नीति पर हम चल रहे हैं!! उन्हें काटकर हम नगरों को कंक्रीट के ढेर पर जो बसाते जा रहे हैं,गगनचुम्बी पर्वतीय शिखरों का स्थान अब कंक्रीट की इमारतों ने ले लिया है!!

झरने,तालाब,कूप आदि अपनी प्रासंगिकता तथा उपयोगिता को खो चुके हैं, जहर के जैसे धूँवे उगलती फैक्ट्रियों की चिमनियों और उनसे फेंके और जमीन में गाड़े जाने वाले रेडियोऐक्टिव कचरे के कारण वो बिलकुल प्रदूषित हो चुके हैं!!

कृषि क्षेत्र की भूमि का सिमटता जाना और कृषकों की उपेक्षा,उनके श्रम की उपेक्षा के कारण उनका कृषि से हो रहा पलायन!!मैंचुनार,उरई,कानपुर,रायपुर,कड़ी, कलोल, झारखण्ड,सूरत ही क्या देश के अधिकांश राज्यों में एक विशेषता देखी हूँ की महानगरों अथवा उपनगरों ने अपना #इंडस्ट्रियल_एरिया शहरो से थोड़ा दूर और गाँवों के समीप बना रखे है!!

हे प्रिय!! मैं इसमें उद्योग, ग्राम्य_विकाश,कृषि ,नगरीय विकास मंत्रालय के साथ-साथ न्यायपालिका को भी बराबर की दोषी मानती हूँ!! और उसका भी कारण है इन क्षेत्रों में बनी विशाल-विशाल फैक्ट्रियों के द्वारा फैलाये प्रदूषण से आसपास के दस बीस गाँव और फिर दूसरा नगर की सीमा प्रारम्भ!! और फिर उसका भी एइक इंडस्ट्रियल एरिया!!

और इन गाँवों का भूमि जल रेडियो ऐक्टिव होकर जहरीला हो जाता है!!इनके पेड़-पौधों और इन खेतों पर विषैले रसायनों तथा कार्बन की गहेरी तह बैठ जाती है!!उनका विकास अवरूद्ध हो जाता है और उसपर से रासायनिक खादों और विषैले कीटनाशकों की आवस्यकता!!

हे प्रिय!! हम अपने कृषक भाइयों पर,सब्जी विक्रेताओंऔर दूध देने वालों पर तो जहर बेचने का आरोप बड़ी सरलता से मढ़ देते हैं!!हो सकता है कि इसमें १०%वे दोषी हों भी!!किन्तु क्या करें वे ?

उनके ९०% आय के संसाधनों और उन संसाधनों की शुचिता और समृद्धि को तो ये फैक्ट्रियों के महा दानव निगल गये!!देश के किसान अब खेतों पे पसीना बहा कर देखते हैं कि वे सार तत्त्व हीन,पोषण विहीन विषाक्त तथा घास-भूँसे जैसे अन्नों के उत्पादक बन कर अपने ही देश के नागरिकों के मध्य घृणा के पात्र बनते जा रहे हैं!!
इस श्रृंखला का शेष भाग अगले अंक में प्रस्तुत करती हूँ
..... #आपकी_सुतपा!!!
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दीपावली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति- अंक~३

#उसका_गर्भस्थ_शिशु_गर्भ_में_अष्टावक्र_की_भाँति_योग्य_बने।

ॐ_या_सा_पद्मासनस्था_विपुल_कटि_तटी_पद्म_दलायताक्षी।
#गम्भीरावर्त_नाभि_स्तन_भर_नमिता_शुभ्र_वस्त्रोत्तरीया।।
#लक्ष्मी_दिव्यैर्गजेन्द्रै_मणि_गज_खचितै_स्नापिता_हेमकुम्भैः।
#नित्यं_सा_पद्म_हस्ता_मम_वसतु_गृहे_सर्व_मांगल्य_युक्ता।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! दीप- मालिका का यह तृतीय भाग आपकी सेवा में लेकर पुन: उपस्थित हूँ। आगे कहते हैं कि----"गम्भीरावर्त नाभि:" माँ की नाभि बहुत ही गम्भीर है--

योगमाया, लक्ष्मी, सरस्वती, महाकाली माँ  की नाभी बहुत ही गम्भीर स्थल है। सखी !!"नाभि" से ही तो,!! "अन्तरनाल" से ही तो!!"अजन्मा शिशु" गर्भ में पोषण को प्राप्त करता है।

नारायणी की नाभि ! लक्ष्मी की नाभि ! गर्भस्थ ब्रह्माण्ड रूपी अपने शिशु का पोषण करती हैं!!
वह अपनी कोख में पल रही संतान की प्रत्येक गतिविधि पर सूक्ष्म गम्भीर दृष्टि रखती है!!जिस प्रकार एक "गर्भिणी माँ" अपने गर्भ के सुरक्षित पालन हेतु सदैव सजग रहती है!!

