Saturday 23 February 2019

भारत

ऐ मेरे वतन के लोगों-जरा आँख में भर लो पानी अंक-३३

मेरे प्रिय सखा तथा प्यारी सखियों!!आज पुनश्च मैं आपके समक्ष सम-सामयिक भारतीय राजनैतिक घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में "पाकिस्तानी सेेना तथा उसके द्वारा संरक्षित अलगाववादी तथा आतंकवादी संगठनों" के संदर्भ में कुछ कहना उचित समझती हूँ!!

हे प्रिय!!यह वही "जैश ऐ मोहम्मद "आतंकवाद की फैक्ट्री है जहाँ मदरसे के नाम पर जेहादी हैवानों की फसल उगायी जाती है!!
वैसे इस एक ही "शैतानी-बंकर"में जैश-ए-मोहम्मद, मदरेसातुल असाबर, जामा मस्जिद पाकिस्तान के पारमाणविक हथियारों के जखीरे, रासायनिक हथियार,विशाल और अत्याधुनिक आतंकवाद प्रशिक्षण केन्द्र भी यहीं दुनिया की नजरों में धूल झोंक कर बने हुवे हैं!!

वैसे इसकी स्थापना तो मसूद अज़हर ने मार्च २००० में कंधहार काण्ड से छूटकर पाकिस्तान जाकर वहाँ की सरकार के सहयोग से की थी-"ख़ुद्दाम उल- इस्लाम​" भी इसी में संचालित होता है!! और हे प्रिय!!यह आपको जानकर आश्चर्य होगा कि आई•एस•आई• की सभी गतिविधियों का केन्द्र यह स्थान और अज़हर अब बन चुका है!!

और वैसे भी पाकिस्तान का यह इतिहास रहा है कि सन् १९४७ में ही आई•एस•आई• की स्थापना कबायली हमवों के असफल हो जाने के बाद कायदे आजम जिन्ना के संकेत से की गयी थी!!और इसको फलने फूलने के लिये सोवियत-संघ को तोड़ने के लिये धीरे-धीरे अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने खाद दी थी!!

वैसे यह भी मैं कहना उचित समझती हूँ कि इस संगठन की स्थापना सन् १९५४ में कश्मीर में अनुच्छेद 35A जोड़ने के तद्कालीन भारतीय संसद के विधेयक का लाभ उठाकर कश्मीर में अलगाववादी संगठनों को संरक्षण देने हेतु की गयी थी!!

किन्तु इस रक्तबीज रूपी भष्मासुर ने अपनी गतिविधियों को कई आयाम दिये- इसने कश्मीर ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान,सीरिया,ईराक,ईरान, पाकिस्तान और स्वयं अमेरिका में भी सुन्नी लोगों को प्रभावित कर लगभग इन सभी देशों में अलगाववादी और आतंकवादी दोनों प्रकार के संगठनों की मजबूत नींव रख दी!!

हे प्रिय!!और एक नवीन भूल भी सन् १९८० के दशक में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सी•आई•ए•ने की- लाहौर विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर हाफिज़ मोहम्मद सईद के द्वारा "लश्कर ऐ तैयबा"की स्थापना में सहयोग किया!!

और इसका उद्देश्य अफ़ग़ानिस्तान से रूसी सेनाओं को हटाना मात्र था- इस संगठन ने अपनी स्थापना  "वहाबी इस्लाम के आदर्श पर की थी!! और वहाबी ये वही नाम है जिसे भारत में भी आप "वहाबी और देवबंद उलूम"के रूप में जानते हैं!!

अब सोवियत संघ के टूटने के बाद जब रूसी सेना   अफगानिस्तान से हट गयी तो इसका उपयोग पुनश्च इराक और ईरान के पेट्रोलियम पदार्थों पर कब्जा करने के लिये "अल-कायदा" से इसे जोड़कर उन क्षेत्रों में प्रभावी किया गया!! किन्तु पाकिस्तान का उद्देश्य तो भारतीय कश्मीर था!!