नियमानुसार उचित आहार को स्वयं के द्वारा अपने शिशु को प्रदान कराती है!!
सर्वदा अच्छे विचार करती है!!सद्ग्रन्थ पढती है!! कि उसका गर्भस्थ शिशु गर्भ में "अष्टावक्र" की भाँति योग्य बने।

प्रकृति तो सदैव माँ ही है,!! वह माँ के समान ही अपने उच्चविचार हमें ग्रहण कराने का प्रयास करती है;!!तभी तो "स्तनभर नमिता" यह नारायणी,!! यह प्रकृति!!मेरी माँ अपने शिशु के गर्भस्थ स्वप्नावस्था से जाग्रत अवस्था में आने के पूर्व ही!!जन्म लेने के पूर्व ही अपने स्तनों में "निःसृत" दुग्ध को ला देती है!!

मेरे- आपके लिये-- अन्न, धन, संस्कार, कुल, विद्या उत्पन्न करा देती है!! वेदों को प्रकट कर देती है!!
"शुभ वस्त्रोत्तरीया" वह शुभ वस्त्राच्छादित नारायणी,!!अच्छे सद्विचार रूपी; वस्त्र रूपी आवरण को धारण करने वाली मेरी "माँ लक्ष्मी"!!

"दिव्यैगजेन्द्र:" अर्थात् हे प्रिय!! माँ लक्ष्मी को गजलक्ष्मी भी तो कहते हैं।
#गजेन्द्रस्थ_कृत्रिम्_वसानं_वरेण्यम्"!!!

जो करने योग्य कर्मों को न करे और न करने योग्य कर्मों को करे-- वह पशु है !!
और पशुओं का राजा, सभी पशुओं में सबसे बुद्धिमान गज होता है!! हाथी होता है-- योगी, भक्त, ज्ञानी होता है!! संत- साधु होता है।

और जब कभी--
#जननी_जन_तो_तीन_ही_भक्त_दाता_या_शूर।
#नहीं_तो_रहे_जा_बाँझणी_मत_गवाँ_अपना_नूर।।

हे प्रिय!!जब किसी की कोख से--सूर तुलसी, मीरा, बुद्ध, कबीर, चैतन्य, महावीर, हरिश्चन्द्र, कर्ण, भोज, महराणा प्रताप, अभिमन्यु, शिवाजी जैसी संताने उत्पन्न होती हैं, तो वह "माँ" धन्य हो जाती है!!
अमर हो जाती है- प्रकृति अपनी ऐसी संतान को देखकर गदगद् हो जाती है, !!

वह दिव्य गजेन्द्र की जननी होने पर नृत्य करने लगती है!!वह अपनी ऐसी श्रेष्ठ संतान को --
"मणिगज खचितै:, स्नायिता  हेम कुम्भै:"
बर्फ के घडे में भरकर मणियाँ दे देती है।
सखियों !! बर्फ के घडे में धन होता है !!!ऐसा क्यूँ  ?

ज्ञान, विद्या, सत्ता, सामर्थ्य, बल, धन -- यह सब बर्फ के घट में रखे हुए हैं।इनकी तीन ही गति हैं --

"दान, भोग और नाश"।अगर आप के पास इन सभी सामर्थ्यों में से कुछ भी है तो इन्हें सभी को देकर ग्रहण करें!! और यदि मैं ऐसा करती हूँ !! तो यदि आप ऐसा करते हैं तो!!"मम वस्तु गृहे, सर्व माँग्लय मुक्ता"

यह योगमाया ! मेरी माँ ! चंचला: सदैव "अचँचला:" होकर मेरे आपके गृह में "माँ" के रूप में अपने भाई "गणेश जी" के साथ, गुणों के साथ निवास करेंगी।
        #शुभ_दीपावली_आपकी_सुतपा!!
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Tuesday, 6 November 2018

दीपावली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति- अंक~२

#लक्ष्मी_का_कटि_प्रांत_ही_उत्पत्ति_स्थिति_और_लय_का_महासागर_है!!

#ऊँ_आद्य_लक्ष्म्यै_नम: #विद्यालक्ष्म्यै_नम:,
#सौभाग्य_लक्ष्म्यै_नम: #अमृत_लक्ष्म्यै_नम:,
#लक्ष्म्यै_नम: #सत्य_लक्ष्म्यै_नम: #भोगलक्ष्म्यै_नम:।

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!! आज के दिन मेरे साँवरे जी ने #साकेत" में प्रवेश किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी ने भक्त प्रहलाद" का उद्धार किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी ने राजा "बलि" का उद्धार किया था !!
आज के दिन मेरे "साँवरे" जी के पथानुयायी "महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था !!

इतनी सारी खुशियों को समेट कर आये इस पर्व पर!!
इसीलिये तो हम "गणेश- लक्ष्मी" का पूजन करते हैं,!!नूतन वर्ष का अभिनंदन करते हैं,!!किंतु इसके गर्भ में छुपी सच्चाई पर भी तो विचार करें।

मेरी एक सखी ने मुझसे कहा था कि दीदी आप हाथ देख सकती हैं न,!! आप देखो न ! मेरी शनि की साढेसाती चल रही है!!
तो मैं बोली कि--हो सकता है कि साढे सात साल चले भी,!! लेकिन राम की तो चौदह वर्षों तक चली थी।
राम जी को राज्य लक्ष्मी वनवासोपरांत मिली!!
प्रहलाद को भक्ति रूपी लक्ष्मी कठिन तपस्योपरांत मिली!!
राजा बलि को"अहर्निश सान्निध्य" महान त्यागोपरांत मिली!!
महावीर स्वामी को "कैवल्य" असीम साधना के उपरांत मिला!!

#गजाननम्_भूतगणादिसेवितं_कपित्थ_जम्बू_फलचारुभक्षणम्।
#उमासुतं_शोक_विनाशकारकं_नमामि_विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।

सखियों इन गुणों के---- त्याग, भक्ति, साधना, वैराग्य रूपी गणपति के पूजनोपरांत ही तो आप लक्ष्मी का पूजन कर सकोगी न!!

गरूड वाहिनी लक्ष्मी की ही तो आराधना करनी है,!! अन्यथा उलूक वाहिनी लक्ष्मी तो सभी लोकों को नष्ट कर देगी मेरे- आपके !!
तभी तो "गुरू ग्रन्थ साहिब" में इसे #बंदी_छोड दिवस" के रूप में मनाने की परम्परा है।
और बीच में एक बात मैं और भी कहूँगी कि विश्व के इतिहास में हमारे सिख समुदाय ने ही युद्धोपरांत बंदी बनाये गये विपक्षी सैनिकों को मुक्त कर देने की अद्वितीय परम्परा का प्रावधान किया था!!

हे प्रिय!!ये अष्ट लक्ष्मी ही लक्ष्मी हैं। आद्य लक्ष्मी से ही सद्विद्या रूपी लक्ष्मी की प्राप्ति हो सकती है।और ---
मेरे साँवरे जी की योगमाया ही नारायणी रूपी आद्यशक्ति लक्ष्मी हैं!!

उनकी इस परा और अपरा दोनों विद्याओं का ज्ञान ही विद्या लक्ष्मी हैं।!!
इस परा और अपरा विद्या को जानने वाला ही सौभाग्य लक्ष्मी का पात्र होता है,!!
इस प्रकार का ज्ञानी ही सौभाग्यशाली "अमृत लक्ष्मी" को प्राप्त करता है।
इस प्रकार $मृर्त्योऽमाऽअमृतं_गमय" का यात्री ही "लक्ष्मी" अर्थात् मानव जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त करता है।

और हे सखी ! वह सत्-पथानुगामी परमार्थ पथिक "सत्य लक्ष्मी" को ज्ञात करने वाला,!!
सभी प्रकार के "प्रारब्ध" से प्राप्त सुखदु:खादि को समभाव से भोग करते हुए "भोग लक्ष्मी" का सम्मान करते हुए "अन्नकूटस्थ लक्ष्मी" को प्राप्त हो जाता है,!!कूटस्थ भाव को प्राप्त हो जाता है।