और अंततः अलकायदा तथा लश्करे तैयबा ने अमेरिकी हथियारों से ही अमेरिका और भारतीय कश्मीर पर हमले करने शुरू कर दिये!!वस्तुतः कश्मीरी पंडितों को वहाँ से निकालने की ये एक पूर्व नियोजित शुरूआत थी!!

"शेष अगले अंक में लेकर उपस्थित होती हूँ!! #सुतपा" मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि इस लेख पर अपने अमूल्य विचार अवस्य रखें!!तथा इसे ज्यादा से ज्यादा अग्रेषित करें!!

आपकी वेबसाइट-
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ट्वीटर--- सुतपा
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ऐ मेरे वतन के लोगों-भाग-१
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ब्रम्हसूत्र भाग -१
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भक्ति सूत्र भाग-३ अंक ८१ से
http://www.sutapadevi.in/?p=888

शिवाष्टकम्-
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पर्व सनातन-
http://www.sutapadevi.in/?p=982
नृसिंहावतार एक तथ्यात्मक घटना
http://www.sutapadevi.in/?p=1088

गोपिका विरह गीत
http://www.sutapadevi.in/?p=1144
ऋग्वेदोक्त विष्णुसूक्त
http://www.sutapadevi.in/?p=1150

ऐ मेरे वतन के लोगों-जरा आँख में भर लो पानी भाग-२
http://www.sutapadevi.in/?p=1246

भक्त प्रह्लाद

नृसिंहावतार एक तथ्यात्मक घटना, अंक~८

🙏#हम_आप_और_हमारे_आश्रित_सम्पूर्ण_कुटुम्ब_को_हम_नर्कों_के_द्वारों_पर_ढकेल_रहे_हैं!! 🍃

🍁#प्रळयरवि_कराळाकार_रुक्चक्रवालं_विरळय_दुरुरोची_रोचिताशांतराल।।

🍃#कथाप्रसेड़्गेषु_च_कृष्णमेव,
           #प्रोवाय_यस्मात्_स_हि_तत्स्वभावः।
🍁#इत्थं_शिशुत्वेऽपि_विचित्रकारी,
           #व्यवर्द्धतेशस्मरणामृताशः     ।।

🌺हाँ प्रिय!!नृसिंहपुराण(•४१•३४▪)का यह श्लोक है!!और आज के शिच्छा जगत् में इस श्लोक को यदि मैं अपने शिशुवों के हेतु कसौटी मान लूँ तो आमूल- चूल एक नयी क्रांति समाजमें संभव हो सकती है! समाज में एक नयी क्रांति की जन्म-दात्री हो सकती है!!मैं आपको एक भेदकी बात बात बताती हूँ--

🌹#माँ_और_बचपनकी_स्मृतियाँ_प्रथम_गुरू_होती_हैं हमारी,परम् भागवत् कयाधू और देवर्षि नारदजी के संस्कारोंसे बाल मनतो प्रभावित था ही प्रहेलादका!

🌺किंतु शास्त्रीय संस्कारोंके अंतर्गत भौतिकीय जीवन में नाम का अप्रतिम योगदान होता है!!इस हेतु ऋषियोंनें #नामकरण_संस्कार की व्यवस्था भी की है यजूर्वेद•५•३•७•३१•में कहते हैं कि-
🌺#आयुर्वर्चोऽभिवृध्दिश्च_सिद्धिर्व्यवह्रतेस्तथा।।
आयु और तेजकी वृद्धि सांसारिक व्यवहारों में --
👌🏻 #सम्बोधनात्मक_उद्घोष_से_होती_ही_है!! 🌹

🌹 हे प्रिय!!हमारे ऋषियों नें ध्वनि-विज्ञान -- (Phonetics) तथा मनो-विज्ञान (Psychology)के आधार पर ही नामकरण की व्यवस्था की है,इस संदर्भ में पाराशरीय गृहसूत्र•१▪१७•२४▪में कहते भी हैं कि--
🍃#द्वयक्षरं_चतुरक्षरं_वा_घोषवदाद्यन्तरमन्तःस्थं।
🍁#दीर्घाभिनिष्ठानं_कृतं_कुर्यान्न_तद्धितम्।।
🍁#अयुजाक्षरमाकारांतंस्त्रियै_तद्धितम्।
🍁#शर्मब्राम्हरणस्य_वर्म_क्षत्रियस्य_गुप्तेतिवैश्यशुद्रम्

🍁 बालकके नामके प्रारंभ में #घोष जैसे कि-ग,घ, ज, झ,ड,ढ,द,ध,न,प,ब,भ,म,य,र,ल,व तथा ह इनमें से किसी अक्षरका चयन करें!तथा अंतमें दीर्घ-स्वरोंके साथ कृदन्त रखने का प्राविधान है!!तथा यह प्रकट भी है कि सभी शिशु प्रारंभ में #माँ जैसे घोष वाक्यों से ही बोलना प्रारम्भ भी करते हैं!!  🍃

🍁हे प्रिय!!कन्याओं के नामों में कोमलता,स्नेह, माधूर्य, सौन्दर्य,समर्पणादि गुणयुक्त प्राकृतिक स्त्रैणता युक्त नाम ही रखने चाहिये,परिणामतः जन्मसे ही इन घोष-सम्बोधनों से हममें तद्नुरूप गुणों का प्राकट्य होने से स्त्रीत्व-जनित माधूर्य का स्वबोध होगा ही! #यथा_नाम_तथा_गुणस्य! 🌺

🌹अतः ऐसा शुभ नामकरण राम,कृष्ण,ध्रूव,प्रहेलाद बुद्ध,सीता,सावित्री,राधा आदि रखनेकी परम्परा रही है!!तदोपरांत ऋषियों नें अथर्व वेद•८•२•१८•के श्लोक के अनुसार सात्विकता का संञ्चार करने हेतु-
अन्न-प्राशन संस्कारकी व्यवस्था दी है--
🌹#शिवौ_ते_स्तां_ब्रीहीयवावबीलासावदो_मधौ।
🌺#एतौ_यक्ष्मं_विबाधेते_ऐतौ_मुञ्चतो_अहंसः।।

🙏 जब हमारी संतान ६~७ मासकी हो जाती हैं!! उनकी पाचन-शक्ति परिपक्व होने लगती हैं! तब उन्हें क्रमशः पौष्टिक,सुपाच्य,स्निग्ध तथा सात्विक अन्नों को देने का संस्कार है यह!!मैं आपको एक विचित्र बात बताती हूँ!!मैं बंगाली हूँ,हमारे जातिगत संस्कार ही माँसाहारी हैं!!किंतु मेरे विचार से यह बिल्कुल ही गलत तथा प्रक्षेपित् अशास्त्रीय अमान्य संस्कार हैं!! 🌻और उसका कारण भी है कि हमारे यहाँ भी अन्न- प्राशन संस्कारों में ही क्या किन्ही भी संस्कारों में प्रथम--
#शाक_स्पर्श_तदोपरांत_ही_मांस_स्पर्षका_विधान_है

🌻आज हम अपनी संतानों को पाश्चत्यांऽनुकरणके कारण ये जो Fast food.Junk food देने लगे! जन्म से ही सैक्रीन से बनी टाॅफियाँ खिलाने लगे, अभक्ष्याऽभक्ष्य का विचार किये बिना गौ-मांस मिश्रित Cadbarias खिलाने लगे!!उसका दुष्परिणाम उनकी आँत,आँख तथा दाँतोंके कमजोर होते हम देख ही रहे हैं!!🌻

🌺 हे प्रिय!!मेरा उद्रेश्य आहार की शुद्धता से कहीं ज्यादा उसके उपलब्ध्य-स्रोतों पर भी आपके ध्यानाकर्षण  की है!!अन्यायोपार्जित धनादि विशय भोगोंसे हम आप स्वयम् तथा अपनी संतानों को एक प्रकार से सुवर्ण-निर्मित स्रुवा से हलाहल विषपान ही करा रहे हैं!!हम,आप और हमारे आश्रित सम्पूर्ण कुटुम्बको हम नर्कोंके द्वारों पर ढकेल रहे हैं!! 🌹 