#ॐ_या_सा_पद्मासनस्था_विपुल_कटि_तटी_पद्म_दलायताक्षी।
           #गम्भीरावर्त_नाभि_स्तन_भर_नमिता_शुभ्र_वस्त्रोत्तरीया।।
#लक्ष्मी_दिव्यैर्गजेन्द्रै_मणि_गज_खचितै_स्नापिता_हेमकुम्भैः।
         #नित्यं_सा_पद्म_हस्ता_मम_वसतु_गृहे_सर्व_मांगल्य_युक्ता।

कहते हैं कि यह नारायणी "पद्मासनस्था"  पद्म पर विराजमान हैं, यह वहीं स्थिर रह सकती हैं जहाँ इन्हें पद्मारूढ मैं देखूँ!!
"विद्या , तप, दान, यज्ञ, शील, गुण, धर्म, और सत्य जहाँ होगा-- वहीं यह अचंचला रहेंगीं।
"विपुल कटि तटि" इनका कटि प्रदेश (कमर- मध्य भाग) विपुल अर्थात् अनंत है,!!
यही परा और अपरा प्रकृति स्थान है।

अखिल ब्रह्माण्ड यह कटि प्रांत है। यह लक्ष्मी का कटि प्रांत ही "उत्पत्ति, स्थिति और लय" का महासागर है!!
इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए आगे कहते हैं कि "पद्मदलायताक्षि"

यह लक्ष्मी जी अपनी हजारों हजार आँखों से,!!
यह योगमाया, यह मेरी माँ ही अपनी हजारों हजार पद्मके समान आँखों से मुझे आपको, हमारे कार्य और विचारों को देख रही हैं --

"माँ" अपने पुत्रों के "संग- संस्कारों" की द्रष्टा हैं। वे तो यही चाहती हैं कि मेरी संतान विद्या प्राप्त कर तप करे!!
तप से प्राप्त फल का दान करें,!!
यज्ञ करें, शीलवान हों, गुणों को धारण करें,!!
अपने लिये प्रतिपादित श्रेष्ठ कर्मों को करें। सखियों तीन चीज ज्यादा समय तक छुपती नहीं -- "सूर्य, चन्द्र और सत्य", जो इनका,!!  सत्य का पालन करता है-- वही तो अपनी माँ की श्रेष्ठ संतान है --
शेष अगले अंक में #आपकी_सुतपा!!
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महाकाली

#दीपावली पर विशेष प्रस्तुति-

#एकवेणी_जपाकर्णपूरा_नग्ना_खरास्थिता,।
        #लम्बोष्टी_कर्णिकाकर्णी_तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
#वामपादोल्लसल्लोहलता_कण्टकभूषणा,।
         #वर्धनमूर्धध्वजा_कृष्णाकालरात्रिर्भयङ्करी।।

प्रिय सखा तथा मेरी प्यारी सखियों!!आज आपको महाकाली पूजन की शुभ-कामनायें देती हूँ !!और ये भी सोचती हूँ कि
ये जो वाम संहिता में कहते हैं कि-
#सिरों_में_पातु_कल्याणी_मामृतं_स: #इप्क्षीतं!!

"माँ महाकाली" #ॐ_भद्र: #कर्णेभि: #श्रृणुयाम:।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि आज भद्रकाली पूजन अर्थात् महारात्रि काली पूजन का शुभ मुहूर्त उपस्थित हो रहा है।और सदैव की भाँति इस वर्ष भी माँ भद्रकाली हम मातृभक्तों का कल्याण करें, ऐसी शुभकामना मैं आप सभीको देती हूँ।

हे प्रिय!!तैत्तरियो-उपनिषद् के कथानुसार --
#यो_आभिगतम्_नराणां_वैधिक्यं_स: #कालिकम् --
सौभाग्य से आज भी मैं यहाँ सिलचर में अर्ध रात्रि में अपने पति के साथ शमशान काली के दर्शनोपरान्त प्रात:काल परम पूज्यनीय बाबा श्यामानंद जी के मठ में भी प्रात: आरती में उपस्थित हुयी थी!!

और कर्णप्रिय वह आरती मेरे हृदयस्थल को,!! अन्तर्मन को प्रभावित कर गयी!!
किंतु यह क्या आरती पूर्ण होने के पूर्व ही माँ के सामने बकरों की लाईन लगा दी गई।
तुरंत ही हम दोनों वहाँ से चल पडे, किंतु वहाँ से हटने से पूर्व मैंने माँ से हाथ जोडकर कहा -- माँ!! हे मेरी माँ !!!

आप अपने सामने!! अपने नाम पर!! इन अपनी संतानों के कटने पर प्रतिबंध तो लगाओ!! और मैं निराश होकर चला आयी।

और तो और एक पण्डाल में मैंने प्रसाद के लिये हाथ आगे बढाया और पुजारी ने जब मेरे हाथ पर प्रसाद रखा तो उनके मुख से निकलने वाली शराब की दुर्गंध ने मेरे मन को आत्मग्लानि से भर दिया। और सच कहूँ तो मेरी अंतर्आत्मा ने उस महाप्रसाद के प्रति अनिच्छा सी भर दी!!

#स: #ना_भुक्त: #भोग्यं_वा_भोग्यताम:
हे प्रिय!!कालियातंत्र, अध्याय•२•के अनुसार शक्ति कदापि माँस, रक्त इत्यादि का भक्षण नहीं करतीं।
दुर्गा, कालिका यह कल्याण करने के लिये हैं!! यह भद्रकाली है,!!महाकाली है,!! भद्र अर्थात् कल्याण।

भद्र का अर्थ वध नहीं होता। ये मुझ पण्डित, पुजारीयों को सोचना चाहिये हम कसाई का छुआ हुआ जल नहीं पीतीं, उसे छोटी जात का कहती हैं और खुद हाथ में छुरी लेकर बकरे की गर्दन पर चलाते हैं!! हम तो!!महाचाण्डाल हुए न  ?

माँ के सामने उसी माँ के बच्चों की बलि!!यह भला कैसी उपासना है ?

और यदि पशु-बलि शास्त्र के किसी पन्ने में है भी तो वह पूरा तथाकथित व्याकरणाचार्यों के द्वारा शास्त्रों में अपनी सुविधानुसार अर्थों का अनर्थ कर मिश्रण करने वाले दुष्टों द्वारा  हम सनातनियों को बदनाम करने के लिये  बनाया हुआ पाखण्ड है।

हे प्रिय हमारे पुराणों में अनेक #क्षेपक_कथाओं को जबरदस्ती घुसा दिया गया है!!और कुछेक व्याकरण के मूर्खाचार्यों ने अर्थ का अनर्थ भी किया है!!न जाने कैसे-कैसे उलूक-तंत्र,उड्डीश तथा दत्तात्रेय तंत्र के नाम पर कपोल कल्पित हिंसा और दुष्ट प्रवृत्तियों को सिखाने वाली विधायें इन गृंथों में लिखी गयी हैं कि आज के वर्तमान परिदृश्य में हमारे आपके शिक्षित बच्चे हमारा ही उपहास उड़ाते हैं!!

और इन्ही कतिपय क्षुद्र गृन्थों के कारण आज कुछ तथाकथित तांत्रिक हमारे अशिक्षित ही क्या शिक्षित किन्तु अंधश्रद्धालू और लालची समाज को भी तंत्र मंत्र के नामपर ठगते रहते हैं!!

और इसी आधार पर वह वेदों में भी नरमेघ, गोमेघ, अश्वमेघ जैसे नाना प्रकार के घृणित कार्यों को ढूँढ लाते हैं,!!और अर्थ का अनर्थ करते रहते हैं!!
हे प्रिय!!मैं बंगाली ब्राम्हणी हूँ!!मेरे समाज के लोग अपने आप को "शाक्त" कहते हैं !!सामवेदी कहते हैं!!जात-पात छूवा-छूत तो मुझे भी जन्म घुट्टी में ही पिलाया गया था।

छिः!! कभी-कभी मुझे मेरे सामाजिक आचार-विचार पर घिन्न आती है। वाह रे पाखंड!!मुर्गी,बकरी,भेंड़ नहीं खाते!!किन्तु मुर्गा,बकरा,भेंड़ा खाने से --अरी!! बिचारे निरीह कबूतरों को भी देवी मईया को चढा कर खाने से कोई परहेज नहीं है

दिनभर राम-राम, कृष्ण की उपासना का स्वाँग, अपने आप को वैष्णव कहने का पाखण्ड, नारायण पूजा का स्वाँग करना तथा शाक्त कहलाने के नाम पर सामवेदी होने का ढोंग करते हुए!! बलि प्रथा  को वैध बताना।
मैं तो स्पष्टरूप से यह कहना चाहती हूँ कि---
हमें बलि प्रथा का पूर्णतया निषेध करना ही चाहिये!!