शेष अगले अंकमें प्रस्तुत करती हूँ!! #आपकी_सखी_सुतपा" ......✍

Sunday 10 February 2019

Friday 21 December 2018

भक्ति सूत्र १३

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१३

#यह_जो_वासना_है_यह_जो_स्त्री_पुरुषका_भेद_है_बहुत_गहरा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवा में देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के तेरहवें सुत्र पुष्प को समर्पित करती हूँ--

#अन्यथा_पातित्वशड़्कया।।१३।।
अन्यथा वासना और संस्कारों के कारण गिरने की आशंका रहती है।
प्यारी सखियों तथा सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं कि--"अन्यथा पातित्व शञ्कया"इसके पुर्व के सूत्र में यह स्पष्ट किया गया था कि अगर दृढ निश्चय न हो तो पतन की संभावना रहती है!मै  आपको एक बात बताती हूँ कि ऐसी ही शंका होने पर पार्थ ने कहा भी था कि---

#चंचलं_हि_मन:_कृष्ण_प्रमाथि_बलवद्_दृढम्।
#तस्याहं_निग्रहं_मन्ये_वायोरिव_सुदुष्करम् ।।
क्योंकि हे कृष्ण ! यह मन बडा चंचल, प्रमथन स्वभाववाला, बडा दृढ और बलवान् है। इसलिये उसका वश में करना मैं वायु के रोकने की भाँति अत्यंत दुष्कर मानता हूँ।।
मेरे अनेकों अनेक जन्मों के कुत्सित संस्कार,घृणाति घृणित कर्म,मन की बहुत ही गहेराइयों तक बैठी वासना की घिनौनी जडें,और तिस पर भी ज्ञानी होने का अहंकार!!मैं एक बात कहूँ!!यह जो"वासना" है यह जो स्त्री-पुरुष का भेद है,बहुत गहरा है ,इस भेद ने महानतम ऋषि-मुनियों को भी नहीं छोडा।

और इसका कारण बताऊँ आपको!!मैंने यह महेसूस किया है कि आप जितना भी वासना से दूर भागोगे- वह आपको उतनी ही तेजी से जकड़ती जायेगी,--
शुकदेव जी को उनके पिता ने जनक विदेह के पास ज्ञान प्राप्ति हेतु भेजा,  तब जनक जी ने उन्हें अपने अंतःपुर में मे भेज दिया,वे जनक के शयनकक्ष में सो रहे थे रात्रि में जनक जी की पत्नी आकर उनके पास सो गयीं, बिचारे शुकदेव जी!! घबडा गये,वे जितना दूर घिसकने की कोशिष करते रानी उतना ही पास आती जातीं!!

अन्ततः शय्याका आखिरी शिरा आ गया! तब- अचानक शुकदेवजी को बोध हो गया,वे #हे_मेरी_माँ" कहकर महारानी से लिपट गये।मैं आपको कहूँगी तो आप मुझ पर हंसोगी!!क्यों कि मैं निःसन्तान हूँ,शायद मेरी बहुत सी सखियाँ इस बात को जानती भी होंगी, मेरे भौतिक पति मुझे अपनी "माँ" मानते हैं,और मैं उन्हें अपनी संतान मानती हूँ- #भोगेन_भुकताः_वयमेव_भुक्ताः"
हे प्रिय!!आज भी और इसी फेसबुक पर भी मेरे कई ऐसे पुरूष मित्र हैं!जो मुझे अपनी प्रेमिका,माँ,पत्नी, बहन,गुरू,शिष्या,कृष्ण और अपनी राधा मानते हैं!!और वो भी,भौतिकीय धरातल पर----