और यदि हम ऐसा नहीं कर पाते तो गुड खाओ और गुलगुले खाने से परहेज।
और इसी कारण कभी कभी हम आपको विधर्मियों के कतिपय तर्कों के समक्ष निरूत्तर हो जाना पड़ता है!!मैं सोचती हूँ कि गौ-वध को हम कहाँ से अनुचित ठहरा सकते हैं ?
यह तो वही बात हुई न कि अन्य सभी पशु- पक्षियों को नष्ट कर दो!!
शेष अगले अंक में------  #सुतपा!!
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Monday, 5 November 2018

नर्कचतूर्दशी

#नर्कचतुर्दशी पर विशेष प्रस्तुति-- द्वितीय अंक

#मैं_सत्य_कह_रही_हूँ_कि_वेश्याओं_से_बड़ा_काम_विजेता_कोई_हो_ही_नहीं_सकता!!

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!जहाँ तक मेरी अपनी सोच जाती है तो मैं यह समझती हूँ कि नरकासुर की कैद में पड़ी उन स्त्रीयों में से किसी ने किसी प्रकार अपना संदेश तद्कालीन मेरे प्रियतम जी अर्थात श्रीकृष्ण जी तक पहुँचाने का प्रयत्न किया होगा!! और तब कृष्ण ने एक योजना बनायी होगी!!

मैं समझती हूँ की कोठों और आतंकवादियों की अभेद्य दीवालों को तोड़ना बड़ी-बड़ी सेनाओं के वश में भी नहीं हुवा करता!!आज भी मुँबई कमाठीपुरा,सी•पी•टैंक• के एसे अनेक कोठे हैं!! जिनपर जब पुलिस के छापे पड़ते हैं तो वे वहाँ कैद बच्चियों को छुपे मार्गों से निकालकर ले जाते हैं!!

अतः श्रीकृष्ण जी ने अपनी पत्नी #सत्यभामा के साथ मिलकर कोई ऐसी योजना बनायी होगी कि जिसके द्वारा एक सुँदर स्त्री होने के कारण सत्यभामा तो नरकासुर के अंतः पुर तक पहुंच कर उसका वध कर देती हैं!! और दूसरी तरफ अपने सैन्य बल के साथ कृष्ण ने नरकासुर के किले पर आक्रमण कर उसकी सेना को पराजित कर दिया!!

किन्तु हे प्रिय!! इस ऐतिहासिक कथा में एक अद्वितीय मोड़ तो तब आता है,जब उन १६००० कन्याओं को उसके बंदी-गृह से मेंरे प्रियतम जी ने मुक्त कराया होगा!! मैं उन सभी बलात्कार तथा लव जेहाद की भेंट चढ़ी और कोठों में रहने वाली नारियों को #कन्या ही मानती हूँ, क्योंकि स्वेक्षा से नहीं बल्कि मानसिक अथवा बल के प्रयोग द्वारा ही उनके कौमार्य को भंग करने की कुचेष्टा की गयी!!

और तब वे कन्याएं, जिन्हे समाज घृणा की दृष्टि से देखता है!! वे मेरे प्रियतम जी से पूछती हैं कि #हम_घृणित_कन्याओं_को_कौन_सा_समाज_आश्रय_देगा_कौन_हमें_अपनायेगा ?

हे प्रिय!! मोपला ,भारत के विभाजन,कश्मीरी पंडितों की बच्चियों, बंगलादेश,सोमालिया,की युद्ध त्रासदी पे तो सभी आँसू बहाते हैं!!और ये भी हमारा बुद्धिजीवी समाज कहता है कि इन युद्धों में लाखों-लाख स्त्रीयों के साथ सामूहिक बलात्कार हुवे!!उन्हें #सेक्स_ट्राय की तरह यूज किया गया!!

छोटे-छोटे बच्चों को पहाड़ों के उपर से फेंक दिया गया, वृद्धों को जीवित गाड़ दिया गया,युवाओं को या तो बंदी बनाकर मजदूर बना दिया अथवा की उनकी गर्दन रेत दी गयी!! किन्तु एक अनुत्तरित प्रश्न किसी भी देश के इतिहासकारों ने कभी नही इतिहास में बताया कि जिन बलात्कार की शिकार स्त्रीयों को बाद में बचाया गया अथवा जो बच गयीं!! #उनका_बाद_में_क्या_हुवा ?

हे प्रिय!! मैं अपनी इन्ही कलमुंही आँखों से कश्मीरी पंडितों,सिख औरतों,बंगलादेश की हिन्दू बच्चियों और वेश्यालयों की वेश्याओं को देखी हूँ जिनके शरीर को सिगरेटों से दागा गया, जिनकी जाँघों पर आततायियों ने #पाकिस्तान_पाईंदाबाद लिखा!! जिनके स्तनों को काट डाला गया!! जिनके ओठों को को नोच खसोट कर अमिट निशान छोड़ दिये गये!!

और वे आज भी असम,पश्चिम बंगाल, दिल्ली,अमृतसर,की गलियों में एकाकी और अभिशप्त जीवन जी रही हैं!! पहले तो उन्होंने अपनी पेट की आग बुझाने को अपने शरीर को दस-दस रुपयों में बेचा!! और फिर गंदी बिमारियों से तड़पती हुयी एक दर्दनाक मृत्यु को प्राप्त हो गयीं!!और प्रत्येक कोठे की वेश्या की आखिरी यही नियति होती भी है!!

ये सरकारें,राजनैतिक दल,विश्व न्यायालय,शोषल और प्रिंट मीडिया, सामाजिक और मानवाधिकार संगठन युद्धों के बाद उन्हें भूल जाते हैं!! तो हे प्रिय!! नरकासुर की कैद से मुक्त हुयी वे बेबस कन्याएं कृष्ण से कहती हैं कि हम कहाँ जायें ?
हमारा क्या होगा ?
हमें कौन अपनायेगा ?

और ये समाज जैसा आज है! वैसा ही कल भी था!!और कल भी ऐसा ही रहेगा भी!!! किन्तु कृष्ण जैसे महापुरूष और शाषक तो बिरले ही होते हैं!! तब मेरे प्रियतम जी ने कहा कि तुम्हे पति चाहिये या संरक्षक ?

और इस बहशी दरिन्दों के बीच वही स्त्री सुरक्षित रह सकती है जिसकी माँग में किसी शशक्त के नाम का सिन्दूर हो!!अन्यथा गरीब की पत्नी तो पूरे गाँव की रखैल कही जाती ही हैं!!उन स्त्रीयों ने तो देख लिया और भुगत लिया था कि बहशी हवश के भूखों की वासना क्या होती है!!हाँ!! मैं सत्य कह रही हूँ कि वेश्याओं से बड़ा काम विजेता कोई हो ही नहीं सकता!!

शारीरिक भावनायें तो उनकी मर चुकी होती हैं!!बारम्बार बलात्कारों की शिकार हुयी ये बिचारी तो अपने स्त्रीत्व को पल-पल धिक्कारती हैं!!और तब मेरे प्रियतम जी ने कहा कि चलो आज से तुम सभी मेरी हो!!उन्होंने उन अभिशप्त स्त्रीयों को राज्याश्रय दिया!! अपने संरक्षण में रखा!!

और तभी तो आज के ही दिन नरकासुर के नर्क से मुक्त हुयी उन स्त्रीयों ने आज मुक्ति के दीपक जलाये!!दीपमालिका से मेरे प्रियतम जी के नगर को सजा दिया!!हे प्रिय!! आज के दिन मैं आपका आह्वान करती हूँ कि चलो आप भी ये प्रतिज्ञा करो कि आप भी अपने सहयोग से किसी ऐसी #कृष्णप्रिया का उद्धार करने का प्रयास करोगे!!और इसी के साथ इस द्वि-अंकीय श्रृंखला को पूर्ण करती हूँ-- आपकी #सुतपा!!
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