#कोई_एक_ही_मित्र_मुझे_इन_सभी_सम्बंधों_में_बाँधकर_रखते_हैं!!और मैं भी उन्मूक्त भाव से उन सभी को अपना,पिता,कृष्ण,संतान,शिष्य,पती इत्यादि - इत्यादि मानती हूँ!किंतु हमारा ये प्रेम शारीरिक, भौतिक, ही क्या सूक्ष्म-धरातलों को भी पार कर मानसिक चैतन्यता की दहेलीज पर दस्तक देता है! दूर्लभ और अलौकिक प्रेम है हमारा!!मैं आपको यह कहना चाहती हूँ कि कुछ भटके हुवे लोग "संभोग से समाधी"की बात तो कहते हैं किंतु उसकी आड़ में "स्वच्छन्दता" का आचरण करते हैं,,
कपोल कल्पित विधियों की कुलाचारके नाम पर आड लेकर!! "यौगिक_साहित्य"के नाम पर प्रचारित करने का घृणिततम कुत्सित अति भयावह जो प्रयास कर रहे हैं वह यह नहीं समझ पाते कि उनकी साजिश के कारण समाज की कितनी बौद्धिक क्षत्ति हो रही है।

प्यारी सखियों!भगवान दत्त्तात्रेयजी अवधूत गीता में कहते हैं कि--
#जानामि_नरकं_नारी_ध्रुवं_जानामि_बन्धनम्।
#यस्यां_जातो_रतस्तत्र_पुनस्तत्रैव_धावति।।
मैं  नारीको नरक रूप जानता हूँ,निश्चय ही वह बन्धन का कारण है यह भी जानता हूँ। मनुष्य जिससे उत्पन्न होता है  उसी में फिर रत होता है व बार-बार उसी ओर दौडता है। वासना के प्रवाह को मैं रोक नहीं सकती किंतु उसकी धारा को मोड़ जरूर सकती हूँ। बस एक बार अगर मैं किसी भी पुरुष के प्रति अपने लगाव को ,किसी भी स्त्री के प्रति अपने लगाव को सखी भाव में बदलने में,सफल हो गयी तो फिर तो!!#वासुदेवः_सर्वम्"

सखियों!!याद रखना,,जब वासना की आँधी चलती है तो पाराशर,विश्वामित्र,नारद जैसे "महा-वृक्ष"धराषायी हो जाते हैं,किंतु!!गोपियाँ,मीराबाई जैसी!!अपने को "दासी,सेविका,तृणमूल"समझने वाली कृष्ण दासियाँ भक्ति-मार्ग से नहीं भटकतीं। अप्सराओं ने तो अनेकों ऋषियों का तप भंग कर दिया,पर कोइ ऐसा गंधर्व आज तक नहीं जन्मा जो हम दासियों को अपने स्वामी से पृथक कर सके। इसीलिये मैं बार बार कहती हूँ कि इस झूठे पुरुषत्व के दंभ को छोड कर आओ मैं भी दासी हूँ अपने प्रियतम की!!आप की भी प्रिया हूँ!आप भी मेरे ह्रदयेश्वर हैं!! आप भी उनकी दासी बन जायें।

हाँ सखी यही अमृत-स्वरूपा भक्ति है, भक्ति-सूत्र का!शेष अगले अंक में......

भक्तिसूत्र~१२

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-१२

#मेरे_जन्म_लेनेके_पूर्व_ही_जिन्होंनें_मेरी_माँ_के_स्तनों_को_अमृत_से_भर_दिया!!
प्यारी सखियों!!षट् सूत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के बारहवें सुत्र पुष्प समर्पित करती हूँ--

#भवतु_निश्चयदाढर्चादूर्ध्वे ॥१२॥
परम प्रेम रूपा भक्ति कि प्राप्ति का दृढ निश्चय हो जाने के बाद भी शास्त्र रक्षा करनी चाहिये।
प्यारी सखियों,तथा प्रिय सखा वृँद!!नारद जी कहते हैं,कि- "भवतु निश्चयादृढ"निश्चय का दृढ होना!!मेरी सबसे बडी समस्या यही है, मै  जब छोटी सी थी तो मेरे नानू जी मुझे अपनी बाँहों में लेकर प्यार से खूब उँचा उँचा उछालते थे!बहुत मजा आता था,मैं हवा में उडती हुयी खिलखिलाती रहती थी!!

किंचित मात्र भी भय नहीं लगता था।मैं अपने नाना जी के होते हुवे भला कभी गिर सकती हूँ ? यह"दृढ-विश्वास था मुझे अपने नाना जी पर। लेकिन जिन मेरे प्रियतमजी ने मेरे लिये सूर्य,चन्द्र, नक्षत्र, इतनी सुंदर धरती,शीतल- मंद हवायें,अमृत समान जल,नदियाँ,सुंदर सुगंधित पुष्प,पक्षियों का मधुर कलरव बनाया--
#जिनु_तन_दियो_ताहि_बिसुरायो_ऐसों_लौंण_हरामी
#मों_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी!!
अरे!! मेरे जन्म लेने के पूर्व ही जिन्होंनें मेरी माँ के स्तनों को अमृत से भर दिया!!इतना सब कुछ मेरे लिये करने वाले पर मुझ मति-मूढा,अज्ञानी,घनघोर स्वार्थिनी को भरोषा नहीं है ? उन पर ही विश्वास नहीं है ?अपने ह्रिदयनाथजू,अपने प्राणाधार पर ही मुझे विश्वास नहीं है ? #मो_सम_कौन_कुटिल_खल_कामी

जितना इस बात को सोचती हूँ,उतनी ही नत मस्तक होती जाती हूँ!! अपने श्री नाथ जी के चरणों में।
और मुझे दिन प्रति दिन,छण प्रति छण अपने स्वामी जी पर पूरा भरोसा होता ही जा रहा है।और जैसे जैसे मेरा उन पर विश्वास दृढ होता जायेगा---
#अग्रे_कुरूणामथ_पाण्डवानां_दु:शासनेनाह्रतवस्त्रकेशा।
#कृष्णा_तदाक्रोशदनन्यनाथा_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।
#श्रीकृष्ण_विष्णो_मधुकैटभारे_भक्तानुकम्पिन्_भगवन् मुरारे ।
#त्रायस्व_मां_केशव_लोकनाथ_गोविन्द_दामोदर_माधवेति ।।

जब  दुःशाषन से अपनी इज्जत बचाने को द्रौपदी तड़प-तड़प कर भी नहीं बच पा रही थी तब!! त्रिभुवनको पराजित करने में सक्षम अपने पाँच-पाँच पतियों,कर्ण,अश्वष्थामा धृतराष्ट्र,सञ्जय,कर्ण, द्रोणाचार्य,आचार्य भिष्म- पितामह जैसे धर्म-तत्व तथा शस्त्रवेत्ताओं के होते हुवे भी!! जब इतने धुरन्धर आचार्य महायोद्धाओं ने भी साक्षात् अधर्माऽवतार दूर्योधन तथा दुःशाषनादिके समक्ष अपने आपको किंकर्तव्यविमूढ सा पा लिया था #तब_द्रौपदीने_अपनी_साड़ी_छोणदी_अपने_दोनों #हाथ_उपर_उठा_दिये_चैतन्य_महाप्रभुजी_ने_अपने #दोनों_हाथ_खड़े_कर_दिये--

"अब सौंप दिया इस जीवन का सब भार तुम्हारे हाथों में।
मेरी जीत तुम्हारे हाथों में,मेरी हार तुम्हारे हाथों में।
और जब मैं ऐसा दृढनिश्चय कर चुकी हूँ तो दृढर्चादूर्ध्वे
फिर भी!शास्त्रों की रक्षा तो मैं करूँगी हीसखियों!मैं अपने दुःखों और सुखों की परवाह नहीं करती,लेकिन मैं  भोजन करती हूँ,पानी पीती हूँ,स्वाँस लेती हूँ,जमीन पर चलती हूँ,प्रकाश में देखती हूँ!! अगर यह सब करती हूँ!तो उनको धन्यवाद तो दूँगी ही।
मैं जन्म से तो कुछ भी नहीं जानती थी,गुरुजनों की कृपा से कुछ गीता-भागवत पढकर ही तो मेरे पिया जी!! को पहचानने लगी हूँ,तो भला उन गुरुजनों, शास्त्रों,संतो की-उनकी वाणी की,उनकी संस्कृति की रक्षा करना भला मैं कैसे त्याग सकती हूँ।

अपने प्रियजी की आज्ञा से बढकर तो कूछ होता नहीं!!और उन्होंने ही मुझे श्रीगीताजी•१६•२४•में आदेश दिया है कि मुझे क्या करना चाहिये और क्या नहीं!!इसकी व्यवस्था में शास्त्र ही प्रमाण हैं!!अतः मुझे उनके अनुसार चलना ही होगा-
#तस्माच्छास्त्रं_प्रमाणं_ते_कार्याकार्यव्यवस्थितौ।
#ज्ञात्वा_शास्त्रविधानोक्तं_कर्म_कर्तुमिहार्हसि।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में !!

भक्तिसूत्र~११

भक्तिसूत्र प्रेम-दर्शन देवर्षि नारद विरचित सूत्र-११

#हमारे_शास्त्रोंनें_तो_मृत_शरीरके_अन्तिम_संस्कारको_भी_नर_मेघ_यज्ञ_कहा_है!!
प्यारी सखियों!!षट् सुत्रों की  ह्यदय स्पर्श कर लेने वाली श्रृञ्खला के अन्तर गत मैं पुनःआप सबकी सेवामें देवर्षि नारद कृत भक्ति-सूत्र के ग्यारहवें सूत्र को प्रस्तुत कर रही हूँ---

#लोकवेदेषु_तदनुकूलाचरणं_तद्विरोधिषूदासीनता।११
लौकिकऔर वैदिक कर्मों में उसके(त्याग के) अनुकूल कर्म करना ही उसके (त्याग के)विरोधी कर्म करना है।
प्यारी सखियों,तथा सखा वृँद!!मैंआपको एक रहस्य की बात बताती हूँ,!! #जो_आप_जैसे_ज्ञानी_होते_है, #वे_मानते_नहीं_सम्मान_करते_है!! मानने और सम्मान करने में विलक्षण अंतर है। प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने सोचा था कि दो-चार वर्षों में एक बार पूरे विश्व के साधू संत एक जगह एकत्रित होकर एक साथ ज्ञान-योग-भक्ति-काम पर चर्चा कर सकें--कीसी ऐसे वार्षिकोत्सव  का आयोजन किया जाये!!

और उन्होंने इस उत्सव का नाम दिया "#महा_कुँभ"
तो आप देखो आज भी यह परम्परा अबाध गति से चल रही है,और इन स्थानों पर जाकर हम आप एक साथ अनेक महापुरुषों की ज्ञान चर्चा का आनंद उठाते हैं।बाकी यह तो सभी जानते ही हैं कि असली #अमृत तो यह ज्ञान-भक्ति रूपी कुंभ ही है।
राम ने अश्वमेघयज्ञ किया,जनक ने सैकणों यज्ञ किये, कृष्ण,याज्ञवल्क्य,अत्रि,उद्दालक,वशिष्ट,विश्वामित्र, आरुणी,जमदग्नि आदि हजारों हजार ऋषि-मुनियों ने यज्ञादि वेद विहित कर्म किये,किन्तु उनके वे कर्म किसी लौकिक या पारिलौकिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु नहीं होते थे।

वे यह कार्य वैदिक मर्यादा की रक्षा के लिये करते थे, ताकि ऐसे सार्वजनिक अनुष्ठानों में आकर संत- महापुरुष अपनी ज्ञान चर्चा के द्वारा--
#महाजनाः_गताः_ते_पन्था" साधारण जन समुदाय का पारलौकिक मार्ग दर्शन कर सकें।मेरी सखियों!! हमारे शास्त्रों ने तो "स्त्री-पुरुष के सहवास"को भी पुत्रेष्टि यज्ञ कहा है!! हमारे शास्ज्ञों में तो मृत शरीर के अन्तिम संस्कार को भी #नर_मेघ_यज्ञ" कहा है। वैवाहिक संस्था की स्थापना काम-वासना पर नियन्त्रण के लिये है,अतः ज्ञानी पुरुष,सच्चा भक्त,एक योगी!!सभी अच्छे लौकिक कर्मों को  बिना किसी भी परिणाम की इच्छा से करता ही है।

और भी!! एक खतरनाक बात कह देती हूँ कि,अगर उसे किसी कारण वश बाध्य किया गया अनैतिक कार्य के लिये तो फिर जन्म लेते हैं---
#हीरण्याक्ष_हीरण्यकश्यप_रावण"हे प्रिय सखा वृँद!!
किंतु सूत्र में स्पष्ट कहते हैं कि- #जाके_प्रिय_न_राम_वैदेही।
#तजिये_ताहि_कोटि_वैरी_सम_यद्यपि_परम_सनेही।।
जितने भी शास्त्रिय कर्म हैं,नित्य-नैमित्तिक-काम्य
तथा निषिद्ध ये भी भक्ति-मार्ग में महत्वहीन हो जाते हैं!! आप कल्पना तो करो!!अर्ध-रात्रिमें मेरे प्रियजी के आमन्त्रणको पाते ही वे #गोपियाँ_अपने_पती #संतान_भाई_माँ_बाबा_कुल_लोक_लज्जाको_तिलाँजली_देकर_उनके_श्रीचरणों_मे_दौड़_पड़ीं!!

मैं एक असामाजिक बात कहूँगी!!जिन्हें उनके नाम की क्षुधा लग गयी!! तब तो पुत्र अपने पिता की आज्ञा, कन्या अपने कुलके संस्कार,माँ अपनी संतान के प्रति कर्तब्य,पत्नीयाँ अपने कंत,और शिष्य अपनी गुरु-आज्ञाका भी उल्लँघन कर जाते हैं-
#तज्यो_पिता_प्रहेलाद_विभीषण_बंधु_भरत_महतारी
#गुरु_बलि_तज्यो_कंत_बृज_वनिता_भये_मुद_मँगलकारी।।
हे सखी!! गोपियोंके प्रेम में राग का अभाव नहीं है!! बल्कि पराकाष्ठा है उनमें राग की!ऐसा अद्वितीय राग! जो कि सभी सम्बंधों-स्थानों से सिमटकर-- #भोग_और_मोक्षके_दुर्लभतम्_प्रलोभनों_से_ऊपर_उठकर_श्रीकृष्णार्पित_हो_गया!!

तभी तो मेरे पियाजी!!कहते हैं कि,हे अर्जुन!गोपियाँ अपने शरीरकी रक्षा मेरी सेवाके लिये करती हैं! गोपियों के अतिरिक्त मेरे निगूढ प्रेमका पात्र त्रिभुवन में नहीं है--
#निजाड़्गमपि_या_गोप्यो_ममेति_समुपासते।
#ताभ्यः_परं_न_मे_पार्थ_निगूढ_प्रेम_भाजनम्।।
हाँ सखी यही इस सूत्र का भाव है!भक्तिसूत्र का!शेष अगले अंक में!!आपकी #सुतपा
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अपनी सांस्कृतिक विरासतों को अक्षूण्य रखने के प्रयासान्तर्गत आपके लिये मैं एक उपहार आज प्रस्तुत कर रही हूँ!! मेरे प्रिय प्रियतमजी तथा प्यारी भारत माँ के श्री चरणों में यह वेबसाइट प्रस्तुत करती हूँ!!आप सभी से आग्रह है कि इस दिये गये लिंक पर क्लिक कर वेबसाइट को #लाइक करते हुवे अपनी अमूल्य टिप्पणियाँ अवस्य ही देंगे--

